विकास के एजेंडे पर हुयी मोदी की जीत का स्वागत करता हूं

-इक़बाल हिंदुस्तानी-
modi masks-med

-चुनाव अनुमान गलत होने का मतलब सोच गलत होना नहीं है!-

चुनाव नतीजे आने से पहले मैंने अपने आकलन के आधार पर एक लेख लिखा था जिसमें मेरा अनुमान था कि शायद बंगाल और तमिलनाडु की तरह यूपी और बिहार में भी क्षेत्रीय दल एनडीए और विशेष रूप से भाजपा की सीटें एक सीमा से आगे बढ़ने से रोक सकते हैं। इसी आकलन के हिसाब से मैंने यह आशंका जताई थी कि शायद मोदी के विकास के एजेंडे पर जातिवाद, अल्पसंख्यकवाद और क्षेत्रीयता भारी पड़ सकती है जिससे भाजपा सबसे बड़ा दल और राजग सबसे आगे रहने के बावजूद सरकार बनाने के लिये ज़रूरी आंकड़ा ना जुटा पाये। मेरे इस लेख पर आर सिंह जैसे सुलझे हुए कई लेखकों ने बहुत सकारात्मक टिप्पणी की है वहीं एक दो लोगों ने सीधे अपने संस्कार दिखाते हुए अपशब्दों का सहारा लिया है। कुछ लोगों ने मुझे फोन करके भी अपनी नाराज़गी दर्ज की है।

मैं यह स्पष्ट करना चाहता हूं कि मेरा आकलन गलत साबित हुआ है लेकिन मेरी सोच गलत नहीं है और इसके लिये आप मुझे गाली भी देते हैं तो भी मैं लिखना बंद नहीं कर सकता। रहा मोदी की जीत का सवाल तो मैं यह भी साफ कर दूं कि अगर यह जीत विकास के एजेंडे पर हुयी है तो मैं इसका स्वागत करता हूं, क्योंकि इस समय देश के सामने एनडीए के अलावा कोई सशक्त विकल्प मौजूद नहीं था। जहां तक मेरी इस सोच का सवाल है कि भाजपा हिंदू साम्प्रदायिकता की राजनीति करती रही है लेकिन इस बार मोदी ने चुनाव का एजेंडा काफी सीमा तक सबका साथ-सबका विकास बना दिया, मैं उस पर अभी भी कायम हूं। किसी व्यक्ति, दल या गठबंधन का अंधसमर्थन या विरोध तो कोई पेड वर्कर ही कर सकता है कोई भी निष्पक्ष लेखक वही लिखेगा जो उसको ठीक लगेगा और मैंने यही किया है जिसका मुझे कोई अफसोस नहीं है।

जो लोग चुनाव नतीजे आने से पहले ही मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजने की धमकी दे रहे थे, अगर वे मोदी सरकार बनने के बाद और बेलगाम और बदज़बान हो जाते हैं या तो कोई हैरत की बात नहीं है, क्योंकि इसीलिये ऐसे लोगों को फासिस्ट कहा जाता है। ऐसी हिंसक सोच के अतिवादी तत्व वामपंथी और मुस्लिम साम्प्रदायिकता के नाम पर भी अपनी अवैध गतिविधियां चलाते रहे हैं। भाजपा को स्पश्ट बहुमत मिलने के बावजूद यह जान लेना ज़रूरी है कि देश में पड़े कुल मतों का उसे अभी भी 31 प्रतिशत मिला है। अगर उसके घटकों को पड़े 8 प्रतिशत मत भी मोदी के खाते में जोड़ लिये जायें तो भी मतदान करने वाले 61 प्रतिशत मतदाता उसके पक्ष में नहीं रहा है तो क्या इन सबको देश से निकाल दिया जाये? सच्चा कलमकार भांड या किराये का टट्टू नहीं हो सकता, उसको वह लिखना होता है, जो सच होता है और सच कभी किसी के पक्ष में होता है, कभी उसी के खिलाफ भी होता है।

मेरा मानना है कि मानववादी, देशभक्त और समाज के व्यापक हित में लिखने वाले लेखक को निर्भय और गुटनिरपेक्ष होना चाहिये जिससे वह मुद्दों के आधार पर अपने तटस्थ दृष्टिकोण से काले को काला और सफेद को सफेद कह सके। मेरे पहले लिखे गये लेखों में इस बात को उजागर किया गया है कि मुसलमानों को वोट बैंक बनाकर रखने वालों ने दरअसल हिंदू जातिवाद और मुस्लिम साम्प्रदायिकता का मिश्रण बना दिया है जो भ्रष्टाचार महंगाई और घोटालों के साथ विकासहीनता से लंबे समय तक चलने वाला नहीं है। सेकुलरिज़्म के नाम पर किसी सरकार का हिंदू विरोधी और मुस्लिम समर्थक दिखने का आज नहीं तो कल यही नतीजा होना था। मैं अपने स्वभाव के हिसाब से बिना किसी दबाव के लिखता हूं और इसके लिये आप कोई भी आरोप लगाये, मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता।

मैं मोदी या भाजपा का अंधसमर्थन करके राष्ट्रवादी या असली देशभक्त होने का प्रमाण पत्र भी किसी से लेना नहीं चाहता। यह मेरी संविधान से मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है जिसके तहत मुझे जो ठीक लगता है, मैं बिना किसी लालच और डर के वही लिखता हूं, इससे कई बार मुस्लिम कट्टरपंथी भी बुरी तरह ख़फ़ा होकर धमकियां देते रहे हैं लेकिन मुझे निष्पक्षता और ईमानदारी से लिखने के लिये सत्य और तथ्य ही काफी हैं। मेरे नाम को देखकर मुझपर अनर्गल टिप्पणी करना मेरी नहीं टिप्पणी करने वाले की साम्प्रदायिकता और संकीर्णता का पता चलता है। जहां तक आकलन की बात है तो 2004 में टीवी चैनलों के सर्वे में एनडीए को 248 से 284 सीट दी गयीं थीं जबकि उनको 189 ही मिलीं थीं। उधर कांग्रेस को 164 से 190 दी गयीं थीं लेकिन उसको 222 सीट मिलीं थीं।

इतना ही नहीं, एक बार फिर 2009 में एक्ज़िट पोल में एनडीए को 175 से 197 सीटें दी गयीं, लेकिन उसको इस बार भी 116 जबकि कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए को दी गयी 191 से 198 की जगह 262 सीटें मिलीं थीं। क्या इसका मतलब यह निकाला जाये कि हमारा इलेक्ट्रानिक मीडिया दोनों बार भाजपा की तरफ झुका हुआ था और कांग्रेस से दुर्भावना रखकर उसकी सीटें जान-बूझकर कम दिखा रहा था? अगर दो बार ऐसा हो सकता है तो तीसरी बार इस आशंका को कैसे नकारा जा सकता है कि इस बार ऐसा नहीं होगा? अगर देश के स्तर पर चुनाव सर्वे दो दो बार गलत हो सकता है तो मेरा एक लेखक के रूप में आकलन या अनुमान गलत क्यों नहीं हो सकता? जहां तक मेरी सोच का सवाल है तो उसको पहले लिखे गये लेखों में देखा जा सकता है।

20 अप्रैल को ‘मुस्लिम वोटों का बंटवारा लोकतंत्र के लिये अच्छा संकेत’ 15 अपै्रल को ‘मोदी लहर को भाजपा की बताने का मतलब?’ 7 अप्रैल को बुखारी से ज्यादा सियासत तो आम मुसलमान समझता है।’ 30 मार्च को ‘इमरान मसूदः मुसलमानों का दुश्मन और मोदी का दोस्त’ 11 मार्च को ‘मोदी ने चुनाव का एजेंडा विकास तो तय कर ही दिया है’ 17 फरवरी को ‘दिल्ली में बनेगी अब भाजपा की सरकार’ 15 फरवरी को ‘मुसलमानों के वोट भी ले सकती है भाजपा’ 12 जनवरी को ‘कांग्रेस चाहे जो कर ले, भाजपा की बढ़त को नहीं रोक सकती’ 6 जनवरी को ‘मनमोहन जी आपने 10 साल में देश को पूरी तरह तबाह कर दिया है’ 28 दिसंबर को ‘केजरीवाल ने कांग्रेस की क़ब्र खोद दी है अब दफ़नाना बाकी है।’

12 दिसंबर को प्रवक्ता के संपादक भाई संजीव सिन्हा का नाम मतदाता सूची से भाजपा समर्थक मानकर काट देने पर ‘संभावित विरोध से मताधिकार छीनना लोकतंत्र की हत्या’ 17 नवंबर को ‘कांग्रेस के ना चाहते हुए भी राहुल पर भारी पड़ रहे हैं मोदी’ 16 सितंबर को दंगे तो साम्प्रदायिकता नाम के रोग का लक्ष्ण मात्र हैं’ 17 जुलाई को ‘सेकुलर दलों की अल्पसंख्यक राजनीति भाजपा का खाद पानी’ और 16 मई को ‘बर्क को वंदे मातरम से परहेज़ है तो सांसदी छोड़ें’ लेख में दो टूक लिखा था कि अगर किसी कट्टरपंथी मुसलमान को अपना धर्म इतना ही प्यारा है तो उसको चाहिये कि वह वंदे मातरम से स्थायी रूप से बचने के लिये अपनी सांसदी से त्यागपत्र दे और अपने घर बैठकर अपने मज़हब का ईमानदारी से निर्वाह करे। भविष्य में भी मुझे जो प्रमाण, आंकड़ों, तथ्य और सत्य के हिसाब से ठीक लगेगा मैं वही लिखूंगा चाहे इसका कोई कुछ भी मतलब निकाले मैं इसकी परवाह नहीं करता हूं।
क़ीमत अदा करोगे तो लिख देंगे क़सीदे,
ये लोग व्यापारी हैं फ़नकार मत समझ।।

Previous article‘हाथ‘ से फिसल गई साठ साल की सत्ता
Next articleलोक सभा चुनाव की अनूठी उपलब्धि
इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

3 COMMENTS

  1. भाई आप बिलकुल सच कह रहे हैं ,मैं आपकी बात से बिलकुल सहमत हूँ.

  2. इकबाल भाई–किसी भी लेखक से सभी के सभी पाठक प्रायः सहमत नहीं होते।
    लेखक अपने विचार ही लिखे ऐसी ही अपेक्षा है। आप अपना लेखन जैसा उचित समझते हैं, करते रहें।
    प्रत्येक दृष्टिकोण अपना मह्त्त्व रखता है। तभी तो षट्‌ दर्शन के छः दृष्टिकोण होते है।
    पहले तो लेखक समय निकाल कर लिखता है। यही क्या कम योगदान है? स्वस्थ बहस भी होनी चाहिए।
    वर्चस्ववाद और संघर्षवाद से बचा जाए।
    तो सच्चाई खोजने में कुछ आगे बढा जा सकता है।
    बहुत बहुत धन्यवाद। स्वस्थ रहें लिखते रहें।

  3. यह हुआ ,बेबाक विवेचन और स्वतन्त्र लेखन का क्‍माल।एक संकुचित विचार धारा वाला व्यक्ति इसको नहीं समझ सकता। विचारक चारण नहीं होते।ऐसे ये लेखक के अपने विचार हैं। आज भी मैं इससे पूरी तरह से सहमत नहीं हूँ. नमो की जीत केवल विकास की जीत नहीं है।नमो को बिहार और यूपी में पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधि रूप में भी कॅम नहीं उछाला गया था।मैं उस समय के सुशील मोदी के बयान को आज भी नहीं भूला हूँ,जब नमो को भाजपा के चुनाव प्रचार समिति का अध्यक्ष बनाया गया था।सुशील मोदी ने साफ साफ कहा था की नमो का नेतृत्व होने से पिछड़ी जातियों का समर्थन लेने में आसानी होगी।मैने उस समय भी लिखा था कि पहले हिन्दुत्व,फिर विकास और अंत में जातीय समीकरण। खैर आज नमो प्रधानमंत्री हैं,अतः अब उम्मीद करनी चाहिय कि वे सर्वांगीण विकास पर ध्यान देंगे और विकास के गुजरात माडल से उपर उठेंगे,क्योंकि विकास का गुजरात माडल मानवविकास की दिशा में असफल रहा है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here