प्रसिद्ध होने की इच्छा अर्थात ‘लोकेषणा’ भी अजीब चीज है। इसके लिए लोग तरह-तरह के काम करते हैं, जिससे उनका नाम ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड’ में आ जाए। ये काम भले भी हो सकते हैं और बुरे भी। सीधे भी हो सकते हैं और उल्टे भी। जान लेने वाले भी हो सकते हैं और जान देने वाले भी। इनकी चर्चा प्रायः अखबारों में होती ही है।
इनसे उत्साहित होकर पिछले कुछ समय से शर्मा जी भी कुछ ऐसा काम करना चाहते हैं, जिससे उनका नाम इस सूचि में आ जाए। उनके कारनामे की चर्चा अखबारों में हो। और यदि संभव हो, तो इसके लिए उन्हें कुछ पुरस्कार आदि मिल जाए। पर वे क्या करें, यह उनकी समझ में नहीं आ रहा था।
इस बारे में उन्होंने कई लोगों से सलाह ली। सबने अपने स्वभाव और बुद्धि के अनुसार सुझाव दिये। कई दिन तक पार्क में सुबह और शाम इस विषय पर चर्चा हुई; लेकिन कोई निष्कर्ष नहीं निकला। इसके बाद अचानक वे एक सप्ताह के लिए गायब हो गये। वहां से लौट कर आये, तो पता लगा कि उन्होंने ‘अमित्र सभा’ नामक एक संस्था बना ली है।
हमें बड़ा आश्चर्य हुआ। मित्र सभा, मित्र मंडल या मित्र पंचायत जैसे नाम तो सुने थे; पर ‘अमित्र सभा’ नाम पहली बार ही सुना था। कल पार्क में इस पर ही चर्चा होने लगी।
– शर्मा जी, ये नाम आपको किसने सुझाया ?
– एक बहुत बड़े आदमी ने।
– जरूर वो कोई खास आदमी होगा ?
– नहीं, वो तो बहुत बड़ा ‘आम आदमी’ है।
– आम आदमी और बहुत बड़ा। बात कुछ समझ नहीं आयी ?
– थोड़े दिन में आ जाएगी।
हमने कई प्रश्न किये, पर उनका जवाब हर बार गोलमोल ही रहा। धीरे-धीरे सब मित्रों ने नोट किया कि शर्मा जी का व्यवहार बहुत बदल गया है। अब वे हर समय लड़ने और भिड़ने को तत्पर दिखते थे। कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं।
1. गुप्ता जी से उन्होंने इस बात पर झगड़ा कर लिया कि इस बार उन्होंने अपने पेड़ के आम उनके घर क्यों नहीं पहुंचाए ?
2. पटेल साहब से वे इस बात पर नाराज हो गये कि उन्होंने अपने मोबाइल से उन्हें फोन क्यों नहीं करने दिया ?
3. सिन्हा जी से लड़ाई का कारण यह था कि उनका कुत्ता शर्मा जी को देखकर भौंकता क्यों नहीं है, जबकि बाकी सबके आने पर वह सिर पर आसमान उठा लेता है।
4. पांडे जी एक दिन पार्क में नहीं आये। शर्मा जी इस बात पर उनसे भिड़ गये।
5. चंद्रा जी अपने गांव जाते समय उन्हें बताकर नहीं गये। बस, शर्मा जी इसी बात पर लाल-पीले हो गये।
6. शर्मा जी कल घर से निकले, तो पड़ोसी आलोक बाबू ने छींक दिया। इससे वे आग-बबूला हो गये।
मतलब ये कि कुछ ही दिन में शर्मा जी ने पूरे मोहल्ले को नाराज कर लिया। सब मित्रों को बड़ी चिन्ता हुई। शर्मा जी के इस व्यवहार का कारण क्या है, और यह ठीक कैसे हो ? इस बारे में भी तरह-तरह के सुझाव आये।
1. गुप्ता जी का मत था कि किसी ने उन पर जादू-टोना कर दिया है। अतः उन्हें मेंहदीपुर वाले बालाजी के दरबार में ले जाना चाहिए।
2. पटेल साहब अंग्रेजी चिकित्सा के पक्ष में थे। जबकि पांडे जी का मत था कि शर्मा जी को कुछ दिन के लिए बाबा रामदेव के पतंजलि आरोग्य धाम में भेज देना चाहिए।
3. सिन्हा जी की राय थी कि उन्हें गरमी चढ़ गयी है। इसलिए कुछ दिन के लिए किसी ठंडे स्थान पर चले जाना चाहिए।
4. चंद्रा जी गरम मिजाज के आदमी थे। उन्होंने कहा कि एक दिन सब मिलकर उनको पीट दें। इससे वे तुरंत सीधे हो जाएंगे।
5. आलोक बाबू कानून हाथ में लेना उचित नहीं समझते थे। उनका मत था कि और कुछ दिन देख लें। यदि शर्मा जी के व्यवहार में सुधार नहीं हुआ, तो फिर थाने में रपट लिखानी चाहिए।
इस सारी चर्चा में मैं चुप ही रहा। यद्यपि बाकी सब की तरह मुझे भी चिन्ता थी कि हमारे प्रिय शर्मा जी को अचानक क्या हो गया ? मैं एक दिन उनके घर गया और काफी देर इधर-उधर की बात करते हुए मैंने उनसे पूछा कि वे एक सप्ताह के लिए कहां गये थे ?
शर्मा जी के उत्तर से उनकी बीमारी का रहस्य खुल गया। असल में वे कुछ दिन के लिए अरविंद केजरीवाल के साथ पंजाब के दौरे पर चले गये थे। अब आप जानते ही हैं कि केजरी ‘आपा’ को बचपन से ही हर किसी से झगड़ने का शौक है। पिछले कुछ समय से वे राजनीति में हैं, तो यहां भी ये आदत बनी हुई है।
मोदी से तो वे शुरू से ही लड़ रहे हैं। फिर शीला दीक्षित उनके निशाने पर आयीं। जब उनकी सरकार बन गयी, तो उपराज्यपाल नजीब जंग से लड़े। फिर केन्द्रीय मंत्री अरुण जेतली, स्मृति ईरानी और पुलिस प्रमुख भीमसेन बस्सी से भिड़े। पिछले दिनों राष्ट्रपति महोदय ने 21 विधायकों वाली उनकी फाइल बैरंग लौटा दी। इससे वे राष्ट्रपति जी पर ही बरस पड़े। अब भ्रष्टाचार निरोधी विभाग और नये पुलिस प्रमुख पर वे आंखें लाल कर रहे हैं। यानि जो ‘अमित्र सभा’ शर्मा जी ने बनायी है, उसके प्रेरक केजरी ‘आपा’ ही थे। मैंने ‘अमित्र सभा’ का पैड देखा। उस पर लिखा था –
शर्मा खड़ा बजार में, मांगो अपनी खैर
नहीं किसी से दोस्ती, सब काहू से बैर।।
मैंने शर्मा जी को प्यार से समझाया कि सबको नाराज करने से हो सकता है कोई अजीब काम करने का रिकार्ड बन जाए; पर ये ध्यान रहे कि सुख-दुख में मित्र और पड़ोसी ही काम आते हैं, रिकार्ड या पुरस्कार नहीं।
शर्मा जी की समझ में बात आ गयी। उन्होंने ‘अमित्र सभा’ भंग कर दी। इसके बाद उनका व्यवहार फिर सामान्य हो गया।
– विजय कुमार,