पूर्वोत्तर की समस्या का उपचार : शिक्षा और रोज़गार

गुलशन कुमार गुप्ता

प्राकृतिक परिवेश में रहना बेशक जीवन का एक सुन्दरतम अनुभव है, लेकिन २१वीं सदी में इसकी कल्पना सिर्फ कोरी ही होगी, क्योंकि आज की सांसारिक गतिविधियां हमे उस ओर ध्यान देने का मौका नहीं देती | लेकिन फिर जब पूर्वोत्तर आज भी अपने दामन में वो सारी खुशियाँ सहेजे हुए हैं तो २१वीं सदी उसके दामन में खिले फूलों की मुस्कानों को कम कर रही है क्योंकि आज उसके बागीचे में खेलने के लिए कोई पीढ़ी वहां ठहर नहीं रही है, कारण वहां ना पढ़ने के लिए उच्चस्तरीय संस्थान हैं ना पढ़ने के बाद आमदनी देने वाली बड़े उद्योग-धंधे हैं |

पूर्वोत्तर पिछले कई सालों से उग्रवाद से या कहें एक तरह के आतंकवाद से जूझ रहा है, भ्रष्टाचार को बढ़ावा यहीं से मिलता है, विकास में बाधा यहीं से शुरू होती है |

NSCN- NATIONAL SOCIETY COUNCIL OF NAGA.

(नेशनल सोसाइटी कौंसिल ऑफ़ नागा.) उल्फा की तरह यह भी एक उग्रवादी संगठन है जो अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर, असम आदि पूर्वोत्तर भारत के प्रदेशों में अपनी पैठ बनाये हुए है और सबसे पुराना भी है | पूरे पूर्वोत्तर में इस तरह के जितने भी उग्रवादी संगठन हैं, कहने को इनकी स्थापना वहां स्थानीय जनता का हित करने के लिए की जाती रही है ताकि आम आवाज़ खास कानों तक पहुँच सके, असल में धीरे धीरे ये आस्तीन के सांप बन बैठे और आज की हालत ये है कि जहाँ-जहाँ ये संगठन पनपे, वहीं से उतनी सीमा को ये नए राज्य में तब्दील करने की कवायद में असवैंधानिक तत्वों और अराष्ट्रवादी विचारधारा के साथ हाथ मिला रहे है | क्योंकि इनका कैंप जंगलों में रहता है, वहीँ के जंगलों में इन्हें विभिन्न प्रकार का प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि बीएसएफ (BSF) और आर्मी (ARMY) से लड़ सकें. और क्योंकि ये लोग वहाँ का चप्पा-चप्पा

Indian Army in Northeast India

जानते है जबकि BSF और ARMY के जवान वहां के इतने जानकार नहीं होते इसलिए उनका प्रभाव जंगलों और नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में कम देखने को मिलता है.

NSCN दो गुटों में बंटा हुआ है- एक को NSCN(I M) के नाम से जानते हैं. अर्थात आयिशाक (ISHAK) और मोइवा (MOIWA). ये दोनों यहाँ सबसे अधिक खतरनाक माने जाते हैं. दूसरा है- NSCN (K) अर्थात खापलांग (KHAPLANG). पहले जब NSCN संगठित था, पूरा संगठन खापलांग के हाथों में था.. और जिसकी विशेष मांग एक नया प्रदेश हासिल करने की है और संभवतः यही है SUPRA STATE BODY |ये खापलांग (KHAPLANG) भारत में कम और बर्मा (म्यांमार) में ज्यादा रहता है. क्योंकि अरुणाचल और मणिपुर की सीमा बर्मा (म्यांमार) से जुडी हुई है इसलिए जब इसे पकडे जाने या किसी प्रकार की प्रशासनिक हलचल का भ्रम होता है यह म्यांमार की सीमावर्ती इलाकों में निकल जाता है. इन लोगों की शक्लो-सूरत भी म्यांमार के लोगों से मिलती जुलती है.

जो हाल छत्तीसगढ़, झारखण्ड और उड़ीसा आदि राज्यों का नक्सलवाद के कारण है, वही हाल पूर्वोत्तर के राज्यों का उल्फा और NSCN के कारण है. इन क्षेत्रों में कई आदिवासी जनजातियाँ बसी हैं- जिनमे नागा, सिम्फो, बोडो, कार्बी आदि कई जनजातियों के लोग रहते हैं.. ये संगठन किस प्रकार वहां आतंक फैला रहे हैं इसका एक उद्धरण इस प्रकार है–

14 वर्ष के पम्मुन खुम्रांग (PAAMUNG KHUMRANG) (बदला हुआ नाम) जो जाति से नागा और चांगलांग के ही निवासी हैं, बताते हैं कि “NSCN के लोग हमारे कबीले और कई दुसरे कबीलों के बच्चों को कई बार उठा कर ले गए हैं, उनके लोग आकर हमसे जबरदस्ती पैसा मांगते हैं और नहीं देने पर लूटपाट और मनमानी करते हैं.”

आदिवासियों को तंग करना, जबरन वसूली करना, बच्चों को उठा ले जाना, प्रदेश बंद का ऐलान करना, परिवहन सेवा ठप्प करना, दहशतगर्दी आदि ये यहाँ आये दिन होते रहता है. और यहाँ किसी कि जान लेना तो ठीक वैसा ही है जैसे अरुणाचल के लोग गुलेल या किसी हथियार से आसमान में उड़ते पंछी या मैदान में दौड़ते जानवरों को मारते हैं.

जितने भी इस प्रकार के संगठन हैं, उनका उद्देश्य अपने स्वार्थी हितों को पूरा करना ही है | इसलिए अपनी फ़ौज में ये लोग गरीब युवाओं-युवतियों को लालच देकर, बरगलाकर या कहें MIND WASH करके हाथों में हथियार थमा देते हैं | मैं ये आरोप नहीं लगा रहा हूँ, ये वाणी इसी तरह बरगलाये गए एक युवा की है, मैंने सिर्फ शब्द दिए हैं |

इस तरह हजारों की संख्या में कई युवा अपना भविष्य उन हाथों में सोंप चुके हैं, जिनमे से कई या तो भारतीय फ़ौज की गोली से शांत हुए या समर्पण कर नया जीवन जी रहे हैं | शायद अब उन युवाओं की समझ में उनकी नादानी का परिणाम आ गया है, इसलिए उन संगठनों की ताकत कमजोर पड रही है | अब वहां की पीढ़ी का बचपन जरुर अपने प्रदेश में बीतता है लेकिन युवा होता है दिल्ली विश्वविद्यालय में, जे. एन. यू. में| आमदनी करता है महारष्ट्र में, कलकत्ता में, अवसर हो तो विदेश में भी |

ये एक प्रमुख कारण है कि इनकी (उग्रवादी संगठनों की) संख्या में कमी हो रही है, अब ये कोई उत्पात उतने शोर से नहीं मचा पाते, जितना दम पहले भरते थे |

एक गुप्त सूचना के अनुसार भोगाली बिहू (मकर संक्रांति) के बहाने उल्फा ने नागालैंड-असम सीमावर्ती जंगलों में एक उत्सव किया था, जिसमे NSCN(K) के चीफ कमांडर खापलांग विशेष रूप से आमंत्रित थे | इससे साफ़ होता है कि क्योंकि इनके पास धन के साथ-साथ मानवशक्ति की भी कमी हो रही है, अत: अब ये कई संगठन एक होकर अपनी शक्ति को बढ़ाने की चेष्टा में लगे हुए हैं, कि कहीं ढीले पड गए तो लोगों के मन से इनका डर ना जाता रहे |

पूर्वोत्तर स्वर्ग की तरह सुन्दर है लेकिन इसकी सुन्दरता पर जो दाग लगा है वो तभी मिट सकता जब यहाँ का जनजीवन सामान्य हो. लोगों कि मूल आवश्यकताएं उचित मात्रा में पूरी हों. गैर- क़ानूनी और क्रूर गतिविधियों में लिप्त विभिन्न संगठनों को समाप्त किया जाये या उनकी समस्या सुनकर उसे सामूहिक रूप से सुलझाया जाये. यदि केंद्र, राज्य और मीडिया के लोग इस ओर अपना ध्यान नहीं देंगे तो उन संगठनों की शक्ति निरंतर बढती रहेगी. उदाहरण के लिए बंगलादेश से होने वाली घुसपैठ लगातार बढ़ रही है और इसका असर हम चुनावों में साफ़ देख सकते है । इसमें कोई संदेह नहीं कि पडोसी मुल्क भी इसका लाभ उठाना चाहें, हो सकता है कि (बल्कि ऐसा है ) चीन जैसे देशों से इन संगठनों को पहले से ही संरक्षण प्राप्त हो. यदि ऐसा होता है तो निश्चित रूप से ये भारत और भारतीयों के लिए कुछ समय बाद हानिकारक साबित होगा ।

युवा पीढ़ी का वहां से लगातार पलायन हो रहा है | कारण साफ है जहाँ रहने के लिए जंगल और खाने के लिए गोली होगी वहां से किसी का भी पलायन आश्चर्यजनक नहीं | अब जो स्थिति है उसमे बस दो बीज वहां चाहिए ताकि वो जंगल जो पलायन से सुनसान हो रहा है, वहां फिर से हरियाली और चहलपहल लौट आए| एक ये कि उचित दूरी और जरुरत अनुसार पढ़ने-पढाने के लिए स्कूल-कालेजों की आधुनिक व्यवस्था और एक उम्र और शिक्षा के बाद उन्हें कमाई का उपयुक्त साधन अर्थात बड़े-बड़े औद्योगिक घरानों (कोर्पोरेट वर्ल्ड) का प्रवेश वहां कराया जाये | यदि ये हो गया तो निश्चित रूप से पूर्वोत्तर की गाड़ी पटरी पर लौटते ही भारत की एक बहुत बड़ी समस्या सुलझ जायेगी, भारत की शक्ति दुगुनी हो जायेगी | ये संगठन अब और अधिक नहीं टिकने वाले,खापलांग को केंसर का रोग लग गया है| बाकी जो हैं वो या तो सेना के जवानों की गोली खायेंगे, या समय कुछ की मौत बनकर आ रहा है, और सच बात तो ये है कि वहां की आवाम का सहयोग इन्हें नहीं मिल रहा, जल्द ही केंद्र और राज्य इस विषय पर चिंतन करें और मीडिया कोर्पोरेट जगत को एक बहुत बड़ी मंडी से चेताये |

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