यूपीः‘कुटुम्बजनों-चाचाओं’ से घिरा युवा सीएम

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संजय सक्सेना

उत्तर प्रदेश में 18 अप्रैल 2012 का दिन विशेष रहा। इस दिन प्रदेश की कुछ अलग ही तस्वीर देखने को मिली। विभिन्न समाचार पत्रों के प्रथम पृष्ठ को मात्र पांच बड़ी खबरों ने कवर कर लिया।इसमें से चार खबरों का नाता अपराध की दुनिया से था तो एक खबर युवा मुख्यमंत्री के जनता दर्शन से जुड़ी हुई थी।इसे इतिफाक ही कहा जाएगा कि जिस दिन युवा मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह ने अपनी जनता के दर्शन कर लोगों के दुख-दर्द बांटे,उसी दिन जिला मऊ में बदमाशों से मुठभेड़ में पुलिस का एक जाबांज दरोगा मौत के मुंह में चला गया, तो जिला मेरठ में जेल बे्रक करने की कोशिश में कैदियों ने बगावत कर दी। बगावत इतनी जबर्दस्त थी कि इसे दबाने में जेल प्रशासन और पुलिस को तीन घंटे से अधिक समय तक मशक्कत करनी पड़ी।कैदियों के हमले से कई बंदी रक्षक घायल हो गए।वहीं इलाहाबाद में फिल्म अभिनेत्री मीनाक्षी थापा की लाश एक बंगले में मिलने से सनसनी फैल गई।इस बीच कुछ सुकून देने वाली खबर कानपुर से जरूर आई।यहां एयरफोर्स के फ्लाइट इंस्ट्रक्टर की बेटी से बलात्कार के आरोप में निलंबित चल रहे सीओ अमरजीत सिंह शाही को पुलिस ने नाटकीय तरीके से धर दबोचा।

उक्त पांचो खबरों को जोड़कर दिखाने का मकसद उत्तर प्रदेश सरकार की नई सरकार पर प्रश्न चिंह लगाना नहीं है,निश्चित ही अखिलेश सरकार को कसौटी पर कसे जाने से पहले कुछ और महीनों का मौका मिलना चाहिए,लेकिन जिस तरह से दिन पर दिन हालात बिगड़ रहे हैं उससे आम जनता में ठीक वैसा ही भय बैठता जा रहा है जैसा कि समाजवादी पार्टी की पूर्वती मुलायम सरकार में देखने को मिलता था।समाजवादी पार्टी को सत्ता में आए एक माह से अधिक का समय हो गया है,लेकिन कानून-व्यवस्था में सुधार की बजाए हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं।अधिकारियों को ताश के पत्तों की तरह फेंटा जा चुका हैं।माया के पुराने और वफादार अधिकारी हासिए पर डाल दिए गए हैं।अखिलेश और मुलायम के चहेते अफसर फं्रट पर आ गए हैं,फिर भी हालात नहीं सुधरे तो इसके लिए अब माया के वफादारों को कुसूरवार नहीं ठहराया जा सकता है।प्रदेश में बढ़ते अपराधों की जिम्मेदारी समाजवादी सरकार को लेनी ही होगी।अपराध का आकार भी छोटा नही हैं।मेरठ जेल में जो कुछ हुआ उसे भुलाया ही नहीं जा सकता ।

उत्तर प्रदेश में जेलों की दुर्दशा का मामला जब से समाजवादी सरकार बनी है सुर्खियों में छाया हुआ है।कारागार मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया अपने अनुभव के आधार पर बिना हिचक स्वीकारते हैं कि जेलों के हालात बद से बदत्तर हैं।पहले बस्ती में उसके बाद मऊ में अव्यस्था का मामला सामने आया था।मेरठ में जो कुछ हुआ उसने तो सरकार को आईना ही दिखा दिया।कारागार मंत्री द्वारा इन घटनाओं को गंम्भीरता से नहीं लिया जाना दुखदायी है।उनकी नजरों में मीडिया ने जेल बे्रकिंग की खबर को बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया,लेकिन उनके पास शायद इस बात का कोई जवाब नहीं होगा कि अगर घटना मामूली थी तो तीन घंटे उसे कंट्रोल करने में कैसे लग गए।दो घंटे से अधिक समय तक कैदियों ने मनमानी की।हालात पर तब नियंत्रण किया जा सकता जब अतिरिक्त सुरक्षा बल को बुलाया गया।अच्छी बात यह रही कि कारागार मंत्री की तरह सरकार ने इस घटना को हल्के में नहीं लिया। मेरठ कांड की मजिस्टेªटी जांच के आदेश दे दिए गए हैं और प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री ने भी समीक्षा बैठक करके जेलों में हो घटनाओं पर चिंता व्यक्त की है।हो सकता है कि कुछ समय में जेलों में बदलाव नजर आने लगे,लेकिन बदलाव स्थाई हो इसके लिए बुनियादी बदलाव पर विशेष ध्यान देना होगा। ।

मेरठ में जेल बे्रक करने की कोशिश तो मऊ दो बदमाशों और पुलिस की मुठभेड़ से थर्राता रहा।पांच घंटे तक बदमाशों ने पुलिस को छकाए रखा।पुलिस का एक दरोगा शहीद हो गया।अंत में दोनों बदमाश भी मारे गए,लेकिन इस मुठभेड़ ने पुलिस की क्षमता पर प्रश्न चिंह जरूर लगा दिया।दो बदमाशों को पकड़ने के लिए पुलिस को इतनी मेहनत करनी पड़ी तो अगर कहीं खुदा-न-खासता बड़ी वारदात हो जाए तो वह कैसे उसे हैंडिल कर पाएगें।इसके लिए पुलिस को तेजतर्रार होना पड़ेगा।उत्तर प्रदेश में पुलिस कर्मियों की फिटनस काफी गम्भीर समस्या है।मुश्किल से 20 प्रतिशत खाकी वर्दीधारी होंगे जो फिटनस के मामले में पूरी तरह से खरे उतरें।45-50 के बाद तो पुलिस वालों की तोंद ऐसे निकल आती हैं जैसे वह पुलिस के जाबांज नहीं कहीं के ‘लाला’ हो।यह लोग जरूरत पड़ने पर सौ मीटर भी नहीं दौड़ सकते हैं।ऐसे में इनसे यह उम्मीद करना बेमानी होगी कि वह अपराध पर नियंत्रण लगा सकेगें।गलत खानपान से पुलिस कर्मी मोटे तो हो ही रहे हैं उनकी मानसिकता पर भी इसका असर दिखाई देता है।वह अवसाद में रहने लगे हैं।कई जगह तो पुलिस वाले ही रक्षक की जगह भक्षक बन जाते हैं। जैसा कि कानपुर में हुआ।यहां एक उम्रदराज सीओं ने एक लड़की को ही अपनी हवश का शिकार बना डाला।भले ही आज उक्त सीओ जेल में है,लेकिन पुलिस महकमा तमाम ऐसे वर्दीधारियों से भरा पड़ा है जो अपराध को दूर करने के बजाए अपराध के दलदल में स्वयं फंसे रहते हैं।शायद यही वजह है यूपी पुलिस की गणना दुनिया की सबसे भ्रष्ट लोगों में होती है।

उत्तर प्रदेश को युवा नेतृत्व मिला है।जनता बदलावा चाहती है।ऐसे में मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव की जिम्मेदारी काफी बढ़ जाती है।उन्हें प्रदेश के हालात सुधारने के लिए हवा में तीर चलाने के बजाए अपराध-भ्रष्टाचार की जड़ों में मट्ठा डालना होगा।यह काम तभी हो सकता है जब वह सबको साथ लेकर चलेगंे।उन्हें जल्द से जल्द यह बात भी समझ लेना चाहिए कि भले ही वह अपने कुटुम्बियों और पिता मुलायम सिंह यादव के साथ काम करने वाले ‘चाचाओं’ के साथ काम कर रहे हों लेकिन अच्छे-बुरे कामो का ठीकरा उनके कुटुम्बवालों और चाचाओं के सिर नहीं उनके ही सिर ही फोड़ा जाएगा।इस लिए वह जितनी जल्दी यह समझ लेगें की सरकार में वह सबसे ऊपर हैं और उनको सब पर नियंत्रण रखना है उसी दिन से अखिलेश की राह आसान हो जाएगी।क्यूंकी कहावत भी है राजनीति में कोई किसी का नहीं होता।जनता उगते सूरज को सलाम करती है।अखिलेश को यह सबित करना होगा कि वह सबसे अलग है।तभी प्रदेश आगे बढ़ सकता है।उन्हें ही आगे बढ़कर श्रेष्ठ राजनीति का मार्ग प्रशस्त करना होगा।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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