जनादेश को समझे भाजपा – शिवसेना

bjp shivsena
महाराष्ट्र और हरियाणा के राजनीतिक चुनाव परिणामों ने जहां भाजपा को आशातीत सफलता प्रदान की है, वहीं क्षेत्रीय दल सहित कांगे्रस सकते में हैं। हालांकि कांगे्रस के राजनेताओं को यह पहले से ही उम्मीद थी कि उनकी पार्टी गौरव प्रदान करने वाली संख्या प्राप्त नहीं कर पाएगी। इसलिए कांगे्रसियों के लिए यह परिणाम आश्चर्य जनक नहीं कहे जा सकते, लेकिन क्षेत्रीय दलों के लिए यह बहुत बड़ा झटका ही कहा जाएगा। क्योंकि इन दलों का प्रभाव केवल एक राज्य तक ही सीमित था, और आज जब यह दल अपने वजूद वाले राज्यों में प्रभाव छोडऩे में असफल रहे हैं, तब चिन्ता बढऩा स्वाभाविक ही है। महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव परिणाम आ चुके हैं, जैसी संभावना व्यक्त की जा रही थी, ठीक वैसे ही परिणाम दिखाई दिये हैं। इसमें सबसे खास बात यह कही जा सकती है कि लोकसभा चुनाव में अप्रत्याशित पराजय झेलने के बाद भी कांगे्रस ने कोई सबक नहीं लिया।
एक बात तो स्पष्ट है कि महाराष्ट्र की जनता इस बार केवल और केवल भाजपा का ही मुख्यमंत्री चाहती थी, लेकिन शिवसेना के साथ। दोनों ही दल सबसे बड़े दल के रूप में आए हैं, अब समय का तकाजा तो यही है कि भाजपा और शिवसेना को जनता की मंशा को समझना ही चाहिए। यहां एक बात और ध्यान करने वाली बात है कि जब भाजपा और शिवसेना अलग अलग होकर चुनाव लड़े तब परिणामों की यह तस्वीर है, अगर यह दोनों मिलकर लड़ते तो कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का क्या हश्र होता? स्मरणीय है कि लगभग 40 के आसपास ऐसे स्थान हैं जिन पर भाजपा और शिवसेना की सीधी टक्कर रही, यानि पहले और दूसरे स्थान पर यह दोनों ही पार्टियां रहीं, इसके अलावा कई स्थानों पर दूसरे और तीसरे नंबर पर रहीं हैं, जिनके आपस में वोट मिला दिये जाएं तो जीते हुए प्रत्यासी से बहुत आगे निकाल जाते। ऐसे में अनुमान यह है कि दोनों दल मिलकर चुनाव लड़ते तो 240 के लगभग सीट मिलतीं। ऐसी स्थिति में कांगे्रस के समक्ष अत्यन्त ही पराजय वाली स्थिति होती, क्योंकि राष्ट्रवादी कांगे्रस पार्टी के अलग होने के बाद कांगे्रस के नेताओं में राजनीतिक रूप से स्थाई प्रभाव वाला कोई नेता नहीं है। इसके उलट शरद पवार तो जिस हालत में अभी हैं, कमोवेश यही स्थिति रहती, क्योंकि राजनीतिक रूप से शरद पवार महाराष्ट्र की राजनीति में कांगे्रस से ज्यादा प्रभाव और दखल रखते हैं। वैसे यह भी सत्य है कि जब से शरद पवार कांगे्रस से अलग हुए हैं, तब से ही कांगे्रस अकेले प्रभावशाली स्थिति में कभी नहीं आ सकी।
भाजपा ने जिस प्रकार से शिवसेना से सीटों की मांग की थी, वह मांग पूरी तरह से उपयुक्त थी, इससे यह तो साफ होता है कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने अस्तित्व का राजनीतिक विश्लेषण एकदम ठीक ही किया था, लेकिन शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे एक बार तो राजनीतिक समझ के मुद्दे पर अपरिपक्व साबित हुए हैं, उनका अनुमान कहीं से भी राजनीतिक धरातल पर उम्मीद के मुताबिक नहीं आया।
हिन्दुस्तान में इन दिनों भाजपा एवं नरेन्द्र मोदी की लहर चल रही है। पहले चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में अभूतपर्व सफलता मिली। इसके बाद लोकसभा चुनाव में स्पष्ट बहुमत भी भाजपा को मिला। रविवार को आए दो प्रमुख राज्यों हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा को आपेक्षित चुनाव परिणाम देखने को मिले हैं। हरियाणा की जनता ने जहां भाजपा को स्पष्ट बहुमत देकर सत्ता सौंपी है, वहीं महाराष्ट्र में भाजपा को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में जनसमर्थन मिला है। सबसे खास बात यह रही कि यहां दूसरे नंबर की पार्टी के रूप में राजग में भाजपा की सहयोगी रही शिवसेना उभरकर सामने आई है। इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि भाजपा और कांगे्रस का जो हाल हुआ वह सभी के सामने है, भाजपा जहां दोनों प्रदेशों में शासन की बागडोर संभालने की मुद्रा में आ गई है, वहीं कांगे्रस के समक्ष लगभग लोकसभा जैसी स्थिति है, कही जाए तो उससे भी बदतर, क्योंकि लोकसभा में दूसरे सबसे बड़े दल के रूप में कांगे्रस आई थी, लेकिन इन चुनाव परिणामों ने कांगे्रस को तीसरे नम्बर पर पहुंचा दिया है। यह कांगे्रस के लिए परेशानी का सबब माना जा सकता है।
सवाल उठता है कि  देश को मिली आजादी के बाद कांग्रेस पार्टी और नेहरू-गांधी परिवार के कांग्रेसी मुखियाओं को केन्द्र की सत्ता का उत्तराधिकारी समझ बैठी देश की जनता का मन कांग्रेस पार्टी से इतना विचलित कैसे हो गया।  पांच वर्ष पूर्व जो भारतीय जनता पार्टी केन्द्र और राज्यों में जिस तरह की सफलता के बारे में विचार तक नहीं कर सकती थी उससे कहीं ज्यादा जनविश्वास उसने जीत लिया। क्यों जनता ने कांग्रेस को पूरी तरह नकारकर भाजपा को पलकों पर बैठाया है? ऐसा अकारण ही नहीं हुआ है। देश में आजादी के बाद से छह दशक तक सत्ता का सुख भोगकर सत्ता को अपना अधिकार समझ बैठे कांग्रेसियों और उनके सहयोगी दलों के नेताओं ने देश की जनता को कठपुतली समझकर उपयोग करना शुरू कर दिया। कांग्रेस के पिछले 10 वर्षों के शासनकाल में देश ने जो कुछ खोया है उसे पुन: प्राप्त कर सकना शायद अब संभव नहीं है। वहीं भाजपा को जिन गिने-चुने राज्यों में सरकार चलाने का मौका मिला वहां विकास जिस गति से हुआ उसने जनता का विश्वास जीत लिया। देश को सत्ता के शिखर तक पहुंचाने की हुंकार भरने वाली भाजपा राज्यों के बाद जब केन्द्र में पहुंची, तो वहां भी विकास की गंगा बहाने का क्रम जारी हो गया। कांग्रेस शासनकाल में देश के विकास की गति जिस प्रकार से थमकर रह गई, साथ ही भ्रष्टाचार को सरकार की मौन स्वीकृति जिस रूप में प्राप्त होती रही उसने देश की जनता के मन को झकझोरा। चूंकि भारत में सत्ता परिवर्तन हेतु जनता को पांच साल में सिर्फ एक अवसर मिलता है इस कारण सरकार की प्रत्येक गतिविधि पर नजर गढ़ाए बैठी जतना को जैसे ही मौका मिला उसने कांग्रेस को तिरस्कृत कर भाजपा को सत्ता के शिखर पर बैठाया। पूर्ण बहुमत मिलने के बाद हिन्दुस्तान में सरकारें बेलगाम होती रही हैं। जनता को अनुपयोगी समझकर पांच सालों के लिए भुला दिया जाता रहा है। वहीं भारत में जब से नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी है देश की वर्तमान पीढ़ी ने शायद पहली बार हिन्दुस्तान में वह सरकार देखी है जो हिन्दुस्तान के हित की बात करती है। यहां की जनता के कल्याण की बात करती है और सत्ता के शिखर पर बैठकर भ्रष्टाचार उन्मूलन की बात करती है। भाजपा शासित राज्यों में गुजरात, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में जनता ने विकास की गति को आत्मसात किया है। परिणाम सामने हैं कि इन राज्यों में निरंतर तीन बार जनता ने भाजपा को स्पष्ट बहुमत सौंपा है। इन राज्यों से वही विकास की गंगा राजस्थान, गोवा के बाद अब हरियाणा और महाराष्ट्र तक पहुंची है।
सच्चाई यही है कि जनता भ्रमित हो सकती है लेकिन सिर्फ एक बार और राजनेताओं को जनता से वोट मांगने पांच साल में कई बार जाना पड़ता है। भाजपा ने केन्द्र और राज्यों में जनता से जितने भी वायदे किए वह उस हद में थे जो स्वप्निल न होकर धरातल पर उतर सकने लायक थे। राज्यों और केन्द्र में विकास की गंगा बहाने का क्रम निरंतर जारी है। देश विकास और प्रगति की ओर बढ़ रहा है यह बताने की जरूरत शायद नहीं है। यह पूरा विश्व हमें बता रहा है। अमेरिका जैसे विश्व के सबसे विकसित और शक्तिशाली देश का राष्ट्रपति जिस देश के प्रधानमंत्री के इंतजार में पलकें बिछाए बैठा हो ऐसा हिन्दुस्तान के इतिहास में पहली बार हुआ है। देश की जनता को विश्वास है कि भाजपा देश हित और जन कल्याण की विचारधारा को सिर्फ शब्दों में वयां नहीं करती बल्कि धरातल पर भी उतारती है। यही विश्वास भाजपा को निरंतर सत्ता की सीढिय़ां भी चढ़ा रहा है।

1 COMMENT

  1. धन्यवाद सुरेश जी, सही सही विश्लेषण।
    जो तथ्य मुझे उभरकर आया हुआ लगता है, वह निम्न (१) और (२)है, और मैं उसे अधोरेखित करना चाहता हूँ।

    (१) जनता ठोस उपलब्धियाँ चाहती है।
    (२) मोदी जी की ठोस उपलब्धियाँ ही महाराष्ट्र में, भा. ज. पा. का सबसे बडा जीत का कारण था। हरयाणा मुझे इतना ज्ञात नहीं।
    (३) शिवसेना के उद्धव की आँखों पर क्या पट्टी बंधी थी?
    भा ज पा जितनी बैठके माँग रही थी, लगभग उतनी ही उसे प्राप्त हुयी है।
    (४) आप का २४० बैठकों का (सेना भाजपा के गठबंधन से) जीत का अनुमान सही लगता है।
    (५) इन परिणामों से, शिव सेना, और उद्धव को ही सीख लेनी चाहिए।
    (६) पर उद्धव इस बात को कभी नहीं समझेगा। उसकी कूट नीति अलग समीकरण से चलती है। उसी गलत कूटनीति को वह अब भी, दोहरा रहा है।
    मैं सारा दोष उद्धव के सिर मढता हूँ। भाजपा ने और कितना झुकता तौल तौलना चाहिए था?
    (७) अमित शाह भी उसकी सारी चालें समझते हैं।

    **एक वर्ष पहले सब निराश थे। नरेंद्र मोदी का करिश्मा –और सारा बदल गया।

    आलेख से सहमति। धन्यवाद।

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