हम मिले, तुम मिले….

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चिरदुखी शर्मा जी प्रायः दुखी ही रहते हैं; पर जब कभी वे खुश होते हैं, तो यह खुशी ‘इश्क और मुश्क’ की तरह छिपाए नहीं छिपती। उनकी कंजूसी के बारे में पूरा मोहल्ला जानता है; पर कल वे न जाने कहां से ढेर सारी बूंदी ले आये और सबको बांटने लगे। उनके घर के पास बड़ा हनुमान मंदिर है। हो सकता है उसके पुजारी से कुछ ‘सैटिंग’ कर ली हो। खैर हमें पेड़ गिनने की बजाय आम खाने से मतलब था। इसलिए सबने उस बूंदी का पूरा मजा लिया।

 

लेकिन मेरा दिमाग ठहरा खुराफाती। खाली बूंदी मुझे पची नहीं। मैंने पूछ ही लिया – शर्मा जी, इस खुशी का कारण क्या है ? परिवार में किसी का जन्म हुआ है या कोई बुजुर्ग इस धरा के कष्टों से मुक्त होकर सदा के लिए प्रस्थान कर गया है ?

 

– तुम्हें तो वर्मा हर समय जन्म और मृत्यु ही दिखायी देती है। कभी इससे आगे भी बढ़ो।

 

– क्या करें शर्मा जी, सन्तों ने कहा है कि संसार में बस ये दो ही चीजें अटल हैं। बाकी सब तो आना-जाना है।

 

– संतों की बात तुम जानो वर्मा; पर मैं तो अपनी ममता दीदी के शपथ ग्रहण समारोह को देखकर खुश हूं।

 

– शपथ ग्रहण तो पिछले दिनों असम में सर्वानंद सोनोवाल, तमिलनाडु में जयललिता और केरल में पिनरई विजयन का भी हुआ है। फिर इसमें ऐसी क्या खास बात थी ?

 

– खास बात ये थी कि इसमें नीतीश कुमार, लालू यादव, केजरी ‘आपा’, अखिलेश यादव, फारुख अब्दुल्ला जैसे बड़े नेता आये थे।

 

– तो फिर.. ?

 

– फिर क्या, इन सबने 2019 में नरेन्द्र मोदी को दिल्ली की गद्दी से हटाने के लिए मिलकर चुनाव लड़ने का निश्चय कर लिया है।

 

– लेकिन ऐसा निश्चय तो वे पहले भी कई बार कर चुके हैं ?

 

– तो क्या हुआ ? बार-बार करने से निश्चय और पक्का हो जाता है। आखिर विपक्षी एकता कोई मजाक थोड़े ही है ?

 

– लेकिन इस छलनी में तो बहत्तर छेद हैं शर्मा जी ?

 

– वो कैसे ?

 

– देखिये, इस शपथ ग्रहण में न कांग्रेस शामिल हुई और न वामपंथी। पड़ोस से नवीन पटनायक भी नहीं आये। अखिलेश की पार्टी बिहार में लालू और नीतीश के विरुद्ध लड़ी थी, तो ये दोनों अब उ.प्र. में उसे पटकने के चक्कर में हैं। ममता ने साफ कर दिया है कि जिस मोरचे में कांग्रेस और वामपंथी होंगे, वह उसमें नहीं रहेगी। नीतीश और लालू की दाल कांग्रेस और वाम के बिना गलती नहीं है। बचे फारुख.. ? वे तो आलू की तरह हर सब्जी में खप जाते हैं। उन्हें न भाजपा से परहेज है, न कांग्रेस से।

 

– तुम कुछ भी कहो; पर इस बार यह मोरचा बहुत मजबूत बनेगा।

 

– मेरी आपको शुभकामनाएं हैं शर्मा जी; पर ये तो बताइये आपके इस तीसरे या चौथे मोरचे का नेता कौन होगा ?

 

– नेताओं की हमारे पास कोई कमी नहीं है।

 

– फिर भी गाड़ी का चालक तो कोई एक ही होगा। मैंने तो तीन-चार चालक वाली कोई बस या कार आज तक नहीं देखी।

 

– इसके लिए तो हमारे राहुल बाबा हैं ही।

 

– पर वे तो ममता दीदी के शपथ ग्रहण समारोह में आये ही नहीं।

 

– तो हम नीतीश जी को नेता बना देंगे।

 

– लेकिन बिहार में नीतीश से बड़े नेता लालू जी हैं। विधानसभा में भी उनकी सीट अधिक हैं। और अब तो इनमें खटपट भी होने लगी है। 2019 तक ये साथ रहेंगे, इसकी भी क्या गारंटी है ?

 

– जी नहीं, ये अफवाहें भा.ज.पा. वाले उड़ा रहे हैं।

 

– चलो मान लिया; पर लोकसभा में नीतीश, लालू, केजरी ‘आपा’ आदि के पास मिलकर भी इतनी सीट नहीं हैं, जितनी ममता या जयललिता के पास अकेले हैं। अगली लोकसभा में स्थिति बहुत बदलने की संभावना नहीं है। ऐसे में ये दोनों महान नारियां नीतीश जी को सिर पर क्यों बैठाएंगी ?

 

– तो फिर केजरी ‘आपा’ तो हैं।

 

– शर्मा जी, मेंढक कितना भी शरीर फुला ले; पर वह बैल जितना नहीं हो सकता।

 

– ये सब बेकार के तर्क हैं। आज चाहे जो भी हो; पर लोकसभा चुनाव से पहले तीसरा मोरचा बन ही जाएगा। तुम देख लेना।

 

– शर्मा जी, ये तीसरा मोरचा हो या तीसरा खोमचा। मैं तो इतना जानता हूं कि ये बनता ही टूटने के लिए है। आपने एक गीत सुना होगा, ‘‘हम बने, तुम बने, इक दूजे के लिए।’’

 

– हां सुना तो है।

 

– बस उसी में थोड़ा संशोधन कर लें, ‘‘हम मिले, तुम मिले, फिर लड़ने के लिए।’’

 

– वर्मा, तुम कुछ भी कहो; पर हम मोदी के विरुद्ध मिलकर लड़ेगे। इसके लिए चाहे किसी गधे को ही नेता बनाना पड़े।

 

– फिर तो शर्मा जी, गधे के अतिरिक्त सिर वाले दशानन रावण जैसा हाल हो जाएगा। और रावण चाहे जिस युग में, जो भी रूप लेकर आये; उसके पास चाहे जितनी भी सेना और नाती-पोते हों; पर वह दुर्गति से बच नहीं सकता। किसी ने लिखा भी है, ‘‘लाखों पूत, करोड़ों नाती, उस रावण घर दिया न बाती।’’

 

– तुम कहना क्या चाहते हो वर्मा ?

 

– शर्मा जी, रावण की सेना में कुंभकर्ण और मेघनाद बनने से अच्छा राम जी की सेना में वानर बनना है। इसलिए मैं तो इधर ही हूं। आप चाहें, तो अपने बारे में पुनर्विचार कर लें।

 

शर्मा जी ने बंूदी का लिफाफा वहीं पटका और बिना पीछे देखे घर चल दिये।

 

– विजय कुमार

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