कर जातें है, कतल वो,
नजराने तेरी आँखों के,
अफसाने तेरे उन लफ्जातों के,
आ जाती हो जब तुम, दरमियां मेरे उन सपनों के,
कर अहसास तेरे दामन का, एक लम्हा सा जी जाता हूँ !
मेरी इस तन्हाई में भी, यूँ बस जन्नत सी पा जाता हूँ !!
सुनता हूँ हर रोज, दुनिया की टेढ़ी मेढ़ी सी ये बातें,
करता तो हूँ, मैं आज भी इन लोगों से,
हर रोज यूँ अनजानी सी मुलाकातें,
पर यूँ रिश्तों की इस बारीकी में, यूँ उलझ सा जाता हूँ,
और यूँ इश्क की तमीजी में, मैं तो अपना ही बागी सा हो जाता हूँ !
देख लिए खूब मेने, गुबार यूँ कई भंवरों के,
पडोसी की बगिया में,
बदलते हुए रंग यूँ गिरगिटों के,
फूट रहे थे चाँद वहां, यूँ अँधेरे की उन जुगनुओ के,
सुन के पुकार जुगनुओ की, डर से यूँ दहल सा जाता हूँ,
और यूँ दुनिया के इन जंजालों को, देख यूँ सहम सा जाता हूँ !!
बस, नहीं रहना अब, मेरे को तेरे बिना
इस पार इन दहलीजो के,
ले जाऊंगा अपनी नाव, तेरे खातिर्,
उस पार, इस समंदर के
पर सुन के खबर एक फिर नए बवंडर की , मैं यूँ अन्दर से हिल सा जाता हूँ !
तू पकड़ लेना बस मेरा हाथ , अकेला यूँ इस तूफाँ में बह सा जाता हूँ !!