रघुनाथ सिंह की दो कविताएं

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सत्यमेव जयते 

सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते

मच रहा है शोर

घोर और चारों ओर

हमारे सेक्यूलरवादियों में

हमारे अंगरेजी मीडिया में

और हमारी अफसरशाही में

दण्डित करो

करो दण्डित

बच न पावे

भाग न जाये

धूर्त है यह बड़ा भारी

बोल कर सच

कलुषित कर दिया है इसने

हमारा सुन्दर प्यारा नारा

सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते

 

रहा नहीं गया एक मनचले से

पूछ ही लिया उसने

कौन है अपराधी

उत्तर मिला

बोल रहा है जो सच

है वो सेना का जनरल सिंह

मूर्खता देखो मेरी

कह बैठा

तो अपराध क्या है इसमें

गूंजने लगे कानों में

व्यंगात्मक ठहाके

और सुनाई पड़ी

एक गर्जन

बचाने के लिए सत्य ही से

भारतवासियों को

अपनाया था हमने

सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते

 

कह रहा है यह जनरल

हैं नहीं अस्त्र-शस्त्र

हमारी सेना के पास

और भ्रष्टाचार लिप्त

खरीद अस्त्र-शस्त्र की

जग जाहिर

कर दी है इस ने

असमर्थता हमारी सेना की

और प्रिय है भारतवासी को

रोटी से भी अधिक घूस

कर दिया है बदनाम

इस ने सारे देश को

यह देशद्रोही नहीं

तो क्या है

और खोल दी है पोल

इस ने हमारे ही प्यारे

सत्यमेव जयते, सत्यमेव जयते की

 

विलुप्ति की ओर

कह गए अर्नोल्ड टॉयनबी

होती नहीं विलुप्त सभ्यताएं

करती हैं वे आत्महत्याएं

जब उजागर हुए उनके मन में यह विचार

अवश्य सोच रहे होंगे वे हिन्दू धर्मं को

 

एक समय था

जब होता नहीं था अन्तर

हिन्दू में तथा भारतवासी में

भारतवासी हिन्दू होता था

और हिन्दू भारतवासी

 

वह भारत अब खण्डित हो चुका है

हिन्दू देवी- देवताओं की

मूर्तियों की तरह

और पृथक हुए भाग में

अब ढूँढने पर भी

हिन्दू दर्शन है अधिक दुर्लभ

रणथम्भोर में बाघ दर्शन से

 

और घटती ज़ा रही है

अवशेष भारत में भी

हिन्दू संख्या दिन-प्रतिदिन

और बन सकती है

शताब्दी के अन्त तक

विलुप्ति की ओर अग्रसर

होती हुई एक प्रजाति

 

वैसे तो सेक्युलरवाद का

अर्थ ही है हिन्दू को दुत्कारना

पर वी पी सिंह के मण्डलवाद ने

छोड़ दिया सेक्युलरवाद को बहुत पीछे

और कर दिया इतना प्रबल

जातिवाद को

आज मिल जायेगा आपको

जाट, कुर्मी, शर्मा और दलित

पर नहीं मिलेगा ढूँढने पर भी

कोई हिन्दू

 

बहुत तीव्र की थी आलोचना

राजीव गाँधी ने

जब लाया था वी पी सिंह

मण्डलवाद को

पर अपना लिया है पूर्णतया से

उसी की पार्टी ने मण्डलवाद को

कांग्रेस ही क्यों

धूम मची है मण्डलवाद की

आज सभी पार्टियों में

कई पार्टियाँ तो

जीवित ही हैं मण्डलवाद पर

 

पर है भी यह एक कितना

भयानक सच

कि करते है हम अनुसरण

उसी वी पी सिंह का

जिसकी करते हैं हम

सबसे अधिक भर्त्सना

 

क्या नहीं है यह

हमारे चरित्र का

एक घिनौना

पर सच्चा दर्पण

 

सम्मानित होना चाहिए था

उसे भारत रत्न से

क्योंकि प्रदान किया है

उसने एक ऐसा विष

जिस पर फल फूल रहा है

ढोंगी सेक्युलरवाद

और अग्रसर है हिन्दू

आत्म हत्या के पथ पर

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