गांधी को गुजरे दशकों बीत गए लेकिन वे आज भी करोड़ों दिलों में जिंदा हैं। कम से कम उनके जन्मदिन पर राजघाट स्थित उनके समाधि स्थल पर दो फूल चढाने वालों का तो यही मानना है। क्या पूरब, क्या पश्चिम, क्या उत्तर और क्या दक्षिण, देश के सुदूरवर्ती इलाकों से आए हजारों लोगों ने राजघाट पर पुष्पार्चन कर गांधी को अपनी श्रध्दांजलि अर्पित की।
पूना, महाराष्ट्र से आए संभा जी रायपर ने कहा कि हमें गर्व है कि महात्मा गांधी जैसे महापुरुष हमारे देश के नेता थे। उनकी याद हमें आज भी प्रेरणा देती है।
रायपर ने कहा कि उनके राजनीतिक योगदान के कारण ही हम अहिंसा से अंग्रेजों को भारत छोड़ने को मजबूर कर सके।
किंतु आज की स्थिति पर चर्चा करते ही रायपर फट पड़ते हैं। उनका मानना है कि वर्तमान सरकार व राजनेता इतनी मुश्किलों से पाई गई आजादी की आजतक कद्र करना नहीं जान सके।
राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य राम अवधेश जी भी कुछ ऐसा ही बताते हैं। उनके अनुसार, आज गांधी जी का नाम बेचा जा रहा है, सरकार द्वारा ऐसा कुछ भी नहीं किया जा रहा जो गांधी जी चाहते थे बल्कि वह हो रहा है जो गांधी जी नहीं चाहते थे। गांधी जी को सच्ची श्रध्दांजलि उनके बताये गये रास्ते पर चलकर ही दी जानी चाहिए न कि सरकारी कार्यालयों में गांधी जी की तस्वीरों के ऊपर सिर्फ फूल मालायें चढ़ाकर।
जो भी हो, गांधी जी के जन्मदिन पर नाटक करने वाले भी कम नहीं थे। एक तरफ फूल मालाएं चढ़ रही थी तो दूसरी ओर नेशनल अलाइंस ऑफ एंटी न्यूक्लियर मूवमेन्टस के बैनर तले मुट्ठी भर लोग भारत के परमाणु शस्त्र संपन्न देश होने पर शोक मना रहे थे, इनमें कई विदेशी नागरिक भी शामिल थे। इन लोगों का मानना था कि न तो परमाणु बम बने और न ही परमाणु बिजली। इनके द्वारा बांटी गए पत्र में परमाणु ऊर्जा को भी अत्यधिक खर्चीला और विनाशकारी बताया गया था। बताया गया कि परमाणु ऊर्जा न सिर्फ महंगी है बल्कि परमाणु बिजली प्राप्त करने के बाद बचा कचरा लोगों की सुरक्षा व सेहत के लिए खतरनाक है। इसका पर्यावरण पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
प्रदर्शन करने वालों में से एक व्यक्ति गांधी जी की भांति वेशभूषा धारण किए हुए थे। अनेक लोग ऐसे भी थे जो उन्हें पकड़-पकड़ कर रोने-धोने का नाटक कर रहे थे। बीच-बीच में नारा उछलता था – ”वी डोन्ट नीड एटम बम, वी डोन्ट वान्ट हिरोशिमा नागासाकी।
रोचक नजारा था। हम राजघाट पर आए हुए कुछ युवा लोगों से भी मिले और उनसे एटम बम के बारे में हो रहे प्रदर्शन पर राय जाननी चाही। दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले अमित कुमार ने बताया कि ये लोग न तो दुनिया की हकीकत से परिचित हैं और न ही गांधी जी के अहिंसा दर्शन से। अमित ने कहा कि गांधी जी की अहिंसा कायरता नहीं सिखाती। ऐसे में जबकि हमारे पड़ोसी देशों की साम्राज्यवादी भूख बढ़ रही है, वे एटम बमों से लैस हैं तो भारत की राष्ट्रीय संप्रभुता और करोड़ों नागरिकों की रक्षा के लिए एटम बम रखना क्या बुध्दिमानी नहीं है। आखिर गांधी जी भी तो अपने साथ डंडा रखते थे।
हमने प्रगतिमैदान का भी जायजा लिया। 2 अक्टूबर को सभी प्रगतिमैदान के कर्मचारियों व अफसरों के चेहरे तो चमचमा रहे थे। लेकिन किसी के पास गांधी जी की प्रतिमा पड़ी धूल और कबूतरों और कौओं की बीट साफ करने की फुर्सत नहीं थी। हमने इसे देखा और अवाक् रह गये हमारे सहयोगी ने उसके चित्र अपने कैमरे में उतारे और गांधी जी की स्मृति मन में लिये हम भी अपने गंतव्य की ओर रवाना हो गये। पर ऐसा करने से पहले प्रतिमा पर पड़ी गर्द साफ करना नहीं भूले।
सुन्दर लेख है
arti ji aapki gandhi ji ke bare mai unke vicharo ko janta tak pahuchane ka tarika thik laga
चिंतनीय चिंता। नुक्कड़ पर गांधी जी से मिलें, उन्होंने क्या कहा, जानें https://nukkadh.blogspot.com/2009/10/blog-post_5157.html
It’s Nice Report And well begining too. try to develope observation and then it definate will come in writing.try to flurish writing .
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its a very nice piece of writing.
keep it up.
Jugnesh Raghav
बहुत ही अच्छी रिपोर्ट पोस्ट हुई है.सराहनीय प्रयास, इसे आगे भी जारी रखिए.
good piece of writing.
Keep it up.
Samanwaya