वंदना शर्मा की कविता

याद आता है मुझे वो बीता हुआ कल हमारा,

जब कहना चाहते थे तुम कुछ मुझसे,

तब मै बनी रही अनजान तुमसे,

जाना चाहती थी मैं दूर,

पर पास आती गई तुम्हारे,

लेकिन धीरे-धीरे होती रही दूर खुदसे,

फिर तो जैसे आदत बन गई मेरी

हर जगह टकराना जाके यूँ ही तुमसे,

जब तक नहीं हुई बाते तुमसे मेरी,

न जाने क्यों लगती है ये आँखे भरी-भरी,

तुम्हे तो अब वक़्त मिलता नहीं,

लेकिन कोई शायद ही होता हो इतना व्यस्त ,

सोचती हूँ क्या तुम सचमुच चाहते हो मुझे,

या ये सिर्फ गलतफ़हमी है मेरी,

था वो भी कल एक ऐसा हमारा,

मै थी जब तुमसे अजनबी,

काश! रहती यूँ ही ज़िन्दगी बेरंग मेरी,

हाँ तुमने इसमें कुछ रंग तो भरे,

पर सब हैं अधूरे …..

-वंदना शर्मा

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here