विश्व शांतिदूत कबूतर की रिहाई

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pigeonsएम एम चन्द्रा

कबूतर-1 हर साल होने शांति दिवस को लेकर शांति दूत कबूतरों की समस्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है कोई भी हमारी सुनने वाला नहीं है. सबके सब कबूतरबाजी में लगे है और पतंगबाजी में यकीन करने लगे .जब यह दुनिया शांतिदूत कबूतरों की नहीं हो सकती तो हमें शांतिदूत होने से आजादी चाहिए.हम शांति और प्रेम का प्रतीक है लेकिन हमें देश की सीमाओं को पार करते ही जासूस की तरह देखा जाता है.

कबूतर-2! बंद करो अपनी बकवास! कब तक मातम मानते रहोगे? गोर से देखो, अब हमारे सामने शांतिदूत बनने के सबसे ज्यादा अवसर है. विदेशी आतंकवाद , देशी आतंकवाद, सीमापार आतंकवाद, घरेलू आतंकवाद, क्षेत्रीय आतंकवाद, भाषाई आतंकवाद, धार्मिक आतंकवाद, जातीय आतंकवाद, पार्टीवादी आतंकवाद, सामन्ती आतंकवाद, तानाशाही आतंकवाद, बौद्धिक आतंकवाद, सरकारी आतंकवाद, प्राइवेट आतंकवाद, सांस्कृतिक आतंकवाद,आर्थिक आतंकवाद, राजनीतिक आतंकवाद और पत्रकारी आतंकवाद जैसे बहुत से आतंक है . कबूतर जाति के लिए यह खुशी की बात है. जब तक अहिंसा नहीं होगी तब तक ‘विश्व शांति दिवस’ मनाने का कोई औचित्य नहीं. बस एक यही दिवस तो ऐसा है जो दिन रात तरक्की कर रहा है.

कबूतर-1! हमारी दिक्कत यह नहीं है, असल में पहले कबूतरों के लिए सभी के दिल में सम्मान रहता था हम शांति और प्रेम का प्रतीक थे. आज सभी देशों ने शांति का संदेश पहुँचाने के लिए कला, साहित्य, सिनेमा, संगीत और खेल जगत वाले कबूतरों को अपना शांतिदूत बना लिया है. अब जैसे ही कबूतर का नाम लिया जाता है तो समझो कोई आतंकी है. जब हम शांतिदूत कबूतरों की जरुरत नहीं तो हमे शांतिदूत होने से आजादी चाहिए.

कबूतर-2! भय ही शांति की स्थापना में काम आता है. यह हमारे लिए काफ़ी आशा जनक है. जितना इंसान शांति से दूर होता जायेगा, हथियारों का बाज़ार शांति के लिए जरूरी बन जायेगा. इन हथियारों से ही पृथ्वी, आकाश व सागर शांत होंगे। इसलिए ‘विश्व शांति’ का संदेश आज के युग की नई देन है यही से मसीहा निकलेंगे और फिर नोबेल पुरस्कार भी तो किसी न किसी को देना है.

अंतर्राष्ट्रीय संघर्ष को बढ़ावा देने के लिए और अशांति की संस्कृति विकसित करने के लिए ही यूएन को जन्म दिया गया है. संघर्ष, आतंक और अशांति के इस दौर में शांतिदूत की अहमियत तुम क्या जानो डरे हुए कबूतर? एक तरफ संयुक्त राष्ट्रसंघ, उसकी तमाम संस्थाएँ, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसायटी और राष्ट्रीय सरकारें प्रतिवर्ष ‘अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस’ का आयोजन करती हैं ताकि बाकी दिन युद्ध की गीदड़ भभकी वाली घोषणा होती रहे और ज्यादा से ज्यादा हथियारों का व्यापार हो सके. दुनिया की सभी सरकारें बजट का सबसे ज्यादा खर्च युद्ध करने के लिए नहीं बल्कि शांति स्थापित करने के लिए है. हथियारों का व्यापर भी इससे अलग नहीं.

कबूतर-1! ओह तभी तो ‘पंचशील’ के सिद्धांत बदल दिए गए है. एक दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और प्रभुसत्ता का अपमान करना, एक दूसरे के विरुद्ध आक्रामक कार्यवाही करते रहना, एक दूसरे के आंतरिक विषयों में हस्तक्षेप करके असमानता और परस्पर आर्थिक लाभ की नीति का पालन करना, अशांतिपूर्ण नीति में विश्वास रखना. यदि ये सब है तो हमें नहीं बनना शांतिदूत, हमें आजाद कर दो.
कबूतर-2! तुम नहीं तो क्या ‘विश्व शांतिदूत की कमी है इस दुनिया में. हर देश में जगह-जगह सफ़ेदपोस कबूतर तैयार है. नये चेहरे और मोहरों के साथ शन्तिदूत बनने के लिए बहुत से नागनाथ सापनाथ कबूतर खड़े है . जाओ आज से तुम आजाद हो.अब यह काम तुम जैसे कबूतर कर भी नहीं सकते.

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