बड़ा लेखक बनने के गुर

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-विजय कुमार

छुटपन से ही मेरी इच्छा थी कि मैं बड़ा लेखक बनूं। बड़े प्रयास किये; पर रहा छोटा ही। कभी पढ़ा था कि चोटी के लेखक बड़ी गहरी कविताएं लिखते हैं। इस चक्कर में कई दिन कुएं में जाकर बैठा। लोग कुएं का मेढक तक कहने लगे। वह अपमान भी सहा; पर रहे वही ढाक के तीन पात। लेकिन पिछले दिनों मुझे कबाड़ी बाजार में एक बड़े लेखक की डायरी हाथ लग गयी। उसमें साहित्य की दुनिया में बड़े बनने के गुर लिखे थे। कुछ नमूने देखिये।

– कविता ऐसी लिखें, काफी मगज मारने पर भी जिसका सिर-पैर समझ न आये। कोई आपके छन्द या व्याकरण ज्ञान पर टिप्पणी करे, तो उसे साहित्य में बह रही नयी हवाओं का विरोधी कहें। स्वयं को रबड़, गोंद, च्विंगम या कोला जैसे सरल और तरल छन्द का प्रणेता बताएं। खंड काव्य की जगह बन्द काव्य लिखें, जिसे पाठक सदा बन्द रखना ही अच्छा समझें।

– हिन्दी में अंग्रेजी, उर्दू, अरबी, फारसी की भरपूर मिलावट करें, जिससे लोग अंत तक यह न समझ पाएं कि यह रचना वस्तुतः किस भाषा में है। यदि उन्हें कई भाषाओं के शब्दकोष साथ रखने पड़ें, तो सचमुच रचना बहुत भारी मानी जाएगी।

– लेखन में सार्त्र, कामू, नेरूदा, इलियट जैसे कुछ विदेशी लेखकों के उद्धरण (चाहे स्वयं ही लिखकर) यहां-वहां सलाद की तरह सजा दें। इससे आपके गंभीर लेखक होने की छवि बनेगी।

-परिचय में यह अवश्य लिखें कि आपकी रचनाएं देश-विदेश के प्रमुख पत्रों में छपती रहती हैं। हर मुहल्ले में बनी विश्वस्तरीय साहित्यिक संस्थाओं द्वारा प्रदत्त पुरस्कार और सम्मानों का भी उल्लेख करें। ऐसी चार-छह संस्थाओं के संस्थापक, अध्यक्ष या मंत्री बन जाएं और उन्हें भी मोटे अक्षरों में लिखें।

– सम्मान लेते हुए चित्र बैठक कक्ष में लगाएं और आग्रहपूर्वक सबको दिखाएं; पर ध्यान रहे, चित्रों में श१ल, बैनर, स्मृति चिõ आदि अलग-अलग हों; वरना यार लोग सच ताड़ लेते हैं।

– साल-दो साल में अपनी कविताओं से भरी पत्रिका निकालें। इससे आप अनियतकालीन राष्ट्रीय स्तर की साहित्यिक पत्रिका के सम्पादक हो जाएंगे। उसे अपने खर्च से बड़े लेखकों को भेजें। इधर-उधर से सामग्री जुटा और चुराकर 20-30 पृष्ठों की 30-40 पुस्तकें लिख डालें। इतनी ही प्रकाशनाधीन बताएं।

– कबीर, सूर, तुलसी, प्रेमचन्द, टैगोर आदि से लेकर ओबामा और ओसामा तक की खूब आलोचना करें। ये लोग लड़ने या जवाब देने नहीं आएंगे। यदि आप पुरुष हैं, तो लेखिकाओं की आलोचना करते हुए अपने लेखन की प्रेरणा पत्नी जी को ही बताएं। इससे बात संतुलित हो जाएगी।

– बहुत सी टुच्ची संस्थाएं पैसे लेकर मैन, पोएट या राइटर अ१फ दि इयर जैसे पुरस्कार देती हैं। उनसे स्वयं पुरस्कार लें और फिर उनके दलाल बनकर दूसरों को दिलाएं।

– हर कार्यक्रम में अपने झूठे विदेश प्रवास के किस्से सुनाएं।

– समारोह में ऐसे व्यक्ति के साथ बैठें, जिससे आपका चित्र अखबार में छप सके।

– हिन्दी, हिन्दू और हिन्दुस्थान की खूब बुराई करें। इससे वाममार्गी आपको सिर पर बैठा लेंगे। उनकी जेब में सैकड़ों संस्थाएं, हजारों पुरस्कार, यात्रा भत्ते और शोधवृत्तियां रहती हैं। देर रात की दारू और मुर्गा महफिलों में सहभागी होकर उन्हें व्यक्तिगत रूप से प्रसन्न करें। इससे भले ही पैरों में बल्ली ठोकनी पड़े; पर वे आपका कद जरूर बढ़ा देंगे। हां, बेतुकी मुस्लिम रूढ़ियों पर कुछ न कहें। इससे आपके कद के साथ जान को भी खतरा है।

-महिला और दलित विमर्श के नाम पर अच्छी-बुरी हर प्राचीन परम्परा को गरियाने से भी कई लेखकों का कद बढ़ा है।

उस डायरी में और भी कई सूत्र लिखे हैं; पर मैं नहीं चाहता कि आप इतने बड़े हो जाएं कि घर की चौखट और छतें बदलवानी पड़ें, सो कम लिखे को बहुत समझें|

6 COMMENTS

  1. विजय कुमार जी–मेरे लिए,यह मेरी टिप्पणी, कुछ मात्रामें, अव्यापारेषु व्यापार ही है। फिर भी मैं इसे करना चाहता हूं।
    व्यंगमें भी आप जो कहे, उसकी कुछ मर्यादाएं, होती है, या नहीं, यह मैं नहीं जानता; पर वाम पंथ, और वाम मार्ग, शब्दोमें अंतर है, इतना तो मुझे पता है। आपने वाम पंथ के अर्थमें वाम मार्ग शब्दका प्रयोग किया, यह संदर्भसे प्रतीत होता है।
    वह पूरा शब्द हटाकर भी, या और शब्दका प्रयोग कर, व्यंग लिखा जा सकता था।और शायद व्यंग का परिणाम भी, भोथरा ना होता।
    श्री राम तिवारी जी की टिप्पणियां पढा करता हूं। उनसे सहमत ना होते हुए भी उनकी टिप्पणी मुझे बहुतांश में एक दूसरा दृष्टिकोण प्रदान करती है, जिस पर सोच आवश्यक, और सच्चायी को ढूंढने में सहायक भी पायी है। उनके विचारों से लगता है; कि उनकी, चित्त तंत्रीका कोइ स्पंदन क्षम तार आपने छेड दिया है। —-॥अव्यापारेषु व्यापार॥ ना करु तो मन नहीं मानता, करुं, तो लगता है, मैं क्या जानता हूं?

  2. आपने यह व्यंग रचना की जो ऊच कोटि के व्यंग रचना में शामिल होगी या नहीं यह तो मैं कह नहीं सकता और मेरा कद भी इतना बड़ा नहीं है की मैं ऐसी टिपण्णी कर सकूं ,पर इतना अवश्य कहूँगा की यह व्यंग रचना मुझे ठीक ठाक ही लगी,पर यह हमारे तिवारीजी को क्या हो गया?उनके इस तरह की प्रतिक्रिया का क्या कारण यह तो मेरी समझ में विल्कुल नहीं आया.क्या स्वयं श्री तिवारी या कोई अन्य सज्जन इस पर थोड़ा प्रकाश डालने की कोशिश करेंगे?

  3. हिंदी हिन्दू ………….तो वाममार्गी आपको सर पै बिठा लेंगे .यह इस आलेख का एक मात्र समीक्षागत दोष है .अधिकांश सामग्री रोचक और विचारधारात्मक गवेषणा से अन्तर्निहित है .उपरोक्त में दो प्रमुख त्रुटियाँ हैं एक -वाममार्गी का यहाँ सम्भवत;वामपंथ अर्थात लेफ्ट विचारधारा वाले व्यक्ति से है .आलेख की विषयवस्तु के चयन में आपको किसी निषेधात्मकता का परमुखापेक्षी नहीं होना चाहिए .यदि आपको जानना है की “वाममार्ग “क्या है तो स्वर्गीय रामधारीसिंह दिनकर रचित ग्रुन्थ “भारतीय संस्कृति के चार अध्याय “या चंद्रधर शर्मा कृत “भारतीय दर्शन “या पंडित नेहरु कृत “भारत की खोज “अवश्य पढ़ें .अब आप कहेंगे की आपका तो वाम मार्ग से मतलब सिर्फ लेफ्ट अर्थात साम्यवादी ही है तो फिर आपको इसका जबाब देना होगा की वाम मार्ग के वास्तविक अर्थ में आप कौन सा वैकल्पिक शब्द प्रयोग करेंगे .आपने दूसरी बेजा हरकत ये की है की बिना यह जाने की हिदी ,हिन्दू .हिंदुस्तान के बारे में एक वामपंथी {वाममार्गी नहीं ?} के क्या विचार हैं .अपनी स्थापना जड़ दी की वे {वाम पंथी }सर पर बिठा लेंगे ?तो आप आइन्दा स्मरण रखें की हिंदी .हिन्दू .हिंदुस्तान के खिलाफ कोई मेरे सामने एक शब्द बोलेगा तो में जुबान उखाड लूँगा -और ये भी बता दूँ की हिंदी हिन्दू हिंदुस्तान पर में अपना सर्वस्व न्योछावर कर दूंगा किन्तु आप जैसे घटिया विचारधारा के छद्महिंदुवादियों का समर्थन नहीं करूँगा जो जो आप से सहमत न हो तो क्या वो हिंदी विरोधी हो गया ?जो आपकी षड्यंत्रकारी दुरभिसंधियों में शामिल न हो तो वो हिन्दू विरोधी हो गया ?जो आपके लिखे हुए कूड़ा करकट को अस्वीकार करे वो हिंदुस्तान विरोधी हो गया ?सारा देशभक्ति का ठेका डॉ मुंजे -हेडगेवार -गोलवलकर -देवरस -रज्जू भैया -सुदर्शन तथा मोहन भागवत जी ने आप जैसे पालित पोषितों को ही दे रखा है क्या ?मेने आधा दर्जन पुस्तकें लिखी हैं सब हिंदी में हैं .मुझे किसी आप जैसे deshbhkat ने नहीं balki वाम panthiyon ने ही dhadhs bndhaya .rahi bat हिन्दू की तो hm bees biswe के kanykubj tiwari हैं uchch koti के awsthi परिवार ने मुझे अपना damad banaya है जो की atal vihari bajpeye के ही nikat ritedar हैं .ath हिन्दू hone का certificate aise logo से मुझे नहीं चाहिए jineh अपना gotr या sirname likhne में भी sharm aatee हो .rahi बात
    desh bhakti की तो uska भी thoda सा najara मेरे blog-www.janwadi.blogspot.com par jakar dekh sakte हैं .मेने यह सब isliye likha की आपको वाम panth और वाम मार्ग में antar samjhane के sath sath ये भी बता दूँ की jb मेरे jaisa mamooli वाम panth samrthak aisa है तो वास्तविक vampanthi kaisa hota होगा ?

  4. “बड़ा लेखक बनने के गुर” – by – विजय कुमार

    मान्यवर विजय जी,

    आप इधर उधर की बहुत सारी और बेकार बातें कर रहें है.

    आपका बड़े लेखक होने का बड़ा सिक्का है. हम स्वीकार करते हैं. पर शराफत की हद्द हो गयी.

    आपने लेख लिखा जिसमे बड़ा लेखक बनने के अनेक गुर होने चहिये थे. आपने गुमराह किया है. आपने क्या किया ?

    अपना तो एक ही गुर लिखा कि कई दिन कुंए में जाकर बेठे. यह नहीं लिखा कि क्या कुआ खाली था या उसमें पानी भी था. पानी था, तो इतने दिन क्या पानी में ही बिता दीये.

    क्या अपने गुरों का कापी राइट करा रखा है ?

    कबाड़ी बाजार से मिली बड़े लेखक की डायरी, जो आपको हाथ लगी है, उनका नाम, पत्ता दीजीये. आपको notice of motion भिजवाया जा सकता है.

    आपने उन द्वारा दिए गुर अपने लेख में लिख डाले हैं. यह कापी राईट का गंभीर उलंघन है.

    आपको इस लेख के लिए कितना पारितोषिक मिला है ? इस पर उस बड़े लेखक का अधिकार है.
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    विजय कुमार जी, ऐसे लेख पर कैसी टिप्पणी हो सकती थी ? बुरा तो नहीं मान लिया.

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