तुक्के पर नहीं सधा मुलायम सिंह का तीर!

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-रमेश पाण्डेय- mulayam
समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव भले ही डॉक्टर राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश जी को अपना आदर्श पुरूष बताते हैं, पर सच यह है कि उनके विचारों पर वह कभी एक कदम भी नहीं चलते। हो सकता कि इन महान पुरूषों के विचारों से उनका कोई लेना-देना भी न हो। राजनैतिक फायदे के लिए एक बैनर लगा रखा है। मुलायम सिंह की राजनीतिक उंचाई में एक बात झलकती है वह है तीर तुक्के की राजनीति। हर समय उन्होंने परिस्थियों को देखकर तीर चलाया। तीर सही तुक्के पर बैठ गया तो राजनीति चमक गयी। सही कहा जाए तो समाजवादी पार्टी इसी तरह की राजनीति की उपज है। वैसे भी हम सभी लोग यह बात भली-भांति जानतेे हैं कि इस समय देश में 16वीं लोकसभा के गठन के लिए चुनाव हो रहे हैं। तमाम राजनीतिक दल और उनके प्रत्याशी अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए चुनाव मैदान में है। सरकार किसकी बनेगी और प्रधानमंत्री कौन होगा, यह 16 मई को आने वाले परिणाम केे बाद ही पता चलेगां। चुनाव जीतने के लिए तमाम तरह के हथकंडे अपनाने पड़ते है, झूठ-सच बोलना पड़ता है, गड़े मुर्दे उखाड़ने होते हैं, ताकि मतदाताओं की नजर में अपनी और पार्टी की छवि बनाई जा सके तथा सत्ता प्राप्त की जा सके। इस समय चुनाव मैदान में एक-दूसरे को नीचा दिखाने और मेरी कमीज उसकी उसकी कमीज से ज्यादा साफ साबित करने के लिए नित नये स्वांग रचे जा रहे हैं, जिसका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं। लोकतन्त्र में पक्ष के साथ ही विपक्ष का भी होना निहायत ही जरूरी होता है वरना सत्तारूढ़ दल मनमानी पर उतर आता है और लोकतांत्रिक मूल्यों का ह्रास होने लगता है। कहा जाता है कि ‘एवरी थिंग इस फेयर इन लव एण्ड वार‘ इसी कहावत को हमारे स्टार प्रचारक और नेता सच साबित करने में लगे है। ये सारे नाटक, सारे आरोप, प्रत्यारोप, एक दूसरे के विरूद्ध अनर्गल बयानबाजी तथा व्यक्तिगत, जाति एवं धार्मिक हमले 16 मई आते-आते पूरी तरह से समाप्त हो जायेंगे। यह बात हम सभी जानते हैं, क्योंकि हर पांच साल बाद ये ‘री-टेक‘ होता है। चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं के द्वारा एक दूसरे के विरूद्ध की गयी टिप्पणियों को नेतागण कतई दिल पर नहीं लेते है क्योंकि वे जानते है कि कब किससे और कहा हाथ मिलाना पड़ जाये। यही अपेक्षा पार्टी प्रमुख तथा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी अपने मतदाताओं से भी करते है लेकिन चुनाव के दौरान मतदाता की बुद्धि और विवेक चूंकि लच्छेदार भाषणों के जरिये कुन्द हो जाती है, इसलिए उन्हें कुछ भी समझ में नहीं आता है और वे मरने-मारने पर उतारू हो जाते हैं, जबकि नेतागण चुनाव प्रचार का जब हेलीकॉप्टर से लौटकर एयरपोर्ट पर उतरते हैं तो एक दूसरे का अभिवादन जरूर करते हैं और कुशलक्षेम भी पूछते हैं। ऐसे में मैं समझ नहीं पाता हूं कि मतदाता आमने-सामने आने पर एक दूसरे के साथ भिड़ने तथा मरने मारने के लिए क्यों तैयार हो जाते है? क्यों उन नेताओं से सबक नहीं सीखते है जो चुनाव प्रचार के दौरान एक दूसरे के विरूद्ध आग बबूला होने वाले एअरपोर्ट की वीआईपी लाउन्ज में एक साथ बैठकर काफी पीते है।
अब मैं यहां सपा प्रमुख मुलायम सिंह के उस भाषण का जिक्र कर रहा हूं जिसके कारण तमाम थूका-फजीहत हो रहीं है, उन्हें तमाम भला बुरा कहा जा रहा है, लानत-मलानत की जा रहीं है-
‘‘मुलायम सिंह का कहना था कि लड़के भूलवश या नादानी में बलात्कार कर बैठते हैं, लिहाजा उन्हें फांसी जैसी कड़ी सजा नहीं होनी चाहिये। उनके मुताबिक सहमति से सम्बन्ध बनाने वाली एक परिचित लड़की ही किसी बात से नाराज होकर लड़के पर बलात्कार का आरोप लगा देती है।‘‘ सपा प्रमुख ने यह बयान कोई हड़बड़ी में नहीं दिया और न ही उनके जैसे वरिष्ठ राजनेता से यह उम्मीद की जा सकती है कि वे बगैर कुछ सोचे समझे ऐसे सवेदनशील मुद्दे पर बयान देंगे। अब प्रश्न यह उठता है कि तो फिर उन्होने ऐसा बयान क्यों दिया? पाठकों को यह समझना होगा कि मुरादाबाद के लगभग 17 लाख मतदाताओं में से 40 प्रतिशत मतदाता मुस्लिम हैं। सपा प्रमुख की सभा भी जिस जामा मस्जिद पार्क इलाके में हो रही थी, वह भी मुस्लिम बहुल इलाका है। मुम्बई रेप कांड में फांसी की सजा पाने युवक भी मुस्लिम वर्ग के हैं। इस बात को ध्यान में रखकर नेताजी ने यह बयान दिया, ताकि मतों का ध्रुवीकरण हो सके और युवा वर्ग का समर्थन भी मिल सके। मैं इस बयान कि क्रिया और प्रतिक्रिया में नहीं जाना चाहता हूं और न ही इसका विश्लेषण करना चाहता हूं कि चुनाव में सपा को कितना फायदा होगा या नुकसान? इस बयान के मद्देनजर मैंने केवल इतना समझा है कि यह बयान अन्य संवेदनशील बयानों कि ही तरह ‘राजनीतिक बयान‘ है जिसका वास्तविकता से कुछ भी लेना-देना नहीं। इसके पीछे की सोच केवल और केवल वोट हथियाना है। जैसा कि अब तक मुलायम सिंह करते आए हैं। यह बात अलग है कि जनता जागरूक हो रही है और हर बयान के मायने निकालने लगी है। फिलहाल यह पहली बार हुआ जब मुलायम सिंह का तीर तुक्के पर सही नहीं बैठ सका।

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