ऐसा क्या रिकार्ड कर लिया था शमून काजमी ने!

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तेजवानी गिरधर

अन्ना से उसके कथित फाउंडर मेंबर मुफ्ती शमून काजमी की छुट्टी के साथ एक यक्ष प्रश्न उठ खड़ा हुआ है कि आखिर टीम की बैठक में ऐसा क्या अति गोपनीय हो रहा था, जिसे रिकार्ड करने की वजह से काजमी को बाहर होना पड़ा? मेरे एक सोशल नेटवर्किंग मित्र ऐतेजाद अहमद खान ने यह सवाल हाल ही फेसबुक पर डाला है, हालांकि उसका जवाब किसी ने नहीं दिया है।

हालांकि अभी यह खुलासा नहीं हुआ है कि काजमी ने जो रिकार्डिंग की अथवा गलती से हो गई, उसका मकसद मात्र याददाश्त के लिए रिकार्ड करना था अथवा सोची-समझी साजिश थी। टीम अन्ना बार-बार ये तो कहती रही कि काजमी जासूसी के लिए रिकार्डिंग कर रहे थे, मगर यह स्पष्ट नहीं किया कि पूरा माजरा क्या है? वे यह रिकार्डिंग करने के बाद उसे किसे सौंपने वाले थे? या फिर टीम अन्ना को यह संदेह मात्र था कि उन्होंने जो रिकार्डिंग की, उसका उपयोग वे उसे लीक करने के लिए करेंगे? या फिर टीम अन्ना का यह पक्का नियम है कि उसकी बैठकों की रिकार्डिंग किसी भी सूरत में नहीं होगी? और क्या टीम अन्ना इतनी फासिस्ट है कि छोटी सी गलती की सजा भी तुरंत दी जाती है?

अव्वल तो सूचना के अधिकार की सबसे बड़ी पैरोकार और सरकार को पूरी तरह से पारदर्शी बनाने को आमादा टीम अन्ना उस बैठक में ऐसा क्या कर रही थी, जो कि अति गोपनीय था, कि एक फाउंडर मेंबर की छुट्टी जैसी गंभीर नौबत आ गई। क्या पारदर्शिता का आदर्श उस पर लागू नहीं होता। क्या यह वही टीम नहीं है, जो सरकार से पहले दौर की बातचीत की वीडियो रिकार्डिंग करने के लिए हल्ला मचाए हुई थी और खुद की बैठकों को इतना गोपनीय रखती है? उसकी यह गोपनीयता कितनी गंभीर है कि इसका अंदाजा इसी बात से लगता है कि टीवी चैनल वाले मनीष सिसोदिया और शाजिया इल्मी से रिकार्डिंग दिखाने को कहते रहे, मगर उन्होंने रिकार्डिंग नहीं दिखाई। इसके दो ही मतलब हो सकते हैं। एक तो यह कि रिकार्डिंग में कुछ खास नहीं था, मगर चूंकि काजमी को निकालना था, इस कारण यह बहाना लिया गया। इसकी संभावना अधिक इस कारण हो सकती है क्योंकि इधर रिकार्डिंग की और उधर टीम अन्ना के अन्य सदस्यों ने तुरत-फुरत में उन्हें बाहर निकालने जैसा कड़ा निर्णय भी कर लिया। कहीं ऐसा तो नहीं काजमी की पहले से रेकी की जाती रही या फिर मतभेद पहले से चलते रहे और मौका मिलते ही उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। काजमी ने बाहर आ कर जिस प्रकार आरोप लगाए हैं, उनसे तो यही लगता है कि विवाद पहले से चल रहा था व रिकार्डिंग वाली तात्कालिक घटना उनको निकाले जाने की बड़ी वजह नहीं। इसी से जुड़ा सवाल ये है कि काजमी ने क्या चंद लम्हों में ही गंभीर आरोप गढ़ लिए? यदि यह मान भी लिया जाए कि उन्होंने सफाई देने के चक्कर में तुरंत आरोप बना लिए, मगर इससे यह तो पुष्ट होता ही है कि उनके आरोपों से मिलता जुलता भीतर कुछ न कुछ होता रहता है। एक सवाल ये भी कि जो भी टीम के खिलाफ बोलता है, वह सबसे ज्यादा हमला अरविंद केजरीवाल पर ही क्यों करता है? क्या वाकई टीम अन्ना की बैठकों में खुद अन्ना तो मूकदर्शक की भांति बैठे रहते हैं और तानाशाही केजरीवाल की चलती है?

जहां तक रिकार्डिंग को जाहिर न करने का सवाल है, दूसरा मतलब ये है कि जरूर अंदर ऐसा कुछ हुआ, जिसे कि सार्वजनिक करना टीम अन्ना के लिए कोई बड़ी मुसीबत पैदा करने वाला था। यदि काजमी सरकार की ओर से जासूसी कर रहे थे तो वे मुख जुबानी भी सूचनाएं लीक कर सकते थे। फाउंडर मेंबर होने के नाते उनके पास कुछ रिकार्ड भी होगा, जिसे कि लीक कर सकते थे। रिकार्डिंग में ऐसा क्या था, जो कि बेहद महत्वपूर्ण था?

इस पूरे प्रकरण में सर्वाधिक रहस्यपूर्ण रही अन्ना की चुप्पी। उन्होंने कुछ भी साफ साफ नहीं कहा। उनके सदस्य ही आगे आ कर बढ़-चढ़ कर बोलते रहे। शाजिया इल्मी तो अपनी फितरत के मुताबिक अपने से वरिष्ठ काजमी से बदतमीजी पर उतारु हो गईं। यदि अन्ना आम तौर पर मौनी बाबा रहते हों तो यह समझ में आता भी, मगर वे तो खुल कर बोलते ही रहते है। कई बार तो क्रीज से बाहर निकल पर चौके-छक्के जड़ देते हैं। कृषि मंत्री शरद पवार को थप्पड़ मारे जाने का ही मामला ले लीजिए। इतना बेहूदा बोले कि गले आ गया। ऊपर से नया गांधीवाद रचते हुए लंबी चौड़ी तकरीर और दे दी। ताजा प्रकरण में उनकी चुप्पी इस बात के भी संकेत देती है कि वे अपनी टीम में चल रही हलचलों से बेहद दुखी हैं। इस कारण काजमी के निकाले जाने पर कुछ बोल नहीं पाए। इस बात की ताकीद काजमी के बयान से भी होती है।

कुल मिला कर टीम अन्ना की जिस बाहरी पाकीजगी के कारण आम जनता ने सिर आंखों पर बैठा लिया, अपनी अंदरुनी नापाक हरकतों की वजह से विवादित होती जा रही है।

आखिर में मेरे मित्र ऐतेजाद का वह शेर, जो उन्होंने अपनी छोटी मगर सारगर्भित टिप्पणी के साथ लिखा है-

जो चुप रहेगी जुबान-ऐ-खंजर

लहू पुकारेगा का आस्तीन का

8 COMMENTS

  1. वैसे तो मैंने अपने को जानवर कहे जाने पर इस व्यर्थ में बिखरते वाद विवाद को विश्राम दे दिया था लेकिन अब आपकी पैनी नजर ने मुझे पापी साधु बना दिया है| सत्ताधारी सरकार की सेवा में लगे पत्रकार स्वयं अपनी पहचान खो किसी और को क्या खाक पहचाने गे!

    • आपकी बडी मेहरबानी, आपको पूरा अधिकार है कि आप मुझे सरकारी सेवा में लगा पत्रकार ही मानें

  2. महाशय जी मैं तो भारत में सर्व-व्यापक भेद भाव मिटा इंसान (इंसानियत) का चोगा पहने हूँ और आप हैं कि क्रोध वश मुझमें जानवर ढूंढते हैं| वैसे मुझमें और लाखों करोड़ों भारतवासियों में है भी क्या अंतर जिन्हें रात दिन हांकते आप जैसे पत्रकार निर्मम सच्चाई से दूर रखने के धूर्त प्रयास में लगे हैं|

    • मेरी नजर में अपनी पहचान छुपाने वाला पापी होता है, फिर वह चाहे किना बडा साधु ही क्यों न हो

  3. समकालीन भारतीय संदर्भ में मुझे “पत्रकार” शब्द घिनोना प्रतीत होने लगा है| स्वयं समाज में रहते उसी समाज को दीमक की भांति खोखला करते तथाकथित पत्रकार अवश्य एक दिन दीमक के टीले पर बैठे दिखाई देंगे| आने वाले समय में उनकी संताने यदि देश के बाहर सभ्य परदेश जा नहीं बसतीं तो वे उन्हें जन्म जन्मांतर तक कोसती रहेंगी| स्वतंत्रता के पश्चात से ही मैंने भारतीय जीवन के प्रत्येक पहलु में मध्यमता और अयोग्यता को पनपते देखा है| लेकिन आज डिजिटल युग में भारतीय पत्रकारिता में मध्यमता और अयोग्यता का भयानक और विनाशक रूप प्रवक्ता.कॉम के इन पन्नों पर कीचड़ उछालते लेख, “ऐसा क्या रिकार्ड कर लिया था समुन काजमी ने!” में प्रत्यक्ष झलकता है|

    उलटे बांस बरेली को चरितार्थ करते लेखक पाठकों से पचासों प्रश्न पूछ रहे हैं| इस पत्रकार को कोई कहे कि भाई उठो; घर से बाहर दो कदम चलो, पनवाड़ी की दुकान पर ही मालुम करो; किसी न किसी ने टीम अन्ना द्वारा दिया कोई वक्तव्य अवश्य पढ़ा होगा|

    • इंसान जी महाराज, असली खतरा आप जैसे फर्जी नाम वालों से है, जो छुप कर वार कर रहे हैं, आप इंसान कम जानवर ज्यादा लगते हैं, वैसे एक बात है आपकी भाषा शैली काफी अच्छी है, उससे लगता है कि हो तो अच्छे पढे लिखे, मगर चूंकि अन्ना का चश्मा चढा हुआ है, इस कारण खुद को महान और अन्ना के प्रतिकूल कुछ भी कहने वालों को हेय समझते है, आपको नमन

  4. महोदय आपकी काफी सारी बातों से सहमत होते हुए भी यह कटाक्षपूर्ण शीर्षक स्वीकारना कठिन है कि ऐसा क्या रिकार्ड कर लिया था । बात यह है कि आप अपने घर में सामान्य सी भी तैयारी चाहे विवाह की, कागज पत्र संभालने की. यात्रा की- कर रहे हों और आपही का हमराज भाई उसे आम करने पर तुल जाए तो आप क्या उसे माफ कर देंगे , नहीं चाहे आप कोई रहस्य नहीं प्लाट कर रहे थे या कुछ आपत्तिजनक नहीं था किंतु प्रश्न पारिवारिक निजता का है, संगठन की मर्यादा के विशेषाधिकार का है जिसके उल्लघंन के वे दोषी है और उनके साथ सही किया गया । उन्हें निकाले जाने के बाद ही मुस्लिम याद आए । स्वामी अग्निवेश जी भी निकाले गए थे उन्होंने तो हिंदू राग नहीं अलापा ।
    सादर

  5. पूल खोल चोकी है आणि टीम की. अब जनता को बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है. आन टीम अब राजनीती कर रही है. कोई पार्टी भी बन ली जैगी

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