जब प्रधानमंत्री कैमरॉन ने कुर्सी छोड़ी

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david-cameronनरेश भारतीय

ब्रिटेन यूरोपीय संघ का सदस्य बना रहे या नहीं इस पर हुए जनमत संग्रह का परिणाम आते ही प्रधानमंत्री डेविड कैमरॉन ने त्यागपत्र देने की घोषणा कर दी। उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि वे ब्रिटेन के यूरोपीय संघ में बने रहने के पक्षधर थे। जनता ने उनकी इस सिफ़ारिश को अस्वीकार करते हुए देश को यूरोपीय समुदाय से अलग करने का फ़ैसला दिया था। इससे उनके देश का प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्हें पहले मिले जनादेश का कोई सम्बन्ध नहीं था।उनके लिए यह ज़रूरी नहीं था कि वे पद त्याग करें क्योंकि वे आम चुनाव में नहीं हारे थे। इस पर भी उनकी अंतरात्मा में गहरी पैठी नैतिकता ही थी कि उन्होंने ब्रिटिश लोकतंत्र में पनपे राजनीति के jश्रेष्ठ मूल्यों के अनुरूप बिना किसी के कहे एक विशिष्ट मुद्दे पर जनमत का आदर करते हुए त्यागपत्र देने का त्वरित निर्णय किया।
संसद में कंजर्वेटिव पार्टी को बहुमत प्राप्त है। इसलिए इसी पार्टी का नया नेता चुन कर आने तक डेविड ने कार्यवाहक प्रधानमंत्री के नाते काम करते रहने पर सहमति दे दी। पार्टी का सम्मेलन अक्टूबर में होने कोई सम्भावना थी। लेकिन सरकार बिना व्यवधान के चलती रहे पार्टी के अंदर नेता पद के लिए प्रतिस्पर्धा जल्द शुरू हुई। मैदान में उतरे तीन प्रतिस्पर्धियों में से दो वर्तमान गृहमंत्री श्रीमती टेरेसा मे के पक्ष के मज़बूत रहते उनके रास्ते से हट गए। टेरेसा को सर्वसम्मति से पार्टी का नेता चुन लिया गया। डेविड कैमरॉन ने अपने उत्तराधिकारी के लिए तुरंत अपना प्रधान मंत्री निवास १० डाउनिंग स्ट्रीट ख़ाली कर दिया। महारानी एलिज़ाबेथ से मिल कर अपना त्यागपत्र देने के लिए तैयारी शुरू कर दी। कुछ ही घंटों में सब कुछ निपट गया। कहीं कोई शोर नहीं, नारेबाज़ी नहीं, न पटाखों की कोई आवाज़ और न ही नई प्रधानमंत्री के समर्थकों का जमघट। डेविड कैमरॉन ने एक सफल प्रधानमंत्री के नाते इतिहास के पन्नों में अपना स्थान बना लिया और टेरेसा मे ने महारानी के आदेश के तहत शासन की बागडोर संभाल ली। संसद में निवर्तमान प्रधानमंत्री ने अपने विदाई भाषण में देश के प्रति अपनी निष्ठा और प्रेम को भावपूर्ण अभिव्यक्ति देते हुए अपने अभी सहयोगियों को धन्यवाद दिया और नव चयनित प्रधानमंत्री को बधाई दी। उनके १० डाउनिंग स्ट्रीट से विदा होते ही टेरेसा और उनके पति ने अपने नाए घर प्रधानमंत्री निवास में प्रवेश किया।
लोकतांत्रिक परम्पराओं का ऐसा शांत, स्वस्थ और अनुकरणीय अनुपालन ही ब्रिटेन को वैश्विक लोकतंत्र का अग्रणी सिद्ध करता आया है। देश के राजनीतिज्ञों के ऐसे शिष्ट व्यवहार को भी रेखांकित करता है जिसमें सत्ता के साथ चिपके रहने के लिए आचार व्यवहार को ताक पर नहीं रहा जाता। देश और जनता के प्रति अपने कर्तव्य को ईमानदारी से निभाने की सिद्धता नज़र आती है। वैसे भी ब्रिटिश जीवन में स्वाभावगत शालीनता, वाणी संयम और अनुशासन भरपूर मात्रा में रहते हैं। फिर राजनीति के अखाड़े में उतरने वाले यदि अपने सार्वजनिक जीवन में इन पर खरे नहीं उतरेंगे तो निश्चित ही जनता का समर्थन नहीं प्राप्त कर पाएँगे। नियमों का सहजता के साथ पालन और राजनीतिक धरातल पर मतभेदों के बने रहते परस्पर सौहाद्रपूर्ण व्यवहार और शिष्टता लोकतंत्र की परिपक्वता के प्रतीक माने जाते हैं।
पिछले ६वर्षों के दौरान डेविड कैमरॉन के कार्यकाल में ब्रिटेन आर्थिक दुरावस्था से उभर कर एक मज़बूत अर्थव्यवस्था के साथ खड़ा है। नई प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया है कि वे समाज के सभी वर्गों को साथ ले कर सबके साँझा हित के लिए काम करेंगी। वे जानती हैं कि आने वाले वर्षों में उन्हें कैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। सबसे पहला काम है यूरोपीय संघ की अपनी सदस्यता समाप्त करने से पूर्व सही शर्तों पर यूरोप के नेताओं के साथ कठिन वार्तालाप। विश्व के विकासोन्मुख देशों जिनमें भारत प्रमुख है उनके साथ सीधे व्यापारिक समझौते ताकि यूरोप से अलग हो जाने के फलस्वरूप होने वाले व्यापारिक नुक़सान की भरपूर्ति की जा सके। बहुत जल्द ही यूके के एक अंग स्कॉट्लैंड के अलग हो जाने के लिए जनमत संग्रह होने की सम्भावना है। यदि निर्णय ब्रिटेन से अलग हो जाने के पक्ष में हुआ तो ब्रिटेन सिकुड़ कर छोटा सा देश रह जाएगा। उसके परिणामों का भी बचे हुए देश इंग्लैण्ड को सामना करना पड़ेगा।
स्थितियों का आकलन यह बताता है कि नई प्रधानमंत्री टेरेसा मे अनुभवी राजनेता हैं और कुशलता से अपनी ज़िम्मेदारी निभाएँगी। जब ये पंक्तियाँ लिख रहा हूँ वे नई सरकार का गठन करने में जुटी हैं। कुछ दिनों में स्पष्ट होता जाएगा कि यूरोपीय समुदाय के अनेक बंधनों से मुक्त हो कर स्वतंत्र हुआ ब्रिटेन वैश्विक धरातल पर अपने लिए कैसी भूमिका विकसित करता है। टेरेसा मे को प्रधानमंत्री के नाते कार्यरत रहने के लिए नया जनादेश लेना चाहिए ऐसे कुछ स्वर भी पर्दे के पीछे उभरते प्रतीत होते हैं। इसका मतलब है समय पूर्व संसदीय चुनाव। मैं नहीं समझता कि मुख्य विपक्षी दल लेबर फ़िलहाल ऐसी चुनौती का सामना करने की स्थिति में है। उसमें नेतृत्व का संकट बना हुआ है। जब तक वह नहीं निपटता इसकी सम्भावना बलवती नहीं है।

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