क्या यही था अन्ना के आंदोलन की सफलता का सच?

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anna_ramdevतनवीर जाफ़री
नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर 5अप्रैल से 9अप्रैल 2011 के मध्य सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे द्वारा जनलोकपाल क़ानून लाए जाने के समर्थन में किया गया अनशन तथा इसी मुहिम के समर्थन में पूरे देश में अन्ना हज़ारे को मिला भारी जनसमर्थन निश्चित रूप से स्वतंत्र भारत के इतिहास के सबसे बड़े आंदोलन के रूप में देखा गया। नई दिल्ली के इस आंदोलन की तुलना मिस्र के क़ाहिरा में तहरीर चौक पर राष्ट्रपति हुसन-ए-मुबारक के विरुद्ध पच्चीस जनवरी से लेकर ग्यारह फरवरी 2011 तक चले सरकार विरोधी उस प्रदर्शन से की जाने लगी थी जिसने राष्ट्रपति हुसन-ए-मुबारक का तख्ता पलट कर रख दिया था। अन्ना हज़ारे के आंदोलन की भारी सफलता को लेकर हालांकि कांग्रेस पार्टी के कई प्रमुख नेताओं द्वारा उसी समय यह कहा जाने लगा था कि अन्ना हज़ारे के आंदोलन को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का पूरा समर्थन हासिल है। यहां तक कि कुछ अति उत्साही कांग्रेस नेता अन्ना हज़ारे को भी संघ का एजेंट बताने से गुरेज़ नहीं कर रहे थे। जबकि अन्ना हज़ारे स्वयं को एक गांधीवादी विचारधारा रखने वाला सामाजिक कार्यकर्ता मानते रहे हैं। आज इस आंदोलन के लगभग चार वर्ष पूरे होने के दौरान भारतीय राजनीति के बदलते परिदृश्य में एक बार यह सोचना ज़रूरी हो गया है कि अन्ना हज़ारे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ अथवा भाजपा के एजेंट थे अथवा नहीं। क्या उनके आंदोलन को सफल बनाने में तथा जनलोकपाल क़ानून संबंधी आंदोलन की आड़ में संघ तथा भाजपा द्वारा तत्कालीन यूपीए सरकार विशेषकर कांग्रेस को कमज़ोर करने के लिए ही इतना बड़ा षड्यंत्र रचा गया?
उस समय अन्ना हज़ारे के साथ उनके प्रमुख सहयोगियों के रूप में जो खास चेहरे मंच पर नज़र आया करते थे अथवा जो उनके समर्थन में खड़े दिखाई देते थे उनमें बाबा रामदेव,किरण बेदी,जनरल विक्रम सिंह तथा शाजि़या इल्मी जैसे नाम प्रमुख हैं। अब लगभग यह सभी लोग भारतीय जनता पार्टी द्वारा उपकृत किए जा चुके हैं। जबकि उस दौरान अन्ना हज़ारे बार-बार यह कहा करते थे कि उन्हें अपने आंदोलन के मकसद को हासिल करने से मतलब है न कि किसी पक्ष अथवा पार्टी का समर्थन या विरोध करने से। अरविंद केजरीवाल जैसे अपने खास सहयोगी से भी उन्होंने इसीलिए नाता तोड़ लिया था कि केजरीवाल ने राजनैतिक दल का गठन क्यों किया? यदि हम पीछे मुडक़र देखें तो यह दिखाई देता है कि किरण बेदी भी अरविंद केजरीवाल द्वारा किसी राजनैतिक पार्टी का गठन किए जाने के विरुद्ध थीं और वह यही चाहती थीं कि किसी नए दल का गठन करने के बजाए भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दिया जाए। परंतु अरविंद केजरीवाल ने किरण बेदी का यह सुझाव मानने के बजाए कांग्रेस व भाजपा दोनों ही दलों को एक ही नज़र से देखते हुए एक तीसरे नए विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी का गठन कर डाला। हालांकि केजरीवाल द्वारा आम आदमी पार्टी बनाए जाने पर अन्ना हज़ारे की सहमति नहीं थी परंतु इसके बावजूद केजरीवाल के नेक व ईमानदाराना इरादों का सम्मान करते हुए अन्ना हज़ारे ने उन्हें आशीर्वाद देने में तथा उनके राजनैतिक मकसद की सफलता की कामना करने में कोई हिचकिचाहट महसूस नहीं की। सवाल यह है कि वही अन्ना हज़ारे किरण बेदी से फोन पर बात करने तक के लिए आख़िर क्यों तैयार नहीं हुए? गौरतलब है कि किरण बेदी ने गत् सोलह जनवरी को भाजपा की सदस्यता ग्रहण करने के बाद अन्ना हज़ारे को उनके गांव रालेगण सिद्धि में फोन कर उनसे बात करनी चाही थी। परंतु अन्ना हज़ारे ने बात करना तो दूर अपने सहयोगी से किरण बेदी को यह संदेश कहला दिया कि भविष्य में वे उन्हें कोई फोन नहीं करेंगी। इसके जवाब में मायूस होकर किरण बेदी को यह कहना पड़ा कि वे दिल्ली चुनाव के बाद अन्ना हज़ारे से जाकर मिलेंगी तथा उनका आशीर्वाद लेंगी।
यहां एक बात यह भी क़ाबिलेगौर है कि अन्ना हज़ारे के आंदोलन के समय उनके साथ मंच पर केवल यही नेता नहीं दिखाई दे रहे थे जिनमें से आज कई भाजपा में शामिल हो चुके हैं। बल्कि शरद यादव,डी राजा,एबी वर्धन,वृंदा कारत तथा स्वामी अग्रिवेश और अरूण जेटली जैसे भी कई नेता अन्ना हज़ारे आंदोलन के समर्थन में मंच पर नज़र आए थे।फ़िल्म नगरी के भी कई प्रमुख लोग अन्ना हज़ारे को समर्थन देते दिखाई दिए। इनमें एक नाम अनुपम खेर का भी था जिनकी धर्मपत्नी किरण खेर को पिछले लोकसभा चुनाव में चंडीगढ़ से भाजपा ने टिकट देकर उन्हें उपकृत किया। स्वामी अग्रिवेश से भी अन्ना हज़ारे ने आंदोलन के दौरान ही दूरी बना ली थी। उनपर भी यह आरोप था कि वे कांग्रेस के एजेंटके रूप में जनलोकपाल आंदोलन में अन्ना हज़ारे के करीबी लोागों में शामिल हैं। स्वामी अग्निवेश का एक वीडियो भी उन दिनों वायरल हुआ था जिसमें उन्हें कथित रूप से तत्कालीन केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल से बात करते दिखाया गया था। आज देश का राजनैतिक परिदृश्य काफी बदल चुका है। कांग्रेस पार्टी को केंद्र की सत्ता से उखाड़ फेंकने में निश्चित रूप से अन्ना हज़ारे के आंदोलन के समय बने केंद्र सरकार व कांग्रेस विरोधी वातावरण का बहुत बड़ा योगदान रहा है। तो क्या आज कांग्रेस के उन नेताओं की बात सही साबित हुई है जो जनलोकपाल आंदोलन को संघ तथा भाजपा द्वारा प्रायोजित आंदोलन बता रहे थे? क्या जनरल विक्रम सिंह का भाजपा में शामिल होकर लोकसभा का सदस्य चुना जाना और यहां तक कि पिछले दिनों उनके विरुद्ध चुनाव लड़ चुकी अन्ना हज़ारे की खास सहयोगी तथा प्रवक्ता रही शाज़िया इल्मी का आम आदमी पार्टी से होते हुए भाजपा में प्रवेश करना,अन्ना हज़ारे की दूसरी मुख्य सेनापति नज़र आ रही किरण बेदी का भाजपा में शामिल होना तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनना यह प्रमाणित नहीं करता कि जनलोकपाल आंदोलन के समय के अन्ना समर्थक यह चेहरे एक बड़ी राजनैतिक साजि़श के तहत अन्ना हज़ारे के साथ लगाए गए थे? इसी प्रकार बाबा रामदेव ने अन्ना हज़ारे के साथ मिलकर भी तथा अपने अकेले दम पर भी जनलोकपाल व विदेशों में जमा काला धन वापस लाने के मुद्दे पर एक राष्ट्रव्यापी आंदोलन कांग्रेस सरकार के विरुद्ध चलाया? पिछले दिनों एक बार फिर बाबा रामदेव के हवाले से यह समाचार सुनाई दिया कि यदि भाजपा सरकार काला धन वापस नहीं लाती तो वे पुन: आंदोलन की राह अिख्तयार करेंगे। परंतु ताज़ा समाचार तो यही है कि उन्हें हरियाणा सरकार का ब्रांड अंबेसडर बनाया जा चुका है। राज्य में योग की शिक्षा को अनिवार्य बनाया जा रहा है। इतना हीनहीं बल्कि महात्मा गांधी की खादी भी उनके नियंत्रण में जाने की खबरें सुनाई दे रही हैं। राजनीति का आिखर यह कैसा अंदाज़ है?
अब यदि हम पीछे मुडक़र एक बार फिर अन्ना हज़ारे के राष्ट्रव्यापी आंदोलन पर नज़र डालें तो हम यही देखेंगे कि नि:संदेह अन्ना हज़ारे का राष्ट्रीय स्तर पर कोई भी संगठनात्मक ढांचा नहीं था। और यदि स्थानीय स्तर पर प्रत्येक जि़ले,शहर व कस्बे में उनके समर्थन में आंदोलन पर बैठे कार्यकर्ताओं पर नज़र डालें तो हमें अधिकांश अन्ना समर्थक राष्ट्रीय राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भाजपा से जुड़े कार्यकर्ता ही नज़र आएंगे। अब सवाल यह है कि यदि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व उसके राजनैतिक संगठन भारतीय जनता पार्टी को अन्ना हज़ारे के आंदोलन में जनलोकपाल क़ानून बनाए जाने के समर्थन में इस प्रकार खुले आम उतरना ही था तो सत्ता में आने के बाद आज संघ व भाजपा की प्राथमिकताओं में वह जनलोकपाल कानून क्योंकर नहीं है? और यदि भाजपा जनलोकपाल क़ानून बनाने के लिए गंभीर नहीं है तो क्या इसका सीधा सा अर्थ यह नहीं कि उस समय अन्ना हज़ारे को भाजपा व संघ द्वारा दिया गया समर्थन केवल कांगेस व यूपीए सरकार को बदनाम,असिथर व कमज़ोर करने की गरज़ से था? और दूसरे यह कि क्या आज अन्ना हज़ारे के उपरोक्त प्रमुख सहयोगियों को भाजपा द्वारा उपकृत किए जाने से यह साबित नहीं हो रहा कि उस समय इस आंदोलन पर कांग्रेस के नेताओं द्वारा उठाई जाने वाली उंगली सही थी? क्या इस पूरे घटनाक्रम से यह भी साबित नहीं होता कि भले ही अन्ना हज़ारे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व भाजपा के एजेंट न रहे हों परंतु उन्हें ऐसे एजेंटों द्वारा घेर ज़रूर लिया गया था।
हो न हो अन्ना हज़ारे जैसे शांत स्वभाव के गांधीवादी समाजसेवी द्वारा किरण बेदी से बात करने तक के लिए राज़ी न होने के पीछे भी कहीं न कहीं उनके भीतर छुपा यह दर्द झलकता हुआ ज़रूर दिखाई दे रहा है कि कल उनपर संघ व भाजपा का एजेंट होने का जो इल्ज़ाम लगाया जा रहा था किरण बेदी जैसे उनके पूर्व सहयोगियों ने भाजपा की सदस्यता ग्रहण कर उस आरोप को सही साबित कर दिया है।

1 COMMENT

  1. tnavirji

    aap ko kongrsfobiya ho gaya hai!!!!!!!!!

    aap ne jo bate batai hai isase me galat nahi kahunga lekin sab bate aprastut hai kyonki vo din jo the vo kongres ki paresani se trast deshvasi kuchh or chahte the or usi doran anna ji ka nadolan hua or log jut gaye—lekin usase rss ya bjp ko koi fayda hota hua nahi dihkai diya—or bat rahi annaji ko rss or bjp ka agent kehne vale kongresiyoki to un kongresi yo ko jab laga ki sonoa ki naiya dub rahi hai to unhone annaji jaise lokneta ko kisi ka agent kehkew minority ko pani or khinchne ka balis prayas kiya tha or kuchh nahi—-

    aap jaise log aaj bhi ye mante hai ki rss or bjp ka virodh karne se kongres majbut hogi to bhul jayiye vo din gaye jab aap jaise log aisa mudda ucchhalkar votero ko gumrah karte the —-

    aaj bhartiy jag gaya hai or vo samaj sakta hai ki usake liye kya jaruri hai is liye iais bate karna chhodke desh vikas ki bate kare ye fir use bandage kare–magar aisi bate karke vakt jaya na kare???/

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