यूपी में योगी के साथ ‘परिवर्तन’ होगा ‘चमत्कार’ नहीं !

हिमांशु तिवारी आत्मीय

ढ़ेर सारी आकांक्षाएं, अपेक्षाएं और कयासें भी। दरअसल सूबे में 2017 के विधानसभा चुनाव के साथ सियासी दलों ने तमाम वादों को आसमान से जमीन पर उतारा। हालांकि उसमें असलियत कितनी थी…ये पिछली सरकारों का कामकाज ज़ाहिर करता रहा है। उदाहरण के रूप में 2012 में सपा के उस वादे को याद कर लीजिए। जी हां मुफ्त लैपटॉप योजना। कितनों को बंटे और कितने छात्र लैपटॉप के लिए कतारों में डंटे। दरअसल ये इस आधार पर कहा जा रहा है क्योंकि राज्य सरकार ने 2015 और 2016 की इंटमीडिएट और हाईस्कूल परीक्षाएं उत्तीर्ण करने वाले मेधावियों को लैपटॉप भेंट करने के लिए पिछले और चालू वित्तीय वर्ष के बजट में 100-100 करोड़ रुपये आवंटित किये थे। दोनों वर्षों के बजट में आवंटित धनराशि का एक प्रतिशत प्रशासनिक व्यय के लिए तय किया गया था। लेकिन सवाल यह है कि वर्ष 2016 में इंटरमीडिएट उत्तीर्ण 87.99 फीसदी छात्रों, हाईस्कूल उत्तीर्ण 87.66 फीसदी छात्र/छात्राओं को क्या लैपटॉप मिले….हां प्रशासनिक व्यय के लिए एक प्रतिशत दिया गया या नहीं ये भी संदेहास्पद है। हालांकि यह महज एक योजना भर का जिक्र था…लेकिन सिर्फ एक योजना से ही सारी सरकार समाप्त नहीं हो जाती। बल्कि कामकाज और भी हैं…सूबे की राजधानी में गोमती के पुल पर गुलाबी पत्थरों की रेलिंग पर भाजपा की सरकार बनने से पहले सीएम अखिलेश की तमाम तख्तियां योजनाओं की दुहाईयां देती रही हैं। और हर योजना में कितनी शराफत बरती गई ये उस योजना के लिए निर्धारित समुदाय विशेष से भी जानने की जरूरत है।

बहरहाल काम बोलता है कि तख्तियों पर धूल ने चढ़-चढ़कर उन्हें गला डाला….और गठबंधन से लगाई जा रही तमाम उम्मीदों को ध्वस्त कर दिया। अब कयासें नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री योगी के साथ जुड़ने लगी हैंं। जिस जवाब की तलाश में लोग अभी से उस सवाल को बार-बार जहन में ला रहे हैं वो है स्लाटरहाउस बंद कराने का वायदा। यूं तो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कागजातों में कुल 126 बूचड़खानों का ब्यौरा है। मगर सूत्र बताते हैं कि इससे कई गुना ज्यादा बगैर परमिट के चलाए जा रहे हैं। जो 126 बूचड़खाने चल भी रहे हैं तो उसमें से अधिकांश मानकों का पालन नहीं कर रहे। उनके पास ट्रीटमेंट प्लांट भी नहीं है। क्या वाकई इन पर कोई कार्रवाई रातोंरात चमकने वाली है। ऐसा गर हो गया तो इन बूचड़खानों में काम कर रहे कर्मचारियों की रोटी की जिम्मेवारी किस पर आ रही है। मान लीजिए 1 बूचड़खाने में तकरीबन 100 कर्मचारी तो रजिस्टर्ड 126 बूचड़खानों में कितने…12,600 कर्मचारी। लेकिन इससे कई गुना ज्यादा लोग बेरोजगारी झेलेंगे इस निर्णय के साथ। यदि न बंद हुए तो तोहमतें किस पर आ रही हैं। तो इन तमाम बातों पर विचार विमर्श के बाद ही कोई कदम होगा। मतलब ये कि सरकार बनने के साथ ही अपने दांवपेंचों में उलझती नजर आ रही है।

अब आईये एक नजर डालते हैं वादों में…तो इन सबसे आकर्षक लैपटॉप बांटने का वादा है। लेकिन ये आपकी जेब पर कितनी तगड़ी चोट डाल सकता है ये समझने के लिए आपको पांच साल पीछे ले जाना बेहद जरूरी है। अखिलेश यादव इसी तरह मुफ्त लैपटॉप बांटने का वादा करके सत्ता में आए थे तब अनुमान लगाया गया था कि ऐसे लॉलीपॉप वाले वादों को पूरा करने में सरकार को करीब 40 हजार करोड़ रुपए का बोझ पड़ेगा। जबकि तब उत्तर प्रदेश पहले से ही 19 हजार करोड़ के राजकोषीय घाटे के बोझ से दबा था। इसके बावजूद अखिलेश ने सरकार बनने के बाद बारहवीं पास बच्चों को लैपटॉप बांटना शुरु किया। 2014 के लोकसभा चुनाव तक साढ़े 15 लाख लैपटॉप बांट भी डाले। सरकार को एक लैपटॉप की कीमत 19 हजार रुपये पड़ी। मुफ्त लैपटॉप बांटने में करीब 3 हजार करोड़ रुपए खर्च हुए। लोकसभा चुनाव से पहले जो मुफ्त लैपटॉप हर बारहवीं पास बच्चे को मिल रहा था। फिर वो लोकसभा चुनाव में करारी शिकस्त के बाद सिर्फ टॉपर्स को दिया जाने लगा।
पिछले साल यूपी में 25 लाख 62 हजार बच्चों ने बारहवीं पास की है। अगर सभी बच्चों को लैपटॉप दिए जाएं और कीमत 15 हजार भी मान ली जाए तो 3843 करोड़ रुपये का बोझ सरकार पर पड़ेगा। सालभर एक जीबी डाटा का खर्च अलग से होगा। खुश हो रहे हैं न आप…जरूरी भी है क्योंकि खर्च आप पर ही आने वाला है।

बीजेपी ने एलान किया है कि सरकार बनी तो एक साल में डेढ़ लाख पुलिसवालों की भर्ती होगी। जबकि हकीकत ये है कि पिछले कई दशकों में यूपी में अभी सिर्फ ढाई लाख पुलिसवालों की भर्ती हो पायी है। मान लेते हैं कि भर्ती करनी शुरू कर दी तो क्या होगा। 82 भर्ती रोज करनी पड़ेगी और एक पुलिसवाले की तनख्वाह 18 हजार रुपये है यानी 270 करोड़ हर महीने सैलरी का बोझ बढ़ेगा। मतलब साफ है कि वित्तीय वर्ष के अंत तक राज्य पर कुल मिलाकर 375049 करोड का कर्ज हो जाएगा। अभी वेतन, भत्तों व पेंशन पर यूपी सरकार सालाना 95000 करोड़ रुपये खर्च करती हैं। सातवां वेतन आयोग लागू होने के बाद 16 हजार 825 करोड़ का बोझ बढ़ जाएगा।
अब गर ये गौर कर लिया जाए कि अतिरिक्त खर्च न होता तो क्या फर्क पड़ता है…. एनएसएसओ की एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में 1 करोड़ 32 लाख नौजवान बेरोजगार नहीं होते।और एक लाख नवजातों पर 46 मासूमों की मौत का आंकड़ा सुधर जाता। तो नई सरकार के साथ शुरुआत में ही बदलावों की उम्मीद कतई नहीं कीजिएगा। परिवर्तन में वक्त लगता है…क्योंकि आप, हम पिछले कई सालों से खुद को ठगने का अवसर देते रहे हैं…और उसे अब बदलने के लिए वक्त लगना लाजिमी है।

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