-अश्वनी कुमार-
आज हमें आज़ादी मिले 68 वर्ष हो गए हैं. बहुत लम्बी लड़ाइयां लड़ी हैं, हमारी जनता ने, हमारी आम जनता ने, और उनका नेतृत्व करनेवालों ने. स्वतंत्रता सेनानियों ने. देश की आज़ादी के लिए अपने प्राणों को भी न्यौछावर करना उन्हें कम लगता था. इसीलिए देश की आज़ादी के अपनी जान की परवाह न करते हुए भी लड़ते रहे, लड़ते रहे. आज हम आज़ाद हैं, उन्हीं स्वतंत्रता के महान पुरोधाओं की वजह से. काफी समय हो गया है, हमें आज़ाद हुए. एक लंबा समय. परन्तु बात अगर तिरंगे की हो रही है तो यहां ध्यान देना बहुत जरूरी है कि, हम जान लें अपने तिरंगे के विषय में उसकी महत्ता के विषय में. क्या हम पूरी तरह जानते हैं?
तिरंगा हमारा राष्ट्रीय ध्वज तीन रंग की क्षितिज पट्टियों के बीच नीले रंग के एक चक्र द्वारा सुशोभित ध्वज है। जिसकी अभिकल्पना महान देशभक्त पिंगली वैंकैया ने की थी। हमारे राष्ट्रीय ध्वज को स्वतंत्रता के कुछ ही दिन पूर्व 22 जुलाई, 1947 को आयोजित भारतीय संविधान-सभा की बैठक में अपनाया गया था। इसमें तीन समान चौड़ाई की क्षैतिज पट्टियां हैं, जिनमें सबसे ऊपर केसरिया, बीच में श्वेत ओर नीचे गहरे हरे रंग की पट्टी है। ध्वज की लम्बाई एवं चौड़ाई का अनुपात 2:3 है। सफेद पट्टी के मध्य में गहरे नीले रंग का एक चक्र है जिसमें 24 अरे हैं। यह चक्र सम्राट अशोक की राजधानी सारनाथ में स्थित स्तंभ के शेर के शीर्ष फलक के चक्र में दिखने वाले की तरह है।
हमारा राष्ट्रीय ध्वज हिन्दू मुस्लिम एकता का जीता जागता प्रतीक है. क्योंकि इसमें दोनों ही पंथों से सम्बंधित शान्ति के प्रतिक रंगों को शामिल किया गया है. परन्तु आज आज़ादी के प्रतीक इस ध्वज को जिसे आज़ादी मिलते ही लाल किले की प्राचीर पर फहराया गया था. निरादर की दहलीज पर धकेला जा रहा है. मज़ाक बनाया जा रहा है. हमारे राष्ट्रीय ध्वज का. खासकर ध्यान दें तो सबसे ज्यादा निरादर चुनावी रैलियों में होता है, हमारे राष्ट्रीय ध्वज का. जब उन्हें पैरों में रोंदा जाता है. मान लेते है यह लोगों से अनजाने में होता है. परन्तु जब संहिता बनाई गई है. तो उसे सख्ती से क्यों नहीं लिया जाता है..? चुनावी रैलियां सबसे पहला ध्वज के निरादर का स्थान हैं. जहां हम अपनी आज़ादी को प्रदर्शित करने के लिए लोगों पर दबाव बनाने के लिए धवज को ले तो जाते हैं, परन्तु मकसद पूरा होते ही. उस धवज को फेंक दिया जाता है. कहीं नालियों में बहा दिया जाता है, कहीं उनसे जूते साफ़ करने का काम किया जाता है. वैसे तो हमारे देश के नेता ध्वज के सम्मान करने का प्रवचन देते हैं. परन्तु जानते भी हैं की उनकी रैलियों में क्या हाल बनाया जाता है। हमारे ध्वज का शायद जानते हैं. परन्तु क्या लेना देना है. काम पूरा हुआ, मकसद पूरा हुआ तो फेंक दो अब क्या करना है झंडे का..!
हम हर साल बड़ी धूमधाम से आज़ादी का जश्न मनाते हैं. हजारों झंडों का निर्माण किया जाता है. आखिर हम आज के दिन आज़ाद हुए थे. लाज़मी भी है. पिछले साल सुनने में आया था कि यूपीए सरकार आज़ादी के दिन के लिए 2 लाख सूती के कपडे के झंडे बनाने का आर्डर दिया था. और उसके बाद उनका क्या हुआ होगा हम सभी जानते हैं. इस साल सुनने में आया है कि पिछले साल के मुकाबले 1 लाख ज्यादा झंडे बनाने का ऑर्डर दिया गया है. यानी हम समझ सकते हैं कि इस साल एक लाख ज्यादा झंडे ज्यादा बर्बाद होने वाले हैं. ये तो रही सूतीझंडों की बात, अगर हम प्लास्टिक के छोटे झंडों पर ध्यान दे तो देखेंगे कि न जाने कितने ही झंडे बड़े पैमाने पर बर्बाद कर दिए जाते हैं. अब बात है पतंगों की तो जब पतंग कट जाती है. जिस पर झंडे के तीन रंगों को बड़ी सहजता से रचा गया है. जिसे अपना झंडा मानकर हम अपनी आज़ादी का जश्न मना रहे हैं. वह पतंग जब कटकर कहीं जाने लगती है तो वह नाले में भी जा सकती है. कूड़े में भी गिर सकती है. और जब काम की नहीं रहती तो बड़ी बुरी तरह फाड़ कर फेंक दी जाती है. क्या ये सब होना सही है. आज़ादी का झ्सं मना रहे हैं, या अपने राष्ट्रीय ध्वज का निरादर कर रहे हैं हम..?
यहाँ हमें ध्वज संहिता पर भी ध्यान देना जरूरी है. भारतीय ध्वज संहिता- 2002 को 26 जनवरी 2002 से लागू किया गया हैजिसमें निम्नलिखित बिंदु रखे गए हैं.
- जब भी झंडा फहराया जाए तो उसे सम्मानपूर्ण स्थान दिया जाए। उसे ऐसी जगह लगाया जाए, जहां से वह स्पष्ट रूप से दिखाई दे।
- सरकारी भवन पर झंडा रविवार और अन्य छुट्टियों के दिनों में भी सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाता है, विशेष अवसरों पर इसे रात को भी फहराया जा सकता है।
- झंडे को सदा स्फूर्ति से फहराया जाए और धीरे-धीरे आदर के साथ उतारा जाए। फहराते और उतारते समय बिगुल बजाया जाता है तो इस बात का ध्यान रखा जाए कि झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।
- जब झंडा किसी भवन की खिड़की, बालकनी या अगले हिस्से से आड़ा या तिरछा फहराया जाए तो झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।
- झंडे का प्रदर्शन सभा मंच पर किया जाता है तो उसे इस प्रकार फहराया जाएगा कि जब वक्ता का मुँह श्रोताओं की ओर हो तो झंडा उनके दाहिने ओर हो।
- झंडा किसी अधिकारी की गाड़ी पर लगाया जाए तो उसे सामने की ओर बीचोंबीच या कार के दाईं ओर लगाया जाए।
- फटा या मैला झंडा नहीं फहराया जाता है।
- झंडा केवल राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ही आधा झुका रहता है।
- किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय झंडे से ऊँचा या ऊपर नहीं लगाया जाएगा, न ही बराबर में रखा जाएगा।
- झंडे पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए।
- जब झंडा फट जाए या मैला हो जाए तो उसे एकांत में पूरा नष्ट किया जाए।
क्या इन बातों को हम जानते हैं. नवीन जिंदल साहब ने आम मानुष की झंडे को लेकर मदद तो कर दी पर शायद वह भी नहीं जानते की क्या हो रहा है आज झंडे के साथ, एक बात सुनने में आई थी कि झंडे को केवल खादी में ही निर्मित किया जा सकता है. परन्तु दिल्ली के सेंट्रल पार्क में लगा ऊंचा झंडा पोलिस्टर है. ये झंडा नवीन जिंदल जी द्ववारा ही लगाया गया है. हमें इस ओर कुछ करना चाहिए. हमारे राष्ट्रीय ध्वज का आदर ही सर्वोपरि होना चाहिए. सबसेपहले तो चुनाव रैलियों से झंडों को बंद करना चाहिए. क्या हुम्भुऊल सकते हैं अरविन्द केजरीवाल जी के अनशन को….नहीं न…! वहां उस अनशन में कितने झंडों को पैरों तले रौंदा गया. ये शायद सभी के जहन से उड़ गया है. क्या हम अपने झंडे को अब से आदर से देखेंगे और उसके गलत प्रयोग का विरोध करेंगे…? ज़रा सोचकर देखिये… “जय हिन्द जय भारत”