कक्षा के छात्रों में मोहन सबसे गरीब था। सरदी का मौसम आया, तो सब छात्र कीमती स्वेटर और कोट पहनकर आने लगे; पर मोहन विद्यालय वाली कमीज के नीचे कभी एक और कभी दो कमीज पहनकर ही काम चला लेता था।
एक दिन गुरुजी ने उससे पूछ ही लिया – क्यों मोहन, सरदी काफी हो रही है। तुम स्वेटर पहनकर क्यों नहीं आते ? ऐसे तो बीमार पड़ जाओगे।
– जी कुछ दिन बाद मेरी दीदी आने वाली हैं। वो मेरे लिए स्वेटर लेकर आएंगी।
– अच्छा ठीक है।
चार दिन बाद साथियों ने देखा, सचमुच मोहन ने एक नया स्वेटर पहन रखा है। स्वेटर बहुत साधारण था। कुछ शरारती लड़के मोहन को उसकी गरीबी के लिए छेड़ते रहते थे। उनमें से एक ने स्वेटर को हाथ लगाकर कहा, ‘‘ओ हो, बड़ी कीमती स्वेटर है। कम से कम हजार रु. का तो होगा ही।’’
दूसरे ने भी उसे छेड़ा, ‘‘हां भई, इसकी दीदी लंदन गयी थी। वहां से इसके लिए लेकर आयी है न..?’’
तीसरे ने भी स्वेटर को हाथ लगाया और बोला, ‘‘इसमें तो बहुत गरमी है। हमारे स्वेटर और कोट तो इतने गरम नहीं है।’’
मोहन उनकी इरादे समझ गया। वह बोलना तो नहीं चाहता था, पर आज उससे रहा नहीं गया, ‘‘हां, ठीक कहते हो। तुम्हारे स्वेटर और कोट इतने गरम हो भी नहीं सकते। चूंकि उनमें पैसों की गरमी है और मेरे स्वेटर में दीदी के प्यार की गरमी।
सब लड़कों का मुंह बंद हो गया।