जहां के रहनुमा करते हैं वार क्या होगा,
जहां ग़रीब है सबका शिकार क्या होगा।
जो आगे आयेगा वो दौर और मुश्किल है,
यहां गुलों में है चुभन तो ख़ार क्या होगा।
नई नस्ल की तरक़्क़ी की सोच को बदलो,
समझ रहे हैं बुज़ुर्गों को भार क्या होगा।
जो आग खून फ़सादों के बीज बोते हैं,
इन्हीं के ज़िम्मे अमन चैन प्यार क्या होगा।
दुश्मनी हर किसी से भुला दीजिये…..
बाद में चाहे जो भी सज़ा दीजिये,
बेख़ता हूं ये सबको बता दीजिये।
फिर कभी घर जले ना किसी का अगर,
शौक़ से फिर मेरा घर जला दीजिये।
ज़िंदगी में मज़ा ही मज़ा ही आयेगा,
दुश्मनी हर किसी से भुला दीजिये।
कल तुम्हारा भी खुशियों से भर जायेगा,
आज औरों का बेहतर बना दीजिये।।
नोट-गुल-फूल, ख़ार-कांटा, रहनुमा-नेता, बेख़ता-बेक़सूर।।