कुछ अनचाहा सा,
कुछ अनसोचा सा,
कुछ अनदेखा सा,
कुछ अप्रिय सा,
जब घट जाता है,
तो मन कहता है नहीं…
ये नहीं हो सकता,
दर्द और टीस का कोहरा,
छा जाता है सब ओर।
पर नियति है…
स्वीकारना तो होगा
थोड़ा मुश्किल है,
पर करना तो होगा..
ये स्वीकारना ही एक ऐलान है,
उस अनचाहे से लड़ने का,
अपनी शक्ति समेटने का,
फिर विजयी होने की संभावना के साथ जीना,
पल पल हर पल,
विजय मिले या आधी अधूरी ही मिले,
पर कोशिश पूरी है,नहीं आधी अधूरी है।