ऊर्ध्व हर विन्दु रहा अवनी तल !

0
143

ऊर्ध्व हर विन्दु रहा अवनी तल,
गोल आकार हुआ प्रति-सम चल;
जीव उत्तिष्ट शिखर हर बैठा,
रेणु कण भी प्रत्येक है एेंठा !

कम कहाँ किसी से रहा कोई,
लगता पृथ्वी पति है हर कोई;
देख ना पाता कौन इधर उधर,
समझता स्वयं को महा भूधर !

अधर फैला हुआ है शून्य तिमिर,
घूमते पिण्ड हैं हुए भास्वर;
कोई चमकाता चमक कोई जाता,
नज़र कोई आता कोई ना आता !

परस्पर खींचते सभी रहते,
सींचते सदा सब रहे आते;
देख सृष्टा का उदर ना पाते,
हृदय उसका कहाँ हैं वे लखते !

नहीं कर पाते सेवा हैं घुल मिल,
रहते हैं भाव भव कभी हिल डुल;
देख कर विराटित प्रभु का दिल,
झाँक लेते हैं ‘मधु’ सृष्टि कमल !

रचयिता: गोपाल बघेल ‘मधु

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here