अब कब आयेंगे कृष्ण?

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आज कृष्ण को फिर से आना ही होगा। अब कब आयेंगे कृष्ण? वो कब मानेंगे कि पाप का घड़ा भर गया? कब मानेंगे कि समाज व्यवस्था को गालियों की संख्या सौ नहीं करोडो से ज्यादा हो चुकी है? कब मानेंगे कि एक द्रोपदी नहीं बल्कि रोज कही ना कही हजारों द्रोपदियों का चीरहरण हो रहा है? अब कब मानेंगे कि चारो तरफ केवल पाँच भाइयों का नहीं बल्कि करोडों का अधिकार छीना जा रहा है? केवल एक अभिमन्यु नहीं करोडों अभिमन्यु घेर कर धोखे से मारे जा रहे है। कब मानोगे कृष्ण कि जमुना का पानी फिर जहरीला हो गया है। तुम्हारे लोग उतने आजाद नहीं रहे कि कही भी कुञ्ज गलियों में या उन खेतो और बागों में जब चाहे भ्रमण कर सके, उन पेड़ों पर या उसके नीचे वैसे ही जा सके जैसें तुम्हारे साथ जाते थे। तुम्हारी प्यारी नदी जिसके जहरीली हो जाने पर तुमने काली नाग का वध किया था, वह और ज्यादा जहरीली हो गयी है, आदमी क्या पशु भी उसका पानी नहीं पी सकते है। तुम्हारा प्यारा दूध और मक्खन, उसमें भी लोग जहर मिलाने लगे है। तुम तो सर्वज्ञ हो तब तो निश्चित ही तुम्हें यह सब पता ही होगा। फिर भी संकट में घिरी द्रौपदी की तरह ही मैं तुम्हें आवाज लगा रहा हूँ कि अब तो आओ ना कृष्ण। तुम सब जानते हो फिर भी आर्द्र स्वर पुकारेगा तो कुछ तो कहेगा ना, कुछ तो शिकायत करेगा ना, कुछ तो बताएगा ना और कुछ तो रूठेगा ना। कब आ रहे हो कृष्ण? क्या तुम देख रहे हो उन लाखों लोगों को जो किसी भी उम्र के है, पर तुम्हें बुलाने के लिए मीलों लम्बी परिक्रमा करते है, कभी गोवर्धन की तो कभी वृन्दाबन और कभी बरसाने की। कुछ लोग तो पूरे ब्रज की परिक्रमा कर डालते है। ऐसे भी तो है लाखों जो तुम्हें बुलाने को जमीन पे लेटे लेटे ही पूरी परिक्रमा कर डालते है मीलो की। जो चलते है छाले तो उन सबके पैरों में भी पड़ते है, पर कभी सोचा कि वह छोटा सा बच्चा, वह कमजोर या भारी भरकम औरत या आदमी जो ठीक से चल भी नहीं पाते है, जब जब वे लेटे-लेटे ही पलटी मारते हुए तुम्हे बुलाने के लिए यह मीलो लम्बी परिक्रमा करते है तो उनका बदन कितना छिलता है और कितना दुखता है? तुमने ही तो उस महाभारत के मैदान में अपना विराट स्वरुप दिखया था और कहीं दूर आती हुई तुम्हारी आवाज ने कहा था कि दुनिया में जो भी है वह तुम हो या वह सब तुममें ही समाहित है। सब तुम ही कर रहे हो। सब तुम ही हो तो जब इन सबके शरीर घायल होते है तो तुम भी तो घायल होते होगे। वह सारा दर्द तुम भी तो महसूस करते होगे फिर भी???और कृष्ण जब सब तुम्हीं हो और तुम्हीं करते हो तो तो यह बिलकुल अबोध बच्चो का अपहरण, हत्या? द्रौपदियों का केवल चीरहरण ही नहीं बल्कि बलात्कार? ये सारी मिलावट, जमाखोरी, अन्याय, जुल्म, शोषण, गैर बराबरी क्या यह सब तुम्हीं करते हो? नहीं तो तुम्हें अब इन सब कृत्यों पर क्रोध नहीं आता? क्या तुम्हारा न्याय का संकल्प कुछ कमजोर हुआ है या तुमने उस युग में इतनी मेहनत कर दी कि इस कलयुग में लम्बे विश्राम का फैसला कर रखा है। जरा एक बार देखो तो अपने ही विराट स्वरुप के इन हिस्सों को भी। अगर कहीं ऊपर रहते हो तो एक बार झांक कर देखो अगर नीचे रहते हो तो उठ कर देखो और अगर हर जगह रहते हो तो जाग कर देखो आँखें खोल कर देखो तुम्हारा भारत बिना तुम्हारे चाहे और रचे ही महाभारत में तब्दील हो चुका है। देखो हर घर में महाभारत, हर गाँव में महाभारत, हर जाति और धर्म में महाभारत। पहले एक महाभारत हुई था तो सब ख़त्म हो गया था और युधिस्ठिर रोये थे कि ऐसा राज्य लेकर क्या करूंगा, तुम भी जरूर अन्दर अन्दर बहुत रोये होगे, क्योंकि चारों तरफ कटे फटे, टुकड़े टुकड़े मरे और घायल तुम्हीं तो पड़े थे। पर अब तुम्हारे भारत में चारो तरफ महाभारत हो रही है, कि चाहे कितने भी मर जाये पर राज हमारा हो, चाहे कितने भी मर जाये नकली दवाई से लेकर तमाम तरह की चीजें खा पी कर पर सारी दौलत हमारी हो। कितना बदल गया ना तुम्हारा भारत कृष्ण? क्या तुम आओगे या आज के कंसों, आज के दुर्योधनों से तुम भी डरने लगे हो? कुछ तो बोलो कृष्ण! तुमने कहा था कि मनुष्य केवल चोला बदलता रहता है और बदल कर फिर पृथ्वी पर जन्म लेता है। देखो जरा गौर से देखो कहीं तुम्हारी सबसे ज्यादा प्रिय राधा भी तो कहीं किसी रूप जन्म लेकर किसी मुसीबत में तो नहीं है, कही उसके साथ कुछ बुरा तो नहीं हो रहा है। तुम्हारी जोगन मीरा, तुम्हारा दोस्त जिसे उस युग में तुमने सब दे दिया था, इस युग में किस हालत में है। देखो वह द्रोणाचार्य, कृपाचार्य अपनी भूमिकाये बदल तो नहीं चुके। अर्जुन रक्षा के स्थान पर कुछ और तो नहीं कर रहे? भीम की ताकत कही लोगो की मुसीबत तो नहीं बन गयी है? उस युग में जूए में सब हर जाने वाले राजपाट और पत्नी तक वो युधिष्ठिर कहीं तुम्हारे भारत की पीठ में छुरा तो नहीं घोंप रहे है? तुम्हें तो सब याद होगा कृष्ण क्योकि जब सब तुम्हीं से आते है और सब तुम्ही में विलीन हो जाते है तो तुम तो हर समय सबको देखते ही रहते होगे कृष्ण? कुछ तो बोलो कृष्ण, एक बार फिर वही विराट स्वरुप दिखाओ और बताओ कि अब क्या होने वाला है? ये सब जो हो रहा है, इसका क्या मतलब है? व्याख्या तो करो कृष्ण! तुम्हारा गीता का उपदेश बहुत पुराना पड़ चुका है। वह अब भारत को दिशा नहीं दिखा पा रहा है कृष्ण। देखो सभी तुम्हारे तुमसे रूठ जायेंगे और तुम भी कैसे हो गए हो? उस समय तो छोटी छोटी बातो पर प्रकट हो जाते थे कही भी, किसी की भी मदद करने को किसी को भी उबारने को। तो अब क्या हो गया है? कोई नाराजगी है तो वह बताओ ना !देखो सब अधीर है तुम्हारे लिए कि तुम कब आओगे, कब उबारोगे भारत को इन ना ख़त्म होने वाली महाभारतो से। तब तो एक दो मौको पर ही झूठ और छल का सहारा लिया गया था, अब तो केवल झूठ और छल से ही सब हो रहा है। ऐसा लगता है कि तुम्हारे बारे में नई दृष्टि से देखने तथा नए ढंग से सोचने की जरूरत है. क्योकि कृष्ण तुम्हारा मतलब तो था कि वो जो सदैव दूसरों का था, दूसरो के लिए था. जिसकी जन्म देने वाली माँ पीछे छूट गयी और पालने वाली बाजी मार ले गई, जिसके दोस्त की चर्चा कही बहुत ज्यादा हुई और भाई पीछे छूट गया था, जिसकी पत्नी या पत्नियों को उनकी दोस्त राधा से बड़ी जलन हुई थी और हो सकता है आज भी हो रही हो, जो एक साथ सोलह हजार को अपना लेने की क्षमता रखता था, जो सत्ता को चुनौती देने की क्षमता रखता था और जिसने उस युग में एक युद्ध छेड़ दिया था कि जो खा नहीं सकता उस भगवान को क्यों खिलाते हो, शायद सूंघ भी नहीं सकता, इसलिए लाओ मै खा सकता हूँ मुझे खिलाओ और उन सब को खिलाओ जिन्हें भूख लगती है. केवल चुनौती ही नहीं दिया था वरन जब मुसीबत आई थी तो सभी की रक्षा में आगे आकर खड़ा हो गया था यह तुम्ही तो थे कृष्ण। मैं सोचता हूँ कि इन्द्र के प्रकोप से बचाने के लिए तुमने कैसे अपनी छोटी सी उंगली पर इतना बड़ा पहाड़ उठाया होगा, तुम्हारी उंगली दुखी तो जरूर होगी और शायद आज भी दुख रही है कहीं इसलिये तो नहीं तुम नहीं आ रहे हो कि उंगली पर पट्टी बांध कर बैठे हो.लेकिन ऐसा लगता है कि उस पहाड़ के उठाने से ज्यादा तुम्हारे नाम पर किये जा रहे पापो के बोझ से तुम्हारा सर और पूरा शरीर दुख रहा है. कितना पैदल चले थे तुम कृष्ण, नाप दिया पूरब से पश्चिम तक भारत को ओर दो छोरो को जोड़ दिया, परिचय करा दिया इतने बड़े हिस्से का एक दूसरे से. कभी सोचता हूँ कि यदि जूआ नहीं होता रहा होता तो क्या होता, यदि द्रौपदी की साड़ी भरी सभा में नहीं खींची गई होती तो क्या होता, इतिहास कौन सी करवट लेता. भारत, महाभारत होता या फिर भी भारत में तब भी महाभारत होता, सवाल बड़ा है जवाब आसान नहीं है. लेकिन कृष्ण तुम आज मंदिरों में फूल मालाओ, भारी भारी कपड़ो और बड़े बड़े मुकुटों के नीचे दब कर कराह रहे हो ऐसा लगता है कभी कभी। कृष्ण तुम्हारा मतलब ही था बड़े दिल वाला, दूसरों को अपनाने वाला, हर अन्याय से संघर्ष करने वाला आज अपने अस्तित्व के लिए कही तुम्ही जूझ रहे हो कृष्ण। तुम्हें इस संघर्ष से निकलना ही होगा और आकर फिर से कहना ही होगा; रे दुर्योधन मैं जाता हूँ, तुझको संकल्प सुनाता हूँ, याचना नहीं अब रण होगा. जीवन जय या कि मरण होगा; तुम्हीं बताओ कि कैसे तुम्हारी दुखती उंगली का दर्द घटे, कैसे तुम्हारे सर और शरीर का बोझ हटे और सम्पूर्ण कलाओं का मालिक कृष्ण, संघर्ष और न्याय का प्रतीक कृष्ण स्वतंत्र होकर फिर हमारे सामने हो। विराट स्वरुप दिखाता हुआ, आज के सन्दर्भ में गीता का ज्ञान देता हुआ, और इस सभी तरह की महाभारतों से निकाल कर फिर से भारत को भारत बनता हुआ। अब तो आ रहे हो ना कृष्ण, कृष्ण तुम आओ ना, देखो सुनो मीरा कहीं अब भी गा रही है और मीरा क्या उसके स्वर में स्वर मिला कर सब गा रहे है

मेरे तो गिरधर गोपाल दूजो ना कोय

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डॉ. सी. पी. राय
एम् ए [राजनीति शास्त्र], एल एल बी ,पी जी डिप [समूह संचार]। एम एड, पी एच डी [शिक्षा शास्त्र] पी एच डी [राजनीति शास्त्र]। संसदीय पुस्तक पुरस्कार से सम्मानित। पूर्व राज्य मंत्री उत्तर प्रदेश। अध्यापक ,गाँधी अध्ययन। डॉ बी आर आंबेडकर विश्व विधालय आगरा। १- "संसद और विपक्ष " नामक मेरी प्रकाशित शोध पुस्तक को संसदीय पुस्तक पुरस्कार मिल चुका है। २-यादो के आईने में डॉ. लोहिया भी एक प्रयास था। ३-अनुसन्धान परिचय में मेरा बहुत थोडा योगदान है। ४-कविताओ कि पहली पुस्तक प्रकाशित हो रही है। ५-छात्र जीवन से ही लगातार तमाम पत्र और पत्रिकाओ में लगातार लेख और कवितायेँ प्रकाशित होती रही है। कविता के मंचो पर भी एक समय तक दखल था, जो व्यस्तता के कारण फ़िलहाल छूटा है। मेरी बात - कविताएं लिखना और सुनना तथा सुनाना और तात्कालिक विषयों पर कलम चलाना, सामाजिक विसंगतियों पर कलम और कर्म से जूझते रहना ही मेरा काम है। किसी को पत्थर कि तरह लगे या फूल कि तरह पर मै तों कलम को हथियार बना कर लड़ता ही रहूँगा और जो देश और समाज के हित में लगेगा वो सब करता रहूँगा। किसी को खुश करना ?नही मुझे नही लगता है कि यह जरूरी है कि सब आप से खुश ही रहे। हां मै गन्दगी साफ करने निकला हूँ तों मुझे अपने हाथ तों गंदे करने ही होंगे और हाथ क्या कभी कभी सफाई के दौरान गन्दगी चेहरे पर भी आ जाती है और सर पर भी। पर इससे क्या डरना। रास्ता कंटकपूर्ण है लेकिन चलना तों पड़ेगा और मै चल रहा हूँ धीरे धीरे। लोग जुड़ते जायेंगे, काफिला बनता जायेगा और एक दिन जीत सफाई चाहने वालो कि ही होगी।

2 COMMENTS

  1. हीरो बली न होत है ,समय होत बलवान …
    भिल्लन लूटी गोपिका ,वेई अर्जुन वेई बाण …

  2. राम जी ने पहले ही मना कर दिया था. कृष्ण नहीं आयेंगे…….. मना कर दिया उन्होंने ….. अपना वादा तोड़ दिया………

    बदल गए हैं हम………
    अब हमें बचने वो नहीं आयेंगे…….

    पहले हमें ही बदलना होगा – अपने को ………. कोशिश अपने से ही शुरू करनी होगी ……. समाज फिर बदलेगा……….

    बाद में कृष्ण को पुकारा जायेगा.

    बहरहाल “माया” के चंगुल मैं है सब.

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