क्या इन ८ सवालों के जवाब हैं ……….. आज के आर्थिक विशेषज्ञों के पास : कनिष्क कश्यप

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misery-signals-of-malice-and-the-magnum-heartक्या इन ८ सवालों के जवाब हैं, अगर हाँ ? तो हमें बताएं ! क्यों की पश्चिम के पिचासी संस्कृति का दिन-ब-दिन हावी होते जाना, हमारी अपनी कमजोरी और मानसिक दिवालियापन का सूचक तो नहीं ? बाज़ार शब्द अपनी शाब्दिक परिधि तक तो बड़ा हीं मोहक और प्रभावी लगता है, इससे बहार निकलते हीं यह मर्यादायों को भूल सिर्फ लाभालाभ की भाषा बोलने और समझने लगता है. हम भारतीय आज एक बड़े नाज़ुक मोड़ पर खड़े है. एक रास्ता तो हमें भेडियाधसान पर चल  निकलने को कहता है , और दूसरा कहता है की अपे सांस्कृतिक मूल्यों और विरासत   की महता को पहचानकर दुर्गम परन्तु वन्दनीय राह पकड़ी जाये. बाज़ार के साथ “वाद ” प्रत्यय का जुड़ जाना, इसके स्वरुप , विस्तार , कार्यप्रणाली, उद्देश्य और निष्कर्षों को  स्थापित करता है. भारत के सन्दर्भ में यह बाजारवाद बड़ा हीं गंभीर विषय है. जिस विकास की आग्रही भारतीय आर्थव्यवस्था , देखा-देखी आपनी नीतियों और मूल्यों को परिभाषित करती जा रही है , इससे पहले की बहुत देर हो जाये , कुछ सवालों के जवाब देने होंगे .

१ .  क्या पर्यावरण और प्रकृति के जिन अव्ययों का असंयमित दोहन की चाभी बाज़ार के हाथ में सौंपी जा चुकी है, उसकी नैतिक आधार है ? क्या आम आदमी का गंगा पर या अन्य  नदियों पर , वातावरण पर , भू -जल पर कोई आधिकार नहीं है ?

२ आज जिस गंगा को भारतीय मूल्य और परम्पराओं ने ( जिसे भले हीं पाश्चात्य का पैशाचिक समाज जंगली कहे ) लाखों वर्षों तक सहेजे रखा, उसे मात्र १०० वर्षो में बाँझ बना देना , जहरीला बना देने वाला यह विकास , इस समाज की स्थापना में लगा है.?

३ जो ग्रामीण आर्थव्यवस्था अपने आप में परिपूर्ण थी. पूरी ग्रामीण परिपाटी को देखे तो, प्राकृतिक संसाधनों और प्राकृतिक कार्यविधि पर आधारित कृषि प्रधान जीवन प्रणाली का बलात्कार कर , आज उसे बाज़ार का रखैल क्यों बना दिया गया. ?

४ क्या हम सुखोपभोग और विलाश्पूर्ण जीवन को” सभ्य ” पुकार कर , अगले ५० वर्षों में धरती को मानव जीवन के लिए दुर्लभ नहीं बना रहे? जब कपडा , तेल बिजली , पर्यावरण , सभी कुछ के अस्तित्व पर सवालिया निशाँ लगा है , तो इस विकाश का क्या अर्थ?

५ जिन सामाजिक मूल्यों और परम्पराओं, व्यक्तिविशेष मानवीय संबंधों के कारको और उत्प्रेरकों को ध्वस्त करने पर तुला यह बाज़ार , जो विकल्प सामने परोश रहा है , करता दूरस्थ परिणाम क्या होंगे ?

६ नए और पाश्चात्य संस्कृति से उधार लिए गए मूल्यों को श्रेष्ठ और आकर्षक बताने वाले वे कौन लोग हैं ? और वह किस प्रकार इसके श्रेष्ठता साबित करते हैं ?

७ वर्तमान युवा पीढी दिग्भ्रमित अवश्य है, परन्तु कुछ जीवित मूल्यों के प्रचलन में होने से, उन्हें अपने सांस्कृतिक गौरव का अहसास अवश्य है, परन्तु आने वाली जो आगले पीढी है , उसे जो शिक्षा और माहौल मिल रहा है, वह पूरी तरह भारत और भारतीयता को मटियामेट कर देगा , क्योंकि उनके समक्ष” जिवंत आदर्श और जिवंत भारतीयता” का आभाव रहेगा. आगले पचास वर्षों में भारत का ईशायीकरण हो चूका होगा ….. उस वक़्त यह पंक्तियाँ लाफ्टर चैलेंज में दुहरायी जाएँगी …

यूनान मिश्र रूमा, सब मिट गए जहाँ से

आब तक मगर है आकी नामों निशान हमारा

कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी

सदियों रहा है दुशमन दौरे जमां हमारा आइन्स्टीन ने एक बार इस बात का उल्लेख किया था कि , ऐसा कौन सा रहस्य है कि भरात की माटी आज भी अपनी उर्वरता को बना रखी है ,जबकि हमारे यहाँ कृषि का इतिहास लाखों वर्ष पुराना है , जबकि मात्र कुछ हज़ार वर्षों में हीं अमेरिका और यूरोप ने अपनी मिट्टी को बाँझ बना दिया ? आज आलम यह है कि , पंजाब और हरियाणा के कुछ् क्षेत्र कृषि के लिए अनुपयुक्त हो गए हैं. यह सब यूँ हीं नहीं हुआ , बल्कि एक सोची समझी रणनीति के तहत एक एक कर भारत के किसानो के परम्परागत मित्रों को ख़त्म कर दिया गया . बाज़ार का घिनौना खेल इस बात से जाहिर होता है …. १ केंचुआ को मारने के लिए रासायनिक खादों के प्रयोग को बढावा देना ताकि , मिट्टी को हल्का , उर्वरक और उपजाऊ बनाने वाला केंचुआ का खात्मा हो सके. २ केंचुए के ख़त्म होने के बाद बगुले अपने आप गायब हो गए , जो कीटनाशकों कि तरह कीडो मकोडों को खाया करते थे . ३ अब नयी कृषि निति के तहत जेनेटिकली मोडिफाइड सीड का प्रयोग लागू कर दिया गया . इस बीज को एक बार इस्तेमाल करने के बाद , फिर नयी बीज बाज़ार से हीं उठानी पड़ेगी. क्यों कि फसल से कोई बीज नहीं बनाई जा सकती है ४ मनमोहन सरकार अ़ब बड़ी संख्या में विदेशी नश्लों के बैलों का आयात करेगी. इस नए प्रजाति के बैलों के आने के बाद हमारे देशी बैल , श्रिंखलाबद्ध तरीके से लुप्त हो जायेंगे , क्यों कि अ़ब जो नश्ल तैयार होगी , चौका पीठ पर चोटिनुमा आकृति नहीं होगी , जिसपे हल का बहंगी रख कर खेत जोता जाता है . यानि कि अ़ब आने वाले बैलों के पीठ सपाट होगी. इसके फलस्वरूप ट्रेक्टर व अन्य खेती से सम्बंधित उत्पादनों के बाज़ार को बढावा मिलेगा . और किसान क़र्ज़ के टेल घूट घूट कर मरेगा .
इन  सवालों पर गंभीर विमर्श के आलावा , नए तथ्यों को आपके सामने रखने का जिम्मा हमने लिया है. आपके सुझाव , समर्थन और सानिध्य अपेक्षित है.

2 COMMENTS

  1. You have raised the solid questions. Though our system is solid but what is not happened in last 2000 years has happened in last 10-15 years. But in long term, nature will refresh itself but it takes thousands of years.

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