हम भ्रष्ट हैं ? लोकपाल बिल पास होना चाहिए!

शादाब जफर ‘शादाब

बचपन में कक्षा तीन या चार के कोर्स में एक कहानी थी। एक बूढा व्‍यक्ति अपनी मृत्यु करीब होने पर अपने पांच बेटों को बुलाकर लकड़ी का एक गठ्ठर उनके हाथो में देकर कहता है इसे तोड़ो पाचो बेटे बारी बारी से जोर लगाते है पर लकड़ी का गठठर नही टूटता। फिर वो बूढा उस गठठर लकडि़या निकालकर एक एक कर अपने बेटो को देकर कहता है अब तोड़ो। गठ्ठर से अलग होने से लकडि़या आसानी से टूट जाती है। बूढा अपने बेटो को समझाता है मेरे बाद आपस में लकडि़यो के गठठर की तरह मिलजुल कर एक होकर रहना अलग अलग रहोगे तो तुम्हे दुनिया इसी प्रकार मिटा देगी। ये कहानी मुझे आज यू याद आ गई कि कांग्रेस इन दिनो इसी कहानी को आधार बनाकर टीम अन्ना के एक एक सदस्य को अलग कर के अपने लम्बे राजनीतिक सफर का परिचय दे रही है। लेकिन किसी व्यकित विषेश के साथ व्यकितगत चरित्र हनन का जो खेल कांग्रेस और उस के राजनेता खेल रहे है वो वास्तव में घटिया होने के साथ ही कांग्रेस जैसे देश के सब से बडे सियासी दल की मर्यादा के अनुरूप नही दिखाई दे रहा। अन्ना हजारे को देशद्रोही, सेना से भगोड़ा और भ्रष्ट्राचार में डूबा बताने के बाद फिर बेशर्मी से माफी माग लेना। शाति भूषण, प्रशात भूषण और केजरीवाल पर हमले। और अब किरन बेदी और कुमार विशस को बेक डोर से घेरना आखिर सरकार का मकसद क्या है। पचास बरस देश पर राज करने वाली कांग्रेस आज ये नही समझ पा रही कि आखिर जनता उस से क्या चाह रही। उसे लग रहा है कि शायद देश की जनता ये चाहती हैे कि जो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाए उसे भ्रष्ट साबित कर दिया जायें। कांग्रेस को आखिर ये समझ क्यो नही आ रहा कि भ्रष्टचार के विरूद्व आवाज उठाने वाले लोग भ्रष्ट है या नही इस से आम आदमी को कुछ लेना देना नही। आम आदमी तो बस देश में कोढ की तरह फैल चुके भ्रष्टाचार से छुटकारा पाना चाहता है।

ये सही है कि लोकपाल बिल को लेकर शुरू हुए आन्दोलन की धार पिछले कुछ दिनो से लगातार टीम अन्ना के लोगो के साथ विवादो के जुड़ जाने के कारण कम जरूर होने लगी थी पर देश की जनता जल्द ही इस हकीकत को पहचान गई कि ये सब यूपीए सरकार की चाल है। और ये सारे के सारे विवाद जानबूझ कर भ्रष्टचार के मूल मुद्दे से देश की जनता का ध्यान हटाने के लिये पैदा किये जा रहे है। लेकिन एक बात ईमानदारी से किरन बेदी और टीम अन्ना को मान लेनी चाहिये कि जिस प्रकार इकोनामी क्लास में हवाई यात्रा करने के बावजूद आयोजको से बिजनेस क्लास का खर्च लेने के आरोप किरन बेदी पर लगे और खुद किरन बेदी ने उन्हे सही माना और कहा कि इन बचे रूपयो से उन्होने (किरन बेदी) समाज सेवा की उस से कही न कही अन्ना के इस आन्दोलन, टीम अन्ना और खुद किरन बेदी की ईमानदाराना छवि पर असर जरूर पड़ा क्यो कि अपने समय का मशहूर डाकू सुल्ताना के बारे में ये मशहूर है कि वो अमीरो के घर डाका डाला करता था और डाके में लूटे गये पैसे से गरीबो की मदद करता था। तो सवाल ये उठता है कि क्या वो अपराधी नही था, क्या उसे किरन बेदी जी समाजसेवी कह सकती है। सुल्ताना डाकू को गिरफ्तार करने के बाद बि्रटि्रश सरकार को फांसी नही लगानी चाहिये थी क्यो की वो उस लूटे गये पैसो से गरीबो की मदद करता था। किरन जी ने जो किया वो गलत तरीका ही नही अवैध और अनैतिक था। लेकिन किरन जी का आचरण कितना गलत और अन्ैतिक है उस को यू अखबारो की जीनत बनाना बिल्कुल गलत है। उन लोगो को किरन जी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए शर्म आनी चाहिये जिन के कर्इ मंत्री तिहाड़ जेल में बंद है और न जाने कितने अभी और तिहाड़ यात्रा पर जाना पड़ जाये। हम तमाम देशवासी रोज़ खुद न जाने कितने ऐसे कार्य करते है जो अवैध और अनैतिक कृत्य के दायरे में आते है चलो किरन बेदी के बहाने ही सही देश में भ्रष्टचार के बाद हमारी नैतिकता पर बहस छिड़ गई है। और अब अनैतिक कार्य क्या है अनैतिक कार्य क्या है कम से कम देशवासियो को इस का भी ज्ञान हो जायेगा।

आज मुझे यह बात भी मजबूरन कहनी पड़ रही है कि अन्ना और उन की टीम अपने बुनियादी मकसद और कार्य से थोड़ी हट चुकी है। मेरे कहने का मकसद सिर्फ और सिर्फ ये है कि है कि हिसार लोकसभा उपचुनाव में जिस प्रकार अन्ना टीम ने कांग्रेस के खिलाफ प्रचार किया वो सरासर गलत तरीका तो था ही बलिक ऐसा कर के अन्ना और टीम अन्ना ने वहा के मतदाताओ के मतदान अधिकारो का भी हनन किया। आखिर अन्ना या उन की टीम ये तय करने वाली कौन होती है कि हिसार के मतदाता किसे वोट दे और कैसे नही। भाई आप भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड रहे हो या किसी पार्टी विषेंश के खिलाफ। आखिर प्रषांत भूषण जी से कष्मीर पर बोलने के लिये किसने कहा था। ये कुछ ऐसी बाते है जिन पर अब आने वाले समय में भी अन्ना हजारे और टीम अन्ना को सोचना और सोच समझकर बोलना होगा। अन्ना हजारे और उनके सहयोगी दल यानी अन्ना टीम ने भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलार्इ है न कि किसी पार्टी के खिलाफ। ये सही है कि आज देश का हर व्यकित देश में फैले भ्रष्टाचार से दु:खी है, आंदोलित है। भ्रष्टाचार पर बहस, भ्रष्टाचार घर घर बहस एक आम मुद्दा बन गया हो पर किसी पार्टी या सरकार के खिलाफ यू ज़हर उगलना बिल्कुल भी नैतिक नही कहा जा सकता। क्यो कि ये सरकार खुद चुनकर संसद भवन नही आई बलिक देश की जनता ने इसे चुनकर भेजा है।

कुछ दिन पहले केंन्द्र सरकार ने लोकपाल विधेयक पर देश के सभी राज्यो के मुख्यमंत्रियो और विपक्षी राजनीतिक पार्टियो से इन सवालो पर उन की जब राय जाननी चाही तो भाजपा, सपा और बसपा सहित कुछ दलो ने इस मुद्दे को चर्च के दौरान ये कह कर टाल दिया कि जब ये बिल संसद में रखा जायेगा वो तभी अपनी राय दे देगे। देश के तमाम राजनीतिक दल और राजनेता लोकपाल बिल पर साफ साफ राय देने से बच रहे है, हिचक रहे है। देष में फैले भ्रष्टाचार के कारण सरकार को विकास के साथ साथ आम आदमी और कमर तोड मंहगार्इ पर नियंत्रण और लोकपाल विधेयक का कोई ख्याल नही रहा उसे ख्याल है अपने सहयोगी दलो के भ्रष्ट नेताओ को कानूनी शिकंजे से बचाने का। सरकार घोटालो के मायाजाल से बाहर निकल कर उस गरीब के बारे में भी सोचने के लिये तैयार ही। किरन बेदी ने जिस तरह का आचरण किया वो गलत था और किरन जी ने उस के लिये माफी भी मांग ली पर क्या अब उन्हे लोकपाल बिल पर बोलने का अधिकार नही यदि आज सरकार या उस के बडबोले नेता ऐसा सोच रहे है तो वो गलत सोच रहे है। ए. राजा या कलमाड़ी से किरन बेदी की तुलना करना निहायत ही धटिया और ओछी हरकत कही जा सकती है। कांग्रेस और उन के तमाम नेताओ की नजरो में भले ही आज या आने वाले कल में पूरा देष भ्रष्टाचार में डूबा नजर आने लगे पर इस सब के बावजूद संसद के शतकालीन सत्र में सरकार को लोकपाल बिल पास कराने ही चाहिये। तभी देश और सरकार के हालात सुधर सकते है।

3 COMMENTS

  1. शादाब जफर साहब, अब मैं आपके इस लेख के एक अन्य सदर्भ की तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहता हूँ. जब आपने यह कहा की
    “मेरे कहने का मकसद सिर्फ और सिर्फ ये है कि है कि हिसार लोकसभा उपचुनाव में जिस प्रकार अन्ना टीम ने कांग्रेस के खिलाफ प्रचार किया वो सरासर गलत तरीका तो था ही बलिक ऐसा कर के अन्ना और टीम अन्ना ने वहा के मतदाताओ के मतदान अधिकारो का भी हनन किया। आखिर अन्ना या उन की टीम ये तय करने वाली कौन होती है कि हिसार के मतदाता किसे वोट दे और कैसे नही। भाई आप भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड रहे हो या किसी पार्टी विषेंश के खिलाफ” तो आप यह भूल गए की प्रजातंत्र में जिस तरह मत दान सबका अधिकार है उसी तरह किसी उम्मीदवार विशेष के पक्ष या विपक्ष में अपने विचार व्यक्त करना भी किसी अधिकार का उलंघन नहीं है.अन्ना टीम ने जब यह निर्णय किया था की वे चुनाव में सबसे ईमानदार उम्मीदवार का न केवल समर्थन करेंगे ,बल्कि जनता को भी उसे मत देने के लिए सुझाव देंगे तो तनिक भी गलत नहीं थे.आपलोगों में शायद ही किसी को ज्ञात हो की डाक्टर राम मनोहर लोहिया ने यही बात सातवें दशक में कही थी.हालांकि हिसार में उनका कांग्रेसी उम्मीदवार के ही विरुद्ध यह प्रचार उनकी स्वीकृत नीति से हट कर था,पर जब कांग्रेस ने स्वयं अपने को भ्रष्टाचार का पर्यायवाची मान लिया है तो इस कदम को भी कोई ख़ास गलत नहीं ठहराया जा सकता.ऐसे आपके इस कथन में कांग्रेस के तरफ आपके झुकाव की झलक मिल रही है,पर हो सकता है यह केवल मेरा भ्रम हो.

  2. आपने किरण बेदी की तुलना सुल्ताना डाकू से करके ऐसी घटिया हरकत की है,जिसके लिए आप क्षमा के पात्र भी नहीं हैं.आपको पता भी है की आपने किस सख्शियत पर कीचड़ उछाला है?किरण बेदी एक ऐसे पुलिस अधिकारी का नाम है ,जिहोने अपनी ईमानदारी और स्पष्ट वादिता के लिए जिंदगी भर धक्के खाएं,पर अपने पथ से नहीं विचलित हुई .आपकों शायद मालूम हो होगा की वह भारत की पहली महिला आई.पी.एस अधिकारी हैं और अगर उन्होंने समझौता किया होता तो वह बहुत उच्चे जा सकती थी,पर उन्होंने ऐसा नहीं किया भारत के क़ानून और न्याय संहिता का भी मेरे विचार से उनको कम ज्ञान नहीं है.शादाब जाप्फर साहब पता नहीं एक कर्तव्य निष्ठ अधिकारी की तुलना एक दुर्दांत डाकू से करके आपको क्या हासिल हुआ?किरण बेदी ने किसी को लूटकर वह पैसा दान में नहीं दिया है और न उन्होंने किसी साथ जोर जबर दस्ती ही की है.किरण बेदी शायद अपने ही ज्ञान का शिकार हो गयी और नैतिक दृष्टि से अपराध कर बैठी,जब की क़ानून के हिसाब से यह अपराध की श्रेणी में शायद ही रखा जा सके जिसके चलते ,ये सब नाली के कीड़े ,जिसमे अब मुझे आपका भी नाम शामिल करने को मजबूर होना पड़ रहा है,अपनी घटिया हरकत पर उतर आये .किरण बेदी का कोई छुपा हुआ चरित्र भी हो सकता है,जिसके बारे में मुझे ज्ञान नहीं है,पर जिस किरण बेदी को मैं जानता हूँ उस किरण बेदी पर कीचड़ उछालने वाला वही हो सकता है जो खुद गिरा हुआ हो और किसी भी कर्तव्य निष्ठ और ईमानदार को अपने स्तरपर लाकर खुश हो.ऐसे मैंने अपनी टिप्पणियों में भ्रष्टाचार की मान्य परिभाषा का उल्लेख पहले भी किया है और यह भी कहा है की किरण बेदी जब ऐसा कर रही थी तो शायद यही परिभाषा उनके ध्यान में भी हो. पर आप जैसे लोग शायद दूसरों का लिखा पढने में ज्यादा विश्वास नहीं करते,इसलिए शायद आपने उस परिभाषा को नहीं देखा हो,तो आपकी सुविधा के लिए मैं उसे यहाँ दुहराता हूँ.परिभाषा यह है,Corruption is misuse of official position for personal gain.यानि भ्रष्टाचार अपने शासकीय पद का निजी लाभ के लिए दुरुपयोग को कहते हैं.मैं नहीं समझता की किरण बेदी द्वारा किया हुआ कार्य इस श्रेणी में आता है,फिर भी मैं नैतिक रूप से उनको दोषी मानता हूँ और यह बात शायद किरण बेदी की समझ में भीं आगयी,इसीलिए वह पैसा लौटाने पर तैयार हो गयी.किरण बेदी को जो भी इस कार्य के लिए कठघरे में खड़ा कर रहा है,उसे या तो अपने पागलपन का ईलाज कराना चाहिए या अपने को भी भ्रष्टों की यानि नाली के कीड़ों की श्रेणी में शामिल कर लेना चाहिए.

  3. शादाब जी बढ़िया समालोचना

    एक सुझाव है की लेख को लेख के स्टार से ही लिखे अपने विचारो को समावेशित करने पर लेख के भावार्थ बदल जाते है .

    उदा. यदि आपके लेख पर कोई कटु टिप्पणी दे तो वह कही ना कही आपको बुरी जरूर लगेगी जबकि पाठक की टिप्पणी आपके लेख के स्तर पर की जाती है .

    ठीक इसी प्रकार कांग्रेश के अनुचित आचरण के लिए यदि टीम अन्ना ने जो कुछ भी किया वह कदापि अनुचित नहीं है .
    क्योकि जन लोकपाल पास करना करना कांग्रेश का काम है जो की वह करना नहीं चाहते तो कांग्रेश के विरुद्ध विरोध का अब कौन सा तरीका शेष बचता है

    कुल मिला कर अच्छा प्रयाश कोशिश जरी रखे अच्छा प्रतिसाद अवश्य मिलेगा .

    शुभ कामनाये

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