क्या सत्तालोलुप कांग्रेस भारत को एक और विभाजन की ओर ले जाना चाहती है?

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डॉ. सुरेन्‍द्र जैन

विकीलीक ने कांग्रेस के साम्प्रदायिक चेहरे पर से एक बार और पर्दा उठा दिया। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी ने अमेरिकी राजदूत को कहा है कि” भारत को जेहादी आतंकियों से ज्यादा खतरा हिंदू संगठनों से है।” इससे पहले इन्हीं महाशय ने संघ की तुलना सिमी से करने की नादानी की थी। विकीलीक ने कुछ दिन पहले यह रहस्योदघाट्न किया था कि कांग्रेस भारत में साम्प्रदायिक राजनीति करती है। इसी राजनीति के कारण कांग्रेस ने अंतुले से आरोप लगवाये थे कि करकरे की हत्या में हिन्दू संगठनों का हाथ है। अब एक और कांग्रेसी नेता दिग्विजय सिंह ने करकरे के साथ तथाकथित रूप से हुइ बात का हवाला देते हुए कहा था कि करकरे को हिन्दू संगठनों से खतरा है । महाराष्ट्र के गृह मंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि करकरे की दिग्विजय से बात के कोई रिकार्ड नहीं हैं। इससे पहले करकरे की पत्नी तथा मुम्बई हत्याकांड के जांच अधिकारी ने इस तरह की किसी बात से इंकार किया था। इन सबके बावजूद कोई न कोई कान्ग्रेसी इस प्रकार के अनर्गल दुष्प्रचार में लगा रहता है। उन्हें न इस बात की चिंता है कि उनकी इस बचकाना और घिनोनी हरकतों से आतंकियों की कितनी हिम्मत बढती है, पाकिस्तान के हौंसले कितने बुलंद होते हैं ,जांच एजेंसियां कितनी प्रभवित होती हैं तथा दुनिया में भारत की कितनी जगहंसाई होती है। अभी तक ऍसा लगता था कि इन हरकतों से ये अनजाने में आतंकियों की सहायता कर रहे हैं परन्तु अब लगता है कि ये नेता जानबूझ कर आतंकियों की मदद करते हैं। गद्दी के लालच में ही इन्होंने भारत का विभाजन किया था, आज भी ये सत्तालोलुप चंद मुस्लिम वोटों के लिये देश को एक और विभाजन की ओर ले जा रहे हैं।

बार- बार हिंदू संगठनों का डर दिखा कर वे मुस्लिम समाज को आतंकित करना चाहते हैं। वे इस नापाक हरकत से कई पाप कर रहे हैं। वे अपने इस दुष्प्रचार से आतंकी संगठनों की भाषा बोलकर उनके प्रवक्ता के रूप में काम कर रहे हैं। दूसरे, उनकी इन हरकतों से मुस्लिम समाज का एक वर्ग भ्रमित होकर देश की मुख्य धारा से अलग हो सकता है। क्या इनके इन पापों की भरपाई की जा सकती है? हिन्दू संगठनों से लडना है तो हम उन्हें चुनौती देते हैं कि वे वैचारिक आधार पर सभ्य समाज की तरह लडें। वे किसी भी मंच पर हमें गलत सिद्ध करें, हम सत्य सामने लायेंगे। इसके बाद समाज को सही गलत का निर्णय करने दें। इस लडाई में वे देश के हितॉ का बलिदान न दें। यदि कांग्रेस में कोई सद बुद्धि वाला नेता बचा है तो वह इन लोगों को समझाये। देश को वे इस मोड की ओर न ले जायें जहां से वापस आना उनके लिये मुश्किल हो जाये।

जहां तक राहुल गांधी का सवाल है , वे बचकाना बुद्धि के नासमझ युवक हैं। उन्हें न देश के इतिहास की समझ है और न देश की समस्याओं की। देश की जडों तक उनकी पहुंच नहीं है। वे इस देश की सत्ता को केवल अपनी जागीर समझकर अपने प्रबंधकों के हाथ की कठपुतली बन कर बेहूदी हरकते करते रहते हैं। उन्हें यह भी नहीं मालूम की विदेशी राजनयिकों से देश की आंतरिक राजनीति पर कितनी चर्चा करनी चाहिये। उन्हें नहीं मालूम वे देश का कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं। शायद देश के नुकसान की उनको परवाह भी नहीं है।

19 COMMENTS

  1. “”””””””””””संघ काम मूलत: खेल व् शारीरिक काम है”””””””””””””

    इस बात पर आपको कोई संधेह है??
    शायद अपने अखबार से ही संघ को देखा है कभी शाखा आईये सारे के सारे भरम दूर हो जायेंगे ,दूर करना चाहेंगे तो नहीं तो हम सब अपने अपने कुवे में बैठे ये ही सोचते रहते है की समुद्र इतना है उतना है

  2. आदरणीय श्री पुरोहित जी आपने विस्तार से उत्तर दिया और मुझे किसी भी राजनैतिक दल से सम्बद्ध नहीं माना. इसके लिए आपका कोटि-कोटि धन्यवाद. जहाँ तक आपकी बातों, तर्कों और साक्षों पर टिप्पणी का सवाल है तो वे मेरी राय में उतने ही विश्वसनीय और सही हैं, जितना कि आपका निम्न कथन, जिसकी सच्चाई के बारे में सारा संसार जानता है.

    “”””””””””””संघ काम मूलत: खेल व् शारीरिक काम है”””””””””””””

    ऐसे हालत में, मैं अधिक लिखकर प्रवक्ता के वैचारिक धरातल को मेरे कारण कलुषित नहीं होने देना चाहता! आशा करता हूँ कि आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा.

    एक बार फिर से धन्यवाद!

    शुभेच्छु
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  3. अब मै आपको कुछ youtube के लिंक देता हु जरा इंग्लिश में है पर विश्वास है अप समझ जायेंगे
    https://www.youtube.com/watch?v=_hxQcWhfYY0&feature=रेलातेद

    लाध्द्धक के कार्य इसमे देखे https://www.youtube.com/watch?v=ल्ग़१ज्ञ्ज्को

    सुनामी के समय ;https://www.hvk.org/articles/0305/22.हटमल
    तमिल में है पर भावना अप समझ ही जायेंगे https://www.youtube.com/watch?v=orgTEQofKfQ
    https://www.youtube.com/watch?v=G7BcDFovB4I&feature=रेलातेद
    अब सेवा भारती के काम देखिये https://www.sevabharathi.org/
    अब एकल विद्यालय द्वरा किये गए सेवा कार्यो के बारे में देखिये
    https://www.sanghparivar.org/ekal-vidyalaya-primary-education-for-indias-tribal-rural-पोपले,https://hubpages.com/hub/Charity-and-Community-Service-रस
    ,https://www.youtube.com/watch?v=-HDmUISu9EA
    अब वनवासी कल्याण आश्रम दवरा https://www.youtube.com/watch?v=z4e74IkuMyk&feature=&p=CC982996F8BBA098&index=0&playnext=१
    https://www.youtube.com/watch?v=txFTf-GHNtw&playnext=1&list=PLCC982996F8BBA098&index=१
    ये चंद उधाहर्ण है अब भी ये आपको नहीं दिखाते है जो इसमे किसका दोष??

  4. आपने मेरे स्वयम द्वारा देखे गए कार्य पर टिप्पणी नहीं की,क्यों??मेने कहा शायद पुणे इसका अर्थ ये है की मुझे ठीक से याद नहीं की वो जगह पुणे ही है या कोई और ,ओए ये बात भी है मेने देखा नहीं है सुना है लेकिन जो मेने देखा है उस पर भी आप टिप्पणी कर देते तो उचित रहता चलिए अब आपको थोडा विस्तार से बताता हु |और हा वो जगह पुणे नहीं नागपुर है जरा सुरेश जी का ये लिंक देखे
    https://blog.sureshchiplunkar.com/2010/10/hindu-female-priest-vhp-rss-social-work.html

    samajik samarasta ke kary संघ व् परिषद् द्वारा किये गए है जिसमे मेने स्वयं भाग लिया है अत प्रमाण की आवश्यकता ही नहीं है मेरे लिए ,रही बात आपकी तो आपको इच्छा होगी तो नेट पर बहुत सामग्री मिल जाएगी लेकिन आपको वो Dhundhani है नहीं केवल शब्दों को पकड अकर बाल की खाल निकालने वाली बात है
    लेकिन फिर भी आपकी तसल्ली के लिए https://vhp.org/vhp-activities/pujari-works/pujari-work-in-tamilnadu-2/ लिंक देखे और हा ये अकड़ा जरा देखे
    Till July 1998, sixteen courses of 15 days’ duration have been conducted and 1200 Poojaris have undergone the training. As a matter of principle, we are not interested in the castes of the applicants. But for statistical purposes, we collect the particulars. Poojaris from all castes have been trained.

    Break Up Figure is as Follows
    Scheduled Castes 145
    Scheduled Tribes 54
    Most Backward 73
    Backward 670
    Forward 258
    TOTAL १२००
    थोडा इंग्लिस के इस्तेमाल के लिए क्षमा चाहूँगा |
    अब जरा आपके इन सवालों का जवाब दिया जाये :
    -आज तक आर एस एस के दरवाजे स्त्रियों के लिए क्यों बंद हैं? स्त्री आर एस एस के अलग प्रकोष्ठ तक ही क्यों सीमित हैं?

    :संघ काम मूलत: खेल व् शारीरिक काम है आप मुझे बताएँगे कौन सा फिल्ड का खेल स्त्री पुरुष साथ साथ खेलते है ??संघ का कोई प्रकोष्ट नहीं है “राष्ट्रिय सेविका सिमिति ” के नाम से से अलग एक संघठन है अत आपका ये आरोप न केवल मिथ्या है वरन आपके पूर्वाग्रह को भी दर्शाता है .

    -आर एस एस के प्रमुख पद का चुनाव नहीं करके, आर एस एस के प्रमुख द्वारा ही मनोनयन क्यों किया जाता है? क्या आर एस एस को लोकतंत्र में विश्वास नहीं है?

    :संघ को कैसे चलाना चाहिए कैसे नहीं इसका फैसला संघ के लोग ही करेंगे आप नहीं ,रही बात लोकतंत्र की तो यहाँ सरकार नहीं चलानी है वैसे किसी भी प्रकार का निर्णय बैठक में सर्वसहमति से लिया जाता है वो सामान्य शाखा से लेकर अखिल भारतीय स्तर तक सामान है ,एक सामान्य शाखा को भी शाखा टोली चलाती है नगर में नगर कार्यकारिणी,इसी प्रकार महानगर,प्रान्त,क्षेत्र व् देश ,आपको जो दिखता है वो ही हो जरुरी नहीं है .

    -आज तक आर एस एस के प्रमुख पद पद पर किसी स्त्री, दलित, आदिवासी को क्यों मनोनीत नहीं किया गया? क्या आर एस एस को इन सबकी योग्यता पर संदेह है?

    :स्त्री का जवाब मेने दे दिया ,रही बात बात दलित-आदिवासी भेदों की वो तो आप देखते है हम नहीं ,मुझे तो अभी तक नहीं पता की मेरी शाखा पर आने वाले कौन कौन जाती के है ,जाती आपके लिए इतनी महत्व पूर्ण क्यों है??आपको शायद अपनी योग्यता पर संधेह हो सकता है हमें नहीं ,हमें किसी भी हिन्दू बंधू की योग्यता का पर संधेह नहीं है .

    -विश्व हिन्दू परिषद प्रमुख के पद पर हिन्दू माने जाने वाले स्त्री, दलित, आदिवासी क्यों पदस्थ नहीं हैं?

    :सामान जवाब ,जो संघ के संधर्भ में दिया था |

    -विश्व हिन्दू परिषद एवं आर एस एस दोनों के प्रमुख एजेंडे में हिन्दुओं के बहुसंक्षक वर्ग दलितों,
    आदिवासियों और स्त्रियों की सत्ता में सामान भागीदारी लागू करवाने की चिंता क्यों नहीं है?

    :एसा लगता है आपके लिए एन कें प्रकारें सत्ता ही मुख्य ध्येय है जबकि राजनीति भारत का मर्म नहीं है धर्म ही भारत की आत्मा है जिसे विवेकानंद अरविन्द जैसो ने बहुत ही स्पष्ट रूप से कहा है .

    “जबकि आदरणीय श्री पुरोहित जी आप मुझसे लिखने से पूर्व ही सबूत क्यों मांगे जा रहे है? क्या मेरी शुचिता पर संदेह का कारण मेरा आदिवासी होना है या मेरा ब्राहमण नहीं होना है या कुछ ओर….?

    आदरणीय श्री पुरोहित जी क्या मुझे इस बात का उत्तर मांगने का हक़ नहीं होना चाहिए और इस हक़ का आपको समर्थन नहीं करना चाहिए?”

    मै अत्यंत विनम्रता पूर्वक कहना चाहता हु की आपसे कह देने मात्र से संघ ब्राहमण वादी सिध्ध नहीं होता है उसके लिए तथ्य व् तर्क के आलोक में देखना पड़ेगा ,आपका कुछ भी होना हमारे लिए ज्यादा मायने नहीं रखता है हम इसे सवाल दुसरे लेखको से भी करते है अपने अगर अपने पीछे अपनी जाती का नाम नहीं लगाया होता या कोई ब्राहमण या कोई और नाम लगे होता तब भी इसी प्रकार के आपके लेखन में हम यही प्रशन करते ,जाती आपके लिए शायद बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण है तब ही आप हर विषय को “जातिवाद” कीतरफ घुमा देते है
    ,क्या इससे हम लोग क्यों नहीं माने की आप जातिवादी है??
    अप से जब भी प्रमाण पूछा जाता है तो या तो आप पुचने वाले पर असभ्यता का आरोप लगा देते है या उसे ब्राहमण वादी सिद्ध करते देते है लेकिन प्रमाण फिर भी नहीं रखते ,ज्यादा पुचाते है तो अपने आदिवासी होने को प्रशन पुछ aने का कारण देते है ,इसा क्यों??
    क्या अप मानते है की आदिवासी होने के कारण आपका यह अधिकार है की संघ व् ब्राहमण जाती को गलिया बोलते रहू व् जब कोई प्रमाण पूछे तो कह दू मै आदिवासी हु इस लिए कुछ मत पूछो ,कही इसा तो नहीं है न??
    पुरे सम्मान्न व् विनम्रता के साथ पहले से ही क्षमा मागते हुवे कहना चाहता हु ये सब बाते संधेह पैदा करती है विश्वास है आप संधेह को दूर करेंगे ,फिर आप तो किसी राजनीतिक दल के प्रति निष्टावान भी नहीं लगते फिर ये purvagrh क्यों??

  5. आदरणीय श्री पुरोहित जी आपने अपनी टिप्पणी दिनांक : २५.१२.१०, ०९.४२ के शुरू में लिखा है कि-

    “……..कोई वास्तविक घटनाये पता हो, या किसी नेता के वक्तव्य के बारे में पता हो तो बताइए जिसने हिन्दुवाद के नाम पर ब्राहमणवाद को बढावा दिया हो ……”

    जबकि आदरणीय श्री पुरोहित जी आपने अपनी इसी टिप्पणी के अंत में सुनी-सुनाई बातों को आधार मानकर विश्व हिन्दू परिषद का गुणगान कर दिया है!

    कृपया देखें :-

    “………….ये भी सुनने में आया है की शायद पुणे में विश्व हिन्दू परिषद् हिन्दू माताओ को “पुरोहित” बनाने की ट्रेनिंग दे रही है वो बी बिना जाती पूछे……..”

    आदरणीय श्री पुरोहित जी आपने उक्त वाक्य में लिखा है कि-

    “सुनने में आया है” और

    “शायद पुणे में”

    आदरणीय श्री पुरोहित जी इन दोनों वाक्यों से जो प्रतिध्वनि निकलती है और जो ज्ञात होता है वह यह है कि शायद सच्चाई क्या है, आपको खुद को भी ज्ञात नहीं है! फिर भी आपने इस बात का विश्व हिन्दू परिषद् के पक्ष में सार्वजानिक मंच पर उल्लेख कर दिया. और सुनी-सुनाई बातों के आधार पर जानबूझकर प्रमाणित करने का प्रयास किया है कि

    “विश्व हिन्दू परिषद “जातिभेद” और “लिंगभेद” नहीं करती है.”

    जबकि आप जानते हैं कि “विश्व हिन्दू परिषद” एवं “आर एस एस” दोनों ही संगठनों में “जातिभेद” और “लिंगभेद” प्रमाणिक तौर पर होता रहा है. इसे प्रमाणित करने के लिए क्या मैं आपसे या आप जैसी सोच के समर्थक बन्दुओं से विनम्रता पूर्वक जानने की ध्रष्टता कर सकता हूँ कि –

    -आज तक आर एस एस के दरवाजे स्त्रियों के लिए क्यों बंद हैं? स्त्री आर एस एस के अलग प्रकोष्ठ तक ही क्यों सीमित हैं?

    -आर एस एस के प्रमुख पद का चुनाव नहीं करके, आर एस एस के प्रमुख द्वारा ही मनोनयन क्यों किया जाता है? क्या आर एस एस को लोकतंत्र में विश्वास नहीं है?

    -आज तक आर एस एस के प्रमुख पद पद पर किसी स्त्री, दलित, आदिवासी को क्यों मनोनीत नहीं किया गया? क्या आर एस एस को इन सबकी योग्यता पर संदेह है?

    -विश्व हिन्दू परिषद प्रमुख के पद पर हिन्दू माने जाने वाले स्त्री, दलित, आदिवासी क्यों पदस्थ नहीं हैं?

    -विश्व हिन्दू परिषद एवं आर एस एस दोनों के प्रमुख एजेंडे में हिन्दुओं के बहुसंक्षक वर्ग दलितों,
    आदिवासियों और स्त्रियों की सत्ता में सामान भागीदारी लागू करवाने की चिंता क्यों नहीं है?

    जबकि आदरणीय श्री पुरोहित जी आप मुझसे लिखने से पूर्व ही सबूत क्यों मांगे जा रहे है? क्या मेरी शुचिता पर संदेह का कारण मेरा आदिवासी होना है या मेरा ब्राहमण नहीं होना है या कुछ ओर….?

    आदरणीय श्री पुरोहित जी क्या मुझे इस बात का उत्तर मांगने का हक़ नहीं होना चाहिए और इस हक़ का आपको समर्थन नहीं करना चाहिए?

    आदरणीय श्री पुरोहित जी आप अच्छे लेखक, टिप्पणीकार और विद्वान भी हैं. इसलिए आप जानते होंगे कि जो लेखन शर्तों पर आधारित होता है, वह असत्य और बनावटी होता है! सत्य स्वत: सामने आता है. जिसे इसी प्रवक्ता के मंच पर आप पढ़ते रहे हैं. आप खुद सच को जानते हैं. मेरी ओर से लिखे उक्त प्रश्नों के सही उत्तरों में आपके उत्तर समाहित हैं फिर भी यदि आप मुझसे ही सीधे-सीधे लिखवाना चाहते हैं तो समय आने पर मैं भी आपकी इच्छा अवश्य पूरी करूंगा! परन्तु निवेदन है कि सच्चाई जानते हुए अनजान बने रहना “सत्य के रक्षकों” के लिए शोभनीय नहीं है.

    शुभेच्छु
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  6. ap तो ब्राहमणवाद के बारे बताईये ,आवश्यक हो तो अलग से एक लेख लिख कर भी हम जैसे अज्ञानियों को कृतार्थ करिए ,हम ब्राहमण के बारे में जानते है वाद के बारे में भी जानते है ब्राहमणवाद के बारे में नहीं ,अत निवेदन है जरा इस पर प्रकाश डालिए ……..ओउर हा ये भी बताइयेगा कैसे संघ व् विश्व हिन्दू परिषद् इसे बढावा दे रहे है कृपया तर्क व् तथ्य रखियेगा इसने कहा उसने कहा पर हमारा विशवस जरा कम है कोई वास्तविक घटनाये पता हो,या किसी नेता के वक्तव्य के बारे में पता हो तो बताइए जिसने हिन्दुवाद के नाम पर ब्राहमणवाद को बढावा दिया हो ……………सप्रेम निवेदन है …………..क्योकि मेरा तो व्यक्तिगत जो अनुभव है वो आपके विचारो से बहुत अलग है ज्यादा पुरानी बात नहीं है अभी ८ दिन पहले मेने अपनी आखो से विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यक्रम में ब्राहमण व् मेघवाल बंधुओ को एक साथ यजमान के रूप में यग्य करते देखा है इसी तरह दुसरे सभी हिन्दू बिना भेदभाव के एक साथ यजमान के रूप में यग्य कर रहे थे ,ओउर मेरी जानकारी में ये भी है अपने शहर में ek प्रतिष्टित विश्व हिन्दू परिषद् के कार्यकर्ता सभी जातियों के बच्चो को वेद पढ़ा रहे थे ओउर बालक तो क्या बालिकाए भी पढ़ने आ रही थी शायद आपके अनुभव कुछ और हो ……………हमें भी बताइयेगा………ओउर ये भी सुनाने में आया है की शायद पुणे में विश्व हिन्दू परिषद् हिन्दू माताओ को “पुरोहित” बनाने की ट्रेनिंग दे रही है वो बी बिना जाती पूछे……..

  7. श्री दिनेश गौर जी मेरे पास भाषा की इतनी कंगाली नहीं है कि मुझे “तमीज” और “बदतमीज” जैसे शब्दों का अहंकार के साथ, घटिया भाषा में ओछेपन से प्रयोग करना पड़े!

    इसलिए जब तक आप एवं आप जैसे अनेक ज्ञानी विद्वान सभ्यता से टिप्पणी करना नहीं सीख जाते हैं, तब तक कम से कम मुझसे किसी भी प्रकार का विचार विमर्श या उत्तर पाने की उम्मीद नहीं करें!

    श्री दिनेश गौर जी संभवत: मैं आपसे आयु में बड़ा हूँ, इस नाते यह जरूर कहूँगा कि अपनी कुंठाओं को प्रकट करने के लिए सार्वजनिक मंचों पर देश की संस्कृति और हिंदुत्व को बदनाम न करें तो मेहरवानी होगी! और यदि किसी कुछ सीखना चाहते हैं तो, पहले सीखने की पात्रता अर्जित करें. इस संसार में सिखाने वालों की कमी नहीं है. इसी मंच पर आदरणीय डॉ. राजेश कपूर जी, आदरणीय डॉ. मधुसूदन जी, आदरणीय श्री चतुर्वेदी जी, आदरणीय श्री आर सिंह जी जैसे अनेक विद्वान और चिन्तक उपलब्ध है.

    मतभिन्नता होने पर भी, मैं तो खुद ही इन जैसों से हर दिन कुछ न कुछ सीखता रहता हूँ. हाँ असहमत होने पर पुरजोर विरोध भी करता हूँ, लेकिन भाषा का संयम रखने/बरतने का प्रयास जरूर करता हूँ.

    श्री दिनेश गौर जी आपने गांधी के बारे में मेरे आलेख पर सवाल उठाया है, उसका आपको समय आने पर जरूर जवाब मिलेगा, लेकिन आप इतना जान लें कि मैंने उस लेख में बहुत ही हलके शब्दों का प्रयोग किया है. गांधी के बारे में सच्चाई जाने बिना, कुछ भी कहना बेमानी है.

    श्री दिनेश गौर जी आप किसी भी प्रकार का अभिकथन करने के लिए उतने ही आजाद हैं, जितना कि मैं या अन्य कोई भी, इसलिए मैं आपके विचार प्रकट करने के अधिकार का हर मोर्चे पर समर्थक अवश्य बना रहूँगा!

    शुभेच्छु
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  8. आदरणीय मीणा जी…आपने मेरी टिप्पणी का उत्तर दिया इसके लिए मै आपका आभारी हूँ…आपसे एक विनती है की कृपा करके ब्राह्मणवाद की परिभाषा से हमें अवगत करवाएं…आप ब्राह्मणवाद की क्या परिभाषा लेते हैं यह तो मै नहीं जानता, किन्तु शाब्दिक अर्थ तो मै भी कुछ कुछ समझता ही हूँ…इसके आगे जाकर आप व्याकरण पर बहस करें तो मै अज्ञानी हूँ…
    आप तो क्या मै तो किसी को भी दलित नहीं मानता…अब दलित शब्द का आप क्या अर्थ निकालते हैं यह भी मै नहीं जानता…और जहाँ तक भाषा की बात है तो मुझे नहीं लगता मैंने ऐसी कोई बदतमीजी की है जो आप हमेशा से ब्राह्मणवाद के नाम पर करते आ रहे हैं…भैंस की पूंछ पाड़ने का अर्थ अधिक कुछ नहीं यह तो हरियाणा प्रदेश में मेरे गाँव में आम बोलचाल में बोले आने वाला वाक्य है जिसके अर्थ है कि “मैंने आपका क्या बिगाड़ा है?” मेरी भाषा कभी किसी का अपमान करने वाली नहीं होती यह मै आपको पहले भी बता चूका हूँ…
    मै ऐसे ही किसी पर आक्षेप नहीं लगाता…मैंने आपको बहुत पढ़ा है, इसके बाद ही मै यह कथन कह रहा हूँ…मैंने पहले भी आपके लेख पर एक टिप्पणी में आपसे तमीज पर चर्चा करने की कोशिश की थी किन्तु आपका कोई उत्तर ही नहीं मिला…आपका लेख “मिट सकता है 90 फीसदी भ्रष्टाचार” पर…जहाँ आपने हमें तमीज का पाठ पढ़ाने की कोशिश की थी…मैंने वह भी लिखा था कि एक मंच पर आपके एक लेख में किस प्रकार आपने गांधी जी के सेक्स जीवन का वर्णन कर आज़ादी के महान पुरोधा का अपमान किया था…मै वही तमीज आपको सिखाना चाहता हूँ कि सम्मान एक तरफ से नहीं मिल सकता बदले में आपकी वाणी भी शुद्ध होनी चाहिए…
    आदरणीय मीणा जी मै कोई विद्वान नहीं हूँ, न तो मै स्वयं को ऐसा समझता हूँ और न ही दिखाने का प्रयास करता हूँ…मै तो हर क्षण कुछ सीखने का ही प्रयास करता हूँ…अत: स्पष्ट कर दूं कि मै स्वयं को किसी अन्य की तुलना में अधिक ग्यानी नहीं समझता…मै यहाँ कोई लेखक बनने के लिए नहीं आया…क्यों कि मै जानता हूँ कि मुझमे ऐसी कोई विशेष काबीलियत नहीं है…मै तो केवल जो सोचता हूँ जो बोलता हूँ वही लिखने आया हूँ…मुझे लेखक बनने में कोई रूचि नहीं है, बस कुछ समस्या कुछ प्रश्न है मन में वही खोजने आया हूँ, आखर मेरा भी इस देश पर उतना ही अधिकार है जो कि आपका है…प्रवक्ता.कॉम समस्यायों को सुलझाने वाला मंच लगा इसलिए यहाँ आया हूँ…यहाँ कई विद्वानों को पढने का मौका मिला, उनसे कुछ सीखने का मौका मिला इसलिए यहाँ आया हूँ…प्रवक्ता.कॉम समस्यायों को सुलझाने वाला मंच लगा इसलिए यहाँ आया हूँ…यहाँ कई विद्वानों को पढने का मौका मिला, उनसे कुछ सीखने का मौका मिला इसलिए यहाँ आया हूँ…
    क़ानून व्यवस्था को मै भी भली प्रकार से जानता हूँ…यह वही कानून है जो मुझे किसी आरक्षित जाति से कहीं बेहतर होने पर भी पीछे खड़ा कर देता है…यह वही कानून है जहाँ मुझे अपने ही देश में तिरंगा लहराने पर जेल में डाल दिया जाता है…यह वही कानून है जहाँ मेरा तिरंगा जलाने पर भी विशेष सम्मन दिया जाता है…यह वही क़ानून है जहाँ मेरे देश को भूखा नंगा कहने वालों को ब्रॉड माइंडेड कहा जाता है…हिंदुत्व केवल मुझ पर आश्रित नहीं है…और मैंने विशेषत: हिंदुत्व के लिये कुछ भी नहीं किया…जो करना चाहता हूँ वह केवल राष्ट्र के लिये करना चाहता हूँ…
    मै बहुत कुछ सीखने को तैयार हूँ, सिखाने वाले आगे आएं, मै भी उनकी खोज में हूँ और बहुतों को खोजा भी है…

  9. आदरणीय मीणा जी—मैंने मेरे वैयक्तिक जीवन में जो कुछ अच्छे संस्कार पाए हैं, महाराज ब्राह्मणों से ही पाए हैं। मेरे अनेक शिक्षक मुंबई में महाराष्ट्रीय़न ब्राह्मण वर्ग के थे। एक संस्कृतके शिक्षक कुछ छात्रोंके घर पर पहुंचकर आर्थिक परिस्थितिका अनुमान लगाकर उसे सहायता किया करते थे।छात्रको सहायता के लिए उनपर दाताओंका ऐसा विश्वास था, कि वे अकेले किसी और की अनुमति बिना ही, सहायता उठाकर दे देते थे।
    ब्राह्मण के विषय में मॅक्समूलर ने एक भाषण वेदांत(अमरिकामें) सोसायटी में दिया था, उसकी हस्त लिखित अंग्रेज़ी प्रत (जिस श्रोता ने वह सुन कर लिख रखी थी।) मुझे भेंट मिली है।
    आज यदि हमारे वेदोपनिषद कुछ मात्रामें जीवित है, तो उनको सही और निर्भ्रष्ट रखनेका श्रेय हमारे उच्च आदर्शो से प्रेरित, एक परम कर्तव्य की भावना से उसको जीवित रखनेका काम बिना किसी लोभ-मोह-लालच से करनेवाले ब्राह्मणोंको जाता है। हर समाज में कुछ सडे आम हो सकते हैं। इस लिए सारों को एक तौलसे तौलना सही नहीं।
    इसे भी एक प्रकारका जाति भेद ही कहा जाएगा।आप तो जाति भेदमें मानते नहीं है।
    और मेरा संघसे बहुत व्यापक अनुभव है। उस अनुभव के आधार पर गीता पर हाथ रखकर कहता हूं, कि संघमें किसी भी जाति-प्रांत-भाषा- इत्यादिके आधारपर भेद नहीं किया जाता।
    ऐसा भेद अन्य पार्टीयों में देखा है। आर एस एस मॆं कभी भी (१००% कभी भी ) नहीं है।
    भेदमें मैं ने मानना कभी सीखा नहीं। संघके संस्कार ही कूछ ऐसे हैं। जहां न कभी पूछा जाता, कि आपकी जाति क्या है? न उसके कारण कोई अंतर पडता है।

  10. प्रिय मीना जी
    आपको अपना इलाज करना चैहिये क्योंकि मई आपके सभी लेखो को ध्यान से पढता हूँ और यह समझ में अ गया है आपको १२ महीने ब्रम्हरफोबिया की बीमारी रहती है कभी लेख के विषयम में भी लिखो
    आपसे रेकुएस्ट है की अपनी लेखनी को सही दिशा प्रदान करे .

  11. आदरणीय मीना साहब क्या आप विस्तार से बताएँगे की ये ब्रहामंवाद क्या है??ओए संघ किस मायने में इस ब्रहामानावाद को बढ़ावा दे रहा है??
    हो सकता है ब्राहमण कुल में paida होने के कारन hame हमारी कमिय दिखाई न दे लेकिन क्या अप स्वीकार करेंगे की की कोई और भी आप की जाती के पीछे “वाद” शब्द लगा कर एंड शाद बोलता रहे ??उत्तर हुई नहीं |कोई भी फालतू की बाते स्वीकार नहीं करता है लेकिन तथ्यात्मक समालोचना को सभी स्वीकार करते है जिनमे तथ्य ओए तर्क दोनों हो न की कोई पूर्वाग्रह ,आपकी अनेक टिप्पणियों से एसा प्रतीत होता है की आपको संघ व् ब्राहमणों के प्रति कोई पूर्वाग्रह है ये बहुत संभव भी है जिन्हें हम नहीं जानते है उंके प्रति स्वाभाविक रूप से एक अज्ञात अच्छी या बुरी छवि बन जाती है जो आसानी से nahi हटती घी अनेको बार वो छवि वास्तविकता से पुरानत: विपरीत होती है अत अप से निवेदन है पहले स्वयं शाखा में आवे,संघ को देखे परखे फिर मर्जी आये जो करे ,इसी तरह ब्राहमणों के बारे में भी aapaki जो धरना है वो वास्तविकता से बहुत परे है लेकिन कोई बात नहीं जैसे जैसे सम्पर्क बढेगा वैसे वैसे अनेक आग्रह-पूर्वाग्रह दूर होंगे …………………………

  12. विषय क्या है ? विषय है क्या सत्तालोलुप कांग्रेस भारत को एक और विभाजन की ओर ले जाना चाहती है?”
    लेकिन मीणा जी ने इसमें भी ब्राह्मणवाद ले आये । वैसे मैं मान गया । मै कायल हूं मीणा जी का, कोई भी विषय हो, उसे खींच कर ब्राह्णमवाद तक ले ही आते हैं । और वह भी इतनी विनम्रता के साथ । शाबाश मीणा जी शाबाश ।

  13. आदरणीय श्री पुरोहित जी, प्रारंभ में, मैं आपको केवल तमोगुणी ही मानता था, जो आप मेरी नज़र में हैं, लेकिन मने जाना है कि आपको अनेकों विषयों का गहन ज्ञान है भी है.

    आदरणीय श्री पुरोहित जी मैं खुद आपसे सीखने का प्रयास करता हूँ. बस आपसे निवेदन है की तमोगुण के प्रभाव में आकर टिप्पणी नहीं करें और मेरे विनम्र आग्रह पर “ब्राहमण” एवं “ब्राहमणवाद” में अंतर करें और दूसरे मुझ जैसे लोगों को भी बोलने का अवसर ही नहीं दें, बल्कि हो सके तो मेरी सही बात का समर्थन करें आपने अनेकों बार समर्थन किया भी है. जिसके लिए मैं आपका आभारी हूँ.

    आदरणीय श्री पुरोहित जी सही बात ये है कि “ब्राहमणवाद” ने न मात्र दबे-कुचले लोगों का ही, बल्कि स्वयं आप अर्थात ब्राह्मणों का भी बहुत नुकसान किया है. ब्राहमण या कोई भी जाती या समाज कभी बुरा नहीं होता, बुरा होता है, उनका आचरण और खुद अनेक ब्राहमण भी मान चुके हैं कि “ब्राहमणवाद” अमानवीय है.

    आदरणीय श्री पुरोहित जी आप जैसे विद्वानों से निवेदन है कि इस देश और हिन्दू धर्म के उत्थान के लिए आप “ब्राहमण” को “ब्राहमणवाद” का पर्याय नहीं मानें और “ब्राहमणवाद” की कमियों को स्वीकार करके “ब्राहमणवाद” को नेस्तनाबूत करने में सहयोग करें.

    आदरणीय श्री पुरोहित जी हिन्दू, हिंदुत्व और हिंदुस्तान के सुरक्षित भविष्य के लिए जितना जल्दी संभव हो “ब्राहमणवाद” का समाप्त हो जाना अपरिहार्य है.

    आशा है कि “ब्राहमणवाद” के बारे में आप सभी ब्राहमण विद्वान भी निष्पक्ष द्रष्टि से चिंतन, मनन करेंगे.

    अंत में फिर से कहना जरूरी है कि ब्राहमणों के सम्मान के लिए “ब्राहमणवाद” का अंत जरूरी है.

    एक बात और मैं अपने आपको जज या बहुत बड़ा ज्ञानी नहीं मानता, जैसा कि आप लोग व्यंग पूर्ण तरीके से लिखते हैं. मैं वही थोडा बहुत लिखने या कहने का प्रयास करता हूँ जो मैंने मेरे विद्वान “ब्राहमण गुरुजनों” से सीखा है और सीखता रहता हूँ.
    शुभाकांक्षी
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  14. पहले एक जाती को galiya बको फिर प्रतिकिर्या हो तो विनम्र बनो.गजब “फिलोसोफो” है??भारत में अनेक लोगो को “ब्रहामंफोबिया” हो गया है जिसका कोई इलाज ही नहीं है उन्हें हर घटमा पर हर सफलता -असफलता पर “ब्रहामंवाद ही नजर अत है जिसका कोई क्या करे??तर्क वर्क भूल जाओ बस गलिय बकते रहो ,पता ही नहीं है की “ब्राहमण” कहते किसको लेकिन हर टिप्पणी में संघ को “ब्रहामंवादी” जरुर ठहराएंगे ,एक तरफ़ा न्यायाधीश जो ठहरे ओउर हा समालोचना करने का दुस्साहस न करान वरना “विद्वान महोदय नाराज हो जायेंगे जो भारत में एक मात्र ज्ञानी है बाकि सब तो “ब्राहमण वादी” है ………….

  15. श्री दिनेश गौड जी,

    मेरी टिप्पणी पर, प्रतिटिप्पणी करके, अपने बौद्धिक स्तर का परिचय कराने के लिये आभार। इससे पूर्व भी मैंने आपकी टिप्पणियो को अनेकों स्थानों पर पढा है। जिनमें क्या लिखा जाता है और क्या समझा या समझाया जाता है, यह इस स्थान पर लिखना प्रासंगिक नहीं है। परन्तु मैं आपको इतना जरूर बताना समीचीन समझता हूँ कि मैंने आज तक कभी भी और कहीं भी ब्राह्मणों की आलोचना नहीं की है। यदि कहीं की है तो कृपया प्रमाणित करें। हाँ यदि आप ब्राहण, ब्रह्मणवाद एवं हिन्दुत्व में अन्तर ही नहीं समझते तो मैं फिर आप दिनेश गौड ब्राह्मणदेव के समक्ष नतमस्तक हूँ।

    श्री दिनेश गौड जी आपकी टिप्पणियों को पढकर ज्ञात होता है कि आपकी नजर में “ब्राह्मणवाद” की आलोचना “ब्राह्मणों की आलोचना” है और ब्राह्मणों की आलोचना “हिन्दुत्व” की आलोचना है।

    श्री दिनेश गौड जी आपको शायद यह भी ज्ञात नहीं है कि “मैं दलित नहीं हूँ।”

    श्री दिनेश गौड जी आपको शायद आपके शिक्षकों एवं संस्कार देने वालों ने यह भी नहीं सिखाया कि सार्वजनिक मंचों पर संस्कारित और विशेषकर हिन्दू और ब्राह्मणदेव “किस प्रकार की भाषा का उपयोग करते हैं।”

    श्री दिनेश गौड जी कृपा करके इस मंच पर बताने का कष्ट करेंगे कि “भैंस की पूँछ फाडने” का मतलब क्या है?

    श्री दिनेशजी स्तरीय आलोचना एवं टिप्पणियों के लिये लम्बे “स्वाध्याय” एवं “गहन अनुभव” की जरूरत है।

    श्री दिनेश गौड जी मैं लिखने के लिये विवश हूँ कि अभी तक आप उस स्तर पर नहीं हो, जिस स्तर पर अपने आपको दिखाने का प्रयास कर रहे हो, परन्तु फिर भी आप स्वयं को उच्चस्तरीय विद्वान समझने की गलतफहमी पाल चुके हो। जितना जल्दी सम्भव हो इस भ्रान्ति से मुक्त होकर लिखने का प्रयास करो, जिससे आप अच्छे लेखन को जन्म दे सको। आपके अन्दर “लेखक बनने की सम्भावनाएँ विद्यमान हैं।”

    श्री दिनेश गौड जी इस देश में “कानून का शासन” है और आप सार्वजनिक रूप से कानून का उल्लंघन करके न मात्र “अराजकता एवं अपराध” को बढावा दे रहे हैं, बल्कि स्वयं को हिन्दुत्व का समर्थक बतलाकर “हिन्दुत्व की छवि” को भी क्षति पहँुचा रहे हैं।

    श्री दिनेश गौड जी अभी आपको बहुत कुछ सीखना जरूरी है।

    मैं आशा करता हूँ कि आप अपने आपको “संयमित” एवं “सुसंस्कृत” बनाने का प्रयास करेंगे और हिन्दुत्व को बदनाम करने का कुत्सित प्रयास नहीं करेंगे।

    शुभकामनाओं सहित।

  16. डॉ. मीणा जी के प्राथन कथन में व्यक्त इच्छा को मै पूरा कर देता हूँ…राहुल गांधी पूरी तरह से दोषी है…और उसका समर्थन करने वाले भी पूरी तरह से दोषी हैं…
    साथ ही मै मीणा जी से कहना चाहता हूँ कि आपकी सारी बातें बेसिर पैर की ही होती हैं…समस्या कुछ भी हो कारण एक ही है ब्राह्मणवाद…अब आप बताएं कि साम्प्रदायिक ब्राह्मण है या आप? मने तो कभी किसी मंच पर किसी को भी यह चिल्लाते नहीं सुना कि दलित बुरा है या दलितों ने देश को बर्बाद कर दिया है, किन्तु आप हमेशा ब्राह्मणवाद का गला फाड़ते नज़र आ जाते हैं…ब्राह्मणों ने कौनसी आपकी भैंस की पूंछ पाड़ दी है? नफरत का ज़हर ब्राह्मण नहीं आप फैला रहे हैं…सेक्युलरिज्म का राग अलापते हुए शायद यह भी भूल गए कि “हिन्दुइज्म इज सेक्युलरिज्म”…
    हिन्दू ने कभी किसी का बुरा नहीं किया, तिहास इस बात का साक्षी है…कौनसा ऐसा देश है जो यह कहता है कि अमुक भारत ने हम पर इतिहास में आक्रमण किया था…क्यों कि हिन्दू धर्म ब्राह्मणों की शिक्षा पर चलता था…और हमारे धर्म गुरुओं ने कभी नफरत करना नहीं सिखाया…यह तो आप जैसे कुछ व्यक्ति हैं जो अंग्रेजों कि कुटील चाल का शिकार हो गए, नहीं तो देश सही प्रकार से चलता रहता…
    खुले दिल से सोचने की ज़रुरत आपको है जो अपने ही पुरखों को गाली देने को अपना कर्तव्य समझता है…जाती वादी और साम्प्रदायिक सोच को पैदा करने वाले और पालने पोसने वाले आप जैसे लोग ही हैं…यदि ब्राह्मणवाद इतना ही बुरा होता तो इतिहास में जो अत्याचारी स्थान यूनानियों, तुर्कियों, मुगलों व अंग्रेजों को प्राप्त है, वह भारतीयों को प्राप्त होता…किन्तु भारतीयों को हमेशा से ही शांतिप्रिय व सबसे प्रेम करने वाला व्यक्ति समझा गया क्यों कि वह अपने धर्मगुरु ब्राह्मणों का सम्मान करता रहा है व उनके दिखाए मार्ग पर चलता रहा और कभी किसी राष्ट्र के अधिकारों का हनन नहीं किया…इस सबके बाद भी पता नहीं आपको ब्राह्मणों से इतनी तकलीफ क्यों है? मैंने तो कभी मन में भी यह नहीं सोचा कि मुझे दलितों से कोई तकलीफ है तो फिर दलितों को मुझसे क्या तकलीफ है? यह सवाल मै दलितों से ही पूछना चाहता हूँ…

  17. वस्तुतः राहुल बाबा अंग्रेजो की ^ फूट डालो और राज करो ^ की नीति को आगे बढा रहे है | विदेशी संस्थानों से उच्च शिक्षा प्राप्त प्रतीक्षारत प्रधानमंत्री से हिंदुत्व की समझ की आशा रखना गलत होगा | ये तो दिग्विजय सिंह के लैपटॉप जैसा व्यव्हार कर रहे है, जो कि खुद झूठ कि बुनियाद पर हवामहल बनाने के लिए मशहूर हो चुके है|
    मान भी लिया जाय कि ऐसी कोई सूचना है तो ठोस कदम उठाने के बजाय युवराज अमेरिकियो से सलाह क्यों कर रहे है, लेकिन इनसे किसी मजबूत कदम कि अपेक्षा रखना गलत होगा, आखिर संसद हमले के दोषी तो इनके खास मेहमान है |

  18. इस लेख को पढने के बाद लगता है कि लेखक को ये ज्ञात ही नहीं है कि वह कहना क्या चाहते हैं? राहुल को “नादान” और “नासमझ” कहकर क्यों छोड रहे हैं? या तो राहुल को पूरी तरह से दोषी ठहरायें या फिर राहुल की आलोचना करना बन्द करें? राहुल कोई दूध पीता बच्चा तो है नहीं, वह काँग्रेस का राष्ट्रीय महासचिव है। उम्र के हिसाब से परिपक्व है। जो कुछ भी कहता है, उसके लिये वह स्वयं जिम्मेदार है।

    मैं यहाँ पर कुछ कडवी, किन्तु हिन्दू समाज को ताकत प्रदान करने वाली जरूरी बातें लिखना चाहता हूँ, बशर्ते कि आप ईमानदारी एवं बिनापूर्वाग्रह के इनपर विचार करें।

    एक ओर तो ब्राह्मणों के नेतृत्व में संचालित हिन्दूवादी संगठन इस देश के कमजोर हिन्दू तबके तथा हिन्दू महिलाओं को दिनप्रतिदिन प्रताड़ित, अपमानित एवं शोषित करने के लिये जिम्मेदार हैं। संविधान के अनुसार उन्हें समान प्रतिनिधित्व प्रदान करने के लिये प्रदत्त “आरक्षण के मूल अधिकार” का खुलेआम विरोध करके हिन्दू एकता का सत्यानाश कर रहे हैं। आरक्षण को लागू लागू नहीं होने देने के लिये हर अनैतिक हथकण्डा अपनाते हैं। वहीं दूसरी ओर ये संगठन मुसलमानों के प्रति नफरत पैदा करके देश के साम्प्रदायिक माहौल को भी बिगाडने के लिये शतप्रतिशत जिम्मेदार हैं।

    जिस प्रकार से आम हिन्दू, हिन्दू आतंकियों के कारनामों का तनिक भी समर्थक नहीं है, उसी प्रकार से आज आम मुसलमान भी मुस्लिम आतंकियों का कतई भी समर्थक नहीं है, लेकिन वह हिन्दुत्व के नाम पर आतंक पैदा करने वाले हिन्दूवादी संगठनों के कारण सम्पूर्ण हिन्दुओं के प्रति नफरत करने लगे हैं। हिन्दुओं को सन्देह से देखने लगा है। छोटी-छोटी जगह पर हिन्दू-मुसलमान का जो सदियों का प्रेम था, वह हिन्दूवादी संगठनों ने राजनैतिक कारणों से तहस-नहस कर दिया है।

    यदि विशेषकर आरएसएस और विश्व हिन्दू परिषद इस देश के दलित, आदिवासी, पिछडों और महिलाओं को ब्राह्मणों के समान (समकक्ष) नागरिक (मानव) मानकर, उनके हकों को अपना प्रमुख ऐजेण्डा बना ले तो काँग्रेस सैकडों वर्षों तक सत्ता से दूर हो सकती है, लेकिन आरएसएस, भाजपा, शिवसेना नेतृत्व निम्न तबके को इस देश में कभी भी अपने (ब्राह्मणों के) समकक्ष नहीं देखना चाहते। इसके बजाय देश में मुस्लिमों के प्रति नफरत पैदा करने वाले किसी भी मौके को उछालने से नहीं चूकते, जिसका साफ-साफ अर्थ यही होता है कि ये हिन्दूवादी संगठन स्वयं ही हिन्दुओं के खिलाफ, मुस्लिम आतंकियों को आक्रमण करने को आमन्त्रित करते हैं।

    हिन्दूवादी संगठनों और भाजपा के लिये अयोध्या, जम्मू एवं कश्मीर तथा समान नागरिक संहिता ही सबसे बडे मुद्दे क्यों हैं? क्योंकि इन तीनों में मुस्लिम विरोध, मुस्लिमों के प्रति नफरत है। जबकि इस देश की 98 प्रतिशत हिन्दू आबादी के उत्थान के लिये जरूरी मुद्दों की ओर इन हिन्दूवादी संगठनों एवं भाजपा का कतई भी ध्यान नहीं है। जिसका लाभ उठाने के लिये राहुल गाँधी या अंतुले या दिग्गी अपनी राजनीति करते रहते हैं।

    आपने कहा है कि वैचारिक आधार पर सभ्य समाज की तरह लडें, लेकिन आप प्रवक्ता पर ही देख सकते हैं, कि हिन्दूवादी किस तरह से और कितनी सभ्यता से वैचारिक लडाई लडते हैं? सम्भवत: आप जिसे वैचारिक लडाई कहते हैं, वह केवल ब्राह्मणवादी तरीका है। जिसके बाहर के मान-सम्मान को कोई विचार महत्वूपर्ण नहीं है।

    सच में यदि इस देश के हिन्दुत्व को कोई क्षति पहुँचा रहा है, तो वो है ब्राह्मणवाद एवं मनुवादी विचारधारा को संरक्षण एवं बढावा दिया जाना। यदि आप लोग हिन्दुओं के बहुसंख्यक समुदाय को सत्ता एवं संसाधनों की भागीदारी से वंचित रखेंगे तो आप किस हिन्दुत्व की बात कर रहे हैं? राममन्दिर हिन्दुत्व नहीं है! गंगा, यमुना, कश्मीर हिन्दुत्व नहीं है! हिन्दुत्व है, इस देश के 98 प्रतिशत हिन्दुओं का मान-सम्मान जो ब्राह्मणवाद एवं मनुवादी विचारधारा ने तहस-नहस कर रखा है।

    आप इस पर खुले दिल से विचार करें, फिर आप पायेंगे कि इस देश की एवं हिन्दुत्व की ताकत को किस प्रकार कई गुनी बढाया जा सकता है! आप चाहें तो इस बारे में प्रवक्ता पर ही मेरा पूर्व प्रकाशित आलेख-“हिन्दू क्यों नहीं चाहते, हिन्दूवादी सरकार!” को पढकर इस विषय को विस्तार से जान एवं समझ सकते हैं।

    अन्यथा हर उपलब्ध मंच पर मैं हिन्दूवादी संगठनों की हिन्दुओं के साथ गैर-बराबरी, मुस्लिम आतंकियों को आमन्त्रित करने वाली विचारधारा एवं साम्प्रदायिक विद्वेष फैलाने वाली असलियत को उजागर एवं प्रदर्शित करते रहने को विवश हूँ। बेशक इसके लिये मुझे हिन्दूवादी कट्टरपंथियों की ओर से धमकियाँ मिल रही हैं, और चाहे इसमें मेरी जान ही क्यों न चली जाये!

  19. मै कांग्रेस तथा राहुल के बयान को गंभीरता से लेता हुं। हिन्दु युवाओ को उतेजित कर आतंकवादी बनाना कठिन काम नही है। चर्च नियंत्रित शक्तिया हिन्दुओ को हिन्दुओ से लडाने के लिए, तथा हिन्दुओ को मुसलमानो से लडाने के लिए हिन्दु आतंकवादी संगठन खडा करने की कोशिश कर रही थी। उनका यह प्रयास अन्तिम चरण मे है। इस काम को वह बेहद ढके छुपे तरीके से सम्पन्न कर रहे है ताकी कोई शक न हो। इस कार्य मे विकसित देशो की एजेंसियो की भी मदत ली जा रही है।

    इन सारी बातो की पुरी सुचना कांग्रेस नेतृत्व तथा राहुल के पास है। वस्तुतः वह स्वयम चाहते है की देश मे हिन्दु आतंकवाद फैले ताकी उन्हे स्वच्छ तथा शांतीप्रिय हिदु शक्तियो के विरुद्ध कारवाही करने का नैतिक बल उन्हे प्राप्त हो सके।

    इस देश की सत्ता पर फिर से फिरंगीयो का कब्जा हो गया है। वह बांटो और राज करो की युक्ति से काम कर रहे है। वह देश के विरुद्ध काम कर रहे है। हमे युक्ति पुर्वक उनका सामना करना होगा। अगर हम युक्ति पुर्वक सोच सकें तो उनकी योजना धरी की धरी रह जाएगी।

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