दिल्ली सरकार की प्राथमिकता जनता की सेवा या शोषणकर्ता?

taxiअम्बा चरण वशिष्ठ

अरविन्द केजरीवाल की दिल्ली में आप सरकार में सब कुछ अजीब होता है. नवीनतम उदाहरण है दिल्ली के ऑटो और टैक्सी संगठनों ने धमकी दी है कि यदि अपप आधारित टैक्सी सेवाएँ देने वाले मीटर-प्रणाली न अपनाएं तो वह हड़ताल कर देंगे.

यह तो अजीब बात है, उल्टी. यह तो “उलटे बांस बरेली के” चरितार्थ कर रहे हैं! कौन मांग कर रहे हैं उपभोक्ता या जनता नहीं, पर वह जो स्वयं मीटर नहीं चलाते? यह सब जानते हैं कि आम टैक्सी वाला तथा टैक्सी स्टैंड वाले लोग अपनी हेकड़ी चलाते हैं और दुगना-चौगुना मुंह मांगा किराया मांगते हैं. वास्तविकता तो यह है कि उबेर व ओला आदि यदि अपने पांव पसार रहे हैं तो यह कारण है जनता के साथ टैक्सी वालों का दुर्व्यवहार तथा मीटर के आधार पर किराया न लेकर सवारियों का शोषण. यथार्थ तो यह है कि जिस स्थान पर जाने के लिए टैक्सी वाले 500 रू ऐंठते हैं वहीँ यह नयी कम्पनियाँ 150-200 रु लेते हैं. उनकी सेवा भी तुरंत व सुविधाजनक है. क्योंकि वह अपनी सेवाएँ प्रदान कर रहे हैं तो इसका स्पष्ट मतलब है कि वह सरकार को कर भी देते होंगे.

यह अलग बात है कि इन कंपनियों के कुछ चालकों के विरुद्ध शिकायतें भी आयी हैं. जो ग़लत करेगा उसके विरुद्ध कानून अपनी करवाई अवश्य करेगा और उनके विरुद्ध सख्त कार्रवाई भी होनी चाहिए. उसमें कोई रियायत की गुंजायश नहीं है.

सोचने योग्य बात तो यह है कि सरकार का उत्तरदायित्व या मंशा जनता को सस्ती और सुविधाजनक सेवा उपलब्ध कराना है या कि धमकी के आगे झुक कर उनकी बात मानना जो साधारण जनता का स्वयं शोषण करते हैं और उनसे क़ानून का उल्लंघन कर दुगना-तिगुना किराया ऐंठते हैं?

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