प्रतिभाशाली युवा जब राजनीति में आयेंगे देश को प्रगति की राह दिखाएंगे

jat andolan
राजनीति

अभी कुछ ही दिन पहले #रोहितवेमुला द्वारा आत्महत्या की घटना और अभी  #जेएनयू की  घटना। इन घटनाओं ने छात्र राजनीति पर एक प्रश्न चिह्न लगा दिया है और इस विषय पर पुनः सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या पढ़ने वाले बच्चों को राजनीति में रुचि लेनी चाहिए या नहीं।हमारे देश की60% आबादी युवा है ये युवा अपने मताधिकारों का प्रयोग करके सरकारें चुनने एवं बनाने में अपना योगदान देते हैं। ऐसे में इनकी राजनीति में दिलचस्पी होना चाहिए या नहीं ?
यह एक उलझा हुआ विषय है जिसे हम आगे क्रमानुसार सुलझाने का प्रयास करेंगे। इसके लिए हमें आज के परिवेश से निकल कर इतिहास के झरोखे में झाँकना होगा,आखिर आज की नींव अतीत में ही कभी रखी गई होती है।
भारतीय छात्र आंदोलन का संगठित रूप सबसे पहले 1828 में कोलकाता में आकादमिक संगठन के रूप में सामने आया था जिसकी स्थापना एक पुर्तगाली छात्र हेनरी विवियन डीरोजियो द्वारा की गई थी।
हमारी आजादी की लड़ाई में देश के युवाओं का योगदान हम कभी नहीं भुला सकते। जिस छात्र राजनीति ने देश की आजादी के महासमर में अपना अभूतपूर्व योगदान दिया वो आज सबसे अधिक लाचारी के दौर से गुजर रही है। भारतीय स्वतंत्रता से लेकर स्वतंत्रता के बाद तक जितने बड़े आंदोलन हुए हैं उनमें छात्रों की सक्रिय भागीदारी रही।
पहली बार 1905 में छात्रों ने स्वदेशी आंदोलन शुरू किया।
1920 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में सभी युवा एक आवाज पर कूट पड़े थे।
1922 में चौरी चौरा कांड को राम प्रसाद बिस्मिल और चन्द्र शेखर आजाद के नेतृत्व में युवाओं ने ही अंजाम दिया था।
1942 में जब गांधी जी के आह्वान पर अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में लगभग सभी बड़े नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे तो छात्रों और युवाओं ने ही इसे आगे बढ़ाया था।अशफ़ाक ख़ान,रोशन सिंग लहिधी ओर भगत सिंग सभी यूवा ही तो थे।
1936 में आल इंडिया स्टूडेन्ट फेडरेशन की स्थापना हुई और इसका स्वतंत्रता के आंदोलन में उल्लेखनीय योगदान रहा।
स्वतंत्रता के बाद भी हमारे देश को छात्र राजनीति ने आज तक कई बड़े बड़े राजनेता दिए हैं।
सुषमा स्वराज 1970 एबीवीपी
लालूप्रसाद यादव 1973 पटना यूनिवर्सिटी
अजय माकन 1985 दिल्ली यूनिवर्सिटी
सीता राम येचुरी 1974 जे एन यू
इसी प्रकार प्रफुल्ल कुमार महन्त ,अरूण जेटली, नीतीश कुमार, सी पी जोशी जैसे कद्दावर नेता छात्र राजनीति की ही देन हैं।लेकिन यह बेहद अफसोस की बात है कि आज छात्र संघों के चुनाव लगभग पूरे देश में प्रतिबंधित हैं। एक प्रश्न यह भी है कि आज यही छात्र राजनीति इतने कुत्सित रूप में कैसे पहुँच गई! आइए इस रहस्य को भी समझ लें।
दरअसल स्वतंत्रता के बाद पंडित नेहरू ने छात्रों को पढ़ाई तक सीमित रहने की सलाह दी। उनका कहना था कि छात्रों का ध्यान केवल पढ़ाई तक सीमित रहे,राजनीति में हिस्सा न लें ।
आपको यह जानकारी शायद कुछ अजीब लगे कि पंजाब सरकार विद्यार्थी के कालेज में दाखिले के पहले उससे इस आशय के सन्धि पत्र पर हस्ताक्षर करवाती है कि वह किसी प्रकार की राजनीति में दिलचस्पी नहीं लेंगे।
हमारी आज की शिक्षा प्रणाली कुछ ऐसी है जो बच्चों को केवल किताबी ज्ञान के आधार पर उनका एकमुखी विकास कर उनकी प्रतिभाओं को सीमित करने का कार्य करती है। हमारे बच्चों को ऐसी शिक्षा परोसी जा रही है जिसमें व्यवहारिक ज्ञान नगण्य है यही कारण है कि आज एक पढ़ा लिखा विद्यार्थी जब जीवन में समाज की मुख्य धारा से जुड़ता है तो अनेकों परिस्थितियों में स्वयं को बेबस और असहाय पाकर उनसे समझौते करने को विवश पाता है। उसका पढ़ा लिखा और सभ्य होना ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी बन जाती है।
जिस नौजवान को आगे चल कर देश की बागडोर अपने हाथ में लेनी है उसको हम ऐसी अधूरी, अव्यवहारिक और सत्य से परे केवल कहने और सुनने में ही शोभनीय शिक्षा दे कर किस ओर ले जाना चाह रहे हैं। अपने स्वार्थों की पूर्ति में हम इस तथ्य को नहीं समझ पा रहे हैं कि कालेज जीवन  की पढ़ाई और भारतीय समाज की मुख्यधारा की पढ़ाई के अन्तर को समझने में एक युवा कितने अन्तरद्वन्दों का सामना करता है। जो व्यवहारिक होते हैं उनके लिये तो आसान होता है लेकिन जो युवा अभी तक पढ़े किताबी ज्ञान को ही परम सत्य समझने की भूल करते हैं ———!
हम कहते हैं विद्यार्थी का मुख्य काम पढ़ना है लेकिन क्या देश की परिस्थितियों से उसका अनजान रहना सही है देश के लिए या स्वयं उसके लिए भी?
असल में हमारी शिक्षा नीति का कहना है कि पढ़ो और सोचो लेकिन व्यवहारिक मत बनो नहीं तो तुम अधिक योग्य हो जाओगे ,देश के लिए तो फायदेमंद सिद्ध होगे लेकिन हमारे राजनेताओं के लिए नुकसानदायक!
यह बात ऐसे समझनी ज्यादा आसान होगी कि वर्तमान परिवेश में राजनीति में परिवारवाद हावी है।छात्र राजनीति से निकलने वाली प्रतिभाएं आज बड़े बड़े राजनैतिक घरानों के बाहुबल और धन बल के आगे पिछड़ जाती हैं उनमें योग्यता होने के बावजूद परिवारवाद के कारण आगे बढ़ने नहीं दिया जाता। ये प्रतिभाएं जीवन भर एक कार्यकर्ता के रूप में देश,समाज तथा प्रदेश के कुछ परिवारों की गुलाम बन कर रह जाती हैं।
क्या विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव खत्म हो जाने से भ्रष्टाचार, अराजकता,गुंडागर्दी आदि समाप्त हो गई? छात्र राजनीति राजनीति की पाठशाला होती है और लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम रखने के लिए छात्र संगठनों की आवश्यकता होती है किन्तु मर्यादाओं के साथ। 1970 तक छात्र राजनीति स्वस्थ एवं स्वच्छ थी किन्तु इसके बाद राजनैतिक पार्टियों ने छात्र संगठनों का उपयोग अपने राजनैतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए करना शुरू कर दिया। आज हर छात्र संगठन किसी न किसी राजनीतिक दल द्वारा संरक्षित है।
एक और पहलू है जिसने छात्र राजनीति को कलंकित किया है, वो है “हिंसा”। छात्र राजनीति में हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए किन्तु भारत में हमारे राजनेता ही युवाओं को जोश में होश खो देने के लिए उकसाते हैं । चूँकि छात्रों को पता होता है कि उन्हें अमुक राजनैतिक दल का पूर्ण समर्थन है और किसी भी परिस्थिति में वे बचा लिए जांएगे (जैसे कि कनहैया) वे हिंसक होने से भी नहीं डरते। लेकिन इस सब के बीच वे यह छोटी सी बात नहीं समझ पाते कि वे सिर्फ किसी के हाथ की कठपुतली बनकर केवल एक मोहरा बनाकर रह गए हैं जिनका उपयोग किया जा रहा है।
यह कहा जाता है कि यदि राजनीति आपका भविष्य तय करती है तो आपको तय करना होगा कि आपका राजनीति में क्या स्थान है।
स्वतंत्रता संग्राम में जिन छात्र संगठनों का अभूतपूर्व योगदान रहा उन्हें आजादी के बाद इस प्रकार कमजोर कर देना न राष्ट्र हित में है और न ही छात्र हित में।
छात्र जीवन पढ़ने के लिए होता है,सीखने के लिए होता है,प्रतिभाओं को पहचान कर उन्हें निखारने के लिए होता है किताबों तक सीमित ज्ञान से बेहतर है सर्वांगीण विकास। देश के सामाजिक,तात्कालिक एवं राजनीतिक मुद्दों की जानकारी और उसमें छात्रों की हिस्सेदारी न सिर्फ उन्हें व्यवहारिक ज्ञान देता है अपितु उन्हें भविष्य के जिम्मेदार नागरिक बनने की क्षमता पेदा करता हे।
छात्र राजनीति पर प्रतिबंध लगाने से बेहतर है छात्र राजनीति में राजनैतिक दलों के हस्तक्षेप पर प्रतिबंध। छात्रों को स्वयं प्राकृतिक एवं नैसर्गिक रूप से देश और राजनीतिक को समझने का मौका देकर स्वस्थ छात्र राजनीति को प्रोत्साहित करके हम अपने देश के राजनैतिक भविष्य को उज्ज्वल करने की दिशा में एक ठोस कदम उठा सकते हैं। इससे हमारे देश को कई होनहार प्रतिभाओं का उपहार मिल सकता है जो हमारे देश की नींव को मजबूत ही करेगा ।
परिवारवाद के बोझ तले दबी भारतीय राजनीति
देश के युवाओं को उम्मीद से निहारती

डॅा नीलम महेंद्र

2 COMMENTS

  1. मानव संसाधन सूचकांक में वृद्धि होनी चाहिए. पाठ्यक्रम में सुधार होना चाहिए. भारतीय भाषा में शिक्षा का विकास होना चाहिए. तभी युवा चमत्कार कर पाने की स्थिती में आएँगे.

  2. राजनैतिक दलों का छात्र संगठनों में दखल , व अपने अपने दल के संगठन बनाना छात्र राजनीति को समूल रूप से नष्ट करना है , यह ढंग अब रुकने वाला नहीं है , और इसका परिणाम होगा देश में दिन ब दिन अराजकता को बढ़ावा , अब रोहित व कन्हैया के मामले ने सस्ती लोकप्रियता पाने , व राजनीति में जाने का एक शार्ट कट दिखा दिया है , हालाँकि यह भी इतना कतई सहज नहीं है , लेकिन आये दिन विश्व विधालयों में अनुशासन हीनता व अराजकता को बढ़ावा मिलेगा , इसमें कोई दो राय नहीं है

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