उत्तराखंड को मिली प्रकृति की चुनौती

-पारूल सिंह

उत्तराखंड भारत का सबसे सुन्दर और प्राकृतिक सौन्दर्य का बेमिसाल उदाहरण। देश को पर्यटन से सबसे ज्यादा राजस्व देने वाला प्रदेश। सीमाओं की रक्षा करने के लिए खुशी खुशी अपने प्राणों की आहुति देने वालों का प्रदेश। देश को ऊर्जा, सिंचाईं और पीने के लिए पानी देने वाला प्रदेश। आधा दर्जन हिमालयी राज्यों में विकास के मॉडल के तौर पर स्थापित प्रदेश और इन सबसे बढ़कर देश के सबसे युवा, साहित्यकार, पत्रकार और राजनेता डा. रमेश पोखरियाल निशंक के सपनों का प्रदेश आज प्राकृतिक आपदा के रूप में मिली प्रकृति की चुनौती से जूझता प्रदेश बन गया है। इस समय जितनी कड़ी परीक्षा से आपदा पीड़ित जनता को गुजरना पड़ रहा है उससे कही अधिक कठिन परीक्षा से निशंक सरकार को भी गुजरना पड़ रहा है। परंतु सरकार ने जिस तरह से राहतों और मदद के मोर्चो को संभाला है वह वाकई काबिले तारीफ है। सरकार की तत्परता को देखकर कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री ने रामचरित मानस के रचयिता तुलसीदास की उन पंक्तियों को गांठ बांध लिया है कि धीरज, धर्म, मित्र अरू नारी॥ आपदकाल परखिए चारी॥

कहने का तात्पर्य यह कि मुख्यमंत्री ने जिस तरह से पूरे धैर्य के साथ इस चुनौती को स्वीकार किया है और प्रभावित दुर्गम क्षेत्रों में खुद पहुंच कर राहत सामग्रियों का वितरण करवा रहे है और आधी आधी रात तक प्रशासनिक अधिकारियों के साथ इससे निपटने की रणनीति बना रहे है वह शायद स्वार्थो के इस राजनीतिक युग में एक आदर्श और लोगों के लिए प्रेरणादायी हैं।

विगत जनवरी से ही महाकुंभ आयोजन में लगे मुख्यमंत्री ने जिस तरह से इसे विश्व का सबसे बड़ा और सफल आयोजन बनाया उसकी पूरी दुनिया ने तारीफ की। अभी सरकार में इस सफलता को लेकर जश्न की स्थिति बन ही रही थी कि उन्होंने चारधाम यात्रा को भी विश्व स्तर पर स्थापित करने का मास्टर प्लान बना लिया और उसे कुशलतापूर्वक क्रियान्वयन की ओर मोड़ा भी। लेकिन शायद प्रकृति को कुछ और ही मंजूर था और विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर राज्य को ना जाने की किसकी नजर लगी कि यहां मानसूनी मौसम ने अपना कहर ढा दिया और इसकी चपेट में क्या मैदान क्या पहाड़ पूरा प्रदेश ही आ गया। इस आपदा से जनता और शासन प्रशासन के लोग सकते में आ गए। लेकिन संकटों का सामना करने में प्रवीण मुख्यमंत्री ने मोर्चा संभाल लिया और ऐसी जगहों पर भी पहुंच कर शासन प्रशासन का हौंसला बढ़ाया जहां आम दिनों में भी जाना बड़ा कठिन कार्य है।

खैर मुख्यमंत्री कोई भी हो उसका तो दायित्व ही है ऐसे कार्यो को करने का। लेकिन डा. पोखरियाल इस मामले में औरों से अलग है कि वे लीक पर चलकर ही कोई काम करे। सरकार के मुखिया ने इस आपदा से जूझते प्रदेष की जनता को इस बात का बखूबी एहसास कराया कि उनके दुख में वे पूरी तरह उनके साथ है। शायद इसका कारण उनके राजनीतिक जीवन की ऐसी शुरूआत से है जिसके चलते वे एक गरीब किसान के घर से प्रदेश की सर्वोच्च पंचायत तक का सफर किये। 1991 में जब उन्होंने कर्णप्रयाग विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेसी दिग्गज डा. शिवानन्द नौटियाल को धूल चटाकर विधानसभा पहुंचे होंगे तो शायद किसी को अंदाजा नहीं रहा होगा कि इस विधानसभा से एक विधायक नहीं बल्कि भविष्य के उत्तराखंड का स्वप्नदृष्टा चुना गया है।

बात हो रही उत्तराखंड में आई हुई अब तक की सबसे बड़ी प्राकृतिक आपदा की। यह सत्य है कि इस प्राकृतिक आपदा ने विकास के रास्ते पर तेजी से गतिमान प्रदेश के विकास के पहिए को जाम कर दिया है। इस आपदा ने प्रदेश के विकास को कम से कम 10 साल पीछे ढकेल दिया है। लेकिन पूरे प्रदेश की जनता को यह पूरा विश्वास है कि महाकुंभ में प्रबंधन का इतिहास रचने वाली सरकार इस आपदा से निपटने में भी इतिहास को दोहराएगी।

इस आपदा ने प्रदेश का जो नुकसान किया उससे तो पूरा देश अवगत है। लेकिन इस आपदा ने शायद सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया 2020 में उत्तराखंड को देश का सर्वोत्तम प्रदेश बनाने के मुख्यमंत्री डा. रमेश पोखरियाल निषंक के सपनों को। पिछले एक सालों में मुख्यमंत्री ने विजन-2020 को लेकर जिस तरह से पर्यटन,पर्यावरण संरक्षण, ऊर्जा, जड़ी बूटी, कुटीर उद्योग, बेहतर मानव संसाधन, गंगा स्वच्छता अभियान को लेकर योजनाएं बनाई उनका क्रियान्वय कराया उस पर इस आपदा ने पानी फेर दिया है।

अब सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री के सपनों को पूरा करने की है। लेकिन इन सब बातों के इतर मुख्यमंत्री की सक्रियता देखी जाए तो लगता है कि इस आपदा ने मुख्यमंत्री के सपनों को तो जरूर प्रभावित किया है लेकिन उनके हौसलों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है। मुख्यमंत्री के प्रदेश भर के दौरों को देखकर लगता है कि आपदा से प्रदेश में मची तबाही ने मुख्यमंत्री के निश्चय को और दृढ किया है। चुनौतियों से निपटने में माहिर डा. निशंक ने जिस तरह से हवाई और सैकड़ों किमी पैदल यात्राएं कर पीड़ितों के आसूं पोछे है उससे लोगों के हौंसलों में जान आ गई है। उनकी मेहनत ने प्रदेश के शासन प्रशासन को तो ऐसे माहौल में कमर कसने के लिए प्रेरित किया ही है साथ ही प्रदेश के प्रबुद्ध नागरिकों और सामाजिक व स्वयंसेवी संस्थाओं को भी इस संकट से निपटने के उनके दायित्व की याद दिलाते हुए उन्हें इसके लिए प्रेरित किया है।

मुख्यमंत्री के प्रयासों को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि आने वाला उत्तराखंड निश्चित ही अग्नि परीक्षा में तपकर निकला हुआ हीरा होगा और अन्य प्रदेशों के लिए अभिप्रेरणा का वायस।

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