कालेधन के बारे में नई सरकार का स्वागत योग्य कदम

-सुरेश हिन्दुस्थानी-
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देश की नई सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कालेधन के बारे में गठित की गई विशेष जांच समिति के परिणाम दिखाई देना शुरू हो गए हैं। स्विट्जरलैंड भारत के उन लोगों की सूची देने को तैयार हो गया है, जिनका उनकी बैंकों में कालेधन के रूप में पैसा जमा है। स्विस बैंकों ने खुलासा किया है कि उनकी बैंकों में भारत का 14000 करोड़ रुपए कालाधान जमा है। इतना ही नहीं, पिछली केंद्र सरकार के अंतिम वर्ष में यह कालाधान 40 प्रतिशत बढ़ गया था। कालेधन के बारे यह संकेत मिलना स्वागतयोग्य कदम है। इससे देश की जनता में यह उम्मीद पैदा होती है कि वर्तमान सरकार कालेधन को लेकर ही मानेगी। देश के कई आर्थिक विश्लेषकों ने कई बार कालेधन के बारे में कहा है कि भारत की यह राशि इतनी ज्यादा है, कि अगर यह कालाधन वापस आ जाये तो देश में किसी भी प्रकार की आर्थिक समस्या ही नहीं रहेगी। ऐसा नहीं है कि पूर्व की सरकारों को इसकी जानकारी नहीं मिली, उनको जानकारी अवश्य मिली थी, लेकिन न जाने वे कौन से कारण थे जिसके कारण उस सरकार ने जानकारी को उजागर नहीं होने दिया। भारत में राजनीतिक दलों सहित राष्ट्रभक्त संगठन इस बात के लिए हमेशा ही आवाज उठाते रहे हैं कि देश का कालाधान, जो विदेशी बैंकों में जमा है, वह वापस आना चाहिए।

योगगुरू बाबा रामदेव ने तो इस विषय को लेकर देश भर में आंदोलन की श्रृंखला ही खड़ी कर दी थी। बाबा रामदेव के इस अभियान को भारतीय जनता का व्यापक समर्थन हासिल हुआ। देश की नई केंद्र सरकार के मुखिया नरेंद्र मोदी ने भी चुनाव से पूर्व कालेधन के बारे में पूरे देश में घूमकर जनता के बीच प्रचार किया, इनको भी व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ। इस समर्थन से एक बात तो साफ हो गई थी कि देश की जनता ऐसे लोगों के खिलाफ है जो देश के पैसे को कालेधन के रूप में विदेशी बैंकों की तिजोरियां भरता हो। आज देश में कई ऐसे लोग हैं जिनका विदेशी बैंकों में पैसा जमा है, वह भी कालेधन के रूप में। अब यह तो साफ है कि यह पैसा अनीति पूर्वक कमाया हुआ धन है, जिसे कथित धनाढ्य वर्ग के लोग छुपाकर रखना चाहते हैं। कालेधन के कारण ही आज देश में तमाम तरह की समस्याएँ खड़ी हुई हैं। क्योंकि हम जानते हैं कि कालाधन केवल भ्रष्टाचार के कारण ही आता है। जिस देश में जितना ज्यादा भ्रष्टाचार होगा, और उससे जो भी आर्थिक लाभ होता है, वह सब कालेधन की श्रेणी में ही आता है। हमारे देश में कई राजनेता तो ऐसे हैं जो राजनीति करने से पूर्व कुछ भी नहीं थे, यानि उनके पास चुनाव लडऩे तक को पैसे नहीं होते थे, लेकिन जैसे ही उन्हें कोई पद हासिल होता है, वह कमाई करने लग जाता है, सीधे शब्दों में कहा जाये तो वह राजनीति को व्यवसाय ही मानता है। कहा जाए तो देश की राजनीतिक सत्ता व्यापार का केंद्र बन गई थीं। इस भ्रष्टाचार के कारण जहां नैतिक काम तो होते ही थे, साथ ही अनैतिक काम भी हो जाते थे। कालेधन का इस्तेमाल राजनीति में वोट के लिए नोट, शराब के लिए नोट, आईपीएल व माईनिंग में कालाधन आदि में इसका दुरुपयोग होने से महंगाई बढ़ रही है, भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है तथा नक्सलवाद पनप रहा है। यदि यही कालाधन देश के विकास में लगाया जाए तो देश की काया ही पलट जाएगी। वर्तमान केंद्र सरकार ने राजनीति के व्यवसायीकरण को बंद करने का अच्छा रास्ता निकाला है, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साफ तौर पर कहा है कि देश में कोई भी मंत्री या सांसद अपने निजी स्टाफ में अपने परिजनों की नियुक्ति नहीं कर सकता। नए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की जनता के मन में एक उम्मीद तो पैदा की ही है कि इस सरकार के आने से देश में कुछ अच्छा ही होगा। इसके साथ ही सरकार ने कालेधन के बारे में जो सक्रियता दिखाई है, सरकार का यह कदम निश्चित ही अभिनंदनीय तो है ही साथ ही देश हित में भी है।

1 COMMENT

  1. अंग्रेजी में अगर कहूँ ,तो यह केवल आई वाश है यानि केवल दिखावा है.इससे न काला धन समाप्त होगा न उस पर कोई अंकुश लगेगा.ऐसे भी भारतीयों का जो काला धन विदेशों में जमा है,वह उसका शतांश भीनहीं जितना काला धन यहाँ एक वर्ष में उत्पन्न होता है या जो सामानांतर अर्थ व्यवस्था का अंग है.स्विस बैंकों में जमा काले धन की बहुत चर्चा होती है,पर एक अनुमान के अनुसार भारतीयों के विदेशों में जमा काले धन का यह एक बहुत छोटा अंश है.आजकल कालाधन अन्य देशों के बैंकों में जाने लगा है,पर मूल प्रश्न इससे अलग है और वह है काले धन की उत्पति को रोकना.

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