कांग्रेस ने किया उत्तर प्रदेश चुनाव अभियान का साम्प्रदायिकरण

लालकृष्ण आडवाणी

भारतीय चुनावों के इतिहास में, पिछले सप्ताह घटित तीन घटनाओं का अतीत में कोई साम्य नहीं मिलता।

पहली, भारतीय जनता पार्टी की ओर से चुनाव आयोग को की गई शिकायत पर आयोग ने विधि, न्याय एवं अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद की आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करने पर सार्वजनिक रूप से निंदा की।

दूसरे, विधि मंत्री ने चुनाव आयोग के आदेश की अवहेलना की। आयोग ने कहा:

”श्री खुर्शीद आज (11 फरवरी, 2012) भी यह वक्तव्य देते देखे गए कि आयोग भले ही चाहे जो निर्देश दे, वह अपने पूर्व वक्तव्य पर कायम हैं। वास्तव में, केन्द्रीय मंत्री ने आगे यह भी कहा ”यदि वे मुझे फांसी भी दे दें” तो भी वह अपने पूर्व बयान पर अडिग रहेंगे। हमारा मानना है कि केंद्रीय मंत्री के तेवर आयोग द्वारा उनको दिए गए विधिपूर्ण निर्देश के प्रति उपेक्षापूर्ण और अपमानसूचक हैं।”

 

तीसरे, चुनाव आयोग ”आचार संहिता के उल्लंघन पर पश्चाताप करने के बजाय (उनके) अवज्ञा करने और आक्रामक होने पर चकित” हुआ और पूर्ण आयोग की ”आपात बैठक” बुलाने का निर्णय लिया। आयोग ने राष्ट्रपति महोदय को लिखे अपने पत्र में सूचित किया कि:

”आयोग, संवैधानिक प्राधिकारों के नाजुक संतुलन में एक मंत्री के अनुचित और गैरकानूनी आचरण के चलते आए खिंचाव से काफी चिंतित है।”

राष्ट्रपति को भेजे आयोग के पत्र का अंतिम पैराग्राफ निम्न है:-

”भारत के चुनाव आयोग को यह आवश्यक और अनिवार्य लगा कि वह इस मौके पर आपके तत्काल और निर्णायक हस्तक्षेप का अनुरोध करे ताकि उत्तर प्रदेश विधान सभा के चल रहे चुनावों को सम्पन्न कराया जा सके, और यह आयोग अपने दायित्व का निर्वाह संविधान और कानून के तहत कर सके।”

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यहां पर इस संबंध में चुनाव आयोग के निर्देश के कुछ मुख्य अंशों को उदृत करना उपयोगी होगा। निर्देश कहता है:

”आदर्श आचार संहिता कहती है कि मंत्रीगण किसी भी रूप या वायदों के जरिए कोई वित्तीय अनुदान की घोषणा नहीं करेंगे। आयोग के सुविचारित मत के अनुसार मतदाताओं के एक विशिष्ट वर्ग को रोजगार का वायदा भी उस वर्ग के सदस्यों को विशेष वित्तीय अनुदान जैसा ही है जोकि सरकारी नौकरियों और उससे मिलने वाले पारिश्रमिक के रूप में है। इसके अलावा, आदर्श आचार संहिता जाति या साम्प्रदायिक भावनाओं के आधार पर अपील पर भी प्रतिबंध लगाती है। यहां पर, आयोग का यह सुविचारित मत है कि अल्पसंख्यकों को 9 प्रतिशत सीट आरक्षित करने का वायदा, मतदाताओं के एक विशेष वर्ग को अपने पक्ष में प्रभावित करने का प्रयास है, जो 10 जनवरी, 2012 को सभी राष्ट्रीय और स्थानीय समाचारपत्रों में प्रकाशित हुआ है कि प्रतिवादी ने अल्पसंख्यकों के लिए सीट आरक्षित करने सम्बन्धी उक्त वायदा करते समय विशेष रूप से जोड़ा कि उत्तर प्रदेश में ऐसा आरक्षण्ा मुस्लिमों को मिलेगा।

”आयोग इस अपरिहार्य निष्कर्ष पर पहुंचा है कि श्री सलमान खुर्शीद ने मतदाताओं के एक विशेष वर्ग अल्पसंख्यकों के लिए, अन्य पिछड़ा वर्गों के 27 प्रतिशत कोटे में से 9 प्रतिशत सीटें आरक्षण देने का वायदा किया। आयोग इस पर भी संतुष्ट है कि श्री सलमान खुर्शीद द्वारा किया गया यह वायदा विधि और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के रूप में किया गया। अत:, उपरोक्त वायदा कर श्री सलमान खुर्शीद ने आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन किया है। इसलिए, आयोग आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर अपना गहन दु:ख और निराशा को प्रकट करने से नहीं रोक सकता। केंद्रीय विधि और अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के रूप में उन पर आदर्श आचार संहिता का शब्दश: पालन करने की जिम्मेदारी आती है ताकि चुनाव निर्भीक और निष्पक्ष ढंग से हो सकें तथा सभी राजनीतिक दलों को चुनाव अभियानों के मामले में एक समान अवसर मिल सके।”

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उत्तर प्रदेश में अपने चुनाव प्रचार अभियान के दौरान मैंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया कि वे अपने मंत्रिमण्डलीय सहयोगी सलमान खुर्शीद को, आयोग द्वारा राष्ट्रपति को लिखे गए पत्र जिसमें विधिमंत्री के आचरण को ”अनुचित और गैरकानूनी कार्रवाई” वर्णित किया है, के गंभीर आयामों से अवगत कराएं और आयोग से माफी मांगने को कहें। मैंने यह भी कहा कि यदि वे (सलमान खुर्शीद) ऐसा करने में असफल रहते हैं तो उन्हें मंत्रिमण्डल से बर्खास्त कर दिया जाए।

अनुमानत:, प्रधानमंत्री की सलाह पर विधि मंत्री ने आयोग को पत्र लिखकर खेद प्रकट किया, जिसके आधार पर चुनाव आयोग ने मामले को समाप्त मान लिया।

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कभी भी कांग्रेस पार्टी या इसके नेताओं ने किसी विधानसभाई चुनावों का होशो-हवास तथा जानबूझकर इतना साम्प्रदायिकरण नहीं किया जितना कि सन् 2012 मेंं उत्तर प्रदेश में किया है।

सलमान खुर्शीद प्रकरण ही इस तथ्य को पुष्ट करने वाली एकमात्र घटना नहीं है।

दिग्विजय सिंह द्वारा हाल ही में दिए गए वक्तव्य कि आतंकवादियों से बटाला हाऊस मुठभेड़, फर्जी मुठभेड़ थी, इसका एक और उदाहरण है।

खुर्शीद के खेद वाले पत्र के बाद बेनी प्रसाद वर्मा ने वही दोहराया है जो खुर्शीद ने कहा था। चुनाव आयोग ने वर्मा को भी नोटिस जारी किया है। यदि वह भी वही करते हैं जो खुर्शीद ने किया तो जेटली की यह शंका सही सिध्द होगी कि ये वक्तव्य एक संवैधानिक संस्था की अवज्ञा के निजी नहीं अपितु पार्टी के चुनाव प्रबन्धकों द्वारा चुनावों की दृष्टि से सुनियोजित षड़यंत्र का अंग हैं। यह महत्वपूर्ण है कि पार्टी ने औपचारिक रूप से अपने को खुर्शीद के बयानों से अलग किया है, परिवार ने नहीं। परिवार के युवा प्रचारक ने उत्साहपूर्वक विधि मंत्री का समर्थन किया है।

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