विश्व हिन्दी दिवस का हिन्दी के वैश्विक विस्तार में योगदान

डॉ. शुभ्रता मिश्रा

10 जनवरी का दिन विश्व हिन्दी दिवस के रुप में मनाया जाना हर उस भारतवासी के लिए गौरव का विषय है, जो अपनी हिन्दी भाषा से सच्चा प्रेम करता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी माता, अपनी मातृभूमि और अपनी मातृभाषा से प्राकृतिक रुप से प्रेम होता है। इसे जताने की आवश्यकता नहीं होती है। भारत विविध भाषाओं वाला देश है, लेकिन जब बात हिन्दी की आती है, तब सभी भाषाएं एक बिन्दु पर सिमट जाती हैं और उस केंद्रबिंदु पर निहित हिन्दी का आकर्षण बल सभी भाषाओं को अपनी ओर खींचकर स्वयं में समाहित कर लेता है। हिन्दी का यह आकर्षण भारत से बाहर विस्तार लेता हुआ विश्व के हर कोने में पहुंच चुका है।

हिन्दी को विश्व के प्रत्येक कोने में पहुंचाने में विश्व हिंदी सम्मेलनों की सबसे बड़ी भूमिका रही है। वास्तव में हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दिलाने के उद्देश्य से 1973 में विश्व हिंदी सम्मेलन के आयोजन का प्रस्ताव राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, वर्धा, महाराष्ट्र ने रखा था। इस प्रस्ताव की गम्भीरता को समझते हुए हिन्दी के अन्तर्राष्ट्रीय विकास के लिए इसे सहज स्वीकृति मिलना स्वाभाविक था। इसी श्रृंखला की शुरुआत करते हुए प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10-12 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित किया गया था। ‘वसुधैव कुटुंबकम’  के बोधवाक्य वाले प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन में प्रमुख रुप से इस बात पर जोर दिया गया था कि संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को आधिकारिक भाषा के रूप में स्थान दिया जाये। हांलाकि इसके लिए तब से चला आ रहा संघर्ष आज भी वैसा ही बना हुआ है। लेकिन अन्य मुद्दों पर हुए विचार विमर्शों ने हिन्दी को कहां से कहां पहुंचा दिया है। 1975  के बाद से लगातार विश्व हिन्दी सम्मेलन हिन्दी भाषा का सबसे बड़ा अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन बनकर उभरा है और अब तक कुल 10 विश्व हिन्दी सम्मेलनों के सफल आयोजन हो चुके हैं। चूंकि 10 जनवरी को पहला विश्व हिंदी सम्मेलन आयोजित किया गया था, अतः इस दिन को भारत सरकार ने वर्ष 2006 से ‘विश्व हिंदी दिवस‘ के रुप में मनाया जाना घोषित किया है। 10 जनवरी को विश्व के सभी भारतीय दूतावासों में विश्व हिन्दी दिवस समारोहों का आयोजन किया जाता है।

विश्व हिन्दी दिवस की तारीख ही सिर्फ विश्व हिन्दी सम्मेलन से नहीं जुड़ी है, बल्कि इन दोनों के हिन्दी के अन्तर्राष्ट्रीय प्रचार प्रसार की दिशा में किए जाने वाले प्रयासों के उद्देश्य समान हैं। दोनों ही अवसरों पर विश्व भर से हिन्दी विद्वान, साहित्यकार, पत्रकार, भाषा विज्ञानी और विषय विशेषज्ञ सम्मिलित रुप से अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी के प्रति वैश्विक जागरुकता उत्पन्न करने, हिन्दी के विकास का आंकलन करने, हिन्दी के प्रति प्रवासी भारतीयों सहित विदेशियों की अभिरुचि को समझने का प्रयास करते हैं। इन प्रयासों से जो सुखद पहलू सामने आया है, वह है कि अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व हिन्दी दिवस और विश्व हिन्दी सम्मेलनों ने हिन्दी को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1975 के बाद से हुए 10 विश्व हिन्दी सम्मेलन भारत के अलावा मॉरीशस, त्रिनिदाद एवं टुबैगो, लंदन, सूरीनाम, अमरीका के न्यायार्क, दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग में आयोजित हो चुके हैं। दसवाँ विश्व हिन्दी सम्मेलन 10 से 12 सितम्बर 2015 के मध्य भोपाल में हुआ था। इस तरह देखा जाए तो विश्व हिन्दी सम्मेलनों ने ही विश्व हिन्दी दिवस को जन्म दिया है।

हिंदी के वैश्विक संदर्भ में भारत की अस्मिता को हर साल जागृत बनाए रखने वाले विश्व हिन्दी दिवस ने हिन्दी भाषा और उसके साहित्य के विकास, कप्यूटर युग में भावी पीढ़ी के बीच पनपती हिन्दी की उपादेयता को स्थापित कर विश्व में  हिन्दी जगत के विकास, विस्तार, उन्नयन एवं प्रचार-प्रसार की सम्भावनाओं को नए आयाम दिए हैं। यह विश्व हिन्दी दिवस मनाए जाने का ही सुखद परिणाम कहा जा सकता है कि बहुसँख्यक अप्रवासी भारतीय वाले देशों ने हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्थाओं को गहनता से लिया है। विश्व भर में हिंदी के अध्ययन-अध्यापन, शोध, प्रचार-प्रसार और हिंदी सृजन में समन्वय के लिए सक्रियताएं बहुत अधिक बढ़ी हैं। अनेक देशों के विश्वविद्यालयों में हिंदी विभाग की स्थापित हो रहे हैं।  हिंदी को सूचना तकनीक के विकास, मानकीकरण, विज्ञान एवं तकनीकी लेखन, प्रसारण एवं संचार की अद्यतन तकनीक जैसे हिंदी के प्रचार हेतु वेबसाइट की स्थापना के विकास की दिशा में अनेक कार्य हो रहे हैं।  इस बात से तनिक भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि विश्व हिन्दी दिवस मनाने से विश्व में हिन्दी के विस्तार पर बहुत गहरा असर हुआ है।

 

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डॉ. शुभ्रता मिश्रा
डॉ. शुभ्रता मिश्रा वर्तमान में गोवा में हिन्दी के क्षेत्र में सक्रिय लेखन कार्य कर रही हैं। डॉ. मिश्रा के हिन्दी में वैज्ञानिक लेख विभिन्न प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं । उनकी अनेक हिन्दी कविताएँ विभिन्न कविता-संग्रहों में संकलित हैं। डॉ. मिश्रा की अँग्रेजी भाषा में वनस्पतिशास्त्र व पर्यावरणविज्ञान से संबंधित 15 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । उनकी पुस्तक "भारतीय अंटार्कटिक संभारतंत्र" को राजभाषा विभाग के "राजीव गाँधी ज्ञान-विज्ञान मौलिक पुस्तक लेखन पुरस्कार-2012" से सम्मानित किया गया है । उनकी एक और पुस्तक "धारा 370 मुक्त कश्मीर यथार्थ से स्वप्न की ओर" देश के प्रतिष्ठित वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है । मध्यप्रदेश हिन्दी प्रचार प्रसार परिषद् और जे एम डी पब्लिकेशन (दिल्ली) द्वारा संयुक्तरुप से डॉ. शुभ्रता मिश्रा के साहित्यिक योगदान के लिए उनको नारी गौरव सम्मान प्रदान किया गया है।

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