शौचालय कम, मोबाइल ज्यादा

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-अतुल तारे

क्या यह आंकडा भारत सरकार की आंखे खोल देने के लिए पर्याप्त नहीं है कि भारत में शौचालय से ज्यादा मोबाइल हैं? संयुक्त राष्ट्र की युनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर वाटर एनवायरमेंट एंड हेल्थ की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 54.5 करोड मोबाइल हैं जो देश की 45 फीसदी आबादी की जरुरत को पूरा करता है। पर सन् 2..8 तक भारत में 36.6 करोड ही शौचालय थे, जिनसे 31 फीसदी आबादी की जरुरत ही पूरी हो पाती है। रिपोर्ट का आकलन है कि सन् 2.15 तक भारत में लगभग एक अरब जनसंख्या के पास शौचालय नहीं हों।

शौचालय एवं मोबाइल इन दोनों का सीधा कोई अर्न्तसंबंध नहीं है, पर यह भारत के अनियोजित एवं दिशाहीन विकास की बानी अवश्य प्रस्तुत करता है। मात्र यह आंकडा ही यह प्रमाणित करने के लिए पर्याप्त है कि विकास की परिभाषा को लेकर ही हमारे नीतिकार या तो भ्रम में हैं या फिर वे नींद में सपने देख रहे हैं। कारण यह भी एक तथ्य है कि भारत की 42 फीसदी आबादी आजादी के छह दशक बाद भी रीबी रेखा के नीचे है। वहीं भारत के धन कुबेर विश्व के अमीरों की सूची में भी अपना नाम दर्ज करा रहे हैं। एक तरफ भारत पेट्रोल, डीजल का आयात कर अरबों की विदेशी मुद्रा खर्च कर रहा है, पर आज तक इस बात पर गौर करना जरुरी नहीं समझा जा रहा कि भारत में आखिर दो पहिया एवं चार पहिया वाहनों की इतनी आवश्यकता क्या है? एक ही परिवार में चार सदस्यों के चार कमरों में चार टेलीविजन, चार दो पहिया वाहन, दो कारें एवं दस-दस मोबाइल सेट हमारी जीवन शैली का हिस्सा बन रहे हैं। वहीं आधी आबादी दो जून रोटी तो क्या साफ पानी के लिए भी तरस रही हैं। दंतेवाडा का नरसंहार बेशक निंदनीय है और इनसे सख्ती से निपटना ही मात्र एक विकल्प पर देश के विकास का कडवा सच दंतेवाडा में दिखाई दो। यहां प्रकृति ने तो अपने प्रेम की भरपूर बरसात संसाधनों के जरिए की है। पर स्थानीय निवासी आज भी नरकीय जीवन जीने के लिये विवश हैं। जाहिर है देश के कर्णधारों को संयुक्त राष्ट्र संघ की इस रिपोर्ट के प्रकाश में अपनी विकास यात्रा पर गौर करना चाहिए।

प्रसंगवश, ताईवान के तत्कालीन राष्ट्रपति आज के तीन दशक पहले एक बार भारत आए थे। उनके पैरों में टायर की चप्पल थी। अखबारनवीसों ने उनसे सवाल किया कि आप राष्ट्रपति और पैरों में टायर की चप्पल। राष्ट्रपति का जबाव था कि मैं खुशनसीब हूं कि मेरे पांव में चप्पल है। मेरा देश रीब है, और उनके पास तो चप्पल भी नहीं है।

क्या देश के जनप्रतिनिधि जो हर दूसरे दिन करोडपति हो रहे हैं, क्या देश के नौकरशाह जिनके घर अरबों की सम्पत्ति उल रहे हैं, भारत का दर्द भारत की पीडा समझने के लिए भारत को भारत की निगाह से देखने की जुर्रत करें? कारण यह भी एक सच है कि नेतृत्व करने वाले के पास कई बार खुद की आंखें और कान होते ही नहीं है। जाहिर है सावन के अंधे से कुछ और कल्पना करना भी बेमानी है। यही कारण है कि आज भारत में मोबाइल के जरिए न केवल अरबों की फिजूल की बातें हो रही हैं, हजारों-हजारों कीमती घंटे भी बर्बाद हो रहे हैं। और यह बर्बादी सांकेतिक अर्थों में कहें तो शौचालय के अभाव में पूरे परिवेश को ही शौचालयमय बना रहे है। कारण हम देख रहे हैं कि यह विदूपता, यह असमानता, यह अवसरवादिता भारत में एक ऐसी सडांध को पैदा कर रही है। जिससे निजात आज देश की सर्वोच्‍च प्राथमिकता होनी चाहिए। उम्मीद की जानी चाहिए देश का नेतृत्व विकास को सम एवं सही परिवेश में लो और देश को एक स्वस्थ वातावरण।

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अतुल तारे
सहज-सरल स्वभाव व्यक्तित्व रखने वाले अतुल तारे 24 वर्षो से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। आपके राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और समसामायिक विषयों पर अभी भी 1000 से अधिक आलेखों का प्रकाशन हो चुका है। राष्ट्रवादी सोच और विचार से अनुप्रमाणित श्री तारे की पत्रकारिता का प्रारंभ दैनिक स्वदेश, ग्वालियर से सन् 1988 में हुई। वर्तमान मे आप स्वदेश ग्वालियर समूह के समूह संपादक हैं। आपके द्वारा लिखित पुस्तक "विमर्श" प्रकाशित हो चुकी है। हिन्दी के अतिरिक्त अंग्रेजी व मराठी भाषा पर समान अधिकार, जर्नालिस्ट यूनियन ऑफ मध्यप्रदेश के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष, महाराजा मानसिंह तोमर संगीत महाविद्यालय के पूर्व कार्यकारी परिषद् सदस्य रहे श्री तारे को गत वर्ष मध्यप्रदेश शासन ने प्रदेशस्तरीय पत्रकारिता सम्मान से सम्मानित किया है। इसी तरह श्री तारे के पत्रकारिता क्षेत्र में योगदान को देखते हुए उत्तरप्रदेश के राज्यपाल ने भी सम्मानित किया है।

3 COMMENTS

  1. भारतवर्ष एक समय सोने की चिड़िया के रूप में सारी दुनिया में जाना जाता था ,इस देश की संस्कृति,सभ्यता,समृधि दुनिया के लिए आदर्श हुवा करती थी ,किन्तु पहले मुग़लों ने फिर अंग्रेजों ने शोषण किया , आज़ादी के बाद रही सही कसर कांग्रेस ने पूरी की जिसने इस देश पर लगभग ५५ वर्षों तक शासन किया इस पर माननीय अटल बिहारी बाजपेई जी ने सच ही कहा है की “मिट गया इमान-नेता बेईमान” फिर भी मेरा भारत महान,इस देश के नीति निर्धारकों और शासकों को सोचना होगा की कृषि प्रधान इस देश के विकास का मूल खेत-गाँव और ग्रामीण है ,आम नागरिक का मतलब गाँव से है केवल भोतिक साधनों के विस्तार से देश समृद्ध शक्तिशाली नहीं बनेगा इस के लिए आधुनिकता के पीछे अंधी दौड़ हमें कहाँ ले जा रही है ये सत्य उक्त लेख से स्पष्ट जाहिर हो रहा है …विजय सोनी अधिवक्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

  2. भारतवर्ष एक समय सोने की चिड़िया के रूप में सारी दुनिया में जाना जाता था ,इस देश की संस्कृति,सभ्यता,समृधि दुनिया के लिए आदर्श हुवा करती थी ,किन्तु पहले मुग़लों ने फिर अंग्रेजों ने शोषण किया , आज़ादी के बाद रही सही कसर कांग्रेस ने पूरी की जिसने इस देश पर लगभग ५५ वर्षों तक शासन किया इस पर माननीय अटल बिहारी बाजपेई जी ने सच ही कहा है की “मिट गया इमान-नेता बेईमान” फिर भी मेरा भारत महान,इस देश के नीति निर्धारकों और शासकों को सोचना होगा की कृषि प्रधान इस देश के विकास का मूल खेत-गाँव और ग्रामीण है ,आम नागरिक का मतलब गाँव से है केवल भोतिक साधनों के विस्तार से देश समृद्ध शक्तिशाली नहीं बनेगा इस के लिए आधुनिकता के पीछे अंधी दौड़ हमें कहाँ ले जा रही है ये सत्य उक्त लेख से स्पष्ट जाहिर हो रहा है …विजय सोनी अधिवक्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

  3. Bhai saheb yah to hona hi tha….afterall shauchalaya aam taur par shared facility hota hai par jaha tak mobile ka sawal hai to ab to bachho ko bhi apana mobile chahiye…….par mobile ka badhta prayog paryavaran va manav dono ke liye ghatak hai….ye bat jaroor dhyan me rakhni hogi

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