जल ही जीवन हैं

water scarcity in laturमहेश तिवारी

जल ही जीवन हैं,यह कहावत ही नहीं हैं लेकिन जब इसके लिए ही आपसी कटुता और वैमनस्य का भाव उत्पन्न हो जाए और इसके लिए धारा 144 को लगाना पडें तो यह मालूमात करना काफी आसान हो जाता है कि देश में जलसंकट की समस्या कितनी भयावह रूप लेती जा रही है। एक तरफ पानी की बर्बादी होती है। जहां पर पानी की मात्रा उपलब्ध है वहां पर पानी की कोई अहमियत नहीं दी जाती है। वर्तमान में भारत के नौ राज्यों में जलसंकट की समस्या व्याप्त है। जिससे निपटने के लिए केन्द्र की सरकार भी कोई सकरात्मक कदम को उठाते हुए नहीं दिख रहीं है। महाराष्ट्र के माराठावाडा के क्षेत्र पानी की समस्या से सबसे ज्यादा पीडित है। महाराष्ट्र के लातूर जिले में जलसंकट को देखते हुए धारा 144 को लागू किया गया हैं। जहां पर लोगों को चार दिन में एक दिन पानी नसीब हो रही है। लोगों को जल संकट से निपटने के लिए चार-चार किलोमीटर दूर से पानी की व्यवस्था के लिए पैदल जाते है फिर भी पानी नहीं मिल पा रहा है। पचास वर्ष पूर्व जब सर्वे एक अन्तर्राष्ट्रीय संस्था के द्वारा की गई थी उस वक्त पर वहां की जनता के लिए पीने के पानी के लिए आगाह किया था कि आने वाले 50 वर्षों में लातूर के आसपास के लोगों को भारी जलसंकट की समस्या से रूबरू होना पडेगा। उस समय पर लातूर जिले की कुल आबादी 1 लाख 25 हजार मात्र थी और आज के समय में वहां की आबादी 28 लाख को पार कर चुकी है। वहां के लोगों के पीने के लिए पानी की कोई अतिरिक्त व्यवस्था राज्य सरकार या केन्द्र सरकार के द्वारा नहीं की गई है। विगत कुछ वर्षों में वर्षों के न होने के कारण परिस्थितियों में ओर परिवर्तन हुआ और लातूर और आसपास के क्षेत्रों की स्थिति बद से बदतर होती चली गई है। गौर करे तो पूरा माराठावाडा एरिया ही जल संकट की चपेट में आ चुका है। वर्तमान में लातूर जिले को मात्र 55 हजार लीटर पानी ही मिल पा रहा है जो वहां की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए बहुत ही कम है। इस पर यह स्वाभाविक हो जाता है कि पानी की समस्या को लेकर कोई कड़ा कदम उठाया जाएं। जल संकट का मामला सर्वोच्च न्यायालय की शरण में जा पहुंचा है पर सरकार इस तरफ अपना ध्यान नहीं दे रही है। जो कि चिंता का सबक वहां के रहने वाले लोगों के लिए हो सकता है। जब देश के नौ राज्य जलसंकट से जुझ रहे है फिर यह राज्य और केन्द्र सरकार के लिए पहली प्राथमिकता होनी चाहिए कि वहां के निवासियों के लिए जल आपूर्ति की समस्या को निपटाने के लिए नये सिरे से कुछ ऐसा तरीका निकालना चाहिए जिससे लोगों को जल संकट से निदान मिल सकें। रोटी, कपडा मकान के साथ जल लोगों की मूलभूत आवश्यकताओं में आती है जिसकी पूर्ति करना सरकार की जिम्मेदारी होती है। और जहां पर पानी की पर्याप्त उपलब्धता है वहां के लोगों की भी यह कत्र्तव्य बनता है  िक वे इस जीवन दायनी अमूल्य निधि के संरक्षण में अहम योगदान दे। देश के नौ राज्यों में जल संकट व्याप्त है। जिसमें महाराष्ट्र,मध्यप्रदेश के कुछ जिलों की स्थिति दयनीय होती जा रही है। देश में समय-समय पर जल संकट से लोगों के जीवन को उभारने के लिए कार्यक्रमों की घोषणा की जाती है। कार्यक्रमों के संचालन में अरबों करोडों रूपये फूंक दिये जाते है लेकिन जमीनी हकीकत देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि सभी क्रियान्वित योजनाएं केवल लोगों के साथ छलावे के अलावा कुछ साबित नहीं हो पाती है। जिस देश में असीमित संसाधनों का भंडार हो वहां पर पानी को लेकर दिन प्रतिदिन बढ रहे खमोशी से यह साबित होता है कि किसी भी के लिए कुछ न कुछ समस्याएं ऐसी होती है जिस पर सरकार केवल खानापूर्ति के अलावा कुछ भी ऐसा करती दिखाई नहीं पडती जिससे यह कहा जा सके कि आम जनता का ख्याल रख जा सके। हमारे देश की सर्वाेच्च संस्था इस मुद्वे को लेकर केन्द्र सरकार को खरी खोटी बातें सुनाती है। फिर भी ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि देश के आम जन की समस्याओं पर नजर न देकर केवल कुछ विशिष्ठ लोगों का ख्याल ही रख रहीं है।

जब सूर्य अपनी रोशानी से लोगो को छका रहा है तो पानी ही एक मात्र आशा लोगों को सन्तुष्ठी प्रदान कर सकती है। लेकिन इस महीने में शुरू हो रहे आईपीएल के लिए केवल महाराष्ट्र में 1करोड 20 लाख लीटर पानी की आपूर्ति मैदान को हरा भरा करने के लिए लगाया जायेगा । जो कि महाराष्ट्र के लातूर जैसे जगहों के लिए दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है अगर यही पानी इन क्षेत्रों में सप्लाई कर दिया जाएं तो वहां की समस्या हल हो सकती है। लेकिन देश में कुछ लोगों के हितो और पैसा कमाने के लिए जनता के हित में निर्णय लेने में बीसीसीआई और भारतीय सरकार भी अपने को असमंजस्य में पा रही है। बीसीसीआई दावा कर रही है कि मैदान पूर्णत तैयार है और घास को हरा करने के लिए केवल पानी का इस्तेमाल किया जायेगा और इसके औसत में कुछ गांवो को गोद लेने की बात कही जा रही है। सोचनीय बात यह है। कि कुछ गांवो को गोद लेने से भी पानी की समस्या से निजात नहीं पाया जा सकता है। जिस देश में 60 प्रतिशत किसानों के द्वारा खेती की सिंचाई की जाती है। और 75 प्रतिशत कंक्रीट के निर्माण में पानी का प्रयोग किया जाता है। वहां के लिए सरकार को कुछ ऐसे कार्य को अंजाम देना होगा और जहां पर पानी की समस्या नहीं है वहां के लोगों को भी अपने कुछ दायित्व निभाने के लिए तत्पर होना चाहिए ताकि जल जो जीवन का आधार है उसके लिए लोगों को मुसीबतों से बचाया जा सके और लोगो को इस वर्तमान मुसीबतों को देखते हुए जल संरक्षण की ओर कदम बढाना चाहिए जिससे आगे आने वाली पीढी के लिए भी कुछ अच्छा किया जा सके।

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