-सुरेन्द्र अग्निहोत्री-
भारतीय राजनैतिक आंगन में देश की सबसे बड़ी पंचायत लोकसभा में 80 सदस्य भेजने वाला उत्तर प्रदेश के हाशिए पर चले जाने के कारण देश में लोकतंत्र की स्थिरता पर सवाल खड़े हो गये है जहां एक ओर उत्तर प्रदेश के वाशिन्दे आतंक से भयभीत होकर सच को सामने लाने से डर रहे हैं। मुज्जफरनगर दंगा के बाद धर्म और जाति के खेल से चोटिल लोक तन्त्र कराह रहा है। इसका दोषी कौन है? इन सवालों को जानने से पहले यह जान लेना लाजिमी होगा कि यकायक प्रदेश में राजनैतिक धरातल से राष्ट्रीय पार्टी के रूप में पहचानी जाने वाली राजनैतिक पार्टी कांग्रेस रातोंरात कैसे गायब हो गई। कांग्रेस को कमजोर करने के लिए अन्तराष्ट्रीय स्तर पर चल रह षड्य़त्रों के तहत देश की सत्ता से पकड़ कम जोर करने की नीति के तहत विदेशी खुफिया एजेन्सी की शह पर भेजे गये भारी धन की दम पर वर्षों से ठन्डे बस्ते में पड़े मामले को गर्म कराने की योजना को अमली जामा पहनाया गया। इस योजना में नेहरू परिवार के एक सदस्य को विदेशी एजेन्सी द्वारा अपना भेदिया बनाये जाने के बाद सिलसिला को तेज कर पूरे प्रदेश को धर्म की आग में झुलसा दिया गया, जब यह आग चरम पर थी तब राजनीति के चतुर खिलाड़िय़ों ने राजीव गांधी को भयाक्रांत करके अपना उल्लू सीधा करने के लिए राम जन्म भूमि का ताला तो खुलवादिया लेकिन हिन्दू हित चितंक की भूमिका में आगे बढ़ऩे से रोककर एक तीर से दो शिकार करा दिये। एक खुलकर हिन्दू समुदाय के साथ नहीं आने दिया और मुस्लिम समुदाय को नाराज कराके राजनैतिक समीकरण उल्टा दिया। इस उलटफेर के बाद दिल्ली में कमजोर सरकार के गठन का सूत्रपात हो गया। इसी साजिश के तहत बुद्धपरास्त देशों ने चीन और जापान के आर्थिक सहयोग के बल पर हिन्दी वेल्ट में अनुसूचित जाति और जनजाति को कांग्रेस से पृथक करके अपने हितों को साधने की परिकल्पना के तहत राजनैतिक दल के रूप में उन्हें सगठित कराने की रूपरेखा तैयार करके सामाजिक खाई लाभ उठा लिया। आज हालात यह है कि उप्र की सत्ता पर काबिज समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव सडक़ पर टहल रहे हैं विकास के बटवृक्ष तले सूखता उप्र की राजनीति केन्द्र के विरोध पर टिकी नजर आने लगी है। दिल्ली की गद्दी से सपा सुप्रीमों मुलायम सिंह यादव जब प्रदेश पर काबिज थे तो उनका टकराव होता रहा। वहीं इतिहास बसपा सुप्रीमो मायावती दुहराती रही है। राजनैतिक समीक्षक कहते हैं कि केन्द्र से टकराव रीजनल राजनैतिक दलों का सिर्फ स्वार्थ की प्रतिपूर्ति के तहत चलता है। राष्ट्रीय रोजगार गारन्टी जैसी लोकप्रिय योजना तथा राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण तथा प्रधानमंत्री ग्राम सड़क़ योजना के लिए केन्द्र सरकार द्वारा भेजा गया धन से केन्द्र को प्रसिद्धि न मिले इसी रणनीति में क्षेत्रीय दल लगे रहते हैं, क्योंकि उनकी कोई विकास की नीति तो होती नहीं है जाति और क्षेत्रीयता की भावनाओं को कैस करके प्रदेश की गद्दी हथियाने वाले दलों के सामने केन्दीय योजनाएं भारी राजनैतिक का संकट का कारण बनारस है। आम आदमी को यदि सच पता चल गया कि प्रदेश की सरकार को उनके सुख: दुख से कोई लेना देना नहीं रहा है तो फिर उन्हें गद्दी से बेदखल कर देगी इसी सच को छिपाने के लिए जनता को भ्रमित करने के तहत पर प्रदेश सरकार ने अनेक अडग़े डालकर इस योजना को रोका था। लोकसभा चुनावी दंगल का पर्दा गिरने के बाद चुनावी बैतरणी पार करने भारतीय जनता पार्टी भी फिल्मी सितारों के मामले में किसी से पीछे रहने को तैयार नहीं है। स्वप्न सुन्दरी हेमा मालिनी को मथुरा से तथा स्मृति इरानी को अमेठी से चुनावी जंग में उतार चुकी है।
देश का ताज फिर से पाने के लिए लालायित कांग्रेस पार्टी ने लोकसभा चुनाव २०१४ के लिए यूपी के आंगन में मात दिलाने के लिए गाजियाबाद से फिल्म अभिनेता राजबब्बर मेरठ से अभिनेत्री नगमा तथा जौनपुर से अभिनेता रवि किसन को मैदान में उतारा है । उप्र की राजनीति में शहंशाह के रूप में पहचाने जाने वाले हेमंती नन्दन बहुगुणा को अर्श से फर्श पर लाने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी ने अपने बालसखा अमिताभ बच्चन को इलाहाबाद से चुनाव समर में उतारकर बहुगुणा को धूल चटा दी थी तब से प्रदेश की राजनीति में फिल्मी सितारे गाहे बगाहे अपनी दस्तक देते रहे हैं, लेकिन दक्षिण भारत की राजनीति पर बर्चस्व करने का सपना किसी फिल्मी सितारे ने उत्तर भारत में पूरा नहीं कर पाया है। हालांकि विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, जयाप्रदा, राजब्बर, धर्मेन्द्र सीधे सडक़ से संसद पहुंचे हैं, लेकिन उत्तर भारत में उनका जादू वोटरों के उतना सर चढ़कर नहीं बोला, तभी तो लखनऊ में भाजपा के पितामह अटल बिहारी वाजपेयी के विरूद्ध अभिनेता राजबब्बर पूरी ताकत के साथ समाजवादी पार्टी की टिकिट पर लड़ऩे के बाद भी हार का सामना करने को मजबूर हुए थे।
फिल्मकार मुज्जफर अली, नफीसा अली का भी कोई जादू अटल की आंधी रोक नहीं पाया लेकिन बदलते वक्त के साथ रामपुर रियासत में मुस्लिम बाहुल सीट पर जयाप्रदा ने बेगमनूर बानों को हराकर अपने ग्लैमर का जो जादू छोड़ा है, अब जयाप्रदा रालोद की टिकिट पर बिजनौर से चुनाव लड़ रही है तो लखनऊ में आम आदमी पार्टी की ओर से फिल्म अभिनेता जावेद जाफरी भाजपा के राष्टीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह को चुनौती दे रहे हैं। फिल्स स्टारो के चुनावी जंग में उतरने के कारण उत्तर प्रदेश के चुनाव में ग्लैमर का तड़क़ा लग चुका है। ग्लैमर के मामले में कभी आगे रही समाजवादी पार्टी ने इस बार के चुनाव में पहले ग्लैमर उम्मीदवार राजू श्रीवास्तव को कानपुर से टिकिट दिया था, बाद में राजू के पीछे हटने के बाद ग्लैमर से समाजवादी पार्टी ने तौबा कर ली है। बहुजन समाज पार्टी से पहले से ही ग्लैमर का तडक़ा चुनाव में लगाने की पक्षधर नही रही है। कांग्रेस, भाजपा, रालोद तथा आमआदमी पार्टी ने ग्लैमर के जादू को चलकर चुनावी अंक गणित को अपने पक्ष मेें करने की संभावना जताई है। देखना यह है कि ग्लैमर का जादू इन दलों को कितना फायदा पहुंचाता है।