क्या जिंदगी है और भूख है सहारा…..सारे जहां से अच्छा

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-केशव आचार्य

क्या जिंदगी है और भूख है सहारा

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा

सौ करोड़ बुलबुले जाने शाने गुलिस्तां थी

उन बुलबुलों के कारण उजडा चमन हमारा

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा

पर्वत ऊंचा ही सही, लेकिन पराया हो चुका है

न संतरी ही रहा वह,ना पासवां हमारा

गोदी पे खेलती हैं हजार नदियां, पर खेलती नहीं हैं

जो तड़फती ही रहती हैं, कुछ बोलती नहीं हैं,

बेरश्क हुआ गुलशन, दम तोड के हमारा

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा

अब याद के आलावा गंगा में रहा क्या है

कितनों ने किया पानी पी पी के गुज़ारा

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा

मज़हब की फ्रिक किसको और बैर कब करें हम

है भूखी नंगी जनता गर्दिश में है सितारा

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा

यूनानो, मिश्र, रोमां जो कब के मिट चुके

उस क्यू मे हम खड़े हैं नंबर लगा हमारा

जिंदगी की गाड़ी रेंगती है धीरे धीरे

घर का चिराग अपना, दुश्मन हुआ हमारा

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा

(बरबस ही याद हो आया फिर भी मेरा देश महान)

4 COMMENTS

  1. wo bhookh se maraa tha fut pe pada tha chaadar utha ke dekha to pet pe likh tha …sare janhaa se achcha ….sare janhaa se achcha ……sare janhaa se achcha ……sare janhaa se achcha hindustaan hamara.

  2. सिर्फ हंगामा ही खड़ा करना ;{तेरा} मकसद नहीं .
    तेरी फितरत हो की ये सूरत बदलनी चाहिए .
    =***=
    हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए .
    इस हिमालय से कोई गंगानिकलनी चाहिए .
    =***=
    मेरे सीने में न सही ;तेरे सीने में सही .
    हो आग कहीं भी लेकिन जलनी चाहिए .

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