साक्षात प्रकृति स्वरूपा शिव पत्नी पार्वती

shivअशोक “प्रवृद्ध”
पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार कैलाशाधिपति शिव लय तथा प्रलय दोनों के देवता हैं और दोनों को ही अपने अधीन किये हुए हैं। इनकी पत्नी या शक्ति, स्वयं आद्या शक्ति काली के अवतार, पार्वती या सती हैं ।भगवान शंकर की पत्नी पार्वती हिमनरेश हिमावन तथा मैनावती की पुत्री हैं। मैना और हिमावन अर्थात हिमवान ने आदिशक्ति के वरदान से आदिशक्ति को कन्या के रूप में प्राप्त किया। उसका नाम पार्वती रखा गया। वह भूतपूर्व सती हैं। माता सती को ही पार्वती, दुर्गा, काली, गौरी, उमा, जगदम्बा, गिरीजा, अम्बे, शेरांवाली, शैलपुत्री, पहाड़ावाली, चामुंडा, तुलजा, अम्बिका आदि अनेक नामों से जाना जाता है। पुराणों में अंकित इनकी रहस्यमय कहानियों के अध्ययन से ऐसा स्पष्ट होता है कि यह किसी एक जन्म की कथा नहीं वरन कई जन्मों और कई रूपों की कथा है। देवी भागवत पुराण में माता के अठारह रूपों का वर्णन अंकित है। यद्यपि नौ दुर्गा और दस महाविद्याओं , कुल उन्नीस रूपों के वर्णन को पढ़कर ऐसा भास होता है कि उनमें से कुछ माता की बहने थीं और कुछ का संबंध माता के अगले जन्म से है। जैसे पार्वती, कात्यायिनी अगले जन्म की कथा है तो तारा माता की बहन थी। पुराणों में आद्या शक्ति काली, भगवान शिव की पहली पत्नी सती या दाक्षायनी के नाम से पुकारी गई । पार्वती ने ही दक्ष यज्ञ का विध्वंस किया तथा दाक्षायनी नाम से जानी जाने लगी। महा काली, अवतार में इन्होने साक्षात् काल रूप धारण कर, रक्त बीज का वध किया। दुर्गमासुर नामक दैत्य का वध करने के परिणामस्वरूप तथा दुर्गम संकटो से मुक्ति हेतु यही देवी दुर्गा नाम से प्रसिद्ध हुई । हिमालय राज के घर कन्या रूप में जन्म लेकर अपने कठोर तपस्या से भगवान शिव को प्रसन्न किया तथा उन्हें पति रूप में प्राप्त कर उन्हीं के साथ निवास करने वाली बन गई । देवी सती या पार्वती के अनेकों अवतार हैं, जो विभिन्न कार्य के अनुसार जाने जाते हैं। समस्त योगिनियाँ इन्हीं की भिन्न -भिन्न अवतार मानी गई हैं। जब – जब देवताओं तथा मनुष्यों के सन्मुख विकट से विकट समस्या उत्पन्न हुई, इन्हीं देवी ने नाना प्रकार के विभिन्न रूप धारण कर, तीनो लोकों को समस्या से भय मुक्त किया। यही कारण है कि प्रत्येक प्रकार के समस्या के निवारण हेतु मनुष्य आज भी इन्हीं देवी पार्वती से शरणागत होते हैं। पुराणों की कथानुसार पार्वती ने शिव को वरण करने के लिए कठिन तपस्या की थी और अंत में नारद के परामर्श से उनसे ब्याही गई। इन्हीं के पुत्र कार्तिकेय ने तारक का वध किया था। स्कंद पुराण 5/1/30 के अनुसार ये पहले कृष्णवर्ण थीं किंतु अनरकेश्वर तीर्थ में स्नान कर शिवलिंग की दीपदान करने से, बाद में गौर वर्ण की हो गईं। पर्वतकन्या एवं पर्वतों की अधिष्ठातृ देवी होने के कारण इनका पार्वती नाम पड़ा। ये नृत्य के दो मुख्य भेदों में मृदु अथवा लास्य की आदिप्रवर्तिका मानी जाती हैं। पार्वती का निवास जब अविवाहित थी तब हिमालय, अन्यथा कैलाश कैलाश माना गया है। शिव पत्नी पार्वती के शस्त्र त्रिशूल, पाश , अंकुश, शंख, चक्रम, क्रॉसबो, कमल माने गये हैं । इनका वाहन वृषभ है। पार्वती के दो पुत्र कार्तिक, गणेश और पुत्री अशोक सुंदरी तथा मनसा अर्थात मन से उत्पन्न होने के परिणामस्वरूप मनसा नाम वाली हैं। कई पुराणों में इनकी एक पुत्री अशोक सुंदरी का वर्णन है।
पौराणिक आख्यानों के अनुसार पार्वती पूर्वजन्म में दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं तथा उस जन्म में भी वे भगवान शंकर की ही पत्नी थीं। सती ने अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में, अपने पति का अपमान न सह पाने के कारण, स्वयं को योगाग्नि में भस्म कर दिया था। तथा हिमनरेश हिमावन के घर पार्वती बन कर अवतरित हुईं । सती के आत्मदाह के उपरांत विश्व शक्तिहीन हो गया। तारक नामक दैत्य सबको परास्त कर त्रैलोक्य पर एकाधिकार जमा चुका था। तर्क की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उसे शक्ति देते हुए यह कहा था कि वह शिव के औरस पुत्र के हाथों मारा जायेगा। शिव को पत्नीहीन देखकर तारक आदि दैत्य प्रसन्न थे और वे भयानक तबाही मचाये हुए थे । देवतागण देवी की शरण में गये और उस भयावह स्थिति से त्रान दिलाने के लिए साधु – संतों से मिल देवी की आराधना की । देवी ने प्रसन्न होकर देवताओं से कहा- हिमवान के घर में मेरी शक्ति गौरी के रूप में जन्म लेगी। शिव उससे विवाह करके पुत्र को जन्म देंगे, जो तारक वध करेगा। नियत समय पर हिमवान के घर में उनकी पत्नी मैना के कोख से एक विलक्षण कन्या का जन्म हुआ जिसे पर्वतों की रानी होने के कारण पार्वती कहकर पुकारा गया। पार्वती अर्थात पर्वतों की रानी। इसी को गिरिजा, शैलपुत्री और पहाड़ों वाली रानी कहा जाता है। पार्वती के जन्म का समाचार सुनकर देवर्षि नारद हिमनरेश के घर आये । हिमनरेश के पूछने पर देवर्षि नारद ने पार्वती के विषय में यह भविष्य वाणी की कि यह कन्या सभी सुलक्षणों से सम्पन्न है तथा इसका विवाह भगवान शंकर से होगा। किन्तु महादेव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये तुम्हारी पुत्री को घोर तपस्या करनी पड़ेगी । बड़ी होने पर पार्वती भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिये वन में तपस्या करने चली गईं। अनेक वर्षों तक कठोर उपवास करके घोर तपस्या करने के बाद वैरागी भगवान शिव ने उनसे विवाह करना स्वीकार किया। शंकर ने पार्वती के अपने प्रति अनुराग की परीक्षा लेने के लिये सप्तऋषियों को पार्वती के पास भेजा। उन्होंने पार्वती के पास जाकर उसे यह समझाने के अनेक प्रयत्न किये कि शिव औघड़, अमंगल वेषधारी और जटाधारी हैं और वे तुम्हारे लिये उपयुक्त वर नहीं हैं। उनके साथ विवाह करके तुम्हें सुख की प्राप्ति नहीं होगी। इसलिए तुम उनका ध्यान छोड़ दो। किन्तु पार्वती अपने विचारों में दृढ़ रहीं। उनकी दृढ़ता को देखकर सप्तऋषि अत्यन्त प्रसन्न हुये और उन्हें सफल मनोरथ होने का आशीर्वाद देकर शिव के पास वापस आ गये। सप्तऋषियों से पार्वती के अपने प्रति दृढ़ प्रेम का वृत्तान्त सुन कर भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न हुये। सप्तऋषियों ने शिव और पार्वती के विवाह का लग्न मुहूर्त आदि निश्चित कर दिया। निश्चित दिन शिव बैल पर सवार होकर बारात ले हिमालय के घर आये। उनके एक हाथ में त्रिशूल और एक हाथ में डमरू था। उनकी बारात में समस्त देवताओं के साथ उनके गण भूत, प्रेत, पिशाच आदि भी थे। सारे बाराती नाच गा रहे थे। सारे संसार को प्रसन्न करने वाली भगवान शिव की बारात अत्यंत मनमोहक थी। इस तरह शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो गया और पार्वती को साथ ले कर शिव अपने धाम कैलाश पर्वत पर सुख पूर्वक रहने लगे। शिव- पार्वती के विवाह के संबंध में एक अन्य कथा प्रचलित है । शिव पुराण, पूर्वार्द्ध 3-8-30 में अंकित कथा के अनुसार पार्वती ने स्वयंवर में शिव को न देखकर उन्हें स्मरण किया तो वे आकाश में प्रकट हुए और पार्वती ने उन्हीं का वरण कर लिया। हिमवान का पुरोहित पार्वती की इच्छा जानकर शिव के पास विवाह का प्रस्ताव लेकर गया । शिव ने अपनी निर्धनता इत्यादि की ओर संकेत कर विवाह के औचित्य पर पुन: विचारने को कहा। पुरोहित के पुन: आग्रह पर वे मान गये। और शिव ने पुरोहित और नाई को विभूति प्रदान की। परन्तु नाई ने वह विभूति मार्ग में फेंक दी और पुरोहित पर बहुत रुष्ट हुआ कि वह बैल वाले अवधूत से राजकुमारी का विवाह निश्चित कर आया है। नाई ने ऐसा ही जाकर राजा से कह सुनाया। इधर पुरोहित का घर विभूति के कारण धन-धान्य रत्न आदि से युक्त हो गया। यह देख नाई उसमें से आधा अंश मांगने लगा तो पुरोहित ने उसे शिव के पास जाने की सलाह दी। परन्तु शिव ने उसे विभूति नहीं दी। नाई से शिव की दारिद्रय के विषय में सुनकर राजा ने संदेश भेजा कि वह बारात में समस्त देवी-देवताओं सहित पहुँचें। शिव यह सुन हँस पड़े और राजा के मिथ्याभिमान को चूर करने के लिए एक बूढ़े का वेश धारण करके, नंदी का भी बूढ़े जैसा रूप बनाकर हिमवान की ओर बढ़े। यह खबर सुन पार्वती के माता – पिता उदास हो गये। मां-बाप को उदास देखकर पार्वती ने विजया नामक अपनी सखी को बुलाकर शिव तक पहुँचाने के लिए एक पत्र दिया जिसमें प्रार्थना की कि वे अपनी माया समेटकर पार्वती के अपमान का हरण करें। पार्वती की प्रेरणा से हिमवान शिव की अगवानी के लिए गये। उन्हें देख शुक्र और शनीचर भूख से रोने लगे। हिमवान उन्हें साथ ले गये और भोजन प्रस्तुत किया । एक ग्रास में ही उन्होंने बारात का सारा भोजन समाप्त कर दिया। जब हिमवान के पास कुछ भी शेष नहीं रहा तब शिव ने उन्हें झोली से निकालकर एक-एक बूटी दी और वे तृप्त हो गये। हिमवान पुन: अगवानी के लिए गये तो उनका अन्न इत्यादि का भंडार पूर्ववत् हो गया। समस्त देवताओं से युक्त बारात सहित पधारकर शिव ने गिरिजा से विवाह किया।

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अशोक “प्रवृद्ध”
बाल्यकाल से ही अवकाश के समय अपने पितामह और उनके विद्वान मित्रों को वाल्मीकिय रामायण , महाभारत, पुराण, इतिहासादि ग्रन्थों को पढ़ कर सुनाने के क्रम में पुरातन धार्मिक-आध्यात्मिक, ऐतिहासिक, राजनीतिक विषयों के अध्ययन- मनन के प्रति मन में लगी लगन वैदिक ग्रन्थों के अध्ययन-मनन-चिन्तन तक ले गई और इस लगन और ईच्छा की पूर्ति हेतु आज भी पुरातन ग्रन्थों, पुरातात्विक स्थलों का अध्ययन , अनुसन्धान व लेखन शौक और कार्य दोनों । शाश्वत्त सत्य अर्थात चिरन्तन सनातन सत्य के अध्ययन व अनुसंधान हेतु निरन्तर रत्त रहकर कई पत्र-पत्रिकाओं , इलेक्ट्रोनिक व अन्तर्जाल संचार माध्यमों के लिए संस्कृत, हिन्दी, नागपुरी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओँ में स्वतंत्र लेखन ।

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