खो गया क्या वत्स मेरा !

 

खो गया क्या वत्स मेरा, विधि के व्यवधान में;
आत्म के उत्थान में, या ध्यान के अभियान में !

उत्तरों की चाह में, प्रश्नों की या बौछार में;
अनुभवों की अाग में, या भाव के व्यवहार में !
सहजता के शोध में, या अहंकारी मेघ में;
व्याप्तता के बोध में, या शून्य के आरोह में !

अचेतन की चेतना को, दे रहा विस्तार क्या;
विश्व में विश्वास भर कर, बह रहा क्या उत्स में !
अलौकिक अभिज्योत्सना क्या, ले रहा उद्गार में;
माधुरी ‘मधु’ उर बिखेरे, सुर दिया क्या जगत में !

गोपाल बघेल ‘मधु’

 

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