पहली बात यह कि सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के बालकृष्णन ने कहा कि जनभावनाओं के मद्देनजर हमने निर्णय किया कि अपनी संपत्ति जनता के लिए सार्वजनिक करेंगे। शायद आज-कल में सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर यह जानकारी उपलब्ध करा दी जाएगी।
दूसरी बात यह कि दिल्ली के सिविल जज राजकुमार अग्रवाल और उनके दो साथियों को एक काल गर्ल के साथ पकड़े जाने के मामले में उनके दो साथियों पर कार्रवाई हुई मगर जज साहब अभी तक बचे हुए हैं। और, इस बात को लेकर हाईकोर्ट परिसर में चर्चा का बाजार गर्म है।
शुरू करते हैं पहली बात से। अगर आपको याद हो, तो जब सांसदों और विधायकों की तर्ज पर न्यायाधीशों पर अपनी संपत्ति सार्वजनिक करने का दबाव बना तो सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने सार्वजनिक मंच से कहा था, जज अपनी संपत्ति की जानकारी देंगे जरूर, मगर वह जनता के लिए सुलभ नहीं होगी। यानी एक और लाल फाइल की बात की न्यायपालिका ने। फिर कुछ दिनों बाद अचानक एक के बाद एक दो माननीय जजों ने अपनी संपत्तिा की सार्वजनिक घोषणा की तो आनन-फानन में सुप्रीम कोर्ट के लगभग सभी न्यायाधीशों की मीटिंग हुई और पहले श्नय कहनेवाले बालाकृष्णन ने ‘जनभावना का सम्मान’ की सफेद चादर ओढ़कर बोले, संपत्ति की सार्वजनिक घोषणा होगी। यानी दो हफ्ते में लाल फाइल, उजली फाइल यानी श्वेत पत्र में बदल गई।
दूसरी बात में, वकीलों में जोरदार बहस देखी-सुनी जा रही है कि कॉल गर्ल के मामले में जज के साथियों पर कार्रवाई हुई तो जज साहब अछूते कैसे रहे। यानी कोर्ट परिसर में शुचिता का मामला उठ रहा है। इस घटना को दूसरे कोण से देखें तो लगता है कि घर के लोग आंगन की सफाई की बात कर रहे हैं।
सवाल है आंगन की सफाई की जरूरत क्यों पड़ी?
क्या इसे कभी साफ ही नहीं किया गया, या फिर काले रंग की छाया में यह कभी दिखा ही नहीं। ऐसे हमारे यहां घर की जो मान्यनाएं हैं, उनमें से एक यह है कि मिट्टी का चूल्हा दो ही सूरत में पवित्र होता है। पहली सूरत, कि चूल्हा आखर रहे यानी उसे कभी धोया-पोछा नहीं गया हो और दूसरा कि चूल्हा पहली बार उपयोग किया जा रहा हो। कहने का आशय यह कि चूल्हा अगर एक बार पानी से धो लिया जाए तो वह शुचिता जैसे काम के लिए उपयुक्त नहीं रह जाता। अगर ये दोनों बातें सच हैं तो यह पता करने की जरूरत है कि घर में नया पंडित कौन बुलाया गया, क्योंकि जब हम विवश होकर नए पंडित को चुपके से बुलाते हैं तभी उसकी साफ-सफाई की बातें चुपचाप मान लेते हैं, बिना तर्क किए (?) और पूछने पर शुचिता का अंडा सेने लगते हैं।
न्यायपालिका का जनभावना से क्या लेना-देना
अभी सुप्रीम कोर्ट में बीआरटी कोरिडोर की तरफ से प्रार्थना पत्र पेश किया था। उसमें गुजारिश की गई है कि माननीय न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट के पश्चिमी गेट के बजाय पूर्वी गेट का प्रयोग करें। इससे सुप्रीम कोर्ट की पश्चिम दिशा में बीआरटी कॉरिडोर की चौड़ाई बढ़ जाएगी। इससे दिल्ली के लाखों लोगों का फायदा होगा। माननीय न्यायाधीशों का कहना है कि वे अपने लिए विशिष्टङ्ढ गेट (पश्चिमी दिशा की तरफ) का ही प्रयोग करेंगे, क्योंकि पूर्वी गेट वकीलों और वादी-प्रतिवादियों के लिए आरक्षित किया गया है। अब यह तो सभी जानते हैं कि दिल्ली के बच्चों का प्यारा अप्पू घर क्यों हटा। इसलिए कुछ बातें कचोटती हैं…
-अनिका अरोड़ा