गौमांस भक्षण रूकनें से क्या बिगड़ जाएगा?!

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देश सचेत रहे, गौपालक हिन्दु; मुरलीधर रहे, सुदर्शन धारी न हो जाए!!

सम्पूर्ण भारत में दादरी की धूम है. नेता दादरी के पहाड़े पढ़ रहें हैं तो उनके चमचे दादरी की गिनती को अनगिनत तक गिनें जा रहे हैं. धर्मनिरपेक्षता की मोक्ष भूमि बन गया है दादरी. दुःख तो सभी को है, सम्पूर्ण भारत को है. अंततः हमारें संस्कार और हमारा देश “सर्वे भवन्तु सुखिनः” की सतत कामना करनें वाला राष्ट्र सदियों से रहा है और इस धर्मनिरपेक्ष जैसे अशब्द के पापपूर्ण अविष्कार से तो हजारों वर्ष पूर्व से रहा है.

गौमांस भक्षण से उत्पन्न होनें वाली समस्याओं का विश्लेषण करें तो तो हमें मुस्लिम समाज द्वारा किये जा रहे गौमांस भक्षण के इतिहास को भी समझ लेना चाहिए. उल्लेखनीय और चिंतनीय विषय है कि मुस्लिम समाज के लगभग नौ सौ वर्षों के इतिहास में प्रारम्भ के सात सौ वर्षों में मुस्लिमों द्वारा कभी भी गौमांस खानें के तथ्य नहीं मिलतें हैं. इतिहास में कभी भी गौमांस मुस्लिम समाज के पूर्वजों का भोजन नहीं रहा है. मध्य और पश्चिम एशिया में जहाँ के मुस्लिम मूल निवासी कहलाते हैं या जहाँ मुस्लिम समाज का सर्वप्रथम उद्भव हुआ, वहां गाय नामक प्राणी पाया ही नहीं जाता था. प्रारम्भ में भारत में आये हुए मुस्लिम आक्रान्ताओं और आक्रमणकारियों ने भारत आकर हिन्दू राजाओं और सरदारों को पराजित करनें के पश्चात उन्हें लज्जित करनें हेतु गौमांस खाना प्रारम्भ किया था. मुस्लिम मांसाहारी तो प्रारम्भ से ही थे, अब वे हिन्दू राजाओं व प्रजा में पराजय व निम्नता का भाव भर देनें हेतु हिन्दू समाज की पूज्य मानी जाने वाली गाय को काटकर खानें लगे थे. अपनें धर्म की किसी भी मूल्य पर स्थापना व अन्य धर्मों को हेय-हीन दृष्टि से देखनें की मुस्लिम शासकों में कुटेव स्थापित हो गई थी. वे समाज में गैर मुस्लिमों को नीच़ा दिखानें हेतु वे असभ्य प्रकार के नुक्ते लगाते रहते थे जैसे जनेऊ पहनी गर्दनों को सार्वजनिक काटना, मंदिर-मठ-आश्रमों का विध्वंस, हिन्दू कन्याओं को बलात अपनें हरम में रखना आदि. मुस्लिम आक्रान्ता अहमद दुर्रानी ने तो अमृतसर के स्वर्ण मंदिर पर आक्रमण के समय स्वर्ण मंदिर के तालाब को गौरक्त से भर दिया था. मुस्लिमों में गौ मांस की परम्परा की स्थापना के पीछे अंग्रेज भी एक बड़ा कारण रहें हैं. यह अंग्रेजों की डिवाइड एंड रुल की ब्रिटिश कालीन विघटनकारी नीति अंश था. गाय के सम्बन्ध में मुस्लिम इतिहास तो कुछ और ही कहता है. कई मुस्लिम संत ऐसे हुए हैं जिन्होनें अपने उपदेशों में गौवंश हेतु सार्थक बातें की हैं. उदाहरणार्थ उम्मुल मोमिनीन (श्रीमती हज़रत मुहम्मद साहब), नबी-ए-करीम, मुहम्मद सलल्लाह,इबने मसूद आदि ने गौमांस भक्षण की आलोचना की और गाय के दूध घी को ईश्वर का प्रसाद बताया है. कुरान में सात आयतें ऐसी हैं, जिनमें दूध देने वाले पशुओं के प्रति कृतज्ञता प्रकट की गई है और गौवंश से मानव जाति को मिलने वाली सौगातों के लिए उनका आभार जताया गया है. वस्तुतः भारत में गौ हत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेजों ने भी अहम भूमिका निभाई. अंग्रेजों को गौवंश के माध्यम से भारत में विघटन कारी नीतियों के बीज बोने का मौका भी दिखा. उन्होंने मुसलमानों को और अधिक भड़काया और कहा कि कुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि गौवध नहीं करना चाहिए. उन्होंने मुसलमानों को गौमांस का व्यापार करनें हेतु लालच भी दिया और कुछ लोग उनके झांसे में आ गए.

उल्लेखनीय है कि यूरोप दो हज़ार बरसों से गाय के मांस का प्रमुख उपभोक्ता रहा है. भारत में भी अपने आगमन के साथ ही अंग्रेज़ों ने यहां गौ हत्या शुरू करा दी और 18वीं सदी के आखिर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी. यूरोप की ही तर्ज पर अंग्रेजों की बंगाल, मद्रास और बम्बई प्रेसीडेंसी सेना के रसद विभागों ने देशभर में कसाईखाने बनवाए. जैसे-जैसे भारत में अंग्रेजी सेना और अधिकारियों की तादाद बढ़ने लगी वैसे-वैसे ही गौहत्या में भी बढ़ोतरी होती गई. ख़ास बात यह रही कि गौहत्या की वजह से अंग्रेज़ों की हिन्दू और मुसलमानों में फूट डालने का भी मौका मिल गया. इसी दौरान हिन्दू संगठनों ने गौहत्या के ख़िलाफ़ मुहिम छेड़ दी थी तब आखिरकार महारानी विक्टोरिया ने वायसराय लैंस डाऊन को पत्र लिखा. पत्र में महारानी ने कहा-”हालांकि मुसलमानों द्वारा की जा रही गौ हत्या आंदोलन का कारण बनी है, लेकिन हकीकत में यह हमारे खिलाफ है, क्योंकि मुसलमानों से कहीं ज्यादा हम गौ हत्या कराते हैं. इसके जरिये ही हमारे सैनिकों को गौ मांस मुहैया हो पाता है.”

इस प्रकार मुस्लिम समाज व उनके गौमांस खानें के इतिहास को देखें तो स्पष्ट आभास हो जाता है की गौमांस खानें के पीछे कोई धार्मिक, सामाजिक, वैद्द्यकीय कारण नहीं था, न है!! केवल और केवल हिन्दू समाज को नीचा दिखानें तथा उनकी आस्थाओं को चोटिल करनें के हेतु से प्रारम्भ हुआ गौमांस भक्षण अब बंद हो जाना चाहिए. क्योंकि गौवंश वध हमारें विशाल लोकतान्त्रिक देश भारत के लिए अब एक चुनौती बन गया है. देश में प्रतिदिन शासन प्रशासन के सामनें गौ वध और अवैध गौ तस्करी के मामलें न केवल दैनंदिन के प्रशासनिक कार्यों के बोझ और चुनौती को बढ़ातें हैं बल्कि सामाजिक समरसता, सौहाद्र और सद्भाव के वातावरण में भी जहर घोलनें वालें सिद्ध होते हैं. मुस्लिम वर्ग में गौमांस को वर्जित करनें के प्रयास हुए हैं, किन्तु इस वर्ग के कट्टरपंथी राजनीतिज्ञ और स्वार्थ की रोटियाँ सेंकनें वाले मुस्लिम नेता इन प्रयासों को हतोत्साहित करते रहें हैं. वर्ष 2012 में मुस्लिमों के बड़े त्यौहार बकरीद के एन पहले देवबंद की सर्वमान्य और मुस्लिम विश्व की प्रतिष्ठित संस्था दारूल उलूम ने गौ वध के सन्दर्भों में एक बड़ी, सार्थक और सद्भावी पहल जारी की थी. दारूल उलूम के जनसंपर्क अधिकारी अशरफ अस्मानी ने एक आधिकारिक अपील जारी करते हुए कहा था कि गाय हिन्दू समाज के लिए पूज्यनीय विषय है और मुसलमानों को हिन्दू भाइयों की भावनाओं का सम्मान करते हुए गौ मांस का उपयोग नहीं करना चाहिए. देवबंद की ही दूसरी शीर्ष मुस्लिम संस्था जो कि देवबंदी मुसलक की शिक्षा व्यवस्था संभालती है “दारूल उलूम वक्फ” ने भी सम्पूर्ण भारत के मुसलमानों से इस आशय की अपील जारी करते हुए गौ मांस का उपयोग नहीं करने की सलाह दी थी.

आज देश के 29 राज्यों में से 24 राज्यों में गौमांस प्रतिबंधित है. जनभावनाएं गौरक्षा हेतु समय समय पर ज्वार की भांति प्रकट होती रहती हैं. तब आवश्यक है कि मुस्लिम समाज की आध्यात्मिक संस्थाएं और व्यक्ति सामनें आयें और इस राष्ट्र में सौहाद्र,समभाव व सद्भावना के विकास हेतु शेष राष्ट्र के सौ करोड़ लोगों की आस्था केंद्र गाय को सम्मान दें. यदि ऐसा नहीं हुआ तो अब दादरी जैसी घटनाएं होती रहेंगी और हमारा देश अभिशप्त होता रहेगा. हिन्दू समाज कभी भी हत्यारा या आक्रामक समाज नहीं सिद्ध हुआ है. यह एक सौजन्यशाली तथा सहनशील समाज रहा है. हम योगिराज श्रीकृष्ण के अनुयायी हैं जो सुदर्शन और बांसुरी दोनों का ही उपयोग साधू भाव से कर सकतें हैं. शिशुपाल की 99 गलतियों के बाद 100 गलती पर ही श्रीकृष्ण को उस पर क्रोध आया था और मुरलीधर श्रीकृष्ण, सुदर्शन धारी होनें को मजबूर हुए थे और शिशुपाल का सर काट कर रख दिया था. आवश्यकता है कि हिन्दू समाज का सुदर्शन उसके पूजा घर से बाहर आये, ऐसी परिस्थितियों का निर्माण रूक जाए.

1 COMMENT

  1. Mr. Praveen , why talk only of Gomams- why dont generalise to mamsahari. Why should any one consume mams(a) for that matter – no religion teraches for this – we make a point in Gomams as we Hindus worship Cow for its various uses we make — Yes honourable. Similarly other animals are also worshipped in other religions. spare mams(A0 of tghose animals too.
    Be humane first and then Hindu – muslim etc. It is clearly being noticed that muslims are under severe attack lately for something or the other.. does it project the picture of India we desire in the world. Decide and act.

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