वालीवुड अछूता नहीं है क्रिकेट की दीवानगी से

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लिमटी खरे

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि ब्रितानियों की बदौलत भारत के लोग क्रिकेट को समझ पाए हैं। एक समय था जब देश में क्रिकेट के बजाए हाकी का जादू सर चढ़कर बोलता था। तब हाकी स्टिक नहीं मिलने पर गली मोहल्लों मे बच्चे पेड़ों की टहनियों को तोड़कर हाकी के रूप में प्रयुक्त किया करते थे। उस वक्त हाकी का जुनून देखते ही बनता था। शनैः शनैः हाकी का स्थान क्रिकेट ने कब ले लिया पता ही नहीं चला।

देश में वालीवुड का जादू सबसे ज्यादा है। वालीवुड के सितारों के पोस्टर आम आदमी के घरों में मिलना आम बात है। वालीवुड के सितारे भी क्रिकेटरों के दीवाने हैं। न जाने कितनी फिल्में वालीवुड में क्रिकेटरों और क्रिकेट के खेल पर बन चुकी हैं। यह अलहदा बात है कि इनमें से अधिकांश फिल्में फ्लाप ही साबित हुई हैं।

आजादी के उपरांत सबसे पहले 1959 में देवानंद अभिनीत लव मेरिज में पहली मर्तबा क्रिकेट को देश के रूपहले पर्दे पर स्थान मिला था। इसमे मशहूद एक्टर देवानंद ने क्रिकेटर का किरदार निभाया था। इसके एक गाने में तो क्रिकेट की समूची शब्दावली का ही प्रयोग कर दिया गया था।

इसके उपरांत काफी समय तक देश प्रेम का जज्बा जगाने वाली फिल्में दिखाई जाती रहीं। तब खेल भावना को उकारने के लिए देश के चलचित्रों में स्थान नहीं दिया गया। उस वक्त के निर्माता निर्देशकों पर केंद्र सरकार के सूचना प्रसारण विभाग का जोर चलता था यही कारण है कि सिनेमा के प्रदर्शन के पूर्व न्यूज रील में आजादी के बाद के भारत निर्माण की झलक देखने को मिल जाया करती थी।

लंबे अंतराल के उपरांत 1984 में कुमार गौरव की फिल्म आल राउंडर आई जो बाक्स आफिस पर सफल नहीं मानी गई। इस फिल्म में एक क्रिकेटर के जीवन के उतार चढ़ाव को रेखांकित किया गया था। इस फिल्म से कुमार गौरव को ज्यादा उम्मीदें रहीं किन्तु बाक्स आफिस पर इसने दम ही तोड़ दिया।

आल राउंडर के उपरांत लंबे समय तक रूपहला पर्दा क्रिकेट के मामले में खामोश ही रहा। फिर 1990 में एक बार फिर देवानंद ने अव्वल नंबर नामक फिल्म के जरिए क्रिकेट को पर्दे पर उतारने की नाकाम कोशिश की। सदाबहार अभिनेता देवानंद के अलावा इस फिल्म में आदित्य पंचोली ने भी अभिनय किया था। इस फिल्म को दर्शकों की सराहना नहीं मिल सकी।

फिर बारी आई 2001 में लगान की। इस फिल्म ने बाक्स आफिस के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए। आमिर खान के जोरदार अभिनय की बदोलत आज भी लगान लोगों की स्मृति से विस्मृत नहीं हो सकी है। आजाद भारत में क्रिकेट पर बनी इकलौती फिल्म है लगान जिसे बाक्स आफिस पर जबर्दस्त सफलता मिली थी। आलम यह था कि 74वें आस्कर फिल्म अवार्ड के लिए यह फिल्म विदेशी भाषा की श्रेणी में नमित कर दी गई थी।

2006 में आया नागेश कुकुनूर निर्देशित चलचित्र इकबाल दर्शकों द्वारा खूब सराहा गया। इस फिल्म में कुकुनूर ने दूर बसे एक गांव के एक ऐसे बच्चे की कहनी को पर्दे पर उतारा जो बड़ा होकर भारत के लिए खेलना चाह रहा था। इस फिल्म की खासियत यह रही कि इसे आलोचकों द्वारा भी खूब सराहा गया।

इसके अगले साल 2007 में सिदार्थ कपूर की निर्देशित फिल्म सलाम इंडिया ने शुरूआत में ही दम तोड़ दिया। इस फिल्म की कहानी चार गरीब बच्चों के इर्द गिर्द ही घूमती रही जो क्रिकेट के जुनून में दीवाने थे। ये बच्चे देश के लिए क्रिकेट खेलना चाहते थे। अफसोस यह फिल्म दर्शकों को बांधने में सफल नहीं रही।

इसके बाद तो मानो क्रिकेट पर फिल्म बनाने का सिलसिला चल ही पड़ा। 2008 में आई जन्नत यद्यपि बाक्स आफिस पर कुछ करामात नहीं दिखा सकी किन्तु इस फिल्म ने लोगों को कुछ हद तक बांधने में सफलता हासिल अवश्य ही की। रातों रात अमीर बनने की चाहत में इसका हीरो विश्व भर में क्रिकेट फिक्सिंग का बादशाह बन जाता है। इस सटोरिए में लोगों को असल सटोरियों का अक्स दिखाई पड़ा। इस चलचित्र के गाने काफी हिट रहे।

मेच फिक्सिंग पर ही आधारित 2009 में एक और फिल्म बनी वर्ल्ड कप 2011। इसमें मैच फिक्सिंग को आधार बनाकर ही बनाया गया था। यह फिल्म भी बाक्स आफिस पर दम तोड चुकी है। इसी साल रानी मुखर्जी अभिनीत एक और फिल्म आई दिल बोले हडिप्पा। इस फिल्म में रानी का रोल बहुत अच्छा नहीं कहा जा सकता है। यह भी बाक्स आफिस पर बहुत ज्यादा कमाल नहीं दिखा सकी।

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लिमटी खरे
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