हम सब दोषी है गुवाहाटी चीरहरण के

शादाब जफर ‘‘ शादाब’’

असम के गुवाहाटी में सरेआम बीस गुंड़ो द्वारा एक नाबालिग लड़की के साथ छेड़छाड़ कर उस के शरीर के आधे से अधिक कपड़े फाड़कर अर्धनग्न कर के उस के साथ गंेग रेप की कोशिश की शर्मनाक घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया। दिल्ली, मुम्बई जैसे बड़े शहरो के बाद अब देश के साक्षर राज्य में से एक असम के गुवाहाटी जैसी छोटी जगह में इस प्रकार की घटना का होना बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करने के साथ साथ हमारी संवेदनशीलता को झकझोर कर रख देता है। वही ये घटना हमे ये सोचने पर भी मजबूर कर देती है कि क्या आज का इंसान इतनी घिनौनी हरकत भी कर सकता है। जागरूक, पढा लिखा, बुद्धिजीवी समाज इस हरकत को सिर्फ तमाशाई बन कर देख सकता है। गुवाहाटी के अति व्यस्त इलाको में से एक जीएस रोड़ पर क्लब मिंट के सामने एक अकेली नाबालिग लड़की को लगभग बीस लोगो ने सैकड़ो लोगो के सामने न सिर्फ बेइज्जत किया, बल्कि उस के बाल पकड़ पकड़कर बारी बारी से घसीटा। इन हैवान दरिन्दो का जब इस से भी दिल नही भरा तो इन लोगो ने इस लड़की के बदन के आधे से ज्यादा कपड़े तक फाड़ ड़ाले। गुवाहाटी के इस जीएस रोड़ पर आते जाते लोग इस पूरे तमाशे को देखते रहे और मुॅह फेर कर निकलते रहे किसी को भी इस लड़की की चीख सुनाई नही दी, किसी को भी इस लड़की के चेहरे में अपनी बेटी का चेहरा नजर नही आया। पीड़ित लड़की बचाओ बचाओ चिल्लाती रही पर कोई उसे बचाने नही आया शायद सड़क पर गुजरते लोगो के लिये ये एक तमाशा भर था या फिर अपराधी बहुत ताकतवर थें जिन्हे सत्ता अथवा पुलिस का संरक्षण प्राप्त था।

इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली इस घटना की एक वीड़ियो ने लड़कियो की सुरक्षा, सम्मान और अधिकारो को लेकर पूरे देश में खलबली मचा दी। अगर ये पूरी घटना यू ट्यूब पर न डाली जाती तो इन अपराधियो का कुछ नही बिगड़ता। क्यो कि ये घटना 8 जुलाई को घटित हुई और पुलिस ने देश में वबाल मचने पर इस केस पर कार्यवाही 11 जुलाई को की। इस पूरी घटना को उजागर करने के लिये उस पत्रकार की पत्रकारिता को भी हमे सलाम करना होगा जिस ने इन गंुड़ो से उस लड़की की इज्जत और जान बचाई जो भागते भागते इस के पैरो से लिपट कर अपनी जान और इज्जत बचाने की गुहार लगाा रही थी। इस पूरी घटना को अपने कैमरे में कैद करने के साथ ही इन तमाम गुंड़ो के चेहरो को भी इस पत्रकार ने बड़ी कुशलता के साथ कैद किया। यदि ये पत्रकार बंधू ऐसा ना करता तो समझा जा सकता था कि इस केस पर कितनी कार्यवाही होती और कितना वबाल मचता। अपनी जान पर खेलकर पीड़ित लड़की की जान बचाने वाले अपनी जान की बजी लगाकर इलैक्टोनिक्स और प्रिंट मीड़िया का सर फक्र से ऊॅचा करने वाले कलम के इस सिपाही को भी बधाई देनी होगी जिसने बहुत तेजी के साथ इस घटना से देश और दुनिया को रूबरू कराया। सवाल ये उठता है कि एक दो नही बल्कि बीस लड़को ने एक नाबलिग लड़का का पूरे आधे घंटे तक जिस प्रकार से चीरहरण किया वो किसी भी देश का सर दुनिया के सामने झुकाने के लिये काफी है। वही गुवाहाटी के वो सारे लोग भी इस पूरे हादसे के लिये कम दोशी नही है जो बल्कि इन अपराधियो के अपराध में बराबर के षरीक है जिन के सामने ये पूरी घटना घटित हुई और वो लोग इस घटना से मुह फेर कर एक नाबालिग बच्ची को चीरहरण के लिये इन बीस हैवानो की हवस मिटाने के लिये छोड कर अपने अपने घरो में जाकर आराम से सो गये।

आप को याद होगा में भी अभी उस घटना को नही भूला अभी हाल ही में मिस्र की सड़को पर एक महिला प्रेस रिर्पोटर से बदसलूकी का किस्सा ठीक इसी प्रकार से यू ट्यूब और नयूज चैनलो पर अम हुआ था, जिसे हम लोगो ने दूसरे देष की घटना मान कर उस पर कोई तवज्जो नही दी थी। हमारे देष में भी हर रोज न जाने ऐसी कितनी ही घटनाए महिलाओ, छोटी छोटी बच्चियो और बच्चो के साथ होती है जिन के समाचार हम अखबारो और टीवी चैनलो पर देखते और पढते है, और महज एक समाचार मानकर अगले ही पल उसे भूला देते है। तकरीबन एक साल पहले की दिल्ली की एक घटना मुझे याद आ रही है डीटीसी की एक बस में सवार महिला जो अपने पटपड़गंज अपने दफ्तर से शाम को अपने घर जा रही थी महिला की सीट के बगल में बैठे दो मनचलो ने उस अकेली महिला पर पहले फब्तियां कसी और धीरे धीरे उस के साथ छेड़छाड़ शुरू कर दी। कुछ देर तक तो महिला इन गुंड़ो की बदतमीजी को बर्दोस्त और सुना अनसुना करती रही। ऐसा होने से इन मनचलो के हौसले बढते गये। क्यो की बस में बैइे लोग भी मूक दर्शक बने चुपचाप सारा माजरा देख रहे थे, लेकिन किसी न भी इस का विरोध नही किया। क्यो कि पीड़ित महिला इन में से किसी की बेटी, बहन, पत्नी नही थी। मजबूरन पानी सर से गुजरने के बाद उस महिला ने हिम्मत कर के बस में शोर मचा दिया और बस ड्रावर के पास जाकर बोली बस को तभी रोकना जब कोई पीसीआर दिखाई दें। कुछ ह दूर चलने पर एक पुलिस की जिप्सी रोड़ पर महिला को दिखाई दी महिला ने बचाओ बचाओ का षोर मचा दिया। महिला का शोर सुन पुलिस की पीसीआर जिप्सी ने बस रूकवा दी, बस रूकती देख और खुद को पुलिस की गिरफ्त में आते देख मनचले बस से कूद कर भागने लगे मगर पुलिस ने उन्हे दबोच लिया।

इस पूरी घटना को सुनाने का मेरा मकसद सिर्फ और सिर्फ इतना है कि आखिर हमारे समाज कि ये कैसे संवेदनहीनता है कि चंद गुड़े बसो में सड़को पर बाजारो में स्कूलो और मॉल में किसी अकेली लड़की की इज्जत से खिलवाड करते है और सैकड़ो लोगो की भीड़ तमाशगीन बनी रहती है। गलत लोगो और उन के गलत आचरण के खिलाफ हमारी हिम्मत और हमारा प्रतिरोध आखिर उस वक्त कहा गुम हो जाता है। असज ये सब से अधिक चिंता की बात है, उस से भी अधिक चिंता की बात ये है कि आज हम लोग इस कदर स्वार्थी हो गये है कि हम अपने दर्द को तो दर्द समझते है लेकिन दूसरे के दर्द को दर्द नही समझते। दूसरे के दर्द और उस की परेशानी को महसूस करने और उस की मदद के बजाये सिर्फ तमाशा देखते है जिस का नतीजा और सब से ताजा उदाहरण गुवाहाटी कांड़ है।

आखिर क्यो हमारी संवेदनाए इन पीड़ित बच्चो, बच्चियो और महिलाओ के साथ नही बन पाती आखिर क्यो हम लोग ऐसे घटनाओ को दिल्ली, मुम्बई, बागपत, मेरठ की घटनाए मानकर अपने से दूर बहूत दूर कर देते है। क्यो हम इन घटनाओ के पीड़ित बच्चे, बच्चियो, महिलाओ के दर्द को अपना अपने परिवार का दर्द नही समझते। समाज के प्रति हमारा कर्तव्य, हमारी संवेदनाए आखिर क्यो मरती जा रही है पुलिस प्रशासन के साथ ही हमारा भी ये कर्तव्य बनता है कि हम लोग भी अपने मनोबल को कायरता की हद तक न गिरने दे और जो हमारी जिम्मेदारी अपने देश, अपने परिवार, अपने समाज के प्रति है उस के निर्वाह करने में ज़रा भी कोताही न बरते, यदि हम लोग गुवाहाटी जैसी भयावह घटनाओ से मुॅह मोड़ कर चुपचाप अपने अपने घरो में आकर सो जायेगे और इस घटना से कोई सबक नही लेगे, तो कोई पुलिस कोई प्रषासन ऐसी गारंटी नही दे सकता कि कल ऐसी या इस से भी ज्यादा भयानक घटनाए मेरी और आप की बच्चियो के साथ घटित न हो। क्यो कि ऐसे में अपराधियो के हौसले और बुलंद होते है क्योकि हमारे चुप रहने और इन अपराधियो की गलत हरकतो को देखकर हमारे द्वारा नजरे चुराने से वो समझ गये कि भीड़ सिर्फ तमाशा देखती है हमारी गलत हरकतो का विरोध नही करती।

2 COMMENTS

  1. शादाब भाई सच आज समाज जिस ओर जा रहा है वो चिंता का विषय है परन्तु उस से भी बडी चिंता का विषय ये है कि हमारी युवा पीढी किस ओर जा रही है। लडके लडकिया देर रात्री तक नाईट क्लबो में पार्टियो में रहते है और इन लोगो के मां बाप ये नही पूछते कि आखिर जवान बेटे या बेटी न रात कहा गुजारी। सच हमारी शिक्षा, हमारी परवरिश भी गुवाहाटी कांड़ की जिम्मेदार है।

  2. वस्तव में आज हमारा सामाजिक स्तर इतना गिर चुका है कि हमे अपने परिवार के सिवा आज कुछ नजर नही आ रहा है आज का युवा किस ओर जा रहा है कोई नही देख रहा कोई नही सोच रहा हम अपने बच्चे को एक आदर्शवादी संतान मानते है वो रात रात भर घर क्यो नही आ रहा कहा जा रहा है नही सोच रहे शिक्षा और शिक्षक व्यापार बन चुकी है ऐसे में आज अपनी बहू बेटी की इज्जत बचाना बहुत ही मुश्किल ही गया है।

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