-मनीष सिंह-
नाव भँवरों की बाहों में है फंस गयी ,
उस पार पर हमको जाना ही है।
घिर गए हैं तूफ़ान में गर तो क्या ,
पार पाने जा जज़्बा दिखाना ही है।
अँधियारा है घना बुझ रहे हैं दिये ,
हैं खड़ी मुश्किलें सामने मुँह किये।
रास्तों में जो काँटे पड़े हों तो क्या ,
हौंसलों से मंज़िल को पाना ही है।
जाएँगे हम कहाँ सूझता ही नहीं ,
चल रहे हैं मगर रास्ता ही नहीं।
जिंदगी लग रही एक पहेली सी है ,
डोर उलझी है उसको सुलझाना ही है ।
है घड़ी ये कठिन पर जगी आस है ,
दर्दों से पार पाने का विश्वास है।
ज़िन्दगी की हर एक जंग जीतेंगे हम ,
मुश्किलों को भी अब ये दिखाना ही है।।