विनायक सेन को राजद्रोही साबित करने के चक्कर में मानव-अधिकारों पर हमला

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श्रीराम तिवारी

विनायक सेन को काल्पनिक आरोपों की जद में आजीवन कारावास की सजा के समर्थन और विरोध के स्वर केवल भारत ही नहीं, वरन यूरोप, अमेरिका में भी सुने जा रहे हैं.इस फैसले के विरोध में दुनिया भर के लोकतान्त्रिक, जनवादी, धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी शामिल हैं, वे जुलुस, नुक्कड़ नाटक, रैली और सेमिनारों के मार्फ़त श्री विनायक सेन की बेगुनाही पर अलख जगा रहे हैं और इस फैसले के समर्थन में वे लोग उछल-कूद कर रहे हैं जो स्वयम हिंदुत्व के नाम की गई हिंसात्मक गतिविधियों में फंसे अपने भगनी भ्राताओं की आपराधिक हिंसा पर देश की धर्मनिरपेक्ष कतारों के असहयोग से नाराज थे. ये समां कुछ ऐसा ही है जैसा कि शहीद भगतसिंह-सुखदेव-राजगुरु की शहादत के दरम्यान हुआ था, उस समय गुलाम भारत की अधिसंख्य जनता-जनार्दन ने भगत सिंह और उनके क्रन्तिकारी साथियों के पक्ष में सिंह गर्जना की थी और उस समय की ब्रिटिश सत्ता के चाटुकारों-पूंजीपतियों, पोंगा-पंथियों ने भगतसिंह जैसे महान शहीदों को तत्काल फाँसी दिए जाने की पेशकश की थी. इस दक्षिणपंथी सत्तामुखापेक्षी धारा के समकालिक जीवाणुओं ने भी निर्दोष क्रांतिकारी विनायक सेन को जल्द से जल्द सूली पर चढ़वाने का अभियान चला रखा है। इनके पूर्वजों को जिस तरह भगत सिंह इत्यादि को फाँसी पर चढ़वाने में सफलता मिल गई थी, वैसी आज के उत्तर-आधुनिक दौर में विनायक सेन को फाँसी पर चढ़वाने में उनके आधुनिक उत्तराधिकारियों को नहीं मिल सकी है. इसीलिए वे जहर उगल रहे हैं, विनायक सेन के वहाने सम्पूर्ण गैर साम्प्रदायिक जनवादी आवाम को गरिया रहे हैं.

चूँकि जिस प्रकार तमाम विपरीत धारणाओं, अंध-विश्वासों, कुटिल-मंशाओं और संकीर्णताओं के वावजूद कट्टरवादी-साम्प्रदायिकता के रक्ताम्बुज महासागरों के बीच सत्यनिष्ठ-ईमानदार व्यक्ति हरीतिका के टापू की तरह हो सकते हैं, उसी तरह कट्टर-उग्र वामपंथ की कतारों में भी कुछ ऐसे सत्पुरुष हो सकते हैं जो न केवल सर्वहारा अपितु सम्पूर्ण मानव मात्र के हितैषी हो सकते हैं, क्या विनायक सेन ऐसा ही एक अपवाद नहीं हैं ?

विगत नवम्बर में और कई मर्तबा पहले भी मैंने प्रवक्ता.कॉम पर नक्सलवाद के खिलाफ, माओवादियों के खिलाफ शिद्दत से लिखा था, जो मेरे ब्लॉग www.janwadi.blogspot.com पर उपलब्ध है, पश्चिम बंगाल हो या आंध्र या बिहार सब जगह उग्र वामपंथ और संसदीय लोकतंत्रात्मक आस्था वाले वामपंथ में लगातार संघर्ष चलता रहा है किन्तु माकपा इत्यादि के अहिंसावाद ने बन्दुक वाले माओवादिओं के हाथों बहुत कुछ खोया है, अब तो लगता है कि अहिंसक क्रांति की मुख्य धारा का लोप हो जायेगा और उसकी जगह पर ये नक्सलवादी, माओवादी अपना वर्ग संघर्ष अपने तौर तरीके से जारी रखेंगे जब तक की उनका अभीष्ट सिद्ध नहीं हो जाता देश के कुछ चुनिन्दा वाम वुद्धिजीवी भी आज हतप्रभ हैं की किस ओर जाएँ? विनायक सेन प्रकरण ने विचारधाराओं को एतिहासिक मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है. इस प्रकरण की सही और अद्द्तन तहकीकात के वाद यह स्वयम सिद्ध होता है कि विनायक सेन निर्दोष हैं, और जब विनायक सेन निर्दोष हैं तो उनसे किसे क्या खतरा हो सकता है?राजद्रोह की परिभाषा यदि यही है; जो विनायक सेन पर तामील हुई है; तो भारत में कोई देशभक्त नहीं बचता..

मैं न तो नक्सलवाद और न ही माओवाद का समर्थक हूँ और न कोई मानव अधिकार आयोग का एक्टिविस्ट; डॉ विनायक सेन के बारे में उतना ही जानता हूँ जितना प्रेस और मीडिया ने अब तक बताया. जब किसी व्यक्ति को कोई ट्रायल कोर्ट राजद्रोह का अपराधी घोषित करे, और आजीवन कारावास की सजा सुनाये; तो जिज्ञासा स्वाभाविक ही सचाई के मूल तक पहुंचा देती है. पता चला की डॉ विनायक सेन ने छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के बीच काफी काम किया है.उन्हें राष्ट्रीय -अंतर राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया जा चुका है.वे पीपुल्स यूनियंस फॉर सिविल लिबर्टीज (पी यू सी एल) के प्रमुख की हैसियत से मानव अधिकारों के लिए निरंतर कार्यशील रहे. उन्होंने नक्सलवादियों के खिलाफ खड़े किये गए ‘सलवा जुडूम’ जैसे संगठनों की ज्यादतियों का प्रबल विरोध किया.छत्तीसगढ़ स्टेट गवर्नमेंट और पुलिस की उन पर निरंतर वक्र दृष्टि रही है.

मई २००७ में उन्हें जेल में बंद तथाकथित नक्सलवादी नेता नारायण सान्याल का सन्देश लाने-ले जाने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. उन्हें लगभग दो साल बाद २००९ में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिली थी.उस समय भी उनकी गिरफ्तारी ने वैचारिक आधार पर देश को दो धडों में बाँट दिया था.एक तरफ वे लोग थे जो उनसे नक्सली सहिष्णुता के लिए नफ़रत करते थे; दूसरी ओर वे लोग थे जो मानव अधिकार, प्रजातंत्र और शोषण विहीन समाज के तरफदार होने से स्वाभाविक रूप से विनायक सेन के पक्ष में खड़े थे.इनमे से अनेकों का मानना था की विनायक सेन को बलात फसाया जा रहा है. उस समय उनके समर्थन में बहुत कम लोग थे; क्योंकि उस वक्त तक नक्सलवादियों और आदिवासियों के बीच काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ताओं में भेद करने की पुलिसिया मनाही थी.नक्सलवाद और मानव अधिकारवाद के उत्प्रेरकों में फर्क करने में छत्तीसगढ़ पुलिस की असफलता के परिणाम स्वरूप उस वक्त सच्चाई के पक्ष में खड़ा हो पाना बेहद खतरों से भरा हुआ अग्नि-पथ था.इस दौर में जबकि सही व्यक्ति या विचार के समर्थन में खड़ा होना जोखिम भरा है तब विनायक सेन का अपराध बस इतना सा था कि वे नारायण सान्याल से जेल में जाकर क्यों मिले?

भारत की किसी भी जेल के बाहर वे सपरिजन-घंटों, हफ़्तों, महीनों, इस बात का इन्तजार करते हैं कि उन्हें उनके जेल में बंद सजायफ्ता सपरिजन से चंद मिनिटों कि मुलाकात का अवसर मिलेगा, मेल मुलाकात का यह सिलसिला आजीवन चलता रहता है किन्तु किसी भी आगन्तुक मित्र -बंधू बांधव को आज तक किसी ट्रायल कोर्ट ने सिर्फ इस बिना पर कि आप एक कैदी से क्यों मिलते हैं ? आजीवन कारावास तो नहीं दिया होगा.बेशक नारायण सान्याल कोई बलात्कारी, हत्यारे या लुटेरे भी नहीं हैं और उनसे मिलने उनकी कानूनी मदद करने के आरोपी विनायक सेन भी कोई खूंखार-दुर्दांत दस्यु नहीं हैं. उनका अपराध बस इतना सा ही है कि आज जब हर शख्स डरा-सहमा हुआ है, तब विनायक महोदय आप निर्भीक सिंह कि मानिंद सीना तानकर क्यों चलते हो ?

क़ानून को इन कसौटियों और तथ्यों से परहेज करना पड़ता है सो सबूत और गवाहों कि दरकार हुआ करती है और इस प्रकरण के केंद्र में विमर्श का असली मुद्दा यही है कि इस छत्तीसगढ़िया न्याय को यथावत स्वीकृत करें या लोकतंत्र कि विराट परिधि में पुन: परिभाषित करने कि सुप्रीम कोर्ट से मनुहार करें अधिकांश देशवासियों का मंतव्य यही है ; बेशक कुछ लोग व्यक्तिश विनायक सेन नामक बहुचर्चित मानव अधिकार कार्यकर्त्ता को इस झूंठे आरोप और अन्यायपूर्ण फैसले से मुक्त करना-बचाना चाहते होंगे. कुछ लोग इस प्रकरण में जबरन अपनी मुंडी घुसेड रहे हैं और चाहते हैं कि विनायक सेन के बहाने उनके अपने मर्कट वानरों कि गुस्ताखियाँ पर पर्दा डाला जा सके जबकि उनका इस प्रकरण से दूर का भी लेना देना नहीं है. संभवतः वे रमण सरकार की असफलता को ढकने कि कोशिश कर रहे हैं..

छतीसगढ़ पुलिस ने विनायक सेन के खिलाफ जो मामला बनाया और ट्रायल कोर्ट ने फैसला दिया वह न्याय के बुनियादी मानकों पर खरा नहीं उतरता.पुलिस के अनुसार पीयूष गुहा नामक एक व्यक्ति को ६ मई -२००७ को रायपुर रेलवे स्टेशन के निकट गिरफ्तार किया गया था जिसके पास प्रतिबंधित माओवादी पम्फलेट, एक मोबाइल, ४९ हजार रूपये और नारायण सान्याल द्वारा लिखित ३ पत्र मिले जो डॉ विनायक सेन ने पीयूष गुहा को दिए थे.पीयूष गुहा भी कोई खूंखार आतंकवादी या डान नहीं बल्कि एक मामूली तेंदूपत्ता व्यापारी है जो नक्सलवादियों के आतंक से निज़ात पाने के लिए स्वयम नक्सल विरोधी सरकारी कामों का प्रशंसक था.

डॉ विनायक सेन को भारतीय दंड संहिता कि धारा १२४ अ (राजद्रोह) और १२४ बी (षड्यंत्र) तथा सी एस पी एस एक्ट और गैर कानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम कि विभिन्न धाराओं के तहत सुनाई गई सजा पर एक प्रसिद्द वकील वी कृष्ण अनंत का कहना है कि ”१८६० की मूल भारतीय दंड संहिता में १२४ -अ थी ही नहीं इसे तो अंग्रेजों ने बाद में जब देश में स्वाधीनता आन्दोलन जोर पकड़ने लगा तो अभिव्यक्ति कि आजादी को दबाने के लिए १८९७ में बालगंगाधर तिलक और कुछ साल बाद मोहनदास करमचंद गाँधी को जेल में बंद करने, जनता कि मौलिक अभिव्यक्ति कुचलने के लिए तत्कालीन वायसराय द्वारा अमल में लाइ गई ”

भारत के पूर्व मुख्य-न्यायधीश न्यायमूर्ति श्री वी पी सिन्हा ने केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में १९६२ में फैसला दिया था कि धारा १२४-अ के तहत किसी को भी तभी सजा दी जानी चाहिए जब किसी व्यक्ति द्वारा लिखित या मौखिक रूप से लगातार ऐसा कुछ लिखा जा रहा हो जिससे क़ानून और व्यवस्था भंग होने का स्थाई भाव हो.जैसे कि वर्तमान गुर्जर आन्दोलन के कारण विगत दिनों देश को अरबों कि हानी हुई, रेलें २-२ दिन तक लेट चल रहीं या रद्द ही कर दी गई, आम जानता को परेशानी हुई सो अलग. सरकार किरोड़ीसिंह बैसला को हाथ लगाकर देखे. यह न्याय का मखौल ही है कि एक जेंटलमेन पढ़ा लिखा आदमी जो देश और समाज का नव निर्माण करना चाहता है, मानवतावादी है, वो सींकचों के अंदर है; और जिन्हें सींकचों के अंदर होना चाहिए वे देश को चर रहे हैं.

कुछ लोग उग्र वाम से भयभीत हैं, होना भी चाहिए, वह किसी भी क्रांति का रक्तरंजित रास्ता हो भारत कि जनता को मंजूर नहीं, यह गौतम-महावीर-गाँधी का देश है. जाहिर है यहाँ पर वही विचार टिकेगा जो बहुमत को मंजूर होगा. नक्सलियों को न तो बहुमत प्राप्त है और न कभी होगा. वे यदि बन्दूक के बल पर सत्ता हासिल करना चाहते हैं तो उनको इस देश कि बहुमत जनता का सहयोग कभी नहीं मिलेगा भले ही वो कितने ही जोर से इन्कलाब का नारा लगायें.यहाँ यह भी प्रासंगिक है कि देश के करोड़ों दीन-दुखी शोषित जन अपने शांतिपूर्ण संघर्षों को भी इन्कलाब-जिंदाबाद से अभिव्यक्त करते हैं …भगत सिंह ने भी फाँसी के तख्ते से इसी नारे के मार्फ़त अपना सन्देश राष्ट्र को प्रेषित किया था … यदि विनायक सेन ने भी कभी ये नारा लगाया हो तो उसकी सजा आजीवन कारावास कैसे हो सकती है और यह भी संभव है कि इस तरह के फैसलों से हमारे देश में संवाद का वह रास्ता बंद हो सकता है जो लाल देंगा जैसे विद्रोहियों के लिए खोला गया और जो आज कश्मीरी अलगाववादियों के लिए भी गाहे बगाहे टटोला जाता है सत्ता से असहमत नागरिक समाज ऐसे रास्ते खोलने में अपनी छोटी -मोटी भूमिका यदा -कदा अदा किया करता है, डॉ विनायक सेन उसी नागरिक समाज के सम्मानित सदस्य हैं.

10 COMMENTS

  1. agar vinayak sen ko raj drohi mana jata hai to jo neta safed kafan pahan kar des ko din ba din khokla kar rahe hai un par konsa droh lagna chahiye ? jin netaon ne des ke amm admi ka paisa hajam kar rakha hai un par konsa droha lagna chahiye ? jin netaon ke karan yaha naxal bad paida huwa hai unpar konsa droh lagna chahiye ?jin choron ne des ka paisa loot kar swis banko me jama kar rakha hai un par konsa droh……chahiye meri najron me agar dekha jaye to sabse bade desh drohi is desh ke beiman ,gaddar,chor,neta hai jo sare des ko loot loot kar kha rahe hai .bidhyak or sansad hote huye dalit ladkiyon kabalatkar kar khule am ghum rahe hai wahapar hamara kanoon kyo khamosh baitha hai ? asal me dekhajaye to is des ki kanoon bywasta me damm nahi hai .gareeb admi ko turant andar kiya jata hai parantu koi neta ya adhikari kitnabada jurm bhi karle us ke liye kanoon ki prakriya kafi lambi chalti hai. or ant me use kleen chit de kar nirdosh sabit kiya jata hai why………………………….?

  2. ऐसा लगता है जैसे तिवारी जी की अक्ल का दिवाला निकल गया है.तथाकथित मानव (अ)धिक्कारों के चक्कर में वोह यह भी भूल गए कि शहीद-ए-आज़म भगत सिंह जी ने देश की खातिर प्राण नियोछावर किये थे और उनके ‘महापुरुष’ बिनायक सेन देशद्रोहियों तथा मानवता के दुश्मनों का साथ दे रहे हैं.देश के परम शत्रू चीन के नृशंस हत्यारे नेता माओ के नाम पर अपने ही देशवासियों की नृशंस हत्या करने वाले और अपने ही देश की संपत्ति को तबाह करने वाले देश द्रोहियों का साथ देने वाले भी देश द्रोही ही होते हैं.और देश द्रोहियों की असली सजा तो सजा-ए-मौत ही होती है.तिवारी जी शुक्र मनाएं कि उनके ‘महानायक’ सस्ते में ही छूट गए.

  3. तिवारी जी आपके अनुसार कोर्ट में लगाये गए सारे आरोप कल्पनाशील है, छोटे छोटे प्रश्न है आपका ध्यान चाहूँगा
    १. उनकी पढाई वेल्लोरे और पश्चिम बंगाल में हुई तो वे छत्तीसगढ़ में क्या कर रहे थे. यदि वे स्वस्थ्य सेवायो पर कार्य कर रहे थे तो क्या पश्चिम बंगाल पूर्ण स्वस्थ्य राज्य था जो वे अपनी सेवाएँ देने छत्तीसगढ़ पहुँच गए, यदि वे गरीबो के सेवा करना चाहते थे तो पश्चिम बंगाल के ग्रामीण क्षेत्र के हालत भी छत्तीसगढ़ के वनवासियों से ज्यादा अच्छे नहीं हे.
    –इन परिस्तिथियों में बिनायक सेन अपना गृह क्षेत्र छोड़ कर छत्तीसगढ़ में क्या केवल सेवा कर रहे थे या फिर कुच्छ और भी वहां चल रहा था
    — बिनायक सेन की पत्नी इलिना सेन ने भी यह माना है कि जब तक बिनायक सेन स्वस्थ्य से जुड़े कामो पर लगे थे तब तक राज्य सरकार को कोई दिक्कत नहीं थी जब से उन्होंने गरीबो की सेवा करना शुरू किया तभी से सरकार को दिक्कते होने लगी
    –गरीबो की सेवा से सरकार को क्या दिक्कते हो रही थी इसकी खुल कर जांच होनी चाहिए
    कहीं गरीबो की सेवा ने नाम पर बिनायक सेन कोई वैचारिक आन्दोलन तो नहीं चला रहे थे
    जैसे राज्य की सरकार के विरुद्ध मोर्चा खोलना क्योंकि वे स्वयं वामपंथी विचार के प्रसारक थे और राज्य में भाजपा की सरकार है, सलवा जुडूम का विरोध जिसके कारण राज्य में नक्सली गतिविधियों पर अंकुश लगाना शुरू हो गया था. वामपंथी विचारक इससे परेशान थे इसलिए उन्होंने यह शोर मचाना शुरू कर दिया था कि सरकार वनवासियों को वनवासियों से लड़वाने के लिए हथियार मुहैया करा रही है जबकि असलियत में नक्सलियों से लड़ने के लिए वनवासियों को प्रशिक्षित करने का कार्य सरकार कर रही थी, ऐसा ही प्रशिक्षण कश्मीर में उगारावादियो से लड़ने के लिए गाँव वालो को दिया जाता है.
    –बिनायक सेन नक्सलीयों को तो मानवाधिकार के नाम पर सहयोग करते थे लेकिन कभी भी गैर नक्सलियों का सहयोग इन्होने नहीं किया
    क्या गरीबो कि सेवा के नाम पर नक्सलियों के मानवाधिकारों के लिए ही लड़ना न्यायसंगत है,
    क्या नक्सलियों के मानवाधिकारों के लिए ही लड़ने वाले बिनायक सेन को कभी kashmiri pandito के मानवाधिकारों का कभी ध्यान आया जबकि वे पी u c l के अखिल भारतीय नेता थे
    क्या वैचारिक आधार पर मानवाधिकार को बांटना न्यायसंगत है
    २. नारायण सान्याल न तो उनके रिश्तेदार थे न ही नारायण सान्याल के साथ उनोहने कोई पढाई कि थी जिसके कारण उनकी उनसे मित्रता हो गयी हो तो फिर एक नक्सली से ३३ बार जेल में मिलाना इसके पीछे कि हेतु क्या था
    ३. जब नारायण सान्याल से कोई सम्बन्ध नहीं था तो सान्याल को अपने आधार पर रायपुर
    में घर किस हेतु दिलवाया जबकि सान्याल प्रतिबंधित माओबादी समूह के पोलित ब्यूरो के सदस्य थे यह बात वे नहीं जानते होंगे संभव ही नहीं है
    तिवारी जी ऐसे अनेको प्रश्न है जो बिनायक सेन के कार्यो पर प्रश्न चिन्ह खड़े करते है.

  4. अरे मई विगयान का विद्यार्थी रहा हु अत मुझे पता है सरे ला ,लेकिन शायद आपको नहीं पता है .वैसे इसी स्टोरिय बहुत उड़ाती है जाच एजेंसिया ,कोंग्रेस से सेलेरी जो बंधी हुयी है ,लेकिन मिलता कुछ नहीं है ………………एक मामूली से क्रिमिनल मर्डर केस के आरोपी को ढूंढ़ नहीं पाए है कभी कुछ कभी कुछ कह कर “तलवार दम्पत्ति” की इतनी ज्यादा बेइज्जती की है की वो लोग जीते जीते मरे के सामान है लेकिन फिर भी कुछ्ह हाथ नहीं है सरे के सरे टेस्ट करने के बाद भी कुछ नहीं तो ये एक नया ड्रामा……………….चलेगा थोड़े दिन ये भी चलेगा ………………बाद में कहेंगे कुछ नहीं मिला …………

  5. .you no very well newtons third law of motion …thanks for कमेंट्स

    बिलकुल साहब मै विगयान का ही विद्यार्थी रहा हु अत मुझे पता है चिंता मत करिए इसी स्टोरिय बहुत uadati है जाच एजेंसिया क्योकि उनसे कुछ काम धाम होता है नहीं देश की रक्षा वो कर सकते नहीं कांग्रेस के चमचे जो ठहरे लेकिन जैसा हश्र उनका बोफोर्स व् अरुशी केस में हुवा है उससे भी ज्यादा ख़राब हालत होने वाली है ……………

  6. you are right aadarneey abhishek ji .Swami aseemanand except his role on samjhota expres blost today So this may be good news to you and aseemanand may greater then vinayak sen as your so called nationalist or hindu tererist phylosaphy.But this is the crucial invitation to attack on inocent peoples of socity as next reaction .you no very well newtons third law of motion …thanks for comments

  7. Tiwariji,
    Namaskar,
    Aap ka lekh padha. Aap ne to Dr. Sen ko Shahid Bhagat Sing ke barabar bitha diya. Bahut hi buri aur sharmanak bat kahi aapne. Aap Manavadhikaro ke liye bahut jyada chintita jatane ka prayas kar rahe hain lekin aap ke lekh se saari chinta sirf Dr.Sen ke liye baras rahi hai. Jo adivasi, aam log, police aur fauj k log, sarkari karmchari naxli mar rahe hai unhe to aap MANAV nahi samjhte honge. Vaise bhi Manavata ka thheka aap jaise DharmaNirpiksho (Bade durbhagya ki baat hai ki hindu ko gali dene se koi bhi Dharma N irpeksh ho jata hai) ne hi le rakha hai. Pandit ji oh sorry Tiwari ji kisi lekh me Kashmiri Pandito, Bastar ke aaam adivasiyo, policewalo, West bengal ki Bangla desh se lagi seema par rahne wale hindu nagriko par ho rahe atyacharo par bhi likhne ka saahas dikhaiye….. Yakin kijiye kuchh Manavadhikar walo, Digvijay sing ya Mulayam Sing ke alava aap ko koi bhi SAMPRADAYIK nahi kahega. BAS SACH LIKHNE KA SAAHAS PAIDA KIJIYE.

  8. विनायक सेन को राष्ट्रप्रेमी सिद्ध करने के चक्कर में न्याय पालिका पर हमला। हर वामपंथी न्यायाधीश हो चला है। जब परमज्ञान आपको ही प्राप्त है तो क्या कहें? भगत सिंह से विनायक की तुलना भगत सिंह का अपमान है। भगत सिंह नें न्यायालय को अपनी बात कहने का माध्यम बनाया था वह भी ब्रिटिश अदालत को। भगत सिंह क्रांतिकारी थे और क्रांतिकारी आत्मबलिदानी होता है।

  9. lo gaddaro ka khula aam samrthan ………………..jaise vinayak nahi koyi bhagavan ho gaya hai ????vaise kya jhandu kam kiya hai usane???usase kahi jyada kam to usane kiya hai jo abhi jail me band hai uanak nam hai swami asimanad ji………………….ye matr ek sahayog nahi hai ki vo jail me hai v shabri kumbh ki bat ko neta uchhal rahe hai v gaddar kamyunist vinayak vinayk ka dol pit rahe hai ,jabli pura dang kshetr swami ji ka rini hai ………………….swami ji ke prayaso se hi shabari kumbh me 6 lakh adivasi aye the jabaki ye jhandu 6 hajar ki ikatte karane ki takat nahi rakhate hai………….

  10. आदरणीय तिवारी जी,
    इस बात पे सिर्फ सर पीटा जा सकता है की आपने डॉ विनायक सेन को भगत सिंह के समक्ष लाकर खड़ा कर दिया…..या फिर यूँ कहें की भारतीय लोकतंत्र की ब्रिटिश साम्राज्य के समक्ष…बहुत तरस आता है ऐसी सोचों पर जहाँ हमे अपने ही राष्ट्र, अपने ही संविधान और अपने ही कानून पर भरोसा नहीं दिखता.
    अगर किरोड़ीसिंह बैसला या अरुंधती राय को हाथ नहीं लगाया जाता या कसाब को फांसी नहीं दी जाती ए कहीं से किसी के अपराध को कम नहीं करता चाहें उस अपराध को करने वाला डॉ विनायक से जैसा जेंटलमैन ही क्यूँ न हो….
    ए कोई आखिरी सजा नहीं है, इस पर आगे की अदालतों में भी अपील होंगी और आखिरी फैसला आना अभी बाकी है……लेकिन आप लोग डॉ विनायक सेन को भगवान् बनाने पर क्यूँ तुले हैं……………..क्या सिर्फ इसलिए क्यूंकि आप उस धड़े से सम्बन्ध रखते हैं जिसके अनुसार जो कुछ न हो वो गलत हीहोता है……
    कानून को अपना काम करने दीजिये…….

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