क्या राजनीतिज्ञों का नार्को और डी.एन.ए. परिक्षण अनिवार्य होना चाहिए……!

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विनायक  शर्मा

एक गंभीर राजनैतिक व्यंग

डी.एन.ए. और नार्को -परिक्षण , गाहे-बगाहे कहीं न कहीं समाचारों में यह शब्द पढने-सुनने में आ ही जाते हैं. जीवित कोशिकाओं के गुणसूत्रों में पाए जाने वाले तंतुनुमा अणु को डी-ऑक्सीराइबो न्यूक्लिक अम्ल या डीएनए कहते हैं. इसमें अनुवांशिक कूट या जेनेटिक कोड निबद्ध रहता है. दूसरी ओर नार्को टेस्ट में व्यक्ति को ट्रुथ सीरम नामक इंजेक्शन दिया जाता है जिससे व्यक्ति अर्ध-मूर्छा की स्तिथि में स्वाभाविक रूप से सच बोलता है. नार्को विश्लेषण एक फोरेंसिक परीक्षण होता है, जिसे जाँच अधिकारी, मनोवैज्ञानिक, चिकित्सक और फोरेंसिक विशेषज्ञ की उपस्थिति में किया जाता है. भारत में हाल के कुछ वर्षों से ही ये परीक्षण आरंभ हुए हैं. विश्व के बहुत से देशों की भांति हमारे देश में भी अभी तक नार्को परिक्षण की रिपोर्ट को साक्ष्य के रूप में मान्यता नहीं मिली है .

भ्रष्टाचार का जडमूल नाश करने के लिए देश भर से बहुत सुझाव आ रहे हैं. इन सुझावों से स्पष्ट तौर से यह निष्कर्ष निकलता है कि देशव्यापी आकंठ भ्रष्टाचार के लिए शासक और शासन दोनों ही प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेवार हैं इसलिए इन पर नकेल लगाना ही समय की आवश्यक है. इसी श्रंखला में देश की कॉमन-सोसाइटी का सदस्य होने के नाते मेरे एक सुझाव पर भी देश की जनता को गौर करना चाहिए. क्या पता भ्रष्टाचार से त्रस्त इस देश की जनता और सिविल-सोसाइटी के नाम से चिढने वाले राजनैतिक दलों को कॉमन-सोसाइटी के इस सदस्य का सुझाव पसंद आ जाये. मेरे विचार से तो सर्वप्रथम चनाव सुधार प्रक्रिया के तहत जन-प्रितिनिधि कानून में संशोधन करके चुनाव के नामांकन-पत्र जमा करने के साथ ही नार्को-परिक्षण अनिवार्य कर देना चाहिए. इससे नामांकन-पत्र में दी गई सभी सूचनाओं का सत्यापन हो जायेगा. नार्को-परिक्षण से यदि नामांकन-पत्र में दर्शाई गई प्रविष्टियों में झूठ पाया जाये तो उस व्यक्ति को आगामी छह वर्षों के लिए चुनाव लड़ने के लिए ही अयोग्य घोषित कर दिया जाना चाहिए. अन्यथा चुनाव जीतने के पश्चात् नामांकन-पत्र झूठा या जानकारी गलत साबित होने पर व्यर्थ की मुकद्दमेबाजी और फिर चुनाव अवैध घोषित होने पर देश को पुनः चुनाव का खर्चा खामखा झेलना पड़ता है. नामांकन-पत्र के साथ ही प्रत्याशियों का नार्को-परिक्षण अनिवार्य करने से चुनाव उपरांत होने वाली की इन परेशानियों से बचा जा सकता है. देश की चिंता करने वाले निठठ्लों को तो कम से कम मेरे इस सुझाव पर अवश्य ही ध्यान देना चाहिए. यदि पसंद आये तो संक्रमण रोग की भांति सारे देश के बुद्धिजीवियों के दिमाग को संक्रमणित किया जा सकता है. इससे कुछ तो लाभ होगा. क्या ख्याल है आपका ?

समाज और देश हित के लिए तो में इससे आगे भी बढ़ कर सोचता हूँ कि पंचायत के वार्ड सदस्य के चुनाव से लेकर नगर पालिका, विधान सभा , राज्य-सभा और लोकसभा के सदस्यों तक, सभी का चुनावों से पूर्व नार्को-परिक्षण होना चाहिए. बाद में प्रतिवर्ष भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद न करने का एक शपथ-पत्र भी लिया जाये. इस शपथ-पत्र के सत्यापन के लिए भी प्रतिवर्ष नार्को परीक्षण आवश्यक कर दिया जाये तो कम से कम इन पदों पर बैठे हुए लोग तो ईमानदार हो जायेंगे. शेष रह गए जायेंगे शासन-तंत्र को चलाने वाले सरकारी कर्मचारी, तो उनके सेवा नियमों में संशोधन कर उनके लिए भी प्रतिवर्ष सालाना इन्क्रीमेंट देने से पूर्व शपथ-पत्र और फिर नार्को-परिक्षण आवश्यक कर देना चाहिए. यदि कर्मचारी भ्रष्ट आचरण में लिप्त पाया जाता है तो किये गए अपराध के अनुसार कड़ी सजा का हकदार भी हो. इस उपायों से भ्रष्टाचार तो ऐसे लुप्त हो जायेगा जैसे गधे के सर से सींग.

परन्तु लगता नहीं कि हमारे राजनैतिक दल और उनके नेता इस प्रकार के प्रावधानों से सहमत होंगे. अपने हित साधने में तो वह क्षण मात्र में एकमत हो जाते हैं. पिछले दिनों की ही बात है, हिमाचल के सत्तारूढ़ दल के एक सांसद ने समाज से भ्रष्टाचार मिटाने की अपनी प्रतिबद्धता के चलते नार्को के पक्ष में बयान क्या दिया कि उसकी अपनी पार्टी और प्रदेश की राजनीति में तूफान सा खड़ा हो गया. विशेषकर सत्तारूढ़ दल के गली-कूचे के छुटभैये-कार्यकर्ताओं के बयानों ने तो अनुशासन की सभी सीमाओं को पीछे छोड़ एक नया कीर्तिमान ही स्थापित कर दिया. हवा में उड़ने वाले कागजी नेता जो स्वयं कभी भी कोई चुनाव नहीं जीत सके हैं, ने भी उस सांसद को त्यागपत्र देकर पुनः चुनाव लड़ने की चुनौती तक दे डाली.

हम डी.एन.ए. की भी चर्चा कर रहे थे. नार्को की ही भांति प्रत्येक प्रत्याशी को नामांकन-पत्र भरने से पूर्व अपना डी.एन.ए. परिक्षण करवा उसका उल्लेख नामांकन-पत्र में करते हुए उसकी रिपोर्ट नामांकन-पत्र के साथ नत्थी करने का अनिवार्य प्रावधान होना चाहिए. वैसे देश में आतंकवाद और अन्य हादसों के चलते डी.एन.ए. परिक्षण तो देश के सभी नागरिकों के लिए अनिवार्य कर आधार-कार्ड में इसका उल्लेख करना समय की आवश्यकता है. अपने इन जन प्रतिनिधियों के रसिक व रंगीन स्वभाव के चलते हमारे देश के न्यायालयों का कीमती समय तो रिश्तों को कानूनीजामा पहनाने में ही खप रहा है. राजनीति में अपने प्रभाव का गैरकानूनी और बेजा इस्तेमाल कर अकूत दौलत कमा पर-स्त्रियों को प्रलोभन दे, अवैध रिश्ते बनाने वाले इन रसिक-मिजाज नेताओं पर नकेल कसने की दृष्टी से तो डी.एन.ए. परीक्षण परमावश्यक है. राजस्थान की लापता लोक गायिका भंवरी देवी के सम्बन्ध में भी कुछ इसी प्रकार की खबरें समाचार पत्रों में आ रही है. जरा सोचिये यदि डी.एन.ए. परिक्षण और नामांकन में उसका उल्लेख होता तो क्या रोहित शेखर नाम के व्यक्ति की याचिका पर दिल्ली उच्च न्यायालय को नारायण दत्त तिवारी से बार-बार डीएनए परीक्षण करवाने के आदेश देने पड़ते ?

वादी रोहित शेखर ने अपनी वाचिका में दावा किया है कि उसकी माँ के साथ एन.डी.तिवारी के साथ कथित संबंधों से उसका जन्म हुआ है, लिहाजा एन.डी.तिवारी उसके पिता हैं और पुत्र होने के नाते भारतीय संविधान और विधी के अनुसार उसे एन.डी.तिवारी का पुत्र होने के सभी अधिकार दिलवाए जायें. इसी सन्दर्भ में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एन.डी.तिवारी से डी.एन.ऐ. परिक्षण करवा इस बात के सुबूत देने को कहा है कि वह वादी के पिता नहीं है. इससे पहले कोर्ट में डीएनए परीक्षण के आदेश के खिलाफ तिवारी ने अपील की थी कि उन्हे डीएनए जांच कराने पर मजबूर नहीं किया जाना चाहिए. लेकिन कोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर परिक्षण करवाने के आदेश दिए हैं. अनिवार्य डी.एन.ए. परिक्षण और उसका उल्लेख नामांकन पत्र में होने से कोई भी स्त्री-पुरुष सूचना के अधिकार के तहत परिक्षण रिपोर्ट की प्रतिलिपि प्राप्त कर पता करवा सकता है कि कहीं वह भी ………..?

सरकार और राजनैतिक दल मेरे इन सुझावों पर गौर कर इस पर कोई कारवाई करेंगे, इसकी तो मुझे तनिक भी आशा नहीं है. हाँ, देश की कॉमन-सोसाइटी के सदस्य अवश्य ही मुझ से सहमत होगे. इस सन्दर्भ में यदि न्यायालय में कोई जनहित याचिका लगा दे तो बात बन सकती है. यदि ऐसा हो गया तो इस देश में भ्रष्टाचारी ढूंडने से भी नहीं मिलेगा. भ्रष्टाचार- मुक्त इस देश में फिर किसी भी योग गुरु या अन्ना को भ्रष्टाचार, विदेशी बैंकों में जमा काले धन या जन लोकपाल बिल के लिए अनशन या हड़ताल नहीं करनी पड़ेगी और न ही रामलीला मैदान में रात डेढ़ बजे महाभारत होने से लाखों निरीह महिला-पुरुषों को आंसू-गैस के गोले और डंडे खाने की नौबत आयेगी. वंशवाद और परिवारवाद के पौषक, राजनीति के यह खिलाड़ी भ्रष्टाचार के साथ-साथ यौनाचार में भी लिप्त रहते हैं. इन रसिक और रंगीन मिजाज वाले नेताओं के पूर्व जीवन की खोज की जाये तो अनेक रोहित शेखर निकल आएंगे. अनिवार्य डी.एन.ए. परीक्षण होने से कानूनी वारिसों को अपने भूले-बिसरे वालिदों से उनका विधि और संविधान सम्मत अधिकार सुलभता से मिलना निश्चित हो जायेगा.

विगत दिनों समाचार-पत्रों में खबर छपी कि वैज्ञानिकों ने आलू के डी.एन.ए की खोज कर ली है. तेलगी और आलू का नार्को और डी.एन.ऐ. हो सकता है तो हमारे जनप्रतिनिधियों का क्यूँ नहीं ?

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विनायक शर्मा
संपादक, साप्ताहिक " अमर ज्वाला " परिचय : लेखन का शौक बचपन से ही था. बचपन से ही बहुत से समाचार पत्रों और पाक्षिक और मासिक पत्रिकाओं में लेख व कवितायेँ आदि प्रकाशित होते रहते थे. दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा के दौरान युववाणी और दूरदर्शन आदि के विभिन्न कार्यक्रमों और परिचर्चाओं में भाग लेने व बहुत कुछ सीखने का सुअवसर प्राप्त हुआ. विगत पांच वर्षों से पत्रकारिता और लेखन कार्यों के अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर के अनेक सामाजिक संगठनों में पदभार संभाल रहे हैं. वर्तमान में मंडी, हिमाचल प्रदेश से प्रकाशित होने वाले एक साप्ताहिक समाचार पत्र में संपादक का कार्यभार. ३० नवम्बर २०११ को हुए हिमाचल में रेणुका और नालागढ़ के उपचुनाव के नतीजों का स्पष्ट पूर्वानुमान १ दिसंबर को अपने सम्पादकीय में करने वाले हिमाचल के अकेले पत्रकार.

3 COMMENTS

  1. आदरणीय डा० मधुसूदन जी, सलिल गवली जी और इक़बाल जी आप सभी की टिप्पणियों और अन्य उन सभी महानुभावों का जिन्हें यह लेख पसंद आया का धन्यवाद.
    विनायक शर्मा
    संपादक, साप्ताहिक अमर ज्वाला
    मंडी, हिमाचल प्रदेश.

  2. डी N a और नार्को का सुझाव तो ठीक है मगर इसको लागू कौन करेगा? लाख टेक का सवाल तो यही है.

  3. आपका लेख, “व्यंग्य” मान भी लें, तो सच्चाई से दूर तो नहीं है। आपने बडे प्रभावी ढंग से सत्य मिश्रित व्यंग्य परोसा है।
    जितना इसका विरोध होगा, उतना ही यह “पर्भावी” (भूल नहीं है, उत्तर परदेस में मुख्य मंत्री भी ऐसे ही उच्चारण करती हैं।) ही “परमाणित” होगा।
    भई हमनें भी कुछ तो व्यंग्यात्मक लिखना चाहिए।
    वैसे, यु. पी. में और यु. पी. ए. में; दोनो स्थानों पर व्यंग्य प्रहसन चला हुआ है। हंसने हंसाने के लिए दूर दर्शक पर समाचार देखिए, समाचार का समाचार और मनोरंजन का मनोरंजन। दोनों हाथ लड्डु।
    वैसे यह यु पी ए शासन भी एक व्यंग्यात्मक नाटक ही है। कहीं “वाणी” का या “भाषा” का व्यंग्य है। पढ कर या पाठ कर कर भाषण देने वाले युवराज अभिनेता ; न सुनाई दे, न विवाद हो, इस लिए मिमियाते हुए परधान मंतरी(परीक्षा में जब आत्मविश्वास नहीं होता था, तब मईम दबी हुयी अवाज़ में बोला करता था।), सब कुछ जैसे, कोई व्यंग्य प्रधान डरामा ही चला हुआ है।
    आप की व्यंग्य प्रधान रचना “मति व्यंग्यित” राज नेताओं को नहीं जचेगी।
    जितना इस डी एन ए और नार्को परीक्षण का विरोध होगा, उतना मानिए कि आप का व्यंग्य सफल रहा है।
    लेकिन आप —-
    “व्यंग्य लेखन के प्रतिभावान कलाकार निश्चित है” यह मेरा व्यंग्य नहीं है। आपकी अन्य रचनाएं पढी ना होने से मेरा कथन इस लेख के आधारपर ही किया गया है।
    लिखते रहिए।

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