क्या हम आजाद भारत गणराज्य में हैं!

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-लिमटी खरे

भारत गणराज्य के संसदीय इतिहास में पहली मर्तबा एसा हुआ होगा कि किसी कबीना मंत्री ने देश के माननीय कहे जाने वाले संसद सदस्यों के अधिकार क्षेत्र को ही चुनौति दे डाली हो। राष्ट्रमण्डल खेलों में हो रहे जबर्दस्त भ्रष्टाचार के बारे में सवाल जवाब और हंगामों के दौर के बीच भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल ने कहा कि अगर किसी को धांधली की जानकारी चाहिए तो उसे सूचना के अधिकार के तहत आवेदन करना चाहिए, उन्हें हर बात का जवाब मिल जाएगा।

कामन वेल्थ गेम्स में आयोजन समिति से जुड़े लोगों की वेल्थ के मामले में हो रही चर्चा के दौरान जब जवाब देने के लिए भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल खडे हुए तब उन्होंने जो कहा वह भारत के संसदीय इतिहास में आज तक किसी ने भी नहीं कहा। भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि विपक्षी दलों के सदस्यों को अगर खेलों के आयोजन में हो रही धांधली की आशंका है तो वे सूचना के अधिकार के कानून के तहत प्रश्न पूछें, उन्हें सारे जवाब मिल जाएंगे।

सांसद आवक थे क्योंकि सदन में पहली बार किसी मंत्री ने यह कहने की जुर्रत की है कि जनता के नुमाईंदों वह भी सबसे बडी पंचायत के सदस्यों के सवालों के जवाब सदन से नहीं वरन् किसी दूसरे तंत्र के माध्यम से मिलेंगे। सदन में जब राजग के पीएम इन वेटिंग लाल कृष्ण आड़वाणी जैसे तजुर्बेकार और सीनियर लीडरान मौजूद हों तब भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल द्वारा इस तरह का बयान देना अपने आप में खुद ही अचंभे से कम नहीं है। गिल ने सीधे सीधे सांसदों के प्रश्न पूछने के अधिकार क्षेत्र को ही चुनौती दे डाली है।

मनोहर सिंह गिल ने जिस तरह से देश की सबसे बड़ी पंचायत में सांसदों के अधिकार को चुनौति दी है, उसे किसी भी कीमत पर न तो स्वीकर ही किया जा सकता है, और न ही उस पर बहस ही की जाने की आवश्यक्ता है। मनोहर सिंह गिल का वक्तव्य एक तरह से सदन की अवमानना की श्रेणी में आता है। यह जनादेश प्राप्त भारत गणराज्य के नीति निर्धारकों के संवैधानिक हनन की श्रेणी में आता है।

मंत्री चाहे शशि थरूर रहे हों या मनोहर सिंह गिल, सभी के बड़बोलेपन से जाहिर हो चुका है कि कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के मंत्रियों को यह जानकारी भी नहीं है कि सांसदों के अधिकार और कर्तव्य क्या हैं? केंद्र या राज्य सरकार में मंत्री बनाने के लिए क्या कोई पैमाना निर्धारित है? या जिसे चाहे उसे लाल बत्ती सौंपकर देश और प्रदेश की जनता का भाग्य उनके हाथ में दे दिया जाता है? यह निश्चित तौर पर निंदनीय माना जाएगा।

वैसे देखा जाए तो राजनैतिक बियावान में चहलकदमी करने वाले भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल मूलतः नौकरशाह रहे हैं। गिल के इस कथन को उनकी नौकरशाह वाली मानसिकता से जोड़कर भी देखा जाना चाहिए। मनोहर सिंह गिल जब बोल रहे थे तो उनका अंदाज नेता का कम अफसराना ज्यादा प्रतीत हो रहा था। वे भूल गए कि वे भी उसी व्यवस्था का अंग हैं, जो कानून को बनाती है। कानून बनाने वालों द्वारा आम तौर पर जब तब अफसरों की खाल बचाने का कुत्सित प्रयास किया जाता है, संभवतः गिल ने भी यही सोचा होगा कि कानून बनाने वाले उनके विभाग पर लगने वाले अरबों खरबों के भ्रष्टाचार के मामलों को दबा लेंगे। अमूमन लोकतंत्र में सरकार के हर मंत्री के किसी भी निर्णय को या सरकार के किसी भी निर्णय को एक दूसरे का पूरक ही माना जाता है। जानकारों का कहना है कि संवैधानिक तौर पर संसद के उपर कुछ भी नहीं होता है, क्योंकि कानून बनाने का अधिकार भी संसद को ही प्राप्त है।

खेल मंत्री का यह तर्क भी गले नहीं उतरता है जिसमें उन्होंने कहा कि अगर किसी तरह की जांच की जरूरत हो तो जांच कराई जाएगी, किन्तु 15 अक्टूबर के बाद। उधर सुरेश कलमाडी कहते हैं कि वे त्यागपत्र देने को तैयार हैं, बशर्ते सोनिया गांधी उनसे कहें। और सोनिया गांधी हैं कि देशवासियों के गाढे पसीने की कमाई को यूं ही आग लगते देख रही हैं। कांग्रेस की राजमाता श्रीमति सोनिया गांधी अगर इस मामले में मौन हैं तो भ्रष्टाचार के प्रति यह उनकी मौन सहमति क्यों न मान लिया जाए।

कामन वेल्थ गेम्स में दिल्ली में भ्रष्टाचार की एक छोटी सी बानगी जहां चाहे वहां देखने को मिल सकती है। सड़कों किनारे फुटपाथ पर लगे चेकर टाईल्स को अभी कुछ माह पहले ही लगाया गया था, इन्हें निकालकर दोबारा लगाया जा रहा है। ये चेकर टाईल्स पुराने अलग ही प्रतीत हो रहे हैं। इन्हें लगाने का काम भी बला टालू और बेतरतीब तरीके से ही किया जा रहा है। दो माह बाद जब इसकी जांच होगी तब पाया जाएगा कि दो महीनों में ये रखरखाव के अभाव में टूट फूट गए हैं। एक स्थान के पत्थर निकाल कर दूसरे स्थान पर नए बातकर लगाए जा रहे हैं। इस तरह ठेकेदार और सरकार का तंत्र मिलकर भारत गणराज्य की जनता का टेक्स के रूप में दिया पैसा बहाया जा रहा है।

केंद्र सरकार को इस बात का जवाब जनता को देना ही होगा कि जब धर्मशाला में सांसद द्वारा महज 45 करोड़ रूपयों में स्टेडियम का निर्माण करवा दिया जाता है, तब दिल्ली के बने बनाए नेहरू स्टेडियम के पुर्नुद्धार में 900 करोड़ रूपए कैसे लग जाते हैं। यक्ष प्रश्न आज भी यही खड़ा हुआ है कि जब राष्ट्रमण्डल खेलों की मेजबानी भारत को 2003 में मिल गई थी, और इसके बाद मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यूपीए सरकार 2004 से 2009 तक राज करती रही तब खेलों के प्रति सरकार 2008 में देर सबेर कैसे जागी? वहीं दूसरी ओर दिल्ली में भी 13 सालों से कांग्रेस का ही शासन है।

उधर राष्ट्रमण्डल खेल महसंघ (सीजीएफ) के मुख्य कार्यकारी अधिकारी माइक हूपर भी कामन वेल्थ गेम्स की मेजबानी के लिए दिल्ली के तैयार न होने से चिंतित नजर आ रहे हैं। उनका तर्क विचारणीय है कि कामन वेल्थ गेम्स पर लग रहे भ्रष्टाचार के आरोप उन्हें भी भयाक्रांत कर रहे हैं। हूपर की चिंता बेमानी नहीं है कि गेम्स 03 अक्टूबर से आरंभ होने को हैं, अगस्त का आधा माह बीत चुका है, अब जबकि काउंट डाउन आरंभ हो चुका है, तब भी तैयारियां अधूरी हैं।

यह तो तय हो चुका है कि कामन वेल्थ गेम्स के आयोजन की तैयारियों में भारत गणराज्य की रियाया का खून पसीने का पैसा तबियत से उडाया गया है। देश ही नहीं विदेशों में भी इस महा भ्रष्टाचार के खेल पर छींटाकशी की जा रही है। भारत सरकार है कि शतुरमुर्ग के मानिंद रेत में सर गड़ाकर अपने आप को इससे बरी महसूस कर रही है। सवाल यह है कि आखिर वैश्विक छवि बनाने के लिए चिंतित भारत सरकार इस तरह के भ्रष्टाचार को करवाकर कौन सा वैश्विक चेहरा बनाने जा रही है भारत गणराज्य का।

समूचा देश मंहगाई की आग में झुलस रहा है। मंहगाई क्यों बढी है? जाहिर है अगर हजारों करोड़ रूपए खेल खेल में भ्रष्टाचार की बलिवेदी पर चढा दिए जाएंगे तो जनता का तेल निकलना स्वाभाविक ही है। देश का मीडिया चीख चीख कर कह रहा है कि गेम्स के नाम पर हजारों करोड़ रूपए भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गए हैं। मीडिया सबूत भी दे रहा है, पूरा भारत गणराज्य इस बात को मान रहा है, सिवाय देश के वजीरे आजम डॉ.मन मोहन सिंह, कांग्रेस की सबसे ताकतवर महिला श्रीमति सोनिया गांधी और भारत के खेल मंत्री मनोहर सिंह गिल के।

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लिमटी खरे
हमने मध्य प्रदेश के सिवनी जैसे छोटे जिले से निकलकर न जाने कितने शहरो की खाक छानने के बाद दिल्ली जैसे समंदर में गोते लगाने आरंभ किए हैं। हमने पत्रकारिता 1983 से आरंभ की, न जाने कितने पड़ाव देखने के उपरांत आज दिल्ली को अपना बसेरा बनाए हुए हैं। देश भर के न जाने कितने अखबारों, पत्रिकाओं, राजनेताओं की नौकरी करने के बाद अब फ्री लांसर पत्रकार के तौर पर जीवन यापन कर रहे हैं। हमारा अब तक का जीवन यायावर की भांति ही बीता है। पत्रकारिता को हमने पेशा बनाया है, किन्तु वर्तमान समय में पत्रकारिता के हालात पर रोना ही आता है। आज पत्रकारिता सेठ साहूकारों की लौंडी बनकर रह गई है। हमें इसे मुक्त कराना ही होगा, वरना आजाद हिन्दुस्तान में प्रजातंत्र का यह चौथा स्तंभ धराशायी होने में वक्त नहीं लगेगा. . . .

8 COMMENTS

  1. Govt. Concessions for a Member of Parliament (MP)
    —————————————————————–

    * Monthly Salary : 12,000 /-
    *Expense for Constitution per month : 10,000 /-
    * Office expenditure per month : 14,000 /-
    * Traveling concession (Rs. 8 per km) : 48,000 /-
    ( eg.For a visit from kerala to Delhi & return: 6000 km)
    * Daily DA TA during parliament meets : 500/- day
    * Charge for 1 class (A/C) in train: Free (For any number of times) (All over India )
    * Charge for Business Class in flights : Free for 40 trips / year (With wife or P.A .)
    * Rent for MP hostel at Delhi : Free
    * Electricity costs at home : Free up to 50,000 units
    * Local phone call charge : Free up to 1 ,70,000 calls.
    * TOTAL expense for a MP [having no qualification] per year : 32,00,000 /-
    [ i.e. 2.66 lakh/month]
    * TOTAL expense for 5 years : 1,60,00,000 /-
    * For 534 MPs, the expense for 5 years : 8,54,40,00,000 /- (nearly 855 crores)

    AND THE PRIME MINISTER IS ASKING THE HIGHLY QUALIFIED, OUT PERFORMING CEOs TO CUT DOWN THEIR SALARIES…..
    ————————————–
    This is how all our Tax Money is been swallowed and price hike on our regular commodities…….

    And this is the present condition of our country:
    855 crores could make their life livable !!
    Think of the great democracy we have………….

    I want to forward this message to all REAL citizens if my INDIA …..
    but,
    STILL Proud to be INDIAN
    अब आप हे सोचिये की ज़िंदगी भर नौकरशाह रहे आदमी से और क्या उम्मीद की जा सकती है । नौकरशाहों पर तो एक नियत समय तक राजनीति में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, नौकरी छोड़ने या सेवा निवृत्ति पर । किन्तु ये शायद कभी संभव नहीं हो पायेगा ऐसा मेरा सोचना है!

  2. manniya लिमटी खरे ji aapke is lekh ke liye aap badhai ke patra hain. desh ke naukarshah samantvadi mansikta se nikal nahi pa rahe hain. congress party ko naukarshahon aur aasman se utre logon se bahut jyada lagav hai. aise asabhya log desh ki garima ka hanan karte hain.

  3. श्री खरे जी का प्रश्न बिल्कुल जायज है.
    चोरी और सीनाजोरी. सॆया भये कोतवाल ……………………….
    चोर चोर …………….. ………………..
    स्कूल मे पढे मुहेवारे कम पड गये.
    वाकइ खेल मन्त्री का बयान सन्सदीय प्रनाली का अपमान है. लगता हॆ सरकार ने पिछ्ला और अगला चुनाव खर्च कामनवेल्थ खेल मे पूरा कर लिया है. लूटने की भी हद होती है. इनके आगे तो अन्गरेजो की लूट भी शरमा गई हॆ. क्या करे कामनवेल्थ खेल तो गोरी सरकार को सलामी देने के लिये ही है.

  4. श्री खरे जी का प्रश्न बिल्कुल जायज है.
    चोरी और सीनाजोरी. सॆया भये कोतवाल ……………………….
    चोर चोर …………….. ………………..
    स्कूल मे पढे मुहेवारे कम पड गये.
    वाकइ खेल मन्त्री का बयान सन्सदीय प्रनाली का अपमान है. सरकार ने पिछ्ला और अगला चुनाव खर्च कामनवेल्थ खेल मे पूरा कर लिया है. लूटने की भी हद होती है. इनके आगे तो अन्गरेजो की लूट भी कम पडं गइ. क्या करे कामनवेल्थ खेल तो गोरी सरकार को सलामी देने के लिये ही है.

  5. लिमिती खरे जी अप के विरुद्ध भी कोई फतवा आया ही समझो. कुछ वर्जित विषयों पर लिखने की इजाज़त नहीं है भारत के तालिबानी मीडिया के शासन में. वे विषय हैं कांग्रेस और उससे भी ऊपर श्रीमती सोनिया गांधी जी. गांधी जी को बदनाम करने, देश की परम्पराओं को लांछित करने, हर भारतीयकरण की बात करने वाले को साम्प्रदायिक, दुष्ट, बेईमान कहने के अधिकार केवल इनके पास सुरक्षित हैं. देश के हितों के सौदे, विदेशी शक्तियों के हाथ में देश को सौंपने के पवित्र कामों को करने वालों के विरुद्ध एक भी शब्द कहने का साहस नहीं किया जाना चाहिए. और आप हैं की इन सारी वर्जनाओं का उल्लंघन किये जा रहे हैं. देश के वर्तमान कर्णधार इस अपराध के लिए कोई कानूनी धरा ढूंढ़ रहे होंगे. न हो तो बना डालेंगे कोई क़ानून.

  6. ज़िंदगी भर नौकरशाह रहे आदमी से और क्या उम्मीद की जा सकती है । इससे उनकी दोहरी मानसिकता झलकती है एक ओर जहां संसदीय प्रक्रिया से अज्ञान वहीं आरटीआई से छुपी हुई भड़ास। ये सज्जन भारत के चुनाव आयोग के मुखिया रह चुके हैं । ऐसे लोग कैसे निष्पक्ष हो सकते हैं ? नौकरशाहों पर तो एक नियत समय तक राजनीति में भाग लेने पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए, नौकरी छोड़ने या सेवा निवृत्ति पर ।

  7. सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह की जोड़ी भारत के इतिहास की सबसे निकृष्ट नेता-जोड़ी है… सोनिया बगैर किसी जिम्मेदारी के और मीडिया को एक भी इंटरव्यू दिये बिना सत्ता-सुख और माल कमा रही हैं, जबकि मनमोहन सिंह पूरी तरह से अमेरिका की गिरफ़्त में हैं चाहे वह कश्मीर मामला हो या परमाणु सौदे का…

    मनमोहन को विश्व बैंक से तगड़ी पेंशन मिलती है, जबकि सोनिया के आगे पीछे कुत्ते की तरह घूमने वाले पत्रकार, मीडिया और चैनल हैं, इसलिये इनके सत्ता तन्त्र को कोई चुनौती नहीं है…। यदि कभी चुनौती कभी मिल भी गई तो “भोंदू युवराज” की ताजपोशी के लिये मनमोहन सिंह हाथ में उनकी चप्पल उठाकर सलाम बजाने से भी बाज नहीं आने वाले…

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