आतंकवाद पर नियंत्रण को लेकर पाकिस्तान से उम्मीदें रखना बेमानी

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-तनवीर जाफरी

हालांकि पाकिस्तान के आतंकवाद से गहरे रिश्तों का कई बार प्रमाण सहित खुलासा हो चुका है। फिर भी समय-समय पर कुछ और ऐसे तथ्य एवं समाचार सामने आते रहते हैं जिनसे इस हंकींकत को और भी बल मिलता है। अभी कुछ ही दिन बीते हैं जबकि एक अमेरिकी रिपोर्ट के माध्यम से यह धमाकेदार खुलासा किया गया है कि पाकिस्तान की आई एस आई के तालिबानी लड़ाकों के साथ गुप्त संबंध हैं। अब जरा कल्पना कीजिए कि कहां तो अमेरिका पाकिस्तान को इसी तालिबान का सफाया करने के नाम पर बार-बार मुंह मांगी रकम तथा इनसे निपटने के लिए आधुनिकतम हथियार उपलब्ध करा रहा है। और कहां ऐसी रिपोर्ट आ रही है कि पाकिस्तान सरकार की आंख समझे जाने वाली आई एस आई ही तालिबानों से मिली हुई है। अब इसी परिपेक्ष्य में याद कीजिए भारत के उन आरोपों को जिनके अंतर्गत भारत हमेशा यह कहता आया है कि पाकिस्तान आतंकवाद के नाम पर मिलने वाली सैन्य सहायता तथा आर्थिक सहायता का प्रयोग आतंकवाद से निपटने के लिए करता हो या न करता हो। परंतु वह इनका प्रयोग भारत के विरुद्ध साजिश रचने में तथा भारत में आतंकवाद व अस्थिरता फैलाने में जरूर करता है।

यह तो रही उस सनसनीख़ेज रिपोर्ट की बात जिसका पाकिस्तान खंडन भी कर चुका है। परंतु मो की बात तो यह कि पाकिस्तान के खंडन के बावजूद उपरोक्त रिपोर्ट के सूत्रधारों ने पुन: णोर देकर यह कह दिया है कि उन्होंने जो कुछ भी रिपोर्ट में लिखा है उसके उनके पास एक दो नहीं बल्कि कई पुख्ता प्रमाण हैं। अब देखना तो यह है कि इसके बाद पाकिस्तान अपनी बेगुनाही प्रमाणित करने के लिए और किस नए प्रकार के ‘तर्क’ अथवा ‘खंडन’ का सहारा लेता है। बहरहाल, अब आगे देखिए आतंकवाद से पाकिस्तान के शासकीय स्तर के रिश्तों की वह सिर चढ़कर बोलती हुई ‘बानगी’ जिसके लिए न किसी रिपोर्ट की दरकार है, न ही यह किसी पाक विरोधी साजिश का कोई हिस्सा कहा जा सकता है। पिछले दिनों पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने अपना जो बजट पेश किया है उसमें 8 करोड़ 20 लाख रुपये से भी अधिक की राशि प्रतिबंधित जमाअत-उद-दावा संगठन के लिए निर्धारित की गई है। एक बार पुन:संक्षेप में जान लीजिए कि जमाउत-उद-दावा आख़िर क्या ‘बला’ है। हाफिज मोहम्मद सईद पाकिस्तान में इन दिनों सरकारी संरक्षण में खुलेआम घूम रहे उस अंतर्राष्ट्रीय आतंकी सरगना का नाम है जो मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमले का मुख्य साजिशकर्ता है। इसी हाफिज सईद ने पाकिस्तान में पहले लश्करे तैयबा नामक अतिवादी व आतंकवादी संगठन खड़ा किया था। लश्कर जब अत्यधिक बदनाम हो गया तभी हाफिज सईद के मन में यह विचार आया कि वह आतंकवादी संगठन पर समाज सेवी संगठन होने का ‘लेबल’ भी लगा दे। और इस प्रकार 2001 में उसने लश्कर का नेतृत्व छोड़कर जमाअत-उद- दावा नामक संगठन की घोषणा कर उसके प्रमुख की कमान संभाल ली। उधर लश्कर पर अंतर्राष्ट्रीय दबाव पड़ने पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया।

यहां गौरतलब यह है कि 2611 के मुंबई हादसे में गिरफ्तार किये गए एकमात्र जीवित आतंकी अजमल कसाब ने मुंबई की विशेष अदालत को स्वयं भी यह बताया तथा इस बात के पर्याप्त प्रमाण भी भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान को कई बार सौंपे गए कि 2611 की आतंकी घटना की साजिश पाकिस्तान में ही रची गई थी। जिसके लिए हाफिज सईद तथा जकीउर्र रहमान लखवी सहित लगभग 20 व्यक्ति शामिल थे। भारतीय अदालत ने इस मामले में दिए गए अपने फैसले में भी दावा प्रमुख हाफिज सईद के नाम का उल्लेख किया है। जिन्होंने मुंबई हमले की योजना बनाने में सहायता की थी। हाफिज सईद के विरुद्ध अगस्त 2009 में 2611 मामले में ही रेड कार्नर नोटिस भी जारी किया गया था। इन सब का परिणाम मात्र यही निकला कि दिसंबर 2008 में उसे पाकिस्तान में नजरबंद कर दिया गया। परंतु 2जून 2009 को लाहौर हाईकोर्ट द्वारा उसे यह कहकर बरी कर दिया गया कि हाफिज सईद तथा जकीउर्ररहमान लखवी दोनों ही केविरुध्द 2611 के दोषी होने का कोई पर्याप्त प्रमाण नहीं है। यहां हाफिज सईद को लेकर कुछ बातें और भी काबिलेगौर हैं। एक तो यह कि आतंकी संगठन की बागडोर संभालने के बाद ‘धर्मात्मा’ बनने का जो चोला हाफिज सईद ने ओढ़ा है उससे पाकिस्तान के विशेषकर पंजाब प्रांत के अनपढ़ व अतिवादी सोच रखने वाले तबके में उसकी गहरी पैठ बन गई है। इस लिहाज से भी पाक सरकार उस पर आसानी से हाथ डालना नहीं चाहती। दूसरी बात यह कि हाफिज सईद को सैकड़ों प्रशिक्षित लड़ाकों की ‘छतरी’ मिली हुई है। इसलिए भी उसे एक आतंकवादी सरगना के रूप में गिरफ्तार करना आसान काम नहीं है। और इन सब से अलग हटकर एक बात यह भी है कि पाकिस्तान द्वारा हाफिज सईद को कश्मीर में पाकिस्तान के हितों को साधने वाली नीतियों को कार्यान्वित करने हेतु एक प्रमुख माध्यम के रूप में प्रयोग किया जा चुका है। अब ऐसे में यदि पाकिस्तान सरकार हाफिज सईद को गिरफ्तार करना चाहे अथवा उसके विरुद्ध गंभीरता से कड़ी कार्रवाई करने का मन बनाए तो निश्चित रूप से हाफ़िज सईद अपने सीने में दबे बहुत से ऐसे राज उगल सकता है जो पाकिस्तान की सरकार,पाक सेना तथा आईएस आई के लिए मुश्किलें पैदा कर सकते हैं। जाहिर है पाकिस्तान यह नौबत भी नहीं आने देना चाहता।

उपरोक्त हालात में अब यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि पाकिस्तान में प्रतिबंधित संगठन जमाअत-उद-दावा को सरकारी बजट से धनराशि क्यों आबंटित की जा रही है। वैसे भी दावा के पैरोकारों का यह कहना है कि संयुक्त राष्ट्र संघ अथवा अमेरिका को इस बात का कोई अधिकार नहीं है कि वह पाकिस्तान में सक्रिय किसी संगठन पर प्रतिबंध लगाए जाने की घोषणा करे। उनके अनुसार पाकिस्तान में जो भी संगठन प्रतिबंधित घोषित किया जाता है उसके विरुद्ध पाक सरकार द्वारा बाक़ायदा अधिसूचना जारी की जाती है। जबकि जमाअत-उद-दावा के प्रतिबंध को लेकर पाक सरकार द्वारा कोई भी अधिसूचना जारी नहीं की गई है। लिहाजा जमाअत-उद-दावा को प्रतिबंधित संगठन कैसे कहा जा सकता है। दावा के इस रक्षात्मक वक्तव्य से यह सांफ हो जाता है कि उसे न तो कसाब की स्वीकारोक्ति की परवाह है, न ही भारतीय अदालत के फैसले की फिक्र, न ही भारत, अमेरिका व संयुक्त राष्ट्र संघ के किसी प्रकार के दबाव की कोई चिंता। और चिंता हो भी क्यों। जबकि आई एस आई, सेना तथा सरकार तक में हाफिज सईद के हितैषी व शुभचिंतक छाए हुए हैं। जाहिर है ऐसे में जमाअत-उद- दावा के नेतृत्व अथवा स्वयं हाफिज सईद को किसी प्रकार की चिंता की तो कोई जरूरत ही महसूस नहीं होती। बजाए इसके हालात तो यह बता रहे हैं कि पाक सरकार, सेना व आई एस आई को स्वयं इस बात की चिंता सता रही है कि हाफिज सईद को तथा उसके संगठन जमाअत-उद-दावा को किस प्रकार सुरक्षित व संरक्षित रखा जाए ताकि भविष्य में वह पुन: पाकिस्तान के कश्मीर संबंधी भारत विरोधी मिशन में सहायक साबित हो सके।

कितना विरोधाभासी लगता है कि एक ओर तो पाक सरकार व लाहौर हाईकोर्ट सईद को 2611 के हमलों का दोषी नहीं मानती जबकि भारतीय अदालत दोषी भी मानती है व भारत सरकार ने उसके दोषी होने के पर्याप्त सुबूत भी पाकिस्तान को सौंपे हैं। परंतु इन सबके बावजूद हाफिज सईद पाकिस्तान में जनसभाओं में यह कहता फिर रहा है कि भारत के लिए एक मुंबई(2611)की घटना कांफी नहीं है। आख़िर किस आधर पर वह खुलेआम यह चेतावनी देता फिर रहा है? गत् दिनों जमाअत-उद-दावा ने पाकिस्तान के मुख्य मार्गों पर इजराईल विरोधी एक रोष प्रदर्शन आयोजित किया। इसमें दावा के कट्टरपंथी नेता अपने पैरों तले भारत-अमेरिका व इजराईल का झंडा रखकर बैठे साफ नजर आए। इस प्रदर्शन में हाफिज सईद ने भी भाग लिया। पाक सरकार द्वारा इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं की गई। भारत के विरुध्द नंफरत पैदा करने के ऐसे प्रदर्शन तथा फायर ब्रांड भाषणबाजी तो पाकिस्तान में आम बात बनकर रह गई है। ऐसे में क्या यह सोचना मुनासिब नहीं है कि एक ओर जहां पाकिस्तान भारत विरोधी गतिविधियों को न केवल नजरअंदाज बल्कि प्रोत्साहित भी कर रहा हो ऐसे में आख़िर हमारी शांति वार्ताओं तथा परस्पर संबंध बहाली के उपायों से कुछ हासिल होने वाला है भी या नहीं?

और जहां तक पाकिस्तान द्वारा अमेरिकी सहयोग से आतंकवाद पर नियंत्रण कर पाने का प्रश्न है तो केवल इस संबंध में न केवल पाकिस्तान की असली मंशा पर उंगली उठाने वाली रिपोर्ट ने बल्कि स्वयं पंजाब प्रांत के घोषित बजट में 8 करोड़ 20 लाख रुपये से भी अधिक की राशि प्रतिबंधित जमाअत-उद-दावा संगठन के लिए निर्धारित किए जाने जैसे शासकीय निर्णय ने यह साबित कर दिया है कि पाकिस्तान तथा आतंकवाद संभवत: दो अलग-अलग चीजों का नहीं बल्कि यह एक ही विषय वस्तु का नाम है। क्योंकि यह आतंकवाद पाकिस्तान की ही सरामीं पर पला, बढ़ा तथा संरक्षित हुआ। अब चाहे अपनी ही सरामीन पर इसी आतंकवाद द्वारा आए दिन की जाने वाली नृशंस हत्याओं से ऊब कर अथवा अमेरिका के दबाव के अंतर्गत या फिर दुनिया में हो रही अपनी फजीहत के परिणास्वरूप आख़िरकार इन आतंकी तांकतों के विरुद्ध कार्रवाई करने अथवा कार्रवाई करने जैसा दिखाई पड़ने का काम तो पाकिस्तान सरकार को ही करना है। परंतु पाकिस्तान सरकार की नीयत तथा वहां के जमीनी हालात तो बार-बार यही संदेश छोड़ रहे हैं कि आतंकवाद पर नियंत्रण को लेकर पाकिस्तान से अत्याधिक उम्मीदें रखना शायद बेमानी ही है।

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