खेलेंगे हम होली

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फिर से एक सांप्रदायिक त्यौहार मुँह बाये खड़ा है | समस्या ये है की इस बार पर्यावरण को क्या नुकसान होने वाला है … शायद पानी का | मीडिया आपको लगातार सूखे की तस्वीरे दिखायेगा | बताएगा कि महाराष्ट्र में किसान पानी की वजह से सुसाइड कर रहे हैं | हमको पानी बचाना है | और इस बार जो हमने पानी से होली खेली तो धरती पर २/३ की जगह १/१० जगह भाग ही पानी रह जायेगा | फिर “तिलक होली” टाइप कोई नया जुमला उछाला जायेगा | सेक्युलर लोग टीवी में डिबेट करेंगे | हमको बतायेगे कि ग्रीन हाउस इफेक्ट भी होली पर पानी बर्बाद करने के कारण हुआ है | ओजोन में छेद भी होली के ही कारण हुआ है | फिर अपन सब “सूखी होली” खेलेंगे और शाम को थम्स -अप, पेप्सी, चढ़ाएंगे बिना ये जाने कि कितना पानी इन्हें बनाने में बर्बाद होता है | मटन चिकन का प्रोग्राम भी बनेगा | क्युकि इनको धोने में  भी पानी बर्बाद नहीं होता |

दोस्तों, पानी बचाने के हजार तरीके हैं और हजारों मौके | चाहे वो आपकी डे टू डे लाइफ में शावर से नहाना हो या आपका टैप खोलकर टूथ पेस्ट करना हो या बेमौके पर अपनी गाडी पानी से धोना हो या चाहे आपका आर. ओ. का पानी शुद्ध करना हो | क्या इन सभी मौको पर पानी बर्बाद नहीं होता ? फिर होली पर ही पानी बचाने का नाटक क्यों ? ये जितने भी लोग होली पर पानी बचाने का आवाहन करते हैं सब के सब टब में नहाते हैं | १ बार नहाने में ही लगभग २०० से ३०० लीटर पानी बर्बाद करते हैं | टूथ पेस्ट भी करते है तो टैप खोलकर | रोज ऑफिस जाते हैं तो चमचमाती धुली हुई गाड़ी में | तो फिर ये हिपोक्रेसी क्यों ?

ये तमाशा सिर्फ होली पर ही नहीं किया जाता है दीपावली पर भी होता है | क्युकि साल में सिर्फ और सिर्फ उसी दिन पर्यावरण की ऐसी की तैसी होती है | बाकी जब न्यू इयर सेलिब्रेशन होता है तब कहाँ आतिशबाजी धुआं करती है ? जब ओलंपिक की ओपनिंग सेरेमनी होती है तब क्या आतिशबाजी आपको ओजोन का छेद भरती हुई नज़र आती है ? क्यों करवाचौथ महिला विरोधी हो जाता है, क्यों महिषासुर वध दलित विरोधी हो जाता है ? आखिर क्यों ?

पर इस बार अपन ऐसा नहीं करेंगे | पिछले कई दिनों से १५ की जगह लगभग १२ लीटर पानी से नहाते हैं | आजकल कपडे ३ की जगह ४ दिन पहन कर धो रहे हैं | क्यों ? क्युकि हम तो जमके होली मनाएंगे | क्युकि हम तो जम कर रंग लगायेंगे | और जम कर पानी बहायेंगे 🙂 | “करते रहो तुम विधवा प्रलाप, लगे रहे तुम्हे इसी तरह जुलाब “|

-अनुज अग्रवाल

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