जीवन में कोशिश किए बिना सिर्फ डैंड्रफ ही मिल सकता है:सिद्धू

0
167

अनिल अनूप
फिलहाल सिद्धू पंजाब में अकाली-बीजेपी के लिए “घर का भेदी लंका ढाए ” की भूमिका में हैं. लेकिन उन्हें ये सोचना होगा कि जिस कांग्रेस को कोस-कोस कर वो बीजेपी में सत्ता की सवारी करते रहे अब उसी कांग्रेस में आ कर वो जनता से किसका पर्दाफाश करेंगे. कांग्रेस अकाली दल –बीजेपी के खिलाफ सिद्धू का जमकर इस्तेमाल करेगी.
‘सिद्धू वाणी’ कहती है कि – ‘जो कभी पासा नहीं फेंकता, वो कभी छक्का मारने की उम्मीद नहीं कर सकता.’
लेकिन पंजाब की सियासत को देखते हुए पासा कांग्रेस ने फेंका है और अब देखना है कि सिद्धू छक्का मार पाते हैं या नहीं.
राजनीति की पिच पर सिद्धू ने अपना स्टंप बदला है. 2004 से तकरीबन 12 साल तक ‘बीजेपी एंड’ से बल्लेबाजी करने वाले सिद्धू को लेकर माना जा रहा था कि वो ‘आप पवैलियन एंड’ से बल्लेबाजी करेंगे लेकिन अचानक ही उन्होंने ‘कांग्रेस पवैलियन छोर’ से बल्लेबाजी का फैसला किया.
सिद्धू पिच परखने में माहिर हैं और वो जानते हैं कि जब राजनीति की पिच पर आशंकाओं की घास हो तो आरोपों की स्विंग ज्यादा होती है. ऐसे में उन्होंने उस पिच को चुना जिसे क्रिकेट समीक्षक फैसलाबाद की पाटा पिच भी कह सकते हैं. सिद्धू कांग्रेस की पंजाब टीम के ओपनर हो गए हैं और अब कांग्रेस की पिच पर ज्यादा रन बना सकते हैं. हालांकि इससे पहले वो आम आदमी पार्टी को रन आउट करा चुके हैं.
सिद्धू अब पंजाब चुनाव में कांग्रेस का चेहरा हैं. अमृतसर सीट से पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. उसी अमृतसर सीट से जहां बीजेपी ने उन्हें मौका दिया और अपनाया था और बाद में यही सीट बीजेपी से बगावत की वजह बनाl
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में सिद्धू का अमृतसर से पत्ता कट गया था. उसके बाद मोदी कैबिनेट में भी सिद्धू 12 वें खिलाड़ी की जगह भी नहीं पा सके. टीम मोदी में खुद के नजरअंदाज किये जाने से सिद्धू परेशान थे. जिसके बाद राज्यसभा से इस्तीफा देकर सिद्धू ने सबको चौंका दिया.
सिद्धू को लेकर आम आदमी पार्टी ने कुछ देर खेलने की कोशिश भी की. लेकिन सिद्धू की पारी पंजाब की कप्तानी को लेकर शुरु नहीं हो सकी.
जाहिर तौर पर सिद्धू ने बीजेपी का दामन छोड़ कर अपनी विश्वसनीयता पर बट्टा तो लगाया ही और उसके चलते केजरीवाल भी सिद्धू पर दांव खेलने से पहले कई बार टॉस कर रहे थे.
सिद्धू का स्कोर कार्ड देखें तो सिद्धू की राजनीति का आधार ही कांग्रेस विरोध रहा है. साल 2004 में उन्होंने अमृतसर की सीट से कांग्रेस के आर एल भाटिया को हराया था. साल 2007 मे अमृतसर के उपचुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता सुरिंदर सिंगला को हराया था. साल 2009 में भी अमृतसर सीट से सिद्धू ने चुनाव जीता था. लेकिन बीजेपी ने साल 2014 में अमृतसर की सीट अरुण जेटली को ऑफर कर दी जहां से जेटली चुनाव हार भी गए.
सिद्धू को बीजेपी ने राज्यसभा से एंट्री दिला कर नुकसान के भरपाई की कोशिश की. लेकिन अब 12 साल बाद पति-पत्नी दोनों ही कांग्रेस के मंदिर में मत्था टेक रहे हैं.
सिद्धू के जुमलों के जरिये उनके मिजाज को समझें तो उनका कहना है कि ‘आपको अपनी बेल्ट कसने या पतलून गंवाने में से एक को चुनना होता है.’ फिलहाल उन्होंने राजनीति की बेल्ट कसने के लिये कांग्रेस को चुना है.
सिद्धू का कहना है कि ‘जीवन में कोशिश किए बिना सिर्फ डैंड्रफ ही मिल सकता है.’
बीजेपी छोड़ने के बाद ठिकाना तलाशने की कोशिश में सिद्धू को क्या मिला ये उन्हें सोचना होगा.
सिद्धू ही कहते हैं कि ‘सफलता के मार्ग पर कोई बिना एक-दो पंक्चर के नहीं चलता.’ सिद्धू दो पंक्चर देख चुके हैं और अब वो उस दुकान पर जहां उन्हें उम्मीद है कि राजनीति का पंक्चर सुधर जाएगा.
पंजाब की पिच पर सिद्धू की आक्रमक बल्लेबाजी से टीम बादल नाराज थी तो बीजेपी हैरान. अकाली दल के नेताओं के खिलाफ ‘सिद्धू-वाणी’ आक्रमक हो रही थी. पंजाब के उप मुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल के साथ उनका विरोध जगजाहिर था. अमृतसर सीट से चौथी बार टिकट न मिल पाने की एक वजह ये भी मानी जाती रही है.
जब अरुण जेटली के नाम का अमृतसर सीट से ऐलान हुआ तो सिद्धू एक बार भी अरुण जेटली के लिये अमृतसर में चुनाव प्रचार के लिये नहीं आए. सिद्धू पर अकाली-बीजेपी गठबंधन को तोड़ने की राजनीति का आरोप भी गहरा रहा था.
ये तो रही बीजेपी-अकाली के साथ सिद्धू की बात लेकिन खुद पंजाब में कांग्रेस का झंडाबरदारी कर रहे कैप्टन अमरिंदर सिंह के साथ भी सिद्धू के रिश्ते अच्छे नहीं हैं. खुद अमरिंदर सिंह भी सिद्धू के नाम पर विरोध जता चुके हैं.
केजरीवाल ने तो आग में घी का काम करते हुए अमरिंदर को ये चेता दिया है कि सिद्धू की कांग्रेस में ताजपोशी ही सीएम पद की डील के साथ हुई है. सिद्धू को भी उम्मीद होगी कि पंजाब में कम से कम डिप्टी सीएम की पोस्ट उन्हें मिल सकती हैl
53 वर्षीय नवजोत सिंह सिद्धू एक अच्छे वक्ता हैं. सिद्धू का कांग्रेस में शामिल होना पार्टी के लिए काफी पॉजिटिव है. पंजाब में आप, अकाली दल और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है. ऐसे में सिद्धू का कांग्रेस में शामिल होना दोनों के लिए चिंता बढ़ा सकता है.
सिद्धू ने पिछले साल सितंबर में राज्यसभा सांसद और बीजेपी से इस्तीफा दे दिया था. जिसके बाद उनकी आप के बैनर तले चुनाव लड़ने के कयास लगाए जा रहे थे.
पूर्व क्रिकेटर 2004 से 2014 तक अमृतसर से लोकसभा सांसद रहे हैं. 2014 में सिद्धू की जगह अरुण जेटली ने अमृतसर से चुनाव लड़ा था. जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.
कांग्रेस रणनीतिकारों की टीम के बेहद करीब सूत्र ने बताया कि, ‘पंजाब कांग्रेस और इसके प्रमुख कैप्टर अमरिंदर सिंह की पूरी ब्रांडिंग ही पंजाब, पंजाबी और पंजाबियत के इर्द-गिर्द की गई है. ताकि पंजाब के मतदाताओं पर इसका भरपूर असर हो सके. ”पंजाबी बनाम गैर पंजाब” की भावना को ज्यादा से ज्यादा प्रचारित किया जाएगा.’
पंजाब कांग्रेस प्रमुख अमरिंदर सिंह ने ‘चांदा है पंजाब, कैप्टन दी सरकार’, ‘कॉफी विद कैप्टन’ जैसे कई लोकप्रिय नारों और कार्यक्रमों से अपने चुनावी प्रचार को जोशीला और आक्रामक बनाने का काम किया है.
समूचे पंजाब में कांग्रेस अपनी स्वीकार्यता को बढ़ाने में जुटी हुई है. तभी पार्टी ने ‘इनसाइडर बनाम आउटसाइडर’ जैसे मुद्दे का राग अलापना शुरू किया है. पार्टी के लिए नई सियासी गीत के बोल हैं – ‘गैरों दा हाथ डोर ना देनी, गैर तां होंदे गैर…घर दा बंदा होवे जेहरा, घर दी मांगे खैर…मिट्टी की रग-रग जाने, अगला पिछला सब पहचाने.’
कांग्रेस पार्टी कैप्टन अमरिंदर सिंह की पंजाबी छवि को भुनाने की कोशिश में हैl
अमरिंदर सिंह के नेतृत्व वाली पंजाब कांग्रेस की टीम – जिसे I-PAC मदद कर रही है – इस सियासी गीत की मूल धारणा को हर मंच पर ले जाने की योजना बना रही है. सोशल मीडिया से लेकर जनसभा, बड़े स्तर पर आयोजित किया गया मेल मिलाप कार्यक्रम, हर दरवाजे पर पहुंच कर चुनाव प्रचार, कार्टून, स्केच, नारे और यहां तक कि जनता की रायशुमारी के जरिए भी इस बहस को आगे बढ़ाने की योजना है.
पंजाब प्रदेश कांग्रेस के करीबी सूत्र ने बताया कि,’पार्टी फेसबुक, ट्विटर और वॉट्स ऐप के जरिए पंजाबियत के साथ-साथ ‘इनसाइडर बनाम आउटसाइडर सीएम’ के बहस को भी जोर शोर से प्रचारित करेगी. हम सभी जन सभाओं और रैलियों में लोगों से इस बात के लिए रायशुमारी कराने जा रहे हैं कि मुख्यमंत्री पंजाबी होना चाहिए या फिर बाहरी?
कांग्रेस के पास इस सवाल का भी उत्तर है. कांग्रेस ने शिरोमणी अकाली दल और बादल को घेरने के लिए भी एक नारे को गढ़ा है .
कांग्रेस के एक सूत्र के मुताबिक, ‘बादल पंजाबी’ हैं और इनसाइडर भी लेकिन हम शिरोमणी अकाली दल सरकार के खिलाफ सरकार विरोधी लहर की ओर देख रहे हैं. पंजाब की जनता कुशासन, लचर शासन-व्यवस्था, अपराध और ड्रग्स की लत में बढ़ोतरी होने से तंग आ चुकी है. लिहाजा पंजाब का नेतृत्व एक पंजाबी के हाथ में होना चाहिए और ऐसा शख्स पंजाब दा कैप्टन अमरिंदर सिंह हैं.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here