डॉ. मयंक चतुर्वेदी
उड़ी में आतंकवादियों ने आकर जिस तरह भारतीय सेना मुख्यालय पर हमला किया और हमारे 18 जवानों को मौत के घाट उतार दिया उससे यह बात तो साफ हो ही गई है कि भारत के अंदर बैठे देशद्रोहियों की कोई कमी नहीं, जो पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को लगातार प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष सहयोग दे रहे हैं। पाकिस्तान लगातार सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है। उसकी कोशिश यही है कि वह उड़ी और नौगाम सेक्टर से और आतंकवादियों के जत्थे किसी तरह भारत की सीमा में घुसाने में कामयाब हो जाए ।
वास्तव में नियंत्रण रेखा के पहाड़ों पर बर्फ गिरने के पहले पाकिस्तान आतंकवादियों को भारतीय सीमा में घुसाने के लिए कितना उतावला है, वह इस बात से भी समझा जा सकता है कि जिस स्थान से वह पहले आतंकवादियों को अंदर भेजकर हमला कराने के कामयाब रहा, उसके बाद उसी स्थान से फिर उसने आतंकवादियों के एक बड़े जत्थे को धकेलने का प्रयास किया था। यह जानते हुए कि भारतीय सीमा सुरक्षा बल के जवान मुस्तैद होंगे। इतना ही नहीं पाकिस्तानी सेना आतंकवादियों को कवर फायरिंग का सपोर्ट भी मुहैया करा रही है, जिससे कि किसी तरह आतंकी भारत में घुसने में कामयाब हो जाएं। इससे सीधेतौर पर पाकिस्तान की आतंकवाद को प्रश्रय देने की नापाक मंशा तो जाहिर होती ही है, साथ में यह भी पता चला है कि भारत को बाहर से उतना खतरा नहीं, जितना कि उसे घर के अंदर छिपे उन तमाम देशद्रोहियों से है, जो खाते तो भारत की है लेकिन गुणगान से लेकर चाकरी उन मुल्कों की करते हैं जो हिन्दुस्तान को सदैव अशांत देखने की इच्छा रखते हैं।
वस्तुत: आज उड़ी हमले के बाद जो सबसे बड़ा सवाल उठ खड़ा हुआ है वह यही है कि बिना स्थानीय लोगों की मदद के इतना बड़ा आतंकी हमला सफल कैसे सफल हो सकता है ? इस हमले के बाद जो बातें निकलकर सामने आ रही हैं, उनमें से एक यह बात भी है कि उड़ी हमला होने से पूर्व पिछले 4-5 दिनों से स्थानीय लोगों द्वारा 8 से 10 लोगों को फौजी वर्दी में भारी असला, बारूद लिए घूमते देखा गया था। इसमें सबसे खास ओर गौर करने वाली बात यह भी है कि हथियारों से लैस इन आतंकवादियों के साथ स्थानीय लोग भी दिखाई दिए थे। यहीं से स्थानीय लोगों के इस आतंकी हमले में शामिल होने का शक शुरू होता है।
दूसरी बात यह भी है कि पाकिस्तान से आए आतंकवादियों ने सेना के मुख्यालय पर उसी समय धावा बोला जिस वक्त चेंज ऑफ कमांड हो रहा था, यानि की आतंकवादियों को पहले से सेना की आंतरिक गतिविधियों के बारे में जानकारी थी? स्थानीय लोगों की आतंकवादियों को सहयोग देने की जानकारी तब ओर स्पष्ट हो गई जब यहां के तीन चरवाहों, जिन्हें स्थानीय भाषा में बक्करवाल भी बोला जाता है से सेना ने कड़ी पूछताछ की। इस पूछताछ के बाद उन्होंने जो बताया उससे जब मारे गए आतंकियों के हुलिए से इनके बताए हुलिए को मैच किया गया तो पता चला कि दो आतंकवादी ठीक वैसे ही कठ-काठी और हाव-भाव वाले थे जैसा कि चरवाहों ने उनके बारे में बताया था।
इन खुलासों के बाद जो अन्य जानकारियों निकलकर आई हैं, उनमें है, इन फिदायीनों के पास से तमाम नक्शों का बरामद होना, जोकि इस आर्मी मुख्यालय की एक-एक आंतरिक गतिविधियों को केंद्र में रखकर बनाए गए थे। अब भला यह कैसे संभव है कि आतंकियों को पहले से सभी कुछ पता हो कि कहां से हमला करना है और कहां से हम भारतीय सेना की कई टुकड़ियों को चकमा देकर भागने में कामयाब हो सकते हैं ? आतंकियों के पास से बरामद यह सभी नक्शों में लगे लाल निशान यही बता रहे हैं कि स्थानीय लोगों की गतिविधि जो इस सैन्य मुख्यालय के पास, रोजमर्रा के जीवनक्रम में आए दिन होती थी, सिर्फ उन्हीं लोगों को इस आर्मी मुख्यालय के बारे में सही जनकारी हो सकती है। इस बात को गहराई से इसलिए भी कहा जा सकता है क्यों कि उनके अलावा किसी बाहरी को यह किसी भी सूरत में नहीं पता हो सकता था कि आखिर यहां की सभी दिशाएं किस तरफ किस ओर के जाती हैं।
वस्तुत: सेना कैंपों या मुख्यालय में अभी तक हुए जितने भी हमले हैं, यदि उन पर भी गंभीरता से गौर करलें तो आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि इतनी पुख्ता जानकारी के नक्शे कभी बरामद हुए हों। दूसरी ओर शुरूआती जांच से यह भी पता चला है कि पाकिस्तान की ओर से आतंकवादी भारत की सीमा में कम से कम एक दिन और इससे भी कुछ दिन पहले ही घुसने में कामयाब गए थे। साथ ही इन आतंकियों के पास से जो ग्रेनेड, संचार तंत्र, खाने के पैकेट और दवाईयां बरामद हुई हैं, उन पर लगी मोहरें साफ बता रही हैं कि यह सभी कुछ पाकिस्तान में तैयार किए गए हैं। आतंकवादियों के पास से दो डेमेज रेडियो सेट मिले हैं। यह बरामद किए गए सेटेलाइट फोन जापान हैं, जिन्हें चलाने के लिए काफी प्रशिक्षित होना जरूरी है। इन सभी से साफ पता चलता है कि उड़ी हमले में सीधेतौर पर पाकिस्तान की सेना का हाथ है। उड़ी हमले के बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने पाकिस्तान के उच्चायुक्त अब्दुल बासित को तलब किया था ।
आज वास्तव में देखाजाए तो हर बार की तरह जिस बात का प्रत्येक भारतवासी को डर सता रहा है, वह यही है कि कहीं पाकिस्तानी उच्चायुक्त से की गई भारत की नाराजगी भरी बातचीत सिर्फ कागजों तक सिमटकर न रह जाए, क्यों कि जब-जब पहले भी पाकिस्तान ने इस प्रकार की कोई नापाक हरकत की है, ज्यादातर मामलों में भारत सिर्फ अपनी नाराजगी जताने और पड़ौसी मुल्क पाकिस्तान के साथ दुनिया के तमाम देशों को आतंकवाद के सबूत सौंपने की कागजी खानापूर्ति करता ही दिखाई दिया है । बार-बार पाकिस्तान हमारा नुकसान भी कर जाता है और हम उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते हैं।